पासी राजा थें बैस राजपूतों के पुरखें – लेखक केपी बहादुर सिंह

पासी राजवंश से सरोकार है तो एकबार इस लेख को जरूर पढ़ना । वैसे मेरी पोस्ट सार्वजनिक होती है कोई भी पढ़ सकता । हम मानते हैं कि इतना साहित्यिक और इतिहासिक झोल मचा दिया गया है कि मेरी बात को मानना और नकारना दोनों ही आसान नहीं ।खैर पढ़ें और समिक्षा अध्ययन विचार करें ।

पासी राजाओं पर तमाम जातियां करती हैं दावेदारी ।

प्रजापालक राम, नरपति चन्द्रविक्रम विक्रमादित्य पासी, परशुराम,वीरसेन, महाराजा हर्ष वर्धन, महाराजा सुहेलदेव पासी , महाराजा डालदेव ,राजा हिरसिंग बिरसिंग ,अमर सहीद वीरांगना ऊदादेवी पासी आदि तमाम राजा महाराजा और क्रांतिकारियों को लेकर अक्सर ब्राम्हण समाज , ठाकुर (राजपूत), अर्कवंशी, राजभर,यादव समाज, गड़ेरिया समाज,लोधा समाज की कुछ जातियां पासी समाज के महापुरुषों के ऊपर अपना दावा ठोकती रहती हैं । इसके पीछे कुछ तो कारण है। कारण साफ है उपरोक्त समाजों की इन जातियों के पुर्वज पासी ही हैं। लेकिन आधिपत्य सत्ता में अधीनस्थ सत्ता के लालच में कुछ लोगों ने गुप्तकाल (364 ई से 606ई) में पाला बदला और 1325ई से 1857 के बीच कुछ लालची गद्दार पासी परिवारों ने पाला बदला फिर 1871 से 1935ई के बीच काफी पासी परिवारों ने समाज से गद्दारी करते हुए पाला बदला फिर मंडल कमीशन नब्बे के दशक में स्वयंमेव कुछ लोग बदल गये । अब उनकी संतति पासी नहीं है यह हम जानते हैं । जिन समाजों में यह गद्दार पासी समाहित हुए हैं अभी आज तक उन समाजों की पुरानी जातियों में इनके सादी विवाह संबंध भी नहीं होते ।यह लोग उन समाजों में अपनी पक्की दावेदारी के लिए अपने जन्मदाता पासी समाज की जातियों तथा दलित (कर्मकार) जातियों पर जुल्म भी करते हैं। इतिमिनान से यकीन के लिए सामाजिक वातावरण का अध्ययन कर सकते हैं। और साक्ष्य के रूप में स्लीमेन डायरी का अध्ययन भी कर सकते हैं। नये सबूतों में 1911 से लेकर 1931 तक की जातीय जनगणना का अवलोकन भी कर सकते हैं ।आज भी तमाम पासी पासी धर्म भूलकर स्वयं को अन्यत्र गिनाने जोड़ने के चक्कर में रहते। मैं कमला रावत आज के बचे पासियों से निवेदन करती हूं कि जब आपके पुरखे तमाम कठिनाइयों को झेलकर भी पासी धर्म परिवार को नहीं छोड़ा तो आप अपने पुरखों की लाज रखना पासी बनकर पासी धर्म का पालन करना।

कुछ साक्ष्य कड़ियां इस प्रकार हैं।
आदरणीय मित्रों भारत मे सन् 1871 से लेकर 1931 तक छे बार जातीय जनगणना हुई जिसमे पाया गया कि तथाकथित हिन्दू धर्म के चौथे पायादान से ऊपर के तीनो पायदान की ओर उर्धगमन किया । यह स्थति 1944 तक गांधी जी के ऊँचा बनो अभियान और आर्य समाज के सुधार आन्दोलन तथा जरायम एक्ट से मूक्ति पाने के कारण हुआ ।


1901 से 1911 के मध्य जनगणना में 57 जातियों ने उर्धगामी छलांग लगाई ।फिर 1921 की जनगणना मे 83 जातियों ने उर्धगामी छलांग लगाई ।1931 की जनगणन मे 148 जातियों ने छलांग लगाते हुए अपनी जातियों को ब्राह्मण ,क्षत्री ,वैष्य जातियों मे समाहित कर दिया । इनमे 37 जातियां ब्राह्मण बन गयीं ,80 जातियां क्षत्रिय बन गयीं ,15 जातियां वैष्य बन गयीं और शेष जातिया चन्द्रवंशी क्षत्रिय कहलाने लगीं ।


आजादी के बाद हालत कुछ और है । संविधान मे बाबा साहब ने कुछ जातियों को आरक्षण दिया । बापू मसुरियादीन पासी के प्रयासों से जरायम एक्ट की जातियों को 31 अगस्त 1952 मे आजादी दिलाने के बाद 1957 मे इन जातियों को तीनो प्रकार की आरक्षण सूची में शामिल कराया । इसके बाद 90 के दसक मे मंण्डल कमीशन के आधार पर पिछडा वर्ग आरक्षण नौकरियो मे और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाओं मे लागू हुआ ।


इसके बाद वह उर्धगमनकारी जातियां अधोगमन के लिए छतपटा रहीं हैं । कुछ पिछडा वर्ग तो कुछ अनुसूचित जाति जनजाति मे अधोगमन वापसी के लिए मांग और धरना प्रदर्शन तक कर रही हैं लेकिन वह अपने उर्धगामी टाइटिल को त्यागना नही चाहती । कुछ तो अधोगमन वाला जोखिम नही उठाना चाहती वह आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करती हैं । उर्धगमन में पासीवंश की भी बहुत जातियां है । सात आदिवासी जातियां भी हैं ।
इन उर्धगामी जातियों में तीनो वर्णो की जातियों में शादियां भी उर्धगामी होती है । अर्थात उक्त तीनो वर्णो के पूराने लोग यह उर्धगामी स्थिति जानतें हैं इसलिए इनकी लडकियों की शादी अपने लडको से तो कर लेते हैं परन्तु अपनी लडकियां इनके घरों मे नही ब्याहते । उर्धगमन की जानकारी वर्ष 1931 की जनगणना रिर्पोट के पृष्ठ 430 से 441 तथा 528 से 532 और 345 से 352 पृष्ठों के अध्ययन मे सब कुछ साफ नजर आएगा ।


विडम्बना देखिए ब्रिटिस शासन काल मे सभी चाहते कि उनकी जाति को उच्चता की श्रेणी मे रखा जाय लेकिन आधुनिक युग मे अनुसूचित जाति जनजाति आयोग और मंडल आयोग को सैकडो आवेदन तथा धरना प्रदर्शन मांग तीनों वर्णों की जातियों की तरफ से किये जातें हैं ।
लेकिन भारत की वर्ण परक ऊँच्यता नीचता के कलंक के कारण यह लोग उर्धगमन वाले तथ्यों को उजागर नहीं करना चाहते हैं ।सब समय काल की बात हैं । इसीलिए कई जगह पासी राजाओं और उनके किलों को लेकर तमाम लोग दावा करते हैं ।


साभार :
कमला रावत
9919505615

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