सभी पंडित ,पुरोहित और ब्राह्मण ऐसा करने लगे तो हमारी आधी मेहनत कम हो जाएगी !

प्रतीकात्मक इमेज
 
पंडित ने फेरे कराने से किया इनकार तो अनुसूचित परिवार ने बौद्ध परंपरा से कराई शादी

हिसार (हरियाणा): लोकतांत्रिक भारत में बहूजनो के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। ताजा मामला यहां के बिडमड़ा गांव का है जहां पंडितों ने दलित परिवार की बेटी के फेरे कराने से इनकार कर दिया, जिसके बाद एससी परिवार ने बौद्ध परंपरा से लड़की की शादी कराई। गांव की रविदास सभा ने फैसला लिया कि आगे भी बौद्ध धर्म के तरीके से शादी कराएंगे।      

गांव बिडमड़ा में 24 अप्रैल को एस सी परिवार के मूर्ताराम की बेटी की शादी थी। परिवार ने पंडितों से संपर्क किया तो एक पंडित ने शादी कराने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि मैं थका होने के कारण शादी नहीं करा सकता। दूसरे पंडित ने कहा कि मेरे पास काफी काम हैं। 

तीसरे ने कहा कि मैंने शादी कराई तो समाज के लोग मुझे जीने नहीं देंगे। लड़की की शादी को लेकर परिवार के लोगों के सामने संकट आ गया, जिसके बाद परिवार के लोगों ने फैसला लिया कि बौद्ध धर्म के तरीके से शादी कराएंगे। भीमराव अंबेडकर और गौतम बुद्ध की प्रतिमा रखकर कैंडल जलाई। इसके सामने दूल्हा-दुल्हन को बैठाया गया। दोनों ने एक-दूसरे के प्रति वचन लेकर शादी की रस्म को पूरा किया।

गुरु रविवाद सभा के प्रधान जयभगवान चौहान ने बताया कि 400 के करीब परिवार हैं। इनमें चार सेलवाल, सोड, दहिया, चौहान गौत्र के परिवार हैं। गांव के दलित परिवारों ने फैसला लिया कि जहां तक होंगे, बौद्ध धर्म तरीके से कराएंगे शादी। जयभगवान चौहान ने अपने फेसबुक पर इस खबर को पोस्ट किया है। बताया जा रहा है कि सरपंच के चुनाव के समय से लेकर गांव में जातीय तनाव है।

एससी कैटेगरी के छात्र का दम: IIT की परीक्षा में लाया 360 में 360 नंबर, देशभर में किया टॉप!


नई दिल्ली: जहां एक तरफ देश में एससी और आदिवासियों से छुआछूत और अत्याचार की खबरें आती रहती हैं वहीं इन सबके बीच राजस्थान के 17 साल के एक एससी छात्र कल्पित वीरवल ने आईआईटी की जेईई-मेन्स परीक्षा में 360 में 360 नंबर लाकर सबको चकित कर दिया। इस परीक्षा में फुल मार्क्स लाकर उन्होंने न सिर्फ जेईई-मेन्स की परीक्षा में दलित वर्ग में टॉप किया है बल्कि जनरल कटेगरी में भी टॉप कर सबको पीछे छोड़ दिया। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत का सहारा लिया और अपने भरोसे के दम पर यह सफलता हासिल की। आपको बता दें CBSE ने आज आईआईटी-जेईई की मेन्स परीक्षा का रिजल्ट घोषित किया है।
‘हिंदुस्तान टाइम्स’ से फोन पर बातचीत करते हुए कल्पित वीरवल ने बताया कि CBSE के अध्यक्ष आर के चतुर्वेदी ने सुबह फोन करके उन्हें इसकी खबर दी थी। वीरवल ने कहा कि जेईई-मेन्स में टॉप करना मेरे लिए खुशी की बात है लेकिन मैं अभी जेईई-एडवांस की परीक्षा के लिए फोकस करना चाहता हूं जो कि अगले महीने आयोजित होगी।

आपको बता दें कि वीरवल ने इसी साल MDS पब्लिक स्कूल से 12वीं की परीक्षा दी है जिसका रिजल्ट आना अभी बाकी है। कल्पित ने बताया कि उन्होंने रेगुलर क्लास करके और कभी भी क्लास मिस नहीं करके अपने आत्मविश्वास को ऊंचा बनाए रखा। वीरवल ने बताया कि कोचिंग और स्कूल की पढाई के अलावा वे रोजाना पांच से छ: घंटे की पढ़ाई करते हैं। 

कल्पित ने बताया कि उनकी इस सफलता के पीछे उनके मम्मी-पापा और उनके शिक्षकों का अहम योगदान है। उनके पिता पुष्कर लाल वीरवल उदयपुर के महाराणा भूपल राजकीय अस्पताल में कंपाउंडर हैं और उनकी मां सरकारी स्कूल में टीचर हैं। उनके बड़े भैया भी देश के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले मेडिकल संस्थान एम्स से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं।

कल्पित को क्रिकेट और बैंडमिंटन खेलना अच्छा लगता है और उन्हें संगीत का भी शौक है। उन्होंने बताया कि अभी फिलहाल उन्होंने अपना करियर प्लान नहीं बनाया है लेकिन वह आईआईटी मुंबई में कंप्यूटर साइंस में एडमिशन लेना चाहते हैं। कल्पित ने इससे पहले इंडियन जूनियर साइंस ओलंपियाड और नेशनल टेलेंट सर्च एग्‍जामिनेशन में भी टॉप किया है।

Source – nationaldastak.com

यादव , पाल, मौर्य, तेली , पासी , चमार  कैसे हुए राजा से रंक़ ?


यादव, पाल,मौर्य, धोबी, मौर्या ,चमार , तेली लोहार और पासी अपने-अपने महासभा में चिल्ला-चिल्लाकर बोलते हैं कि पहले हम राजा हुआ करते थे … मैं भी मानता हूं कि पहले यह लोग राजा हुआ करते थे .. किंतु आज यह लोग यह नहीं सोचते हैं कि किसकी वजह से किस व्यवस्था की वजह से आज हम लोग राजा से रंक हो गए।

यह सभी जातियों के अधिकतर लोग अपने को शूद्र नहि मानते पर हिंदू मानते है । अपनी जाती पर गर्व करेंगे हिंदू होने पर गर्व करेंगे । पर यह नहि सोचेंगे की …कि किसकी वजह से किस व्यवस्था की वजह से यादव समाज गाय और भैंस का गोबर बहाने को मजबूर हुआ, पाल राजवंशी भेड़ बकरी पालने वाले हो गया । मौर्य, महान सम्राट अशोक वंशज मुराई सब्जी बेचने वाला बन गया। धोबी समाज कपडे धोने के लिए मजबूर हुआ, मौर्य समाज सब्जी बेचने को मजबूर हुआ , और चमार समाज मरे हुए पशुओं को बहाने और जूता बनाने को मजबूर हुआ , और पासी समाज सूअर पालन और ताड़ी निकालनेको मजबूर हुआ… और आज भी इन्हें वर्ण व्यवस्था के अनुसार शुद्र ही माना जा रहा है….भले ही यह जातियाँ अपने आपको क्षत्रिय माने ।
जब तक यह लोग अपने असली दुश्मन के खिलाफ विद्रोह नहीं करेंगे तब तक रंक से राजा कभी नहीं बन पाएंगे और आजाद जिंदगी कभी जी नहीं पाएंगे….

           जब गुलाम गुलामी में आनंद मनाने लगे तो वह गुलाम गुलामी के खिलाफ कभी विद्रोह नहीं करता है आज यही स्थिति इन बिरादरियों की हो गई है l 

सभी अपनी अपनी बिरादरी में ख़ुश है की हमसे नीचे के पायदान पर कोई जाती तो है । जब यह लोग पढ़े लिखे नहि थे तब के समय में जातीय घमंड और नीचे की जातियों को ख़ुश होना समझ आता है पर आज …????
कैसे राजा से रंक़ हुई यह जातियाँ ? किस व्यवस्था के कारण ? कही वही कारण लेकर हम गर्व करना तो नहि सीख रहे है ,सोचिएगा कभी फ़ुरसत में की जिस चीज़ पर हम गर्व कर रहे है वह जातियाँ गर्व करने लायक है या मानव समाज के लिए एक धब्बा है ?शर्म करने लायक है ।
जय भीम , जय भारत

मुंबई में जैसवार विकास संघ द्वारा बाबा साहेब और संत रविदास की जयंती हज़ारों लोगों के साथ मनाई गई !



मुंबई : मुंबई एक ऐसा शहर जहाँ अधिकतर लोग महाराष्ट्र सहित देश के कई कोनो से यहाँ रोज़ी रोटी के लिए इकट्ठा हुए थे । मुंबई को आज की आधुनिक मुंबई बनाने में महाराष्ट्र , गुजरात के लोगों के साथ उत्तर प्रदेश के लोगों का भी बहुत अहम योगदान है ।आज उत्तर प्रदेश के बहुत से लोगों की तीसरी पीढ़ी मुंबई में रह रही है तो ज़ाहिर है मुंबई अब उनके लिए कोई परदेश नहि रहा गया जैसा पहले कहते थे । ज़ाहिर है जब मुंबई अपना घर गया बन गया है तो सारे समारोह , उत्सव , मिलन समारोह यहीं मनाएँगे ।
इसी कड़ी में कल २३ अप्रैल २०१७ को मुंबई के जैसवार समाज के लोगों ने जैसवार विकास संघ के बैनर के तले बाबा साहेब और संत रविदास की संयुक्त जयंती मनाई । बाबा साहेब के विचारों को फैलाने में उत्तर प्रदेश के लोगों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है , यही नज़ारा कल भी दिखा मुंबई के एक बहुत ही भीड़ भाड़ भरे इलाक़े में सड़क के एक तरफ़ हज़ारों कुर्सियाँ लगी थी , वयस्तम इलाक़ा होने के कारण हज़ारों लोगों की आवाजाही थी और इन सबके बीच सड़कों पर बाबा साहेब और जैसवार विकास संघ के बड़े बड़े बैनर मंच तक पहुँचने वाले हर रास्ते पर लगे थे ।मंच भी काफ़ी बड़ा और भव्य था साज सज्जा का काफ़ी ख़याल रखा गया  था ।

हज़ारों लोगों के बीच कार्यक्रम की शुरुआत बुद्ध वंदना के साथ गई । कितनी ही बार जय भीम का उद्घगोष किया गया । महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश , गुजरात हरियाणा से आए वक्ताओ ने बाबा साहेब पर अपने विचार रखे । उत्तरप्रदेश से आए युवा डीआईजी डा० बी पी अशोक जी ख़ास आकर्षण थे कार्यक्रम में । वहाँ पहुँचने वाले सभी समाज सेवियों का भी गर्मजोशी से स्वागत किया गया ।


विशेष अतिथियों में – डा० बी पी अशोक जी DIG U.P, जी न्यूज़ की निदेशक कांता अगड़िया, हरियाणा ,ओम् प्रकाश – असिस्टेंट कमिश्नर कस्टम , सूरत,नगरसेविका – सेवाली जी ,महाराष्ट्र होम मिनिस्टर – प्रकाश मेहता,डा० जय प्रकाश , बैंगलोर जैसी हस्तियाँ मौजूद थी और सभी ने अपने महत्वपूर्ण विचार रखे ।
मुंबई जैसे शहर में आम लोगों के लिए यह सब मैनेज करना आसान नहि होता , आर्थिक परेशानियों से लेकर प्रशासनिक वस्था को सम्भालना प्रदेश के बाहर से वक्ताओ को बुलाना काफ़ी मुश्किल होता है । फिर भी यह जैसवार विकास संघ टीम की मेहनत का नतीजा था । टीम वर्क हर जगह दिखाई दे रहा था , अध्यक्ष मानननिय , छोटेलाल जैसवार जी , प्रकाश सच्चन जैसवार जी , राम समूझ आर गौतम जी , निम्बुलाल जैसवार जी , सभी प्रमुख अतिथियों को आमंत्रण से लेकर आने जाने , ठहरने से लेकर सभी तरह के मैनेजमेंट को सम्भालने वाले ज्ञान देव कोरी जी , और संस्था के सभी पदाधिकारी और कार्यकरता बहुत प्रशंसा के अधिकारी है । यह ऐसे लोग है जो मुंबई जैसे शहर में भी बाबा साहेब के मिशन का अलख जगाए हुए है ।
जय भीम , जय भारत 

राजेश पासी , मुंबई

देश में पहली बार दलित –  मुस्लिम दंगा अम्बेडकर के नाम पर, क्यों  और कैसे ?

दलित मुस्लिमो के बीच वैचारिक एकता को रोकने लिए कुत्सित प्रयास शुरू से होते ही रहे है, और आज भी हो रहे है, इस बार कुछ भ्रमित और बिकाऊ लोगो ने, जो कि मुस्लिम समुदाय से संबंध रखते थे, ने सहारनपुर मे निकाली जा रही बाबा साहब की शोभा यात्रा पर पथराव किया है, ऐसा ही पथराव महाराष्ट्र मे शिव सैनिको ने भी अंबेडकर जयंती मना रहे लोगो पर हाल ही मे किया है।देखने मे यह दोनों घटनाए एक जैसी है, लेकिन जो महाराष्ट्र मे हुआ है, वो हमारे लिए नई बात नहीं है, मनुवादियों द्वारा की जाने वाली ऐसी हरकतों से तो हम शुरू से वाकिफ है,

सबसे पहले समझने वाली बात है की इसका आयोजन किसने किया था । ख़बर यह भी आ रही है की यह आयोजन बिना परमिशन के किया गया था । अम्बेडकर के फ़ालोअर कभी क़ानून नहि तोड़ते । नियमों का पालन करते है । 

इस आयोजन का हैंडबिल देखेंगे तो पता चल जाता है की आयोजित करने में एस सी / एसटी या OBC की भूमिका नगण्य है 

कार्यकम को लीड कर रहे थे लखनपाल शर्मा ( सांसद) बाक़ी के लोगों के नाम भी देखिए पता चल जाएगा आयोजकों के  बारे में ।

आख़िर क्या कारण है की एससी / एसटी और OBC इतने सालों से अम्बेडकर जयंती माना रहे है आज तक कभी भी दलित -मुस्लिम दंगा अम्बेडकर की वजह से नहि हुआ , पहला दंगा हुआ उस कार्यक्रम में जिसे एक ख़ास जाती के लोग आयोजित कर रहे थे । 

कल से ही मीडिया यह ख़बर फैलाने में जुटा हुआ है की बाबा साहेब की वजह से दलित -मुस्लिम में दंगा हुआ । पर वह कितना भी ख़बर छुपाए अब हक़ीक़त छुप नहि सकती । शुक्र है सोशल मीडिया का न सिर्फ़ वहाँ के लोगों ने हक़ीक़त बताई बल्कि हैंडबिल भी शेयर किया जिसकी वजह से तस्वीर साफ़ हो गई है । – राजेश पासी ,मुंबई 
लेकिन जो सहारनपुर मे हुआ वह वाकई अचंभा पैदा करने वाला है, डॉ अंबेडकर से मुसलमानो को भला क्या दिक्कत हो सकती है। यह समझ से बाहर है। जाहीर है इस घटना के पीछे जरूर कोई साजिश काम कर रही है, मुज्जफरनगर, कैराना आदि घटनाए भी स्वतः स्फूर्त ना होकर सोची समझी साजिश का ही हिस्सा रही थी, और आज इसका परिणाम सबके सामने है। इन घटनाओ का स्थानीय तात्कालिक प्रभाव चाहे कम हो, लेकिन सूचना क्रांति के दौर मे इनके प्रभाव समाज के एक बड़े हिस्से पर दिखाई पड़ते है।

हमे तत्समय ऐसी घटनाओ की पुनरावृत्ति को रोकना होगा, विभिन्न समुदायो मे विश्वास बहाली के प्रयास करने होंगे, नहीं तो कुछ नालयको की हरकतों के सामने, दलित मुस्लिम बुद्धिजीवियो के प्रयास निरर्थक ही साबित होंगे। 

मैं अपने दलित भाइयो से भी कहूँगा कि वर्तमान मे दलित और मुसलमान समाज एक दूसरे की ओर देखने लगा है, करीब आने का प्रयास कर रहे है, इस उम्मीद के साथ कि ये दोनों समुदाय मिलकर अपनी नियति मे बदलाव ल सके। ऐसे मे ऐसी घटनाओ के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय पर टिप्पणी करना बेबकूफी से ज्यादा कुछ नहीं। हाँ, इसका मतलब यह नहीं कि घटना के दोषियो को दंड ना मिले, उन्हे अवश्य दंड मिलना चाहिए, जिससे कि साजिश कर्ताओ के हौसले पस्त हो सके। यह एक अच्छा संकेत है कि सहारनपुर मे हुई घटना के विरोध मे आज तमाम मुस्लिम साथी आज आपके साथ खड़े है, और इस कृत्य की मुखर होकर आलोचना कर रहे है॥ यह प्रक्रिया रुकनी नहीं चाहिए॥ 

इसी आशा के साथ – धर्मेंद्र के आर जाटव की वाल से 

अखिलेश यादव या अखिलेश मिश्रा ?

अगर मैं अखिलेश यादव को अखिलेश मिश्रा कहूँ 

तो हैरत की बात नहीं होगी । आप नीचे स्वयं देखिये उनकी घोर सवर्ण परस्ती ।

समाजवादी पार्टी के विधान सभा अध्यक्ष रहे माता प्रसाद पाण्डेय अपने पिछले कार्यकाल में विधान सभा सचिवालय के लिए 40 समीक्षा अधिकारीयों और 50 सहायक समीक्षा अधिकारीयों की विज्ञप्ति निकाले थे ।परीक्षा हुई अभ्यर्थीयों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया लेकिन समीक्षा अधिकारी की कुल 22 सीटें सामान्य थीं। शेष ओबीसी और sc वर्ग की थी । ज्ञातव्य है कि -प्रमुख सचिव प्रदीप कुमार दुबे और बिधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय ने मिलकर सिर्फ अपनी ही जाति और रिश्तेदारों को पूरी सीट पर चयन कर डाला और मात्र 3 दिनों के अंदर इनकी joining भी करवा डाली ।आख़िरकार इतने जल्दी joinning की वजह क्या थी ?बाद में कुछ सीटें बढ़ा भी दी गयी थी ।

सामान्य वर्ग में चयनित सभी अभ्यर्थियों के नाम की लिस्ट डाल रहा हूँ ।

कृपया स्वयं आकलन करें और सोचें कि -आख़िरकार जो मीडिया 86 में 56 यादव sdm की फ़र्ज़ी खबरे फैला दिया वो ब्राह्मणों के अधिकतम संख्या में चयन किये जाने पर शांत क्यों रहा ….

उपेंद्रनाथ मिश्र, 

रुद्ररजनीकांत दुबे, 

वरुण दुबे,

रवींद्र कुमार दुबे,

भास्करमणि त्रिपाठी,

वीरेंद्र कुमार पांडेय,

जय प्रकाश पांडेय,

आदित्य दुबे, 

नवीन चतुर्वेदी, 

प्रवेश कुमार मिश्र, 

संदीप कुमार दुबे,

अमिताभ पाठक, 

राहुल त्यागी, 

अविनाश चतुर्वेदी,

पुनीत दुबे, 

शलभ दुबे, 

पार्थ सारथी पांडेय, 

प्रशांत कुमार शर्मा, 

राहुल त्यागी।

प्रशांत राय शर्मा, 

आदित्य कुमार द्विवेदी,

श्रेयांश प्रताप मिश्र,

सोनी कुमार पांडेय, 

चंद्रेश कुमार पांडेय,

पीयुष दुबे,

अरविंद कुमार पांडेय,

करुणा शंकर पांडेय, 

अंकिता द्विवेदी, 

दिलीप कुमार पाठक, 

प्रवीण कुमार सिंह, 

भूपेंद्र सिंह,

अभिषेक कुमार सिंह, 

संजीव कुमार सिंह,

सतीश कुमार सिंह,

वरुण सिंह, 

हिमांशु श्रीवास्तव, 

राकेश कुमार साहनी, 
क्या माता प्रसाद और प्रदीप दुबे की सांठगांठ से हुई सचिवालय में नियुक्तियां, जानें कौन हैं प्रदीप दुबे ?

(शशिकांत मेहता की वाल से)

नाग , असुर और पासी का सम्बंध

नाग जाती प्राचीन मानव जातियों में एक प्रमुख जाती मानी गई है ।सूर्यवंश के अंतर्गत यह कश्यप और क़द्र की संतान मानी जाती है । क़द्रू को सुरसा भी कहा जाता है । कश्यप और क़द्रू के पुत्रों में अनंन्त ( शेष ) तक्षक , वासुकि ,ककोर्टक ,महापद्मम , पद्मम शंख , ( शंखपाल ) ,क़लिक़,एलापात्र , अश्वत्तर तथा एरावत आदि बारह पुत्रों का वर्णन विधमान है । पुराणो में नागों को शक्तिशाली मानव जाती बतलाया गया है । कतिपय विद्वानों का यह मत है की आर्योंद्वारा नाग जाती के समापन हेतु युद्धो का वर्णन ही नाग यज्ञ का रूप है । अथवा देवासुर संग्रमो का स्वरूप । 

नीलमत पुराण में वर्णित तेरह जातियों में पिशाच ( बिना पकाया माँस खाने वाली जातियाँ ) दरद, गांधार ,शक ,खस, तंगड , मांडव , तथा , मद्र , कश्मीरी जातियों के साथ -साथ नागों का भी वर्णन अंकित है जो इस जाती को मानव जाती सिद्ध करता है । 
महाभारत में नाग वंश के नामावलियो में वासुकि नाग तक्षक नाग, एरावत वंश, कौरव्य तथा पांडव वंश भी नाग जाति से संबंधित थे । पुराणों में नागों का वर्णन साहित्यिक तथा प्रतीकात्मक दोनों रूपों में है, क्योंकि क्योंकि नाग का अर्थ साँप, रज्जू , पवन , हाथी बादल और पर्वत भी होता है । इन विविध पर्यायवाची शब्दों से नाग जाति के बारे बारे में भ्रांति का पैदा होना नितांत आवश्यक हो जाता है ।महाभारत का कौरव और पांडव वंश चंद्रवंशीय माना जाता है । इस चंद्रवंश में पूरूरवा के बाद युधिष्ठिर 45 वीं पीढ़ी में पैदा होते हैं । इन्ही चंद्रवंशीय पांचवी पीढ़ी में ययाति की पांच संतानों में यदु और तुर्वस देवयानी ( शुक्राचार्य की पुत्री ) के पुत्र हैं । पुर , द्रुह तथा अनु ये तीनों पुत्र सर शर्मिशस्ठा (पुत्री प्रीखपर्वा नागराज ) के पुत्र कहे गए है । बड़े पुत्र यदुवंश से यह वंश यदुवंश तथा नागवंश दोनों नामों से विख्यात हुआ । इसके आगे चलकर चार शाखा हुई वृषनी , भोज , कुकर और आंध्र ।यह आंध्रवंश तक्षक वंश पुकारा गया । जिससे टांक वंश की उत्पत्ति हुई। यही टाक वंश भारशिव नागों का कुल है ।इसकी प्रमुख राजधानी रामायण के अनुसार भोगवती बतलाई गई है तथा ऐतिहासिक रूप से पद्मावती जो ग्वालियर के निकट पदमपवाया है समीकृत की जाती है । अन्य नागो के स्थानों में नागलोक, नागपुर , नागधनवा तीर्थ , नागपुर आदि दिखाए गए हैं ।

महाभारत के शांति पर्व के अनुसार नैमिशर्णय के गोमती के किनारे का एक नगर नागपुर आधुनिक नगवा या नागधनवा प्रतीत होता है । इस नागधनवा क्षेत्र में वासुक नाग का निवास था । इसी नाम का एक और नागों का शहर सरस्वती नदी के किनारे बसा हुआ बताया गया है ।अर्थवेद तैत्तरीय संहिता , छंदोपनिषद तथा गृहसूत्र आदि ग्रंथों में नाग पूजा का उल्लेख होता है । अन्य पुराणों में भी इस बात की पुष्टि होती है कि नाग एक सशक्त जाति के लोग थे । भारतवर्ष में आर्यों से बैर भाव के कारण नाग मुर्तिया तोड़ी गई और कुशलता कुषाणों द्वारा भी नाग पूजा और नाग मूर्तियों को क्षति पहुंचाई गई ।
असुर शब्द ईरानी भाषा का अहूर शब्द का हिंदी रुपांतर है । अहुरमज़दा इरान का सबसे प्राचीन ग्रंथ है जो वेदों का समकालीन है । अहूर का स्थान प्राचीन इरान में एक पूज्य देवता के रूप में था । ईरान का आर्यवंश का अंतिम राजा यजूदगर्द अरब वालों द्वारा मारा गया तब उसकी बेटी माहबानू भागकर भारत आ गई । उसी की औलादों के में उदयपुर के राना है । ( इतिहास तिमिरनाशक–शिवप्रसाद सितारे हिंद ) असुर नूह के पुत्र साम का बेटा था ।
पश्चिम एशिया का असुर देश जो असुरिया कहालाता था ज्ञान , विज्ञान , इतिहास , भूगोल साहित्यिक तथा जादू टोना आदि में पारंगत था । यह देश असुरिया दजला नदी के पश्चिम कीनारे पर आधुनिक टर्क़ी में स्थित था । उसकी राजधानी निनेव थी को मिश्र , मीडिया और बेबिलोनिया के संयुक्त आक्रमण से जलाकर राख कर दिया गया । यहां से उत्खनन के द्वारा 1850 इसवी में 30000 पक्की ईंटों की पुस्तकें का ढेर प्राप्त हुआ , जो लंदन के म्यूजियम में जमा है । यह असुर शब्द सही अर्थों में असूर्य है जो ऋगवेदिक आर्यों के सूर्य उपासना के ठीक विपरीत है । यही असूर शब्द फिर नागवंशीय ,चंद्रवंशीय, सभी असूर्यवंशी की संज्ञा बन गया । यथा “मृगमित्र विलोकत जले है , चंद निशाचर पद्धति को –रामचंद्रिका केशवदास ।
फर्गुसन महोदय ने इन नागों को असुर भी कहा है अपने ग्रंथ टी एंड सर्प एंड वरशिप में उन्होंने तूरानी (दक्षिण ईरान ) माना है तथा कर्नल टाड ने इन्हे शकायद्विपिय अर्थात सकार्थिया शेष नाग देश निवासी माना है । बनर्जी शास्त्री ने अपने ग्रंथ असुर इंडिया के पृष्ठ 96 में इन्हें असुर जाति की शक्ति तथा रीड की हड्डी माना है ।और बताया है कि नागों के पतन के बाद भारत में असुरों का भी पतन हो गया । इसका मतलब यही है कि नागों और असुरों में असल में कोई अंतर नहीं था ।यह दोनों नाग और असुर एक ही जाति के व्यक्ति थे जो कभी नाम और कभी असुर की संज्ञाये पा जाते थे । प्रसिद्ध इतिहासकार ए न बनर्जी भी असुरों की एक शाखा को नाग जाति मानते है । डा० गियर्सन के अनुसार नाग जाति अनार्य थी और वे कश्मीर के हुंजा क्षेत्र के निवासी थे । कुछ विद्वान नागटोरम के कारण यह नाग जाति के कहलाते थे । ये एक फ़न , तीन फ़न पाँच फ़न या सात फन की माला जा मुकुट धारण करते थे इसीलिए नाग कहलाते थे । कुछ विद्वान नागों को द्रविंण मानते हैं तथा कुछ नागो की भाषा को द्रविंण भाषा बतलाते हैं ।

लेखक रामदयाल वर्मा जी

पासी जाति को भी द्रविंण भी कहा गया है यहां हम आर० बी० रसेल का एक उदाहरण प्रस्तुत करने जा रहे हैं 

” A Dravidian occupational caste of northern India. Whose heridetary employment is the tapping pakora and other palm tree for their shape. The name is derived from Sanskrit word pashika , one who uses a Noose and the Hindi word Pash or Pasa Noose. Tribes and caste of central province of India. Refer Vol -IV pages 380/ 383 by R .V. Russel.

अब यह स्पष्ट हो चुका है कि पासी जाति नाग वंश की तक्षक “टाक”शाखा के भार शिव वंशी है तथा पद्मावती राजधानी के नवनाग नृप रह चुके हैं । डॉक्टर अंबेडकर ने स्पष्ट कहा है कि यह देश दासों अथवा नागों का घर है । अब हमें यह देखना है कि क्या किसी भारतीय विद्वान ने भी पासी जाति को असुर भी कहा है ? उत्तर हाँ में है ।
उदाहरण देखिए संपन्न नागो के घर प्रायः भूमिगत होते हैं । बड़ी-बड़ी बावड़ियों में और इनदौरों के भीतर इनके दो दो महले के पक्के भवन होते हैं । उनके भीतर जाने के द्वार गुप्त और प्रायः बड़े-बड़े बिलो के आकार के होते हैं ।

असुर और पासीजन दारू बनाने सुरंगे खोदने धनुष चलाने और चौर्यकला में परम निपुण होते हैं । अवध में इन की धनि बस्तीया है । ” एकदा नैमीषारण्य” -पृष्ठ संख्या -72 , लेखक अमृतलाल नागर ।
उपरोक्त कथन से यह ध्वनित होता है कि नाग और पासी पासी एक जाति की पृथक पृथक प्रथक नामावलीया है ।पासी असुर भी है और आर्यों के कट्टर प्रतिद्वंद्वी भी पासी जाती रही है । इसका सरल अर्थ यह हुआ कि पासी जाति का यह नाम आधुनिक है ।
पासी जाति के दुर्गुण जो नागर जी द्वारा बताए गए हैं वह युद्धकाल में वह सब सद्गगुण हो जाया करते हैं । सन 1857 की आजादी की लड़ाई में भारत की अन्य जातियों के अपेक्षा इसका ज्यादातर सराहनीय योगदान रहा है । पासी लोगों ने सुरंगे खोदीं , शत्रुओं के गोला-बारूद लूटे, चुराए, बहादुरीपूर्ण धनुष बाण का प्रयोग किया । यह सब विवरण ऐतिहासिक पुस्तकों में देखा जा सकता है । 
अंत में हम यह कह सकते हैं की ” अर्थात भूखा आदमी कौनसा अपराध नहि करता ? हम अपराधी नहि है । और न ही देशप्रेम विहीन हृदय वाले । हम कुशाणओ को देश से बाहर भगाने वाले , दस -दस यज्ञ रचाने वाले , कुआँ , घाट , तालाब ,बनाने वाले और शैव धर्मी सच्चे भारशिव वंशी लोग है ।

लेकिन भारत के इतिहासकारों ने भारशिव वंश के साथ न्याय नही किया । जिसे डॉ काशीप्रसाद जायसवाल ने समृद्ध किया है। 
लेखक – प्रसिद्ध इतिहासकार व लेखक रामदयाल वर्मा, हरदोई उत्तर प्रदेश। सम्पर्क- 

मुंबई में भ्रष्टाचारी ब्यवस्था के ख़िलाफ़ रामशंकर सरोज ने छेड़ी एक साहसिक जंग…

800 आरटीआई दर्ज कराने वाले रिक्शा चालक !

रामशंकर अयोध्याप्रसाद सरोज मुंबई के धारावी में रहने वाला एक आम रिक्शाचालक I रोज़ मेहनत करना और स्वाभिमान से रहता है । रामशंकर सरोज जी के जागरूक होने की कहानी शुरू होती है साल 2००3-०4 के आसपास जब मुंबई में पुनर्विकासन अधिनियम के तहत रामशंकर सरोज की सोसायटी को एसआरए के अंतर्गत एक बिल्डर को विकास करने के लिए दी गई । जब रामशंकर सरोज को यह पता चला कि बिल्डर ग़रीब निवासियों को धोखा दे रहा है तो रामशंकर के अंदर का स्वाभिमानी कार्यकर्ता भ्रष्ट बिल्डर के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ । 
रामशंकर सरोज जी ने महाडा ( महाराष्ट्र सरकार की हाउज़िंग डिवेलपिंग अथॉरिटी) और बिल्डर के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करना शुरू किया ।

बिल्डर के अनेक अनिधकृत निर्माण कार्य के ख़िलाफ़ सबूत देकर और आरटीआई का उपयोग कर सलंगन अधिकारियों और पोलिस की मदद से किए जा रहे अनिधकृत कार्यों की जानकारी उजागर हुई ।

सरकारी ब्यवस्था केवल काग़ज़ों पर हवाई घोड़े दौड़ाते है और यही ब्यवस्था भ्रष्ट मंडलीयो का पालन पोषण करते है। यह बात रामशंकर जी को समझ में आ गई ।परंतु उन्होंने प्रण किया इस ब्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ते हुए अगर मै मर तो भी गया तो चलेगा पर अपने जीते जी इस लड़ाई से पीछे नही हटूँगा ।और यही मंत्र रामशंकर सरोज जी के जागरूक हो कर लड़ाई लड़ने का सहारा बना ।
एक सीधा सादा केवल दसवीं पढ़ा रिक्शा ड्राइवर रामशंकर सरोज ने पिछले 6 सालों में आरटीआई के ज़रिए मुंबई में महडा, महानगरपालिका ,मंत्रालय , पोलिस टेशन और दूसरे सरकारी दफ़्तरों के अनाधारिक कार्यों को उजागर किया है ।
कई बार इन्हें जानकारी देने से टालने की कोशिश की जाती थी बहाने बनाए जाते थे क्योंकि अगर जानकारी दी तो बड़े अधिकारियों की पोल खुल जाएगी।

जानकारीं पाने के लिए रामशंकर जी कई कई बार आरटीआई के स्टेटलेवल कमिश्नर के कार्यालय पर जा कर अपील करते थे । पर अनेक जायज – नाजायज़ कारण बता कर काग़ज़ों के खेल – खेलकर जानकारी देने से महरूम कर देते थे ।

इस दौरान रामशंकर सरोज RTI न डाले इसके लिए अनेक प्रलोभन दिए जाते थे कुछ अधिकार्यो ने नए रिक्शे दिलाने की पेशकश की और RTI का पीछा छोड़नेके लिए कहा ।

कुछ बिल्डरो ने मुंबई जैसे शहरमें २-२ फ़्लैट्स तक देने का वादा किया ।

पर इस स्वाभिमानी आरटीआई कार्यकर्ता को इतने बड़े बड़े लालच भी उसके ईमान से डिगा नही पाए ।

भ्रष्टाचार का काला चेहरा सबके सामने लाना ही सरोज जी के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है । इसलिए रामशंकर जी कोई ख़रीद नही सका । और नही ये बिकने वाले । सच के लिए लड़ना ही पासियो की असली पहचान है। 

ईमानदारी और निडरता रामशंकर का उदाहरण RTI कार्यकर्ताओं के लिए एक आदर्श उदाहरण है । 

RTI का उपयोग कर प्रशासन व्यवस्था को स्वच्छ करना और जागरूक नागरिकों का प्रशासन व्यवस्था पर पर पैनी नज़र रखने के लिए हज़ारों हज़ार रामशंकर सरोज का जन्म लेना आज समय की माँग है 

रामशंकर जी के बारे में मुंबई के कुछ मराठी और अंग्रेज़ी अख़बरो में कई बार छप चुका है । पर हिंदी अखबारो में इनके बारे में कुछ नहि छपा है( क्यों नहि छपा है यह जानना मुश्किल नहि है जब हम जानते है की हिंदी अखबारो में कौन लोग मुख्य पद पर है ) ईसिलिए अपने पासी समाज के लोगों को भी इनके बारे में कम ही जानकारी है । इनकी बहादुरी का पूरे पासी समाज के लिए गर्व की बात है ।अगर यही काम किसी साधन संप्पन या नेता ने किया होता तो पासी समाज के लोगों की जबान पर उनका नाम होता पर वह एक साधारण इंसान है इसलिए शायद वह पासी समाज के लिए आज भी अनजान है ।और उन्हें इस बात से कोई फ़र्क़ भी नहि पड़ता वह सिर्फ़ ईमानदारी से अपना कम करने में विश्वास करते है न की नाम के प्रचार का । नहि तो कोई कारण नहि था की कई बार ख़बरों में आने के बाद भी , जिसने मुंबई के सरकारी तंत्र में , जिसने प्राइवट बिल्डरो में अकेले ही खलबली मचा रखी है पासी समाज की गतिविधियों से दूर है ।
रामशंकर जी का मानना है की सेवा के लिए उठा एक हाथ प्रार्थना के लिए उठे दो हाथो से ज़्यादा महत्वपूर्ण है । – सुधीर सरोज, मुंबई 

कायर मजबूर सती ( राजपूत ) महिलायें बनाम बहुजन वीरांगनाएँ।

उधर निठल्ले तोंदियल अलसाए राणा जी लड़ने चले नहीं कि इधर रानी साहिबा के जल मरने की तैयारी शुरू। राणा जी लगभग शत प्रतिशत हार जाते थे। या भाग खड़े होते थे। 

शुक्र है कि भारत में झलकारी बाई कोरी, उदा देवी पासी, रानी दुर्गावती, अवंतीबाई लोधी, महावीरी देवी जैसी वीरांगनाएँ रही हैं। 
सिर्फ एक मिसाल लें तो, उदा देवी के पति 1857 अंग्रेज़ों से लड़ते हुए मारे गए तो उदा देवी सती नहीं हुईं। तलवार उठाई और 30 से ज़्यादा अंग्रेज़ों को मारकर शहीद हो गई।

वीरांगना उदा देवी पासी

इसे कहते हैं शौर्य।

वह नहीं कि फोकट में जल मरीं। 
वो जो सती बनी, जिन्होंने निठल्ले राणा जी के लिए जौहर किया, उनसे देश को क्या मिला? इसलिए देश ने भी उन्हें इतिहास के कूड़े में फेंक दिया।

झलकारी बाई कोरी

हालाँकि मुझे नहीं लगता कि कोई महिला अपनी मर्ज़ी से सती होती होंगी। ज़बरन पकड़कर जला दिया जाता होगा।
अच्छा है कि यह प्रथा अब ग़ैरक़ानूनी है। 

रानी दुर्गावती

बहरहाल, झलकारी बाई कोरी, उदा देवी पासी, रानी दुर्गावती, अवंतीबाई लोधी, महावीरी देवी की मूर्तियाँ देश के अलग अलग हिस्सों में लगी हैं। उन्हें फूल मालाएँ पहनाई जाती हैं। उनके नाम पर सरकार ने डाकटिकट जारी किए। उनके नाम पर स्कूल कॉलेज हैं। उनके नाम पर पुरस्कार दिए जाते हैं। 

रानी अवंती बाई लोधि

उन वीरांगनाओं को शत शत नमन।

शहीद ओम प्रकाश पासवान के दूसरे बेटे विमलेश पासवान भी बांसगांव से बने विधायक 

(शहीद ओम प्रकाश पासवान जी अपने पुत्र कमलेश और विमलेश पासवान के साथ)

गोरखपुर  : पूर्व विधायक ओम प्रकाश पासवान के छोटे बेटे और बीजेपी के संसद कमलेश पासवान के भाई विमलेश पासवान भी भाजपा के टिकट पर विधान सभा पँहुच गये है। 36 साल के युवा विमलेश ब्लॉक प्रमुख रहते हुए विधान सभा का चुनाव ज़ीतने में सफल हुए है। 
बीआरडी मेडिकल कॉलेज से लेक्चररशिप की नौकरी छोड़ डॉ विमलेश पासवान ने अभी संपन्न हुए विधान सभा के चुनाव में जिले की बांसगांव विधान सभा की सीट जीत ली है। यह सीट इनके परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है । 
गौरतलब है की पूर्वांचल में लोकप्रिय व दबंग नेता   पूर्व विधायक ओम प्रकाश पासवान की बम मारकर हत्या कर दी गई थी। पिता की हत्या के वक्त विमलेश की उम्र 14 साल थी और दिल्ली में पढ़ाई करते थे और उसके बाद वह गोरखपुर में ही पढ़ाई शुरू कर दिए।
पासवान जी की हत्या के बाद उनकी माँ सुभावती पासवान को जनता ने सहानुभूति लहर में सत्ता सौंपी। साथ ही चाचा चंद्रेश पासवान भी मानीराम विधान सभा से विधायक चुनकर सत्ता के गलियारे में भेजा। विमलेश पासवान ने किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ से एमडीएमएस (मैक्सिलो फेशियल सर्जन) किया है।

माँ के राजनीतिक सन्यास के बाद उनके बड़े भाई कमलेश पासवान बांसगांव से बीजेपी से दो बार से सांसद हैं, जबकि मां सुभावती भी विधायक रह चुकी हैं। ऐसे में लाज़मी है कि जब पूरा कुनबा ही राजनितिक रहा हो तो एक बेटा क्यों न राजनीतिक ककहरा पढ़ेगा।
विमिलेश की पत्नी डॉक्टर मोहिता पासवान भी जबलपुर मेडिकल कालेज से बी डी एस कर दन्त चिकित्सा के पेशे से जुडी है और अपने आवास में ही क्लीनिक चलाती है।

विमलेश पासवान राजनितिक रूप से काफी समृद्ध है। उनके पिता ओम प्रकाश पासवान 1979 से लेकर दस वर्षो तक लगातार चरगांवा ब्लाक के प्रमुख थे।  यही से उनका राजनीतिक सफ़र गोरक्षनाथ मंदिर के साये में रहकर मानीराम विधानसभा क्षेत्र से 1989-1991 और 1993 में लगातार विधायक और 1996 में सपा के बैंनर तले सांसदी का सफ़र शुरू हुआ।  जहां 1996 में बांसगांव से लोकसभा चुनाव में सभा के दौरान बांसगांव क्षेत्र में कुख्यात अपराधी राकेश यादव ने बम मारकर उनकी हत्या कर दी थी। पासी समाज में जन्मे अमर शहीद ओम प्रकाश जी का परिवार राजनीतिक रूप से जनता की सेवा करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। गरीबो के मशीहा ओम प्रकाश का 25 मार्च को 21 पुण्यतिथि मनाई गयी । उनके पूण्य तिथि पर नमन