एक आवाहन ..!


मेरा ह्रदय भावनाओं से भरा हुआ है कि मैं उन्हें व्यक्त करने में असमर्थ हूँ साथियों जब तक करोड़ों व्यक्ति भूखें और अज्ञानी हैं, तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को कृतघ्न ( दोषी ) समझता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित बना है, पर उनकी ओर ध्यान नहीं देते। दुखियों के दुख का अनुभव करो जैसे तथागत बुद्ध,महावीर स्वामी, कबीर दास, रविदास जी, ज्योतिबा फुले ,सावित्री फुले और डा० भीम राव अम्बेडकर साहब ने महसूस किया था और गरीबों की सहायता के लिए भगवान बुद्ध तुम्हें सफलता देंगे ही। मैं अपने हृदय में इस वेदना को और मस्तिष्क में इस भार को लेकर वर्षों से भटक रहा हूँ। वेदना भरा हृदय लेकर हजारों लोगों से मिला और इस कार्य हेतु आधा भारत पार कर चुका हूँ कि सहायता प्राप्त हो सके,इस भूखंड में शीत से या भूख से भले ही मर जाऊँ पर हे तरुणों ! मैं तुम्हारे लिए एक वसीयत ( संदेश) छोड़ जाता हूँ। मेरे समाज तथा देश के भावी सुधारकों! मेरे भावी देश भक्तों। हृदय से अनुभव करो ! क्या तुम अनुभव करते हो कि देश के महापुरुषों और महान राजाओं के वंशज आज पशु तुल्य हो गए हैं? …….देश पर अज्ञान के काले बादल छाये हुए हैं ? क्या इस अनुभूति ने तुम्हें बेचैन कर दिया है ? क्या तुम्हारे हृदय की प्रत्येक धड़कन के साथ एक रुप हो चुकी है ? क्या इसी ने तुम्हें पागल या मदहोश सा बना दिया है ? क्या तुम अपने नाम अपने यश ,अपनी पत्नी,अपने बच्चों,अपनी धन सम्पत्ति यहाँ तक कि अपने शरीर को भूला बैठे हो ?

मुझे उस धर्म का अनुयायी होने का अभिमान है, जिसने संसार को सहिष्णुता और विश्व प्रेम की शिक्षा दी है, जिसकी वजह से हमें विश्व गुरु का रुतबा मिला है। हम केवल विश्व व्यापिनी सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं रखते, हम यह भी मानते हैं कि सभी धर्म सच्चे हैं। मुझे उस जाति में उत्पन्न होने का अभिमान है,जिसने अत्याचार पीड़ितों को मतवादियों द्वारा सताये हुए लोगों और पृथ्वी की सब जातियों को आश्रय दिया जिसने समस्त विश्व को ज्ञान दिया जिसने भारत वर्ष को विश्व गुरु होने का दर्जा प्रदान किया आज पूरा विश्व उन्हें मानता है,आज उनका सबसे मोहक मंत्र जो मुझे सर्वप्रिय लगता है आपके सामने रखता हूँ ” अप्प दीपो भव ” अर्थात अपने प्रकाश से प्रकाशवान हो ,अपने ज्ञान से चमको और छा जाओ विश्व पटल पर, उठो साथियों मुझे आपके अन्दर जो चाहिए वो है लोहे की नसें और फौलाद के स्नायु जिनके भीतर ऐसा मन वास करता हो जो कि बज्र के समान पदार्थ का बना हो बल ,पुरुषार्थ , क्षात्रवीर्य और ब्रम्हतेज हो जो दुश्मनों के लिए चट्टान की तरह अडिग हो और गरीबों असहायों के लिए कोमल सहृदय हो जो उनकी मदद ,तरक्की उत्कर्ष के लिए सदैव लालायित रहें ।

धन्यवाद

लेखक -डा० यशवंत सिंह

हिंदुत्व के नाम पर मनुवाद का छल, प्रदेश में पहली बार हिन्दु मुख्य मन्त्री ??

दोस्तों आप टीवी चैनल पर देखो या समाचार पत्रों को उठाकर देखो या किसी सार्वजनिक स्थलों पर खड़े होकर देखिए आपको चर्चा का एक ही विषय नजर आयेगा हिन्दू धर्म,हिन्दू समाज,हिन्दू उत्कर्ष,हिन्दूओं का सम्मान, हिन्दू देश,हिन्दू दर्शन,हिन्दू राज्य, हिन्दू आतंकवाद इत्यादि इत्यादि आज के दौर में हिन्दू पर इतनी चर्चा क्यों क्या उ०प्र० की धरती पर पिछले २५ वर्षों से हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं था क्या ये राज्य विदेशियों के हाथ में था क्या मुलायम,मायावती और अखिलेश यादव हिन्दू नहीं थे फिर हिन्दू को लेकर इतना भ्रम क्यों फैलाया जा रहा था अब जब भाजपा की सरकार बन रही है तो बिकाऊ मीडिया द्वारा ये दिखाना कि अब हिन्दू एकजुट हुआ है तो सवाल ये है कि जब २००७ मे बहन जी। की सरकार और २०१२ में अखिलेश की सरकार बनी तो क्या हिन्दू एकजुट नहीं था उत्तर मिलेगा शायद नहीं क्यों कि ये तो दलित और महादलित हैं एक शूद्र तो दूसरा महाशूद्र ये तो कभी हिन्दू था ही नहीं जब भी हिन्दू उत्थान की बात आती हैं उसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का ही नाम आता है भारत में इनकी कुल आबादी लगभग १५%के करीब है इनका उत्थान हिन्दू का उत्थान माना जाता है इनकी प्रगति देश की प्रगति मानी जाती है तो फिर ८५% जनता का देश में क्या योगदान है यह एक विचारणीय प्रश्न है तो साथियों क्या ८५% जनसंख्या को छला जा रहा है ये इसे वर्ग को कब समझ में आयोगा इसका पहले भी शोषण होता रहा है और आगे भी पूरी सम्भावना है कि धोखे मे रख कर शोषण की पूरी पटकथा तैयार की जा चुकी है केंद्र में आपका प्रतिनिधित्व करने वाले वाले कितने कैबिनेट मंत्री हैं तो उमाभारती जैसी कुछ एक हैं जिनकी औकात हिन्दू समाज में वैसी ही है जैसी आदि शंकराचार्य की बौद्ध भारत में थी परन्तु दोनों की जमीन में और विचारधारा में अन्तर है वो हिन्दू धर्म की स्थापना को लेकर प्रतिबद्ध था तो उमा भारती जैसी साधवी अपने समाज को छोड़ उस हिन्दू समाज में घुसपैठ की तैयारी कर रही हैं जिसमें से उन्हें एक न एक दिन बाहर फेंक दिया जायेगा।अब इन कथित हिन्दुओं का तो ये मास्टर प्लान ही रहता है कि “use and throw” जैसा कि केशव मौर्य के प्रकरण से स्पष्ट है अगर ये हास्पिटल में भर्ती नहीं होते इन्हें लगभग निकाल ही दिया गया था खैर इन्हें झुनझुना पकड़ाया गया है ये इन्हें कुछ समय पश्चात् पता चलेगा तब इन्हें समझ आयेगा की हम किसके चंगुल में फंसे हैं।अर्थात आशय स्पष्ट है कि ८५% जनसंख्या को बांटो और उसमें से ५० % जनसंख्या में ऐसा उनमाद फैला दो कि उन्हें हिन्दू जैसे पाखंड के अलावा कुछ याद ही न रहे माननीय प्रधानमंत्री महोदय का कहना है कि महत्मा गाँधी को चम्पारन की घटना ने महत्मा बना दिया तो मैं ये कहना चाहूँगा कि पूना पैक्ट ने उन्हें शैतानों की श्रेणी में भी तो खड़ाकर दिया इसका भी तो वर्णन करो,ये नहीं करेंगे क्योंकि इनकी १५% हिन्दूवादी छवि धूमिल हो जायेगी अगर इनकी सदैव ही यही विचारधारा रही है और ये अब भी उसी लीक पर चल रहे हैं तो ये समॻ देश को साथ कैसे लेकर चलेंगे और देश का विकास कैसे होगा यदि ८५% जनसंख्या के साथ भेदभाव होगा तो भारत वर्ष कैसे प्रगति करेगा सोचिए साथियों सोचिए???????(डॉ यशवंत सिंह सामजिक चिंतक और लेखक )

वंचित समाज और संविधान

प्लेटो का आदर्श राज्य न्याय पर आधारित है , न्याय ही राज्य की एकता को बनाए रखने का सूत्र है , प्लेटो का कहना है की “समाज अथवा राज्य समाज की आवश्यकता और व्यक्ति को दृष्टि में रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति के लिए कुछ कर्तव्य निश्चित करते है और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा संतोषपूर्वक अपने अपने कर्तव्यों का पालन करना ही न्याय है , प्लेटो का आदर्श राज्य एक ऐसी वयस्था है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने निश्चित कर्तव्यों का पालन करता है ।

प्लेटो म उपरोक्त कथन उनकी राज्य के प्रति अवधारणा की स्पष्ट करता है । किसी देश की अंतरात्मा उसके संविधान में निहित होती है । भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है इस देश का संविधान इसका नेतृत्व करता है , जिसके जनक बाबा साहेब डा. भीम राव अम्बेडकर है किसी देश की प्रकृति कैसी है यह उसके संविधान से स्पष्ट होता है उसकी न्याय प्रणाली ,सामाजिक वयस्था , राजनीतिक तंत्र ये सभी संविधान से बँधे होते है ।

संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो अगर उसको आत्मर्पित करने वाले लोग सही नहि होंगे तो उस देश का भविष्य अच्छा हो सकता । बाबा साहब के संविधान पर महान दार्शनिक प्लेटो के उपरोक्त कथन का प्रभाव स्पष्टत: इंगित होता है , अब इसे हम संयोग kahe या बाबा साहब की विध्व्ता जिन्होंने सैंड्रा के सभी अच्छे संविधानों के बेहतरीन तथ्य भारतीय संविधान में तिरोहित किया है । बाबा साहेब ने संविधान निर्माण के समय विश्व के सभी देशों के संविधान का अध्याय निश्चित रूप से किया होगा , साथ ही साथ विश्व के महान दर्शिनको तथा विद्वानों का भी अध्यन किया होगा , तभी तो भारत का संविधान इतना उत्कृष्ट बना है ।२९ अगस्त सन १९४७ को जब बाबा साहेब को भारतीय संविधान निर्माण की ज़िम्मेदारी मिली तभी यह स्पष्ट हो गया था कि एक ख़ूबसूरत संविधान देखने को मिलने बाला है । तथा बाबा साहब ने दिन रात मेहनत करके २ वर्ष ११ महीने १८ दिन में इस आशय को सिद्ध भी कर दिया । संविधान निर्माण समय बैन साहेब के समक्ष लगभग ३० करोड़ जनसंख्या को न्याय दिलाने और सब की उम्मीदों के अनुरूप निर्माण की चुनौती थी , जिसे बाबा साहेब ने बख़ूबी निभाया ।
भारतीय समाज का इतने भागो में विभाजित होना , भारतीय समाज में विश्व की लगभग सभी जातियों और वर्गों के निवास करने और उन सब में अंतर्कलह की स्थिति के बावजूद संविधान में हर तबके के लिए सम्पूर्ण वयस्था निहित है । आज़ादी के पूर्ण भारत में भारत की ६० प्रतिशत जन्स्ख्या ग़ुलामों जैसी ज़िंदगी जी रही थी , वैसे तो भारत की ८०प्रतीशत् जन्स्ख्या की यहाँ बड़ी ही हेय दृष्टि से देखा जाता था । फिर भी विषम परिस्थितियों बाबा साहेब ने संविधान का निर्माण किया । महान दार्शनिक प्लेटो तथा अन्य महान विद्वानों ने जो आदर्श राज्य के जो नियम प्रतिपादित किए थे उन सभी को संविधान में तिरोहित किया । उन्होंने समाज के har वर्ग को उसकी योग्यता अनुसार राष्ट्र के vikas के लिए उसके कर्तव्य निर्धारित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया , जिससे देश का प्रत्येक नागरिक पढ़ लिख कर तरक़्क़ी कर सके और और राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दे सके

परंतु पिछले ६७ वर्षोंसे कुछ वर्ग विशेष के लोग उन्हें निरंतर दबाने में लगे है , जिन्हें बैन साहब , ज्योतिबा फुले ने संघर्ष कर अधिकार दिलाया था , यदि इन मनवादियो को उस तबके की तार्किक से इतनी नफ़रत है तो ऐसी कौन सी मजबूरी थी ? जिसके वजह से इन मनवादियो ने बैन साहेब को पूना पैक्ट के लिए मजबूर किया था , जो दबे कुचले है उन्हें यथावत उसी स्थितियों में बनाए रखना था , अंकन वाई तबक़ा तरक़्क़ी करने लगा तो इन मनवादियो को कष्ट होने लगा , जिसके फ़लस्वरोप सदैव उसकी राहों में रोड़े अटकाए गए । आजाती के इतने वर्षों के पश्चात भी संविधान में की गई आरक्षण कि पूर्ण व्यवस्था पूरी तरह से आज भी लागू नहि की गई , न्यायालय ,सेना, PMO , प्राइवट सेक्टर में तीन -तीन पीढ़ी बीत जाने के बाद भी कोई ख़ास प्रतिनिधित्व आज राज क्यों नहि मिला ? ऐसा क्या चल रहा है इन मनुवादी के मस्तिष्क जो उन दबे कुचले लोगों को अग्रिम पंक्ति में नहि आने देना चाहता ।

यदि आज हम किसी भी संस्थान में उठा कर देखे ले तो उच्च पदों पर या तो नियुक्ति ही नहि की जाती यदि की भी जाती है तो विषम परिस्थितियों में न के बराबर आज़ादी के पश्चात –

– क्या तीनो सेनाओं के प्रमुख के रूप में किसी वंचित समाज के सदस्य की नियुक्ति हुई ?
– क्या कोई प्रधान मंत्री बना
– एक राष्ट्रपति छोड़ क्या धारक कोई राष्ट्रपति बना
– न्यायालयों में आजतक कितने चीफ़ जस्टिस पहुँचे ।लोवर तबके पर कितने वंचित समाज के वकीलों को सरकारी वक़ील या जज के रूप में प्रमोशन मिलता है ? एक चीफ़ जस्टिस नियुक्त हुए थे कुछ समय के लिए जब चीफ़ जस्टिस की को अपनी संपती की घोषणा सार्वजनिक रूप से करनी थी ।
– विश्वविद्धलयो में कितने कुलपति , प्रोफ़ेसर अब तक नियुक्त हुए ?
– विभिन्न राज्यों में अब तक कितने मुख्यमंत्री और राज्यपाल बने ?
– कहा जाता था की कांग्रेस वंचित समाज की सहयोगी पार्टी है अब तक कितने अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बने ?
– कांग्रेस की सरका रहते कोई प्रधान मंत्री बना ?
– ५०-५५ वर्षों के कांग्रेस शासन में कितने कैबिनेट मंत्री बने ?
– आज भाजपा की सरकार है कितने वंचित समाज से संबंधित उसकी कैबिनेट मंत्रालय में है ?
– कितने लोगों को इन्होंने पार्टी के शीर्ष पदों स्थान दिया है ?
– भारतीय क्रिकेट टर्म जहाँ एक सिख और मुस्लिम स्थान लगभग हमेशा संरक्षित रहा SC/ST के कितने खिलाड़ियों को प्रतिनिधित्व का मौक़ा मिला?
– अन्य खेलो जैसे हाकी फ़ुट्बॉल इत्यादि में अब तक इस वर्ग को कितना प्रतिनिधित्व मिला है
– विश्व हिंदू परिषद, आर॰एस॰एस॰ ,बजरंग दल, शिवसेना , प्रांतीय दल , रक्षक वहिनी , दुर्गा वहिनी , न जाने कितनो में वंचित समाज की भागीदारी करोड़ो में होती है , परंतु जैन अधिकार ,प्रतिष्ठा की बात आती है तो हमेशा अगली पंक्ति में मनुवादी के पोषक ही दिखाई पड़ते है
– संघीयों ने अब तक कितने पासी ,जाटव,कोरी ,धोबी, इत्यादि को अध्यक्ष या प्रमुख के पद पर आसीन होने दिया है ।
– क्या इनकी कार्य प्रणाली मन में शंका नहि पैदा करती ?
वहीं दूसरी तरफ़ पेरियार साहब तमिलनाडु में पिछड़े और परिगणित जातियों के लिए एक पार्टी का गठन किया जो की बाद में दो भागो AIDMK और DMK में विभाजित हुई दोनो के ही मुख्यमंत्री ब्राह्मण रहे है । मान्यवर स्वर्गीय श्री कांशीराम साहब ने बामसेफ और बीएसपी की स्थापना की स्थापना लोअर तबके लिए किया परंतु आज इसमें ब्रह्मणो को बराबर सम्मान मिलता है पर क्या वंचित समाज को सम्मान मिलता है ?मात्र एक-दो राज्यों में इनकी सरकार क्या बनी माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ गया की जाती और धर्म के आधार पर वोट न माँगे जाए मैं पूछना चाहता हु की जाती और धर्म की इस देश को ज़रूरत क्या है ?
उसे समाप्त क्यों नहि कर दिया जाता ? कटघरे में खड़े व्यक्ति को गीता और क़ुरान पर हाथ रखकर क़सम क्यों खिलाई जातीहै ?

– क्या गीता जातिवादी पुस्तक नहि है ?
– क्या गीता रामायण महाभारत जातिवाद को बढ़ावा नहि देते ? ऐसी पुस्तकें जिसमें कपोल कथाएँ है उससे नागरिकों को क्या फ़ायदा है ?
– ऐसी पुस्तक न्याय के मंदिर में प्रयोग क्यों की जाती है।
– आज भारत की जो स्थिति है उसका ज़िम्मेदार कौन है ? कहीं नक्सलवाद कहीं उल्फ़ा ,कहीं एल॰टी॰टी॰ कही आतंकवाद जगह जगह अलगाववाद को बढ़ावा क्यों मिल रहा है ? क्या इसके पीछे केंद्र की कमज़ोर जीती नहि है ?
– भारत के तत्कालिक परिवेश को देखने पर लेनिन के ये शब्द याद आते है – साम्राज्यवाद पूँजीवादी सर्वोत्तम अवस्था है ?
– राज्य धनवान वर्ग के हाथ की कठपुतली है वह सर्वहित या जैन कल्याण का साधन नहि हो सकता ।
– राज्य जनसंख्या के अधिकांश भाग पर शासन करने वाले पूँजीपतियों के हाथो में शोषण का साधन है ।लेनिन के उपरोक्त कथनो और भारत के मोदी युग का विश्लेषण करे रो आज का मोदी युग पूँजीवादी की ओर अग्रसर हो रहा है ।
– मोदी एंड कम्पनी देश को किस दिशा में ले जा रहे है ?
– क्या पूँजीवाद और समराज्यवाद देश के लिए ख़तरा नहि है
– क्या मोदी कंपनी लेनिन के उपरोक्त कथन की ओर नहि बढ़ रहे है
– क्या भाजपा की ये कार्यशैली प्लेटो के आदर्श राज्य के विपरीत नहि जा रहे है ?
– क्या इस देश में प्रत्येक समझके प्रत्येक वक्ति राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निर्वाह करने का मौक़ा मिलता है ?
– क्या इस वर्ग को आरक्षण के तहत जो अधिकार है उसके अंतर्गत जीवन जीने का मौक़ा मिलता है ?
– १९९२ से अब तक लगातार अयोध्या के ऊपर राजनीति की रोटी क्यों सेकी जा रही है ? २५ वर्ष हो रहे है जो बनाना है या नहि बनाना है फ़ाइनल करिए क्यों जनता को बेवक़ूफ़ बाना रहे है
– भाजपा नेता विनय कटियार का यह कहना की सुप्रीम कोर्ट कहे ना कहे मंदिर ज़रूर बनेगा । क्या ये मानननिय सुप्रीम कोर्ट से ऊपर होग गए है ।
– यदि सम्पूर्ण जनता को साथ लेकर चलना चाहते है तो क्यों नहि आदिवासियों के ज़मीन संभ्धित अधिकार उन्हेंसौंप देते ?
– क्यों आरक्षण का पेंच फँसा कर बैठे है ?क्यों नहि उसे पास करवाते ?
– आरक्षण पर मानननिय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी उसका पालन क्यों नहि करवा रहे है ?
– बार – बार संविधान संशोधन और आरक्षण पर बहस क्यों छिड़तीं है ?
– क्या ये वर्ग क्रांति चाहता है ?
– यदि किसी वर्ग विशेष के अधिकारों का दमन किया गया तो क्या देश के लिए विनाशकारी नहि होगा ?
– उससे देश को क्या फ़ायदा होगा
– क्यों मीडिया और न्यूज़ चैनल इस ओर आमादा है ?
– क्या इससे देश की तरक़्क़ी में बाधा नहि पहुँचेगी ?
– देश की जनता को भ्रमित क्यों किया जा रहा है ?

क्या आज माननिय प्रधानमंत्री और उनके मंत्रालय अर्थात भारत सरकार को इस विषय पर गम्भीरता से विचार नहि करना चाहिए ?

जय भीम

लेखक – डा ० यशवंत सिंह ,लखनऊ

ज़िम्मेदारियों की कशमकश !

लेखक एक उच्च शिक्षित नौजवान है , परंतु उसकी अपनी बहुत सारी योग्यताएं भी उसे अभी तक आधुनिक जीवन में स्थापित नहीं कर पाई हैं । उसके अपने सपने जो उसने स्वयं के लिए और समाज के लिए देखे थे। आज समाज में फैली असमानता, जातिगत दुर्भावना, ऊँच-नीच की मानसिकता, धर्म की राजनीति भारतीय समाज के ढांचे में उच्च स्तर पर बैठे कुछ प्रतिशत लोगों की ओछी मानसिकता ने पिछले 2000 सालों से चली आ रही असमानता को और बढ़ावा दिया है, लेखक की इच्छा थी कि वह उन लोगों के लिए कुछ करें जो समाज की मुख्यधारा से मीलों पीछे छूट गए हैं, पर समय ने उसे ऐसा जकड़ा है कि उसे अपने लिए स्वयं सहायता की आवश्यकता महसूस हो रही है ,आज संबंधों में बंधा हुआ हर इंसान किसी ना किसी जिम्मेदारी में बंधा है मां- बाप, बेटा- बेटी, चाचा – चाची, भतीजा- भतीजी, भैया -भाभी ,नाना- नानी, मामा- मामी इत्यादि कुछ लोग इसे ऐसा भी कहना चाहेंगे कि मैं फला जिम्मेदारी में फंसा हूं परंतु यह कहना क्या अतिशयोक्ति नहीं होगा , कि जिम्मेदारी अपने परिवार की, जिम्मेदारी अपने समाज की, जिम्मेदारी अपने देश के प्रति कैसे पूरी करें, क्या मेरी यह जिम्मेदारी नहीं है, कि मैं अच्छी कमाई करूं , समय पर शादी कर अपने परिवार को बढ़ाऊँ, तथा बाकी परिवार को मानसिक सुख दूं, उनकी छोटी-छोटी इच्छाएं पूरी करने की कोशिश करूं परंतु अफसोस की बात है कि आज मैं ३५ की उम्र को पहुंच कर भी अपने आप को स्थापित नहीं कर पाया, तथा कहीं ना कहीं समाज कि नजरों में गैर जिम्मेदार दिखाई देने लगा, आज मैं इसी कशमकश में जी रहा था , कि भारतीय संस्कृति के अनुसार मेरे ऊपर एक जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, कि मेरे माता पिता मेरी शादी करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं और इसी के चलते उन्होंने कहीं मेरी शादी तय कर दी है, आज समझ में नहीं आता मुझे कि वास्तव में जिम्मेदारियां जीवन में स्वाद भर्ती हैं या उसे बेस्वाद करती हैं, मुझे पता है कि मैं गलत नहीं हूं और मुझे इस बात का भी एहसास है कि मेरे घरवाले भी गलत नहीं है , जो इस समाज में अव्यवस्था फैली है, उसका क्या और इसकी क्या गारंटी है कि शादी के बाद जिंदगी खूबसूरत हो जायेगी, पर यह जरूर है कि कुछ नए रिश्तो का सृजन होगा जिन के प्रति भी जिम्मेदारियां और बढ़ेंगी सच में मुझे जिंदगी पर तरस आता है, इंसान को पता होता है कि बहुत सारे कार्य गलत हैं, फिर भी वह उन्हें करने को आतुर रहता है, बस यह सोच कर कि जो भी होगा अच्छे के लिए होगा जबरन वह उस कार्य में कोई सकारात्मक पहलू खोजने की नाकाम कोशिश करता है, हंसी आती है जब वह उन सभी नकारात्मक चीजों को बलात ही ना करने की कोशिश करता है , चीख-चीखकर उसे वह कार्य करने से मना करती हैं फिर मुझे एक लेखक की बात आती है, की जिम्मेदारियों को पूरा करने से अच्छा है कि एक नई जिम्मेदारी ले लेना इस कारण लोग पुरानी जिम्मेदारी को नजरअंदाज कर देते हैं , उनका पूरा ध्यान उस नई जिम्मेदारी की ओर होता है, अब बहुत सारी जिम्मेदारियों को पूरा करते करते व्यक्ति का अहम भी बीच में आना स्वाभाविक ही है, जिसके कारण चाह कर भी वह वह जिम्मेदारी पूरी करने के बजाय वह उसके पीछे भागने की कोशिश करता है, जिसमें उसे निजी सुख मिले परंतु उसकी अंतर- आत्मा उसे ऐसा करने से रोक देती है , जिससे वह वो कार्य करता है, जिससे उसकी जिम्मेदारी पूरी होती है, फिर उसे सुख मिले या दुख क्या फर्क पड़ता है जैसे आज समाज में एक ज्वलंत मुद्दा अंतरजातीय विवाह कर समाज सुधार में योगदान करें या उसी सड़ी-गली परिपाटी पर चलें आज समझ में नहीं आता है कि जिम्मेदारियों को पूरा करके अहम को शांति मिलती है जो किसी के अच्छे बुरे का ख्याल नहीं करता है, क्या वास्तव में आत्मिक सुख मिलता है? जो दूसरों के काम पूरा होने या दूसरों की खुशी से मिलता है । इंसान इस पृथ्वी का सबसे खूबसूरत रचना है, परंतु यह भी सत्य है कि उसके अंदर का अहम इस पृथ्वी पर सबसे बुरा है। भारत जैसे देश में आज इसका सबसे अच्छा उदाहरण शादी है शादी हर मां बाप के लिए एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है लेकिन जब वह शादी माता – पिता की इच्छा से ना हो तो बहुत बड़ा बखेड़ा खड़ा हो जाता है । आज का आलम यह है कि जिम्मेदारियों के बीच बंधा हुआ इंसान जिम्मेदारियों को पूरा करते करते ऐसी जगह पहुंच जाता है जहाँ से जिम्मेदारियां भले ही पूरी हो ना हो परंतु इस के चक्कर में उसके संबंध जरूर खराब होने लगते हैं, काश इंसान यह समझ पाता कि हर जिम्मेदारी उस बिंदु पर आकर दम तोड़ देती है जिस बिंदु से उस व्यक्ति को उसके आसपास का समाज प्रताड़ित करना शुरू करता है, तो क्यों ना सर्वप्रथम समाज को संगठित करने का बीड़ा उठाया जाए समाज में व्याप्त असमानता ऊँच-नीच ,अज्ञानता ,छुआ -छूत ,अशिक्षा को दूर करने का बीड़ा उठाया जाये , और समाज को एक नई दिशा दी जाए जहां से समाज में एक नई ऊर्जा का संचार हो, क्यों ना हम बाबा साहब डाक्टर भीमराव अंबेडकर के पदचिन्हों पर चलें, क्यों ना हम माननीय स्वर्गीय श्री कांशी राम जी और बहन कुमारी मायावती पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश से सीख ले कर समाज को एकता रुपी धागे में पिरोने का काम करें तथा क्यों ना हम समाज के नव युवकों को महाराजा सुहेलदेव,महाराजा सातन ,महाराजा बिजली पासी जैसा शक्तिशाली योद्धा बनने को प्रोत्साहित करें ,क्यों ना हम अपने समाज की महिलाओं को वीरांगना उदा देवी की तरह निर्भीक और शक्तिशाली बनने पर जोर दें, क्योंकि यह भी तो एक जिम्मेदारी ही है, समाज के नौजवानों को अपने छोटे-छोटे सुखों की तिलांजलि देकर समाज की जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी अगर इसमें कष्ट है तो भी क्या कष्ट तो हर काम में है, परंतु यदि नौजवान समाज को मजबूत करने के रास्ते पर चलेगा तो उसका समाज दुनिया में दिखाई देगा, चमकेगा, दमकेगा क्योंकि जिम्मेदारियों का असली मकसद तो खुशी है, और समाज की सेवा करना और राष्ट्र की सेवा करने से ज्यादा सुख किसी और काम में कहां, तो साथियों खुशियों की बलि देकर भला कैसी जिम्मेदारी निभाना और अगर जिम्मेदारी ही निभाना है, तो इस संसार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी क्यों न निभाई जाए । – लेखक नीरज सिंह सरोज ,क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट , एमसीडी स्कूल, दिल्ली