देवधर में महाराजा बिजली पासी की प्रतिमा का अनावरण !

देवघर, झारखण्ड: अखिल भारतीय पासी समाज, देवघर के द्वारा दिनांक 06 अप्रैल 2017 को महाराजा बिजली पासी का राज्यरोहण समारोह धूमधाम से मनाया गया। इसके साथ ही देवघर के महाराजा बिजली पासी चैक पर महाराजा बिजली पासी की आदमकद प्रतिमा का अनावरण भी किया गया। इसकी जानकारी देवघर पासी समाज के अध्यक्ष दिलीप कुमार महथा ने दिया है।


इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चैधरी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का उद््घाटन श्रीमती रीता राज खवाड़े, महापौर, देवघर नगर निगम ने किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में सुरेश पासवान (पूर्व मंत्री, झारखण्ड सरकार), राज नारायण खवाड़े- पूर्व महापौर देवघर, अशोक कुमार चैधरी- शिक्षा मंत्री- बिहार सरकार, मनीष कुमार- विधायक, श्रीमती सुधा चैधरी- पूर्व मंत्री, आर0सी0 कैथल- पूर्व ए.डी.जी.पी., राघो चैधरी- राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अ.भा. पासी समाज, आर.पी. चैधरी- प्रदेश अध्यक्ष अ.भा. पासी समाज, सुकर पासी- कार्यकारी अध्यक्ष पासी समाज झारखण्ड, जगदीश चैधरी- अध्यक्ष अ.भा. पासी समाज बिहार, हीरालाल चैधरी- सचिव पासी समाज, बिहारी प्रसाद- अध्यक्ष जगलाल चैधरी स्मृृति संस्थान, विश्वनाथ प्रसाद- मुख्य अभियंता आदि प्रमुख लोग उपस्थित रहे।

एक आवाहन ..!


मेरा ह्रदय भावनाओं से भरा हुआ है कि मैं उन्हें व्यक्त करने में असमर्थ हूँ साथियों जब तक करोड़ों व्यक्ति भूखें और अज्ञानी हैं, तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को कृतघ्न ( दोषी ) समझता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित बना है, पर उनकी ओर ध्यान नहीं देते। दुखियों के दुख का अनुभव करो जैसे तथागत बुद्ध,महावीर स्वामी, कबीर दास, रविदास जी, ज्योतिबा फुले ,सावित्री फुले और डा० भीम राव अम्बेडकर साहब ने महसूस किया था और गरीबों की सहायता के लिए भगवान बुद्ध तुम्हें सफलता देंगे ही। मैं अपने हृदय में इस वेदना को और मस्तिष्क में इस भार को लेकर वर्षों से भटक रहा हूँ। वेदना भरा हृदय लेकर हजारों लोगों से मिला और इस कार्य हेतु आधा भारत पार कर चुका हूँ कि सहायता प्राप्त हो सके,इस भूखंड में शीत से या भूख से भले ही मर जाऊँ पर हे तरुणों ! मैं तुम्हारे लिए एक वसीयत ( संदेश) छोड़ जाता हूँ। मेरे समाज तथा देश के भावी सुधारकों! मेरे भावी देश भक्तों। हृदय से अनुभव करो ! क्या तुम अनुभव करते हो कि देश के महापुरुषों और महान राजाओं के वंशज आज पशु तुल्य हो गए हैं? …….देश पर अज्ञान के काले बादल छाये हुए हैं ? क्या इस अनुभूति ने तुम्हें बेचैन कर दिया है ? क्या तुम्हारे हृदय की प्रत्येक धड़कन के साथ एक रुप हो चुकी है ? क्या इसी ने तुम्हें पागल या मदहोश सा बना दिया है ? क्या तुम अपने नाम अपने यश ,अपनी पत्नी,अपने बच्चों,अपनी धन सम्पत्ति यहाँ तक कि अपने शरीर को भूला बैठे हो ?

मुझे उस धर्म का अनुयायी होने का अभिमान है, जिसने संसार को सहिष्णुता और विश्व प्रेम की शिक्षा दी है, जिसकी वजह से हमें विश्व गुरु का रुतबा मिला है। हम केवल विश्व व्यापिनी सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं रखते, हम यह भी मानते हैं कि सभी धर्म सच्चे हैं। मुझे उस जाति में उत्पन्न होने का अभिमान है,जिसने अत्याचार पीड़ितों को मतवादियों द्वारा सताये हुए लोगों और पृथ्वी की सब जातियों को आश्रय दिया जिसने समस्त विश्व को ज्ञान दिया जिसने भारत वर्ष को विश्व गुरु होने का दर्जा प्रदान किया आज पूरा विश्व उन्हें मानता है,आज उनका सबसे मोहक मंत्र जो मुझे सर्वप्रिय लगता है आपके सामने रखता हूँ ” अप्प दीपो भव ” अर्थात अपने प्रकाश से प्रकाशवान हो ,अपने ज्ञान से चमको और छा जाओ विश्व पटल पर, उठो साथियों मुझे आपके अन्दर जो चाहिए वो है लोहे की नसें और फौलाद के स्नायु जिनके भीतर ऐसा मन वास करता हो जो कि बज्र के समान पदार्थ का बना हो बल ,पुरुषार्थ , क्षात्रवीर्य और ब्रम्हतेज हो जो दुश्मनों के लिए चट्टान की तरह अडिग हो और गरीबों असहायों के लिए कोमल सहृदय हो जो उनकी मदद ,तरक्की उत्कर्ष के लिए सदैव लालायित रहें ।

धन्यवाद

लेखक -डा० यशवंत सिंह

पासी समाज इन मुंबई यूनिवर्सिटी – RCP का एक प्रयास समाज के लिए !

 


बाबा साहेब और फूले की विचार धारा शिक्षित बनो , संगठिति बनो , संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए इस क्षेत्र में प्रैक्टिकल रूप में कार्य करने का क़दम RCP ने बढ़ाया है ।
इस अप्रेल माह में बाबा साहेब और महात्मा फुले साहेब दोनो की जयंती है । दोनो ही महापुरुषों ने शिक्षा के जगत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । और इनकी जयंती मनाने के लिए RCP ने कल यानि ९ अप्रेल २०१७ को समाज के बच्चों और पेरेंट के लिए एक दिवसीय शैक्षणिक और कैरीयर गाइडेन्स शिविर का आयोजन किया था मुंबई यूनिवर्सिटी में । 
इन महापुरुषों की जयंती मनाने का इससे अच्छा तरीक़ा नहि हो सकता ।
इस कार्यक्रम की सफलता के बारे में मैं कुछ नहि कहूँगा आप लोग ख़ुद ही तस्वीरें देख लीजिए क्योंकि तस्वीरें ख़ुद ही बोलती है । 

जैसा कि हमने पहले ही कहा था ऐसे परिवेश में ऐसा कार्यक्रम पासी समाज में इसका संदेश दूर तक जाएगा । 

ऐसा कार्यक्रम करने का अगला प्लान उत्तर प्रदेश में आयोजित करने का है । जिसके लिए उत्तर प्रदेश के सभी साथी कंधे से कंधा मिला कर खड़े होंगे ।


इसके अलावा मुंबई यूनिवर्सिटी में पासी समाज का के इस तरह के आयोजन ने काफ़ी लोगों को आकर्षित किया । बैनर देखकर यूनिवर्सिटी के काफ़ी प्रोफ़ेसर हमसे मिलने के लिए आए और टीम को प्रोत्साहित किया साथ ही समाज के लोगों को किसी भी तरह की सहायता के लिए आश्वासन दिया ।

मुंबई यूनिवर्सिटी में किसी भी तरह की संस्था को बैनर लगाने की अनुमति नहि मिलती पर हमारे प्रोग्राम से यूनिवर्सिटी के एक डाईरेक्टर काफ़ी ख़ुश हुए और जो बाहर बैनर लगा था ख़ुद फ़ोन करके बोले की बैनर इस पूरे महीने लगा रहने दो ताकि समाज में संदेश जाए । आ यूनिवर्सिटी जाएँगे तो आपको पासी समाज का RCP बैनर ज़रूर दिखाई देगा । जिसकी वजह से काफ़ी लोग न सिर्फ़ पासी समाज के बारे में जानने की कोशिश करेंगे बल्कि नेट पर भी खोजेंगे .

 मैं बहुत संक्षिप्त में कार्य्य्र्म के बारे में बताऊँगा जिससे आपको कार्यक्रम के बारे में और RCP के कार्य करने और उसकी विचारधारा के बारे में जानकारी मिलेगी ।
कार्यक्रम की शुरुआत सभी ने संविधान उद्देशिका पढ़ कर की । उसके बाद सीन्यर साथियों ने बाबा साहेब , महात्मा फूले, और शाहू महाराज पर माल्यार्पण किया ।

बाबा साहेब की १२६ जयंती थी हमने बच्चों के हाथ केक कटवा कर बाबा साहेब की १२६ जयंती मनाई।

उसके बाद प्रमुख मार्गदर्शको ने अपने प्रेज़ेंटेशन दिए उनके नाम और डिग्री आपने हैंड्बिल में देखा ही था नीचे भी बैनर में नाम दिए है । इसके अलावा हमारे 
कार्यक्रम दो सेशन में था पहला १०:३० से १ :३० बजे तक फिर १:३० २:०० बजे तक ब्रेक और लंच था ताकि लोग रेफ़्रेश हो जाए दूसरा सेशन २-४ बजे तक था और फिर ४-५ बजे तक सीन्यर साथियों और उपस्थिति लोगों ने अपने विचार रखे । 
गाइड करने वालों में C A प्रभावती जी , ब्रिजेश जी , संजय वैराल जी , सी पी सरोज जी , डा० रमाशंकर भारत जी , और राजेश जी ने बहुत अच्छी तरह से पेरेंट और बच्चों को गाइड किया । RCP की तरफ़ से इन सभी को फुले और सावित्री बाई की फ़ोटो लगी स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया । 
इसके अलावा १५ सेट के एक प्रशंन बच्चों को दिए गए थे नीचे आप इमेज में देख सकते है उन प्रश्नो को । यह प्रश्न बुद्ध, अम्बेडकर , फुले और पासी समाज से जुड़े थे । सबसे जयदा उत्तर देने वाले तीन विद्यार्थियों को पुरस्कार दिया गया । इसी बहाने कम से कम इन लोगों ने नेट पर से समाज के बारे में जानने की कोशिश की । 
RCP पूरी तरह से युवाओं द्वारा संचालित है जिसके बेस में बहुत से सीन्यर साथी सहयोग दिए है जिसके कारण यह ग्रुप खड़ा है ।RCP ग्रुप पर न सिर्फ़ सीन्यर साथियों ने बल्कि समाज के लोगों ने भी भरोसा किया यह RCP के लिए गर्व की बात है ।
धन्यवाद , जय भीम 
           -RCP टीम , मुंबई 

समाजवादी सरकार में क़ब्ज़ा की गई ज़मीन वापस दिलाने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार !


उत्तर प्रदेश सरकार बदलते ही गरीबों को न्याय मिलने की उम्मीद भी जग गई है। बीजेपी ने अपने चुनावी वादों में जमीनों पर अबैध कब्ज़े को हटाने का वादा किया है। समाजवादी सरकार में दबंगो द्वरा कब्जा गरीबो की ज़मीन वापस दिलाने के लिए हर दिन विज्ञापन अखबारों में छाया रहता था। इसीलिए शायद गरीबो ने भाजपा को वोट भी दिया है। इलाहाबाद के सरायइनायत थाना अंतर्गत जीतलाल पासी  की ज़मीन वर्षो से एक दंबग यादव ने कब्जा कर रखा है। जिस उसने ढाबा बना रखा है। ग़रीब पासी ने बहुत हाथ पांव मारा लेकिन सपा सरकार में कोई सुनावई नही हुई। सरकार बदलते ही न्याय की आश जीतलाल ने मुख्यमंत्री योगी को चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई है  मुख्यमंत्री के नाम लिखे पत्र  में लिखते हैमैं जीत लाल पासी पुत्र स्व० श्रीनाथ ग्राम- दुल्हापुर , परगना झूसी,तहसील- फूलपुर,जिला- इलाहाबाद ( विधान सभा 256 फूलपुर) पिछले 40 वर्ष से झोपड़ी मे रहने के लिये इस लिये विवश हुँ। कि हमारी भूमिधरी की जमीन गाटा संख्या  क्षेत्रफल 0.1500 जी० टी रोड से सटी (अनुमानित कीमत लगभग चालिस लाख) पर एक दबंग शम्भूनाथ यादव उर्फ पहलवान यादव प्रोपराइटर पहलवान ढाबा का गैरकानूनी कब्जा है। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में दबंगो द्वारा जबरन गरीबो की जमीन को कब्जा से मुक्त करवाने का विज्ञापन दिया जा रहा था। जिसे देखकर मैन भाजपा को वोट दिया। 
अनुरोध है कि अपना चुनावी वादा पूरा करते हुए मेरी कब्जा की गई जमीन वापस करवाई जाए। अति कृपा होगी।
                     #जीतलाल_पासी 
                मो._____ 751892566

एक पापा ऐसे भी , दामाद ने बेटी पर उठाया हाथ तो ……

दामाद ने बेटी की इसतरह पिटाई की की बेटी को आँख पर लगे ७ टाँके । दहेज को लेकर दामाद पहले भी प्रताड़ित कर रहा था । बेटी को इस तरह घायल देखकर …


आम पिता की तरह दामाद के हाथ पैर जोड़ने और समझाने की बजाय सड़क पर डंडो से पीटा । दामाद को बहुत बढ़िया सबक़ सिखाया है । 

महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा का बहुत सकरात्मक जवाब दिया है । 

आपकी क्या राय है कमेंट में ज़रूर लिखे ..और सहमत हो तो शेयर करे ।

राजेश पासी , मुंबई 

इण्डिया गेट का इतिहास और अमर जवान ज्योति 

(दिल्ली इण्डिया गेट पर श्रीपासी सत्ता की टीम में क्रमशः संजीव ,प्रमोद,संपादक अजय,और चन्द्रसेन विमल जी)

अमर जवान ज्योति ( अमर योद्धाओं की लौ ) प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उन भारत के सैनिकों के लिए जिन्होंने पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में अपनी जान गंवाई, का सम्मान करने के लिए बनाया गया 
अमर जवान ज्योति काले संगमरमर से बना है और एक बंदूक और चोटी पर एक सैनिक की टोपी है. अमर जवान ज्योति इंडिया गेट के बगल में स्थित है. ये उन सैनिकों को याद करने के लिए बना था जिनकी भारत-पाक युद्ध में मृत्यु हो गई थी. तब से यह अभी तक जल रहा है.
1971 से अमर जवान ज्योति लगातार जल रही है.1971 से पाकिस्तान से युद्ध के बाद अमर जवान ज्योति जली.काफी समय से LPG से अमर जवान ज्योति जलती रही, अब PNG से जलती है.कस्तूरबा गांधी मार्ग से इंडिया गेट तक 500 मीटर लंबी गैस पाइप लाइन बिछी है.26 जनवरी और 15 अगस्त को अमर जवान ज्योति पर सभी चारों ज्योति जलती है.आम दिनों में सिर्फ एक ज्योति जलती है.26 जनवरी पर देश के पीएम परेड से पहले अमर जवान ज्योति पर पहुंच शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं.

यमुना नदी के किनारे स्थित दिल्‍ली शहर भारत की राजधानी है जो प्राचीन और गतिशील इतिहास के साथ एक चमकदार आधुनिक शहर है। इस शहर में बहुपक्षीय संस्‍कृति है जो पूरे राष्‍ट्र का एक लघु ब्रह्मान्‍ड कहा जा सकता है। इस शहर में एक साथ दो अनोखे अनुभव होते हैं, नई दिल्‍ली अपनी चौड़ी सड़कों और ऊंची इमारतों के साथ एक समकालीन शहर होने का अनुभव कराता है जबकि पुरानी दिल्‍ली की सड़कों पर चलते हुए आप एक पुराने युग का नजारा ले सकते हैं, जहां तंग गलियां और पुरानी हवेलियां देखाई देती हैं। दिल्‍ली में हजारों पुराने ऐतिहासिक स्‍मारक और धार्मिक महत्‍व के स्‍थान हैं।

शहर के महत्‍वपूर्ण स्‍मारक, इंडिया गेट 80,000 से अधिक भारतीय सैनिकों की याद में निर्मित किया गया था जिन्‍होंने प्रथम विश्‍वयुद्ध में वीरगति पाई थी। यह स्‍मारक 42 मीटर ऊंची आर्च से सज्जित है और इसे प्रसिद्ध वास्‍तुकार एडविन ल्‍यूटियन्‍स ने डिजाइन किया था। इंडिया गेट को पहले अखिल भारतीय युद्ध स्‍मृति के नाम से जाना जाता था। इंडिया गेट की डिजाइन इसके फ्रांसीसी प्रतिरूप स्‍मारक आर्क – डी – ट्रायोम्‍फ के समान है।
यह इमारत लाल पत्‍थर से बनी हैं जो एक विशाल ढांचे के मंच पर खड़ी है। इसके आर्च के ऊपर दोनों ओर इंडिया लिखा है। इसके दीवारों पर 70,000 से अधिक भारतीय सैनिकों के नाम शिल्पित किए गए हैं, जिनकी याद में इसे बनाया गया है। इसके शीर्ष पर उथला गोलाकार बाउलनुमा आकार है जिसे विशेष अवसरों पर जलते हुए तेल से भरने के लिए बनाया गया था।
इंडिया गेट के बेस पर एक अन्‍य स्‍मारक, अमर जवान ज्‍योति है, जिसे स्‍वतंत्रता के बाद जोड़ा गया था। यहां निरंतर एक ज्‍वाला जलती है जो उन अंजान सैनिकों की याद में है जिन्‍होंने इस राष्‍ट्र की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
इसके आस पास हरे भरे मैदान, बच्‍चों का उद्यान और प्रसिद्ध बोट क्‍लब इसे एक उपयुक्‍त पिकनिक स्‍थल बनाते हैं। इंडिया गेट के फव्‍वारे के पास बहती शाम की ठण्डी हवा ढेर सारे दर्शकों को यहां आकर्षित करती हैं। शाम के समय इंडिया गेट के चारों ओर लगी रोशनियों से इसे प्रकाशमान किया जाता है जिससे एक भव्‍य दृश्‍य बनता है। स्‍मारक के पास खड़े होकर राष्‍ट्रपति भवन का नज़ारा लिया जा सकता है। सुंदरतापूर्वक रोशनी से भरे हुए इस स्‍मारक के पीछे काला होता आकाश इसे एक यादगार पृष्‍ठभूमि प्रदान करता है। दिन के प्रकाश में भी इंडिया गेट और राष्‍ट्रपति भवन के बीच एक मनोहारी दृश्‍य दिखाई देता है। 

हर वर्ष 26 जनवरी को इंडिया गेट गणतंत्र दिवस की परेड का गवाह बनता है जहां आधुनिकतम रक्षा प्रौद्योगिकी के उन्‍नयन का प्रदर्शन किया जाता है। यहां आयोजित की जाने वाली परेड भारत देश की रंगीन और विविध सांस्‍कृतिक विरासत की झलक भी दिखाती है, जिसमें देश भर से आए हुए कलाकार इस अवसर पर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।

प्रस्तुति- संजीव कुमार (प्रतियोगी छात्र ) नई दिल्ली

सामाजिक न्याय के अधिकांश नेता पैसा बनाने में लग गए –सांसद शरद यादव 

भारतीय  राजनीती को सामाजिक न्याय से सींचने और उसे पालने तक के संघर्ष  में ,जो काम शरद यादव जी द्वारा किया गया है  वह मील का पत्थर है।  आज उनके आवास 7 तुगलक रोड  नई दिल्ली पर मुलाक़ात करके बहुजन राजनीती की सौदागरी करने और सामाजिक न्याय की राजनीति को पीछे करने वाले नेताओं पर चर्चा शुरू किया तो वे बेबाकी से बोले ऐसे लोग केवल पैसा बनाने में लगे है। और अपने परिवार ,जाति तक सीमित हो गए है। इन्हें सिर्फ पैसा बनाने से मतलब रह गया है । राज्यसभा में अपने दोनों बगल बैठने वाले नेता मायावती और रामगोपाल पर प्रश्न पूछने पर उन्होंने कहा कि दोनों को हार का कोई गम नहीं दोनों मस्त रहते है। 
ईवीएम घोटाले पर चर्चा करते हुए  उन्होंने कहा बहुजन राजनीति से भटक कर ब्राह्मणों के वोट की लालच में सब बर्बाद कर दिए और अब ईवीएम को दोष  देकर बचना चाहते है। अब इनके भरोसे बहुजन राजनीति गर्त में ही जायेगी। सामाजिक न्याय की राजनीती करने वाले लोग अपनी अपनी जातियों तक सीमिति होते जा रहे है। युवाओं को बड़ा दिल रखना होगा। सामाजिक न्याय की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष करना होगा। 

दिल्ली से #बहुजन बचाओ अभियान’ के लिए अजय प्रकाश सरोज

उन्नाव में है ख़ूबसूरत राक्षस भवन, और उससे भी ख़ूबसूरत है उसमें रहने वाले लोग!

उन्नाव : जी हाँ जो घर आप तस्वीरों में देख रहे है वही है राक्षस भवन । इसमें शूद्र शिव भारती पासी अपने परिवार के साथ रहते है । 

राक्षस का नाम आते ही हमारे दिल दिमाग़ में रामायण और महभारत में दिखाए हुए राक्षसों का दृश्य सामने आता है जो गंदे से और सिर पर सींग लिए हुए रहते है ।
आज हम जानते है की राक्षसों की वह तस्वीर पूरी तरह से काल्पनिक है । आज हम यह भी जानते है की राक्षस शब्द बना है रक्षक से रक्षा करने वाले से । 
राक्षस कौन थे या कौन है यह तुरंत ही समझ में आ जाता है जब आप आर्य – अनार्य की चर्चा करते है जब अब देव – असुर संग्राम की चर्चा करते है ।

आर्य जो बाहर से आए थे अनार्य जो यहाँ के थे उनसे युद्ध हुआ । जब आप जानते है की वह आर्य थे तो आप आज के शूद्र कौन थे ….?

हिरनयकश्यप और महिसासुर यहाँ के राजा थे और आर्योंने उन्हें राक्षस और असुर का दर्जा देकर विलेंन बना दिया । 

अब तो सच्चाई सामने आने के बाद कई जगह पर महिसासुर की जयंती भी मानाना शुरू हो गया है ।

कई लोग समझने लगे है पर फिर भी पब्लिक में ऐसा ऐक्सेप्ट करने की हिम्मत करने वाले बहुत कम है ।

हमारे पासी समाज में तो लोग बुद्ध या अंबडेकर की तस्वीर लगाने में डरते है की लोग क्या कहेंगे ।
पर शिव पासी जी की हिम्मत देखिए उन्होंने अपना ख़ूबसूरत घर बनवाया और उसका नाम रख दिया राक्षस भवन । हैरत है भारत देश में कोई इंसान ऐसा कर सकता है ।भले ही हम हक़ीक़त जानते हो की राक्षस मतलब क्या होता है पर इस देश की अधिकांश जनसांख्या के लिए राक्षस मतलब वही राक्षस होता है जो हमें बचपन में सिखाया गया है ।

बावजूद इसके शिव पासी जी ने इतनी हिम्मत दिखाई यह कोई आसान काम नहि है । आज जहाँ सारी जातियाँ अपने को क्षत्रिय मनवाने में लगी है शिव पासी जी ने न सिर्फ़ अपने नाम के आगे बल्कि पूरे परिवार के नाम के आगे शूद्र रखवा दिया है ।

मैंने जब उनसे पूछा इतना बड़ा क़दम पब्लिक रूप से उठाया है आपको या आपके परिवार वालों को परेशानी नहि उठानी पड़ी । तो शूद्र शिव पासी जी बोले किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ता है । मैं भीड़ के साथ चलने के बजाय एकला चलो पर विश्वास करता हु । हो सकता है इस कार्य के लिए मुझे लोग मूर्ख या नादान समझे पर यह मेरे और मेरे परिवार द्वारा सोच समझकर लिया हुआ क़दम है ।

शूद्र शिव पासी जी लेखक और नॉवलिस्ट भी है पर फिर वही धन और सहयोग की कमी की वजह से उन्हें वह अवसर कभी नहि मिल पाया जिनके वह अधिकारी थे । 
बरहाल कभी आप उन्नाव जाइएगा तो ज़रूर मिलिएगा मैंने तो बात की उस हिसाब से काफ़ी मिलन सार है और समाज के नाते वह आपका स्वागत भी करेंगे ।
नोट : शूद्र शिव पासी जी ने सही किया है या ग़लत यह कहने का हक़ पत्रिका को नहि है । पत्रिका का मक़सद आप तक ख़बर पहुँचना है । सही ग़लत का फ़ैसला आपका है । रिपोर्टर के तौर पर मैं राजेश पासी , मुंबई से शूद्र शिव पासी जी से सहमत हु और इसे एक बड़ा क़दम मानता हु । एक ऐसा क़दम जिसे उठाने का साहस सबके बस की बात। नहि है ।
शूद्र शिव भारती पासी सम्पर्क – +91 88969 25849

राजेश पासी , मुंबई 

उत्तर प्रदेश पासी समाज नेतृत्व विहीन क्यों ? – अजय प्रकाश सरोज

 

धर्मवीर भारती साहेब से लेकर आर के चौधरी तक

हाल में हुए विधान सभा चुनाव में समाजवादी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अवधेश प्रसाद,बसपा सरकार में मंत्री इंद्रजीत सरोज और इन दोनों पार्टियों की सरकार में मंत्री रहे आरके चौधरी चुनाव हार गए है। कांग्रेस ने तो पासी समाज से नेता बनाना ही छोड़ दिया है। लेकिन पासी समाज का राजनैतिक इतिहास इससे जुडा है । इसलिए चर्चा करना जरूरी भी है।

उत्तर प्रदेश की राजनीती में पासी समाज का रुतबा 1952 से 1988 तक अपनी उफान पर था । कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते धर्मवीर जी के नेतृत्व में 26 पासी विधायक बनकर असेम्बली पहुचें थे। इस आशा के साथ की केंद्रीय नेतृत्व धर्मवीर जी को मुख्यमंत्री बनायेगा। लेकिन कुछ तत्कालीन ब्राह्मणवादी शक्तियो  के विरोध स्वरूप धर्मवीर जी मुख्यमंत्री की शपथ नहीं ले पाएं। इसी दौरान कांशीराम का आंदोलन चल रहा था । दलितों में चमार समाज के कांगेसी  नेता बाबू जगजीवन राम का प्रभाव शिथिल पड़ चुका था। जिसके  कारण अघिकतर चमार / जाटव समाज के लोग सामिल हो रहे थे। धर्मवीर जी को मुख्यमंत्री   न बनाने पर खुद को छला और ठका हुआ महसूस करने वाला पासी समाज कांशीराम के बहुजन आंदोलन की ओर देखने लगा। तब तक खण्ड विकास अधिकारी रहें राम समुझ पासी ,कांशीराम जी के करीब हो चुके थे  कांशीराम के कहने पर रामसमुझ जी नौकरी से इस्तीफा देकर उनके आंदोलन में शामिल हो गए। उनके साथ पासी समाज वह तबका जो कांग्रेसः की उपेक्षा से गुस्से में था वे सब कांशीराम को अपना नेता मानकर राम समुझ जी के साथ हो लिए। इस तरह कांग्रेस की उपेक्षा का लाभ कांशीराम के आंदोलन को मिल गया। रामसमुझ जी ने पासी बाहुल इलाके में जमकर दौरा करके पासी समाज को बसपा के साथ जोड़ दिया। उसी दौरान फैजाबाद में वक़ालत करने वाले एक पासी युवक से राम समुझ जी की मुलाक़ात हुई । वह युवक आरके चौधरी थे।  बसपा में पढ़े लिखे नौजवानों की आवश्यकता थी। तो रामसमुझ जी ने चौधरी को मान्यवर कांशी राम से मिलाया  और  फिर यही से शुरु होता है। पासी नेता मैनजमेंट।  पार्टी का काम तेजी से आगे बढ़ रहा था। बहुजन नेताओ में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता  शुरू हो गई। कांशीराम जी कहने पर राम समुझ ने  इंदिरा गांधी के बेहद करीबी रहें प्रतापगढ़ के राजा दिनेश सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ गए। जिसमे उन्होने बहुत संघर्ष किया। उस चुनाव में उनकी अम्बेसडर कार तोड़ दिया गया था। लेकिन उन्होंने समंतवादियो के खिलाफ चुनाव लड़ने का  बिगुल फूक दिया । बाद में मायावती की इंट्री होते ही आपसी कम्पीटीशन का दौर शुरू हो गया। अन्ततः रामसमुझ जी को पार्टी से निकाल दिया गया। तब रामसमुझ समर्थको सहित पासी समाज फिर एक बार खुद को छला हुवा महसूस किया। लेकिन पासी समाज का दर्द बाँटने के लिए कांशीराम ने आरके चौधरी  को आगे किया। और फिर  आरके चौधरी पासी समाज के सर्वमान्य नेता हो गए। रामसमुझ जी अलग होकर संघर्ष करने लगे । अपने जीते जी अवामी समता पार्टी सहित कई संघठन चलाये । लेकिन उनकी राजनीति परवान नहीं चढ़ सकी।

पिछले दरवाज़े से सेंधमारी – मृणाल पाण्डे


ज्ञानी कह गए हैं कि लोकतंत्र का मतलब है सतत चौकसी। इस चौकसी में लगता है कुछ कमी रह गई है। राज्य चुनावों से फारिग होकर जब मीडिया और विपक्ष उत्तर प्रदेश में पकड़-धकड़ योगी आदित्यनाथ की दिनचर्या और सपा, बसपा और कांग्रेस नेतृत्व के तयशुदा विघटन पर अनवरत चर्चा में व्यस्त थे उस बीच केंद्र सरकार ने वित्त मंत्री के भाषण पर चर्चा के बाद कई विवादास्पद प्रावधानों वाले एक धन विधेयक को लोकसभा में बहुमत का पूरा लाभ उठाकर तुरत-फुरत पारित करा लिया। इस तरह बिना राज्यसभा को भेजे और व्यापक बहस के बगैर ही देश के जन-जन का जीवन प्रभावित करने वाले कई विवादास्पद प्रस्ताव बाध्यकारी कानून बना दिए गए। चतुर सुजान वित्तमंत्री ने कानूनी दलील दी थी कि धारा 388 के तहत इन विषयों का वित्तीय आयाम भी है। इसलिए प्रस्तावित संशोधन धन विधेयक के अंतर्गत लोकसभा में ही पारित हो सकते हैं। उसे राज्यसभा के विचारार्थ भेजना जरूरी नहीं है जहां विपक्ष का बहुमत है। इस जटिल विधेयक के मसौदे में पेश 150 नए प्रावधानों में जिस तरह बिना किसी पूर्वसूचना के अचानक 33 नए, किंतु महत्वपूर्ण प्रावधानों को जोड़ा गया वह तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत राय के अनुसार लोकसभा ही नहीं, बल्कि संसदीय इतिहास में भी अभूतपूर्व है। सांसदों को जटिल एवं तकनीकी, किंतु व्यापक बुनियादी बदलावों वाले इस प्रस्ताव को गौर से पढ़ने-समझने का वक्त ही नहीं मिला और किसी सार्थक बहस या स्पष्टीकरण के बिना ही विधेयक पारित हो गया। संख्याबल कमजोर होने से विपक्ष का प्रतिरोध भी नक्कारखाने की तूती ही साबित हुआ।
बीजू जनता दल के सांसद तथागत सत्पथी के सहायक मेघनाद ने ट्वीट के जरिये बताया कि शायद एक सोची समझी रणनीति के तहत केंद्रीय बजट पर पहले सभी को बोलने का अवसर दिया गया और इससे पहले कि सांसद कुछ समझ पाते, इस धन विधेयक का मसौदा पटल पर रख दिया गया जिसमें अंतर्विरोधों की भरमार थी। मसलन आधार कार्ड को बच्चे, बूढ़े और जवान सभी के लिए अनिवार्य बनाना। भाजपा जब विपक्ष में थी तब 2010 में उसके वरिष्ठ सांसद यशवंत सिन्हा के नेतृत्व वाली संसदीय समिति ने संप्रग की इसी ‘आधार कार्ड योजना’ के प्रस्ताव को खारिज करते हुए इसे एक अस्पष्ट दिशाहीन और जबरदस्ती भरा कदम करार दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे नागरिकों की निजता के अधिकार का भी हनन होगा। खुद मोदी जी ने भी अप्रैल 2014 में इसे एक तिकड़म करार दिया था। अब उसी आधार को क्यों कर इतना बाध्यकारी बनाया जा रहा है कि इसके बिना जनता न तो आयकर भर सकेगी न ही प्राइमरी कक्षा के बच्चे मिड डे मील हासिल कर सकेंगे? यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी यह कह दिया है कि जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार की अनिवार्यता जरूरी नहीं है। लोकतंत्र में ताली दोनों हाथों से ही बजती है। लिहाजा जनता या विपक्ष के लिए राजनीतिक फतवे या जुमले ठोस प्रामाणिकता पर आधारित जानकारी के विकल्प नहीं बन सकते। सरकारी गोपनीयता के नीचे दबाई गई जानकारियां पाने को ही सूचना का अधिकार कानून लंबी जद्दोजहद के बाद हासिल किया गया। दूसरी ओर यह भी एक विडंबना ही है कि जो सरकार नागरिकों के निजी जीवन में ‘आधार कार्ड सूचनाओं के मार्फत हर तरह की गहरी ताकझांक का हक चाहती है वह खुद एक जायज सूचनाधिकार कानून के तहत जनता को नोटबंदी जैसे अपने बड़े फैसले के पीछे तथ्यों की बाबत कोई भी वांछित जानकारी देने से बिदक रही है।
संविधान के अंतर्गत बने मौजूदा निगरानी प्रकोष्ठों के पुनर्गठन का प्रस्ताव भी चिंताजनक है। धारा 32 के अनुसार कानूनन ये प्रकोष्ठ आयकर विभाग की किसी निरंकुशता के खिलाफ जनता की सुनवाई करते हैं और उनमें बदलाव तभी लाए जा सकते हैं जब देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष कोई बड़ा खतरा मंडरा रहा हो। कम से कम फिलहाल तो ऐसे कोई सूरतेहाल नहीं दिखते। तब अचानक उनके पुनर्गठन और नए प्रकोष्ठ में पहले की तरह विधायिका की सलाह लिए बिना विशुद्ध सरकारी फैसले से नई नियुक्तियां करवाने की क्षमता की पेशकश समझ से परे है। चिंता तब और गहराती है जब जानकार बताते हैं कि सरकारी आयकर विभाग के अधिकारियों द्वारा छापेमारी और घर में बिना पूर्व सूचना के पड़ताल संबंधी अधिकारों का दायरा बहुत अधिक बढ़ा दिया गया है। कहीं वही कहावत तो चरितार्थ नहीं होगी कि ‘जबरा मारेगा भी और रोने भी नहीं देगा।’
अब प्रस्तावित संशोधनों से नागरिक निजता में संभावित सेंध की बात। संविधान के अनुसार निजता यानी खुद अपने और अपनों के जीवन, खान-पान, आजीविका या जीवन मूल्यों ही नहीं, बल्कि राजनीतिक राय के बारे में भी अहम फैसले करने, उन पर खुद सोचने-विचारने, दूसरे लोगों से अंतरंगता साझा करने का हक अभिव्यक्ति की आजादी की ही तरह लोकतांत्रिकता की बुनियाद है।

चंद साल पहले मोदी जी ने ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस’ का नारा देकर हमें आश्वस्त भी किया था कि उनकी सरकार का जनजीवन में हस्तक्षेप कम से कम और अधिकतम ध्यान बेहतर प्रशासन पर रहेगा। तब सरकार में नागरिक निजता में कभी आधार कार्ड के ब्योरे जमा कर तो कभी बैंक खाते पैन से जोड़कर और कभी पार्क या सड़कों से जब जी किया किसी युवक-युवती को एंटी रोमियो दस्तों से उठवा कर या मीट की दुकान पर बीफ-बीफ चिल्लाकर छापा मारने का ऐसा अभद्र उतावलापन क्यों देखने को मिल रहा है? शंका का दूसरा बड़ा क्षेत्र निजी उपक्रमों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने से जुड़ा है। नोटबंदी के दौरान हुई तकलीफ की कचोट कम करने को बीते दिनों नागरिकों को बार-बार बताया गया कि अब सारे दलों का चुनावी काला धन तो मिट्टी बन गया है और शेष कालाबाजारियों का पैसा भी बैंकों में आने को मजबूर हो जाएगा। इससे चुनाव साफ-सुथरे होंगे और गरीबों, खासकर सूखे की मार झेल रहे किसानों को राहत, कर्जमाफी और सीधे बैंक खातों में मदद राशि भेजी जा सकेगी। कालाधन कितना निकला, इस बारे में अभी तक कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है। वहीं अब सरकार का कहना है किसानों की कर्जमाफी से बैंकिंग व्यवस्था का दम निकल जाएगा, लिहाजा उसकी रजामंदी के बिना इस पर फैसला संभव नहीं। वहीं सब्सिडी के लिए पैन ही नहीं, बल्कि आधार कार्ड भी अनिवार्य होगा।
जहां आम लोगों की निजता के हाल ये हैं वहीं नए कानून ने चुनावी बांड के अजीब से प्रावधान को हरी झंडी दिखा दी है। इसके जरिये उद्योगपति गुमनाम रहते हुए भी अपने पसंदीदा दल को मनचाही राशि के आयकर मुक्त बांड खरीदकर ‘डोनेट’ कर सकते हैं। इन गुप्त दानकर्ताओं का नाम बताने की कोई बाध्यता दलों की भी नहीं होगी। अब कंपनियां बिना नाम बताए आयकर खातों में दर्ज मुनाफे का 50 प्रतिशत तक सरकार को दानखाते में दे सकती हैं। बताया गया है कि इसका उपयोग बुनियादी ढांचा सुधार में होगा। अचरज नहीं कि जो अनुभवी लोग ठेकों के आदान-प्रदान में सरकार तथा निर्माता कंपनियों की मधुर साझेदारी के अनगिनत प्रमाण गुजरे बरसों में देखते रहे हैं उनको लगे कि साफ चुनावों की भैंस तो गई पानी में! अभी बजट सत्र चालू है और सांसदों को वित्त विधेयक के स्वीकृत संशोधनों की अंतिम जानकारी मिलना बाकी है। ऐसे में हम कितनी उम्मीद करें कि वाकचातुर्य की धनी सरकार इन सवालों के सही-सही जवाब जनता और उसके प्रतिनिधियों को कब देगी?
[ लेखिका प्रसार भारती की पूर्व चेयरमैन एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं