पासी समाज के साथ भाजपा ने की गद्दारी ,कैबिनेट में नहीं किया पासी को शामिल , सुरेश पासी को अंतिम में  दिलाई गई राज्यमंत्री की शपथ  

उत्तर प्रदेश की गठित नई सरकार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और  दो उप मुख्यमंत्रियों सहित 44 मंन्त्रियो ने आज शपथ ली  है। जिनमे अधिकांश सवर्ण ही कैबिनेट में शामिल किये गए है।  उत्तर प्रदेश में अनुसूचित समाज में 25 प्रतिशत की बड़ी आबादी वाली जाति पासी के साथ भाजपा ने बड़ा धोखा किया है। यह समाज अबकी बार जमकर भाजपा को वोट किया है। लेकिन इस समाज से एक भी कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया गया।

आजादी के बाद पहली बार यह भेदभाव है जब प्रदेश की सरकार में पासी समाज का कोई भी नेता  कैबिनेट मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। जबकि पासी समाज से 20 विधायक भाजपा के टिकट पर जीते हुये है। यह माना जा रहा है कि अनुसूचित मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सांसद कौशल किशोर पासी समाज को सरकार में भागीदारी दिलाने में नाकाम  रहे । 
सपा और बसपा के जातिवादी मानसिकता से त्रस्त होकर पासी समाज के लोगो ने इस बार सामाजिक समरसता की बात करने वाली भाजपा को वोट दिया कि ,पासी समाज को सत्ता में भागीदारी मिलेगी। 

पासी वोट पाने के बाद मनुवादी ब्यवस्था से ग्रसित सवर्ण भाजपाई वर्षो से सत्ता के वनवास से लौटे है। उनकी भूख का अंदाजा उनकी कैबिनेट को देखकर लगा सकते है। फैज़ाबाद में टीवी देंख रहे एक बुद्धजीवी ने फोन पर बताये कि अंतिम दौर में एक सुरेश पासी नाम के युवक को राज्यमंत्री का शपथ दिलाया गया है। 

पूर्व मंत्री बैजनाथ रावत, पूर्व एमएलसी व भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष  राम नरेश रावत, कृष्णा पासवान , पूर्व सांसद कमलरानी ,रामपाल वर्मा पासी समाज के वरिष्ठ नेता व बीजेपी विधायक है जिनके मंत्री बनने की प्रबल संभावना थीं

लेकिन भाजपा का अनुसूचित विरोधी मानसिकता ही कहा जा सकता है  कि पासी समाज के साथ इतना बड़ा धोखा किया गया है। जिसे लेकर सोशल मीडिया पर पासी चिंतको के बीच चर्चा गर्म है। कोई सुरेश पासी को बधाई देने में मस्त है तो कोई कैबिनेट में समाज की उपेक्षा से दुखी है। पासी समाज के बौद्धिक तपके की मानें तो बीजेपी का यह रवैया बर्दास्त के लायक नहीं है। लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए वरना परिणाम घातक होते है। —-अजय प्रकाश सरोज( संपादक -श्रीपासी सत्ता) 

हिंदुत्व के नाम पर मनुवाद का छल, प्रदेश में पहली बार हिन्दु मुख्य मन्त्री ??

दोस्तों आप टीवी चैनल पर देखो या समाचार पत्रों को उठाकर देखो या किसी सार्वजनिक स्थलों पर खड़े होकर देखिए आपको चर्चा का एक ही विषय नजर आयेगा हिन्दू धर्म,हिन्दू समाज,हिन्दू उत्कर्ष,हिन्दूओं का सम्मान, हिन्दू देश,हिन्दू दर्शन,हिन्दू राज्य, हिन्दू आतंकवाद इत्यादि इत्यादि आज के दौर में हिन्दू पर इतनी चर्चा क्यों क्या उ०प्र० की धरती पर पिछले २५ वर्षों से हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं था क्या ये राज्य विदेशियों के हाथ में था क्या मुलायम,मायावती और अखिलेश यादव हिन्दू नहीं थे फिर हिन्दू को लेकर इतना भ्रम क्यों फैलाया जा रहा था अब जब भाजपा की सरकार बन रही है तो बिकाऊ मीडिया द्वारा ये दिखाना कि अब हिन्दू एकजुट हुआ है तो सवाल ये है कि जब २००७ मे बहन जी। की सरकार और २०१२ में अखिलेश की सरकार बनी तो क्या हिन्दू एकजुट नहीं था उत्तर मिलेगा शायद नहीं क्यों कि ये तो दलित और महादलित हैं एक शूद्र तो दूसरा महाशूद्र ये तो कभी हिन्दू था ही नहीं जब भी हिन्दू उत्थान की बात आती हैं उसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का ही नाम आता है भारत में इनकी कुल आबादी लगभग १५%के करीब है इनका उत्थान हिन्दू का उत्थान माना जाता है इनकी प्रगति देश की प्रगति मानी जाती है तो फिर ८५% जनता का देश में क्या योगदान है यह एक विचारणीय प्रश्न है तो साथियों क्या ८५% जनसंख्या को छला जा रहा है ये इसे वर्ग को कब समझ में आयोगा इसका पहले भी शोषण होता रहा है और आगे भी पूरी सम्भावना है कि धोखे मे रख कर शोषण की पूरी पटकथा तैयार की जा चुकी है केंद्र में आपका प्रतिनिधित्व करने वाले वाले कितने कैबिनेट मंत्री हैं तो उमाभारती जैसी कुछ एक हैं जिनकी औकात हिन्दू समाज में वैसी ही है जैसी आदि शंकराचार्य की बौद्ध भारत में थी परन्तु दोनों की जमीन में और विचारधारा में अन्तर है वो हिन्दू धर्म की स्थापना को लेकर प्रतिबद्ध था तो उमा भारती जैसी साधवी अपने समाज को छोड़ उस हिन्दू समाज में घुसपैठ की तैयारी कर रही हैं जिसमें से उन्हें एक न एक दिन बाहर फेंक दिया जायेगा।अब इन कथित हिन्दुओं का तो ये मास्टर प्लान ही रहता है कि “use and throw” जैसा कि केशव मौर्य के प्रकरण से स्पष्ट है अगर ये हास्पिटल में भर्ती नहीं होते इन्हें लगभग निकाल ही दिया गया था खैर इन्हें झुनझुना पकड़ाया गया है ये इन्हें कुछ समय पश्चात् पता चलेगा तब इन्हें समझ आयेगा की हम किसके चंगुल में फंसे हैं।अर्थात आशय स्पष्ट है कि ८५% जनसंख्या को बांटो और उसमें से ५० % जनसंख्या में ऐसा उनमाद फैला दो कि उन्हें हिन्दू जैसे पाखंड के अलावा कुछ याद ही न रहे माननीय प्रधानमंत्री महोदय का कहना है कि महत्मा गाँधी को चम्पारन की घटना ने महत्मा बना दिया तो मैं ये कहना चाहूँगा कि पूना पैक्ट ने उन्हें शैतानों की श्रेणी में भी तो खड़ाकर दिया इसका भी तो वर्णन करो,ये नहीं करेंगे क्योंकि इनकी १५% हिन्दूवादी छवि धूमिल हो जायेगी अगर इनकी सदैव ही यही विचारधारा रही है और ये अब भी उसी लीक पर चल रहे हैं तो ये समॻ देश को साथ कैसे लेकर चलेंगे और देश का विकास कैसे होगा यदि ८५% जनसंख्या के साथ भेदभाव होगा तो भारत वर्ष कैसे प्रगति करेगा सोचिए साथियों सोचिए???????(डॉ यशवंत सिंह सामजिक चिंतक और लेखक )

केशव मौर्य मुख्यमंत्री क्यों नहीं ? 1980 में धर्मवीर का भी हुआ था विरोध , क्या फिर से पिछड़ो और अनुसूचितों को छला जाएगा?

इला०/ देश की सवर्णवादी मानसिकता का ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश की राजनीति में खूब झलक रहा है। विधानसभा के चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत भले ही लोगो के गले से न उतर रही हो लेकिन इलाहाबादी प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य की काबिलियत और मेहनत पर कोई भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता । गैर यादव अतिपिछड़े वर्ग को भाजपा के खेमे लाने का पूरा श्रेय  केशव को ही माना जा रहा है। केशव मौर्य अपनी रणनीति से अतिपिछड़ों में यह आश जगाने में कामयाब रहे कि भाजपा में अतिपिछड़ों को पूरा पूरा सम्मान मिलेगा । जिस पर भरोसा करके प्रदेश का यह वर्ग पूरी तरह से  भाजपा को वोट किया और भाजपा 325 सीट पाकर  प्रचंड बहुमत में आ गई। लेकिन सत्ता मिलते ही कोमा में रहे बूढ़े भाजपाइयों और RSS की सवर्णवादी मानसिकता  में ऊर्जा का संचार हुआ, तो लगे  केशव की जगह सवर्ण मुख्यमंत्री  बनाने की योजना बनाने । 

आपकों बता दें क़ि सत्र-1978 में काँग्रेस ने भी इलाहाबाद-कौशाम्बी (द्वबा) के अनुसूचित जाति के धर्मवीर पासी जी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। उन्ही नेतृत्व में कांग्रेस को विधान सभा चुनाव में 308 सीट मिली थी । तब नैतिक रूप से उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था लेकिन उस समय भी ब्राह्मणवादी शक्तियों ने इलाहाबादी अनुसूचित समाज के बड़े नेता को मुख्यमंत्री की शपथ नहीं लेने दिया,और विश्नाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री बने थे। साथ में यह भी याद दिला दूँ कि इस भेद भाव के बाद ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस गर्त में चली गई। जो आजतक उबर नहीं पायी । 

मैं इसलिए यह घटना जोड़ रहा हूँ कि दलित -पिछड़े  नेता ब्राह्मणवादी पार्टियों के लिए कितना भी जान लगाकर मेहनत करें अंततः उन्हें भेद भाव का शिकार होना ही पड़ता है । कहने को तो अब भाजपा ब्राहम्णवादी पार्टी नहीं रही ? तो क्यों न केशव मौर्य को मुख्यमंत्री बनाकर इसे सिद्ध करे दें।

क्या कांग्रेसी धर्मवीर के जैसे ही भाजपाई केशव मौर्य  के साथ भी होगा ? अगर ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में भाजपा भी कांग्रेस कि तरह ही  हो जायेगी । -अजय प्रकाश सरोज संपादक -श्री पासी सत्ता पत्रिका 

मशहूर हैं पासी समाज के बीजेपी विधायक ,पूर्व मंत्री की सादगी के किस्से, (बैजनाथ रावत जी  )

बैजनाथ जी भैंसों के लिए चारा बनाते हुए और उनका आम निवास

उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व ऊर्जा मंत्री । भारत देश के बाराबंकी से पूर्व सांसद । क्या यह मामूली उपलब्धि है।
आज के ज़माने जहाँ एक गाँव का प्रधान भी इतने रुआब और घमंड से रहता है कोई एकाध बार कोई विधायक बन जाय तो पैर ही ज़मीन पर नहीं रहते आम आदमी उन्हें दिखते ही नहीं । बिना लाव लश्कर के चलते ही नहीं। 
यूपी के बाराबंकी जिले के भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक बैजनाथ रावत, जो पूर्व में विधायक, सांसद और सूबे के ऊर्जा राज्यमंत्री जैसे ऊंचे ओहदों पर पदासीन रह चुके हैं. लेकिन इनकी सादगी और ईमानदारी का पूरा जिला कायल है.

14 वर्षों बाद भाजपा के लिए वनवास काट रहे हैदरगढ़ विधानसभा क्षेत्र ने इस बार एक ईमानदार नेता बैजनाथ रावत को भारी बहुमत से जिताकर हैदरगढ़ का विधायक बनाया है. बैजनाथ रावत हैदरगढ़ विधानसभा क्षेत्र के भूलभुलैया गांव के रहने वाले हैं, जिन्होंने सपा से दो बार के विधायक रहे राममगन रावत को भारी मतों से हराकर जीत हासिल की है. बीजेपी के इस विधायक की सादगी और ईमानदारी के किस्से जिले भर में मशहूर हैं.

चाहे कोई भी उम्र हो, कोई भी जाति हो, कोई भी वर्ग हो बैजनाथ रावत के लोगों से मिलने का अंदाज नहीं बदला. वहीं बैजनाथ रावत की पहचान हमेशा से जमीनी नेता के तौर पर रही है. आज भी बैजनाथ रावत अपने पक्के लेकिन प्लास्टर और फर्श के बगैर बदसूरत से लगने वाले मकान में अपने परिवार सहित रहते हैं.

खास बात ये है कि ये बीजेपी विधायक अपने जानवरों के लिए मशीन में चारा काटकर अपने हाथों से खिलाते हैं और यही नहीं वो अपने खेतों में फसल बोने से लेकर फसल काटने तक का काम एक आम किसान की तरह खुद ही करते हैं.
हम Reachout countrywide Pasi ( RCP) टीम के साथ ४ जुलाई २०१६ को हम मिले बैजनाथ रावत जी और रामयश विक्रम जी से मिले मुंबई में । 

बायें से सुधीर , राजेश , बैजनाथ जी , मित्र रामयशजी और अशोक सरोज

वह आज भी इतनी सादगी से रहते है की विश्वास नहि होता की वह प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और सांसद भी रह चुके है । 

जब वह पहली बार मंत्री पद की शपथ लेने गए थे तब भी बिना किसी लाव लावशकर के सिर्फ़ बैजनाथ जी और उनके साथ रामयश जी केवल दो ही लोग राजभवन में पैदल चल कर गए थे । दूसरे दिन अखबारो में काफ़ी चर्चा थी बैजनाथ जी की । आज भी वह उसी सादगी से रहते है और कोई भी आम जन कभी भी कहीं भी मील सकते है ।

उनके साथ ही हम मिले हमारे लखनऊ के मित्र रामयश विक्रम जी से । जो कल तक सिर्फ़ मित्र की सूची में थे जो अब घनिश्ठ मित्रों की सूची में शामिल हो गए है । 

RCP और श्री पासी सत्ता की तरफ़ से मैं राजेश पासी , सुधीर सरोज और अशोक सरोज जी ने बैजनाथ रावत जी और रामयश विक्रम जी का मुंबई में स्वागत किया था और भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दी थी । उनकी वह मुलाक़ात हमेशा याद रहेगी । समय कम होने की वजह से सिर्फ़ २-३ घंटे ही साथ में बिता सके । सचमुच काफ़ी अच्छा लगता है जब अपने लोगों से निस्वार्थ भावना से मिलते है । और जब ऐसे लोगों की सादगी को दुनिया सलाम करती है 

बहुत बहुत धन्यवाद रामयश विक्रम जी और बैजनाथ रावत जी । -राजेश पासी,मुंबई 

​कमलरानी को मिल सकता है उत्तर प्रदेश की नई सरकार में  बड़ी जिम्मेदारी 

कानपुर / किसी-किसी के जीवन में राजयोग होता है तो आता है, जाता है और फिर आता है। सुश्री कमलरानी ने राजनीति में पहला कदम सीसामऊ, कानपुर से भाजपा सभासद के रूप में रखा और वर्ष 1996 म़े वहीं से सीधे घाटमपुर लोक सभा से सांसद के रूप में शोभायमान हुईं।  हलाकि 11 वीं लोकसभा अल्प अवधि की रही। सत्र 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए तो घाटमपुर से ही वें 12 वीं लोकसभा की फिर सांसद चुनी गयीं। अब हाल में हुए उ०प्र० विधानसभा चुनाव में घाटमपुर से ही भाजपा विधायक चुनी गई हैं ।        

(अपनी बेटी ट्विंकल के साथ नव निर्वाचित विधायक कमलरानी जी )

कानपुर के 218 ,घाटमपुर क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी कमलरानी ने 45000 के रिकार्ड मतों से जीत दर्ज कर ली है।  इसके पहले भी वह लोक सभा में इस सीट को पहली बार भारतीय जनता पार्टी के लिए जीत चुकी हैं और कमलरानी भाजपा की वरिष्ठ नेता है जो कि अटल जी के काफी करीब मानी जाती हैं । जिन्होनें महिला सशक्तिकरण तथा युवा कल्याण के लिए अपने सांसद कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं | बीजेपी हमेसा से ही अपने पुराने कार्यकर्ताओ मंत्रियो, नेताओ का सम्मान करती है और उनके ऊपर अत्यधिक विश्वास भी करती है | इसलिए कयास लगाये जा रहे है की दो बार लोकसभा में सांसद रही पासी समाज से सम्बन्ध रखने वाली कमलरानी जी को उत्तर प्रदेश सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है |  

कमल रानी जी दो बार लोकसभा सांसद रही हैं | कमल रानी जी के अनुसार वे हमेशा ही पार्टी के आदर्शों पर चलते हुए जीत हांसिल की है ।  कमल रानी अपनी जीत का श्रेय जनता और प्रधानमंत्री मोदी का कामकाज को बताती है।  उनकी शक्शियत अपने आप में अलग है उन्हें देश की जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना है उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत दे कर देश की जनता ने हमारी पार्टी पर विश्वास दिखाया है जिसे हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन  में जनता के विश्वास पर खरा उतरने का प्रयास करेंगे | घाटमपुर की जनता के सभी वर्गों ने उन पर भरोसा किया और अपना अमूल्य समर्थन देकर वोट किया | 
उन्होंने  अपने द्वारा किये गए कामो के बारे में बताया था कि हमने अपना अनुदान यहाँ तबसे दिया है जब हम यहाँ सांसद हुए थे | उस समय हमें केवल डेढ़ वर्ष का समय मिला था | इतने कम  समय में  किये गए कामो को लोग आज तक याद करते है | अब इस बार हम 18 वर्ष के अन्तराल पर चुनाव लड़ रहे है | लोगो को पता है कि अगर इतने कम समय मिलने पर हमने घाटमपुर का विकास किया है | तो आगे आने वाले समय में भी यहाँ का विकास करेंगी | इसलिए जनता हमारा समर्थन करती है।  कमलरानी जी मूलरूप से बाराबंकी की रहने वाली है । उनकी शादी कानपुर जिले में हुई है। वे अपनी राजनीतिक पारी भाजपा से एक सभासद के रूप में शुरू की है। 

(उनका यह चित्र वर्ष 2008 में लेखक व कथाकार बृज मोहन जी द्वारा एक निजी समारोह में लिया गया है। जिसमे लेखक की पत्नी श्रीमती मनोरमा मोहन जी पीछे बैठी है।  ) 

बसपा समर्थक पासी को परिवार सहित दबंगों ने पीटकर किया लहूलुहान

इलाहाबाद : इसे सत्ता की हनक ही कह सकते हैं कि भाजपा नेताओ की सह पर बसपा कार्यकर्ता के साथ गुंडागर्दी की गई ।  हद तब पार हो गयी जब भाजपा नेताओं ने खुलेआम एसओ कैंट को पीड़ित पक्ष का मुकदमा पंजीकृत न करने धमकी दी । कैंट थानांतर्गत राजपुर निवासी प्रमोद पासी बसपा समर्थ है। रंजिश बस प्रमोद सहित उसके छोटे भाई और माँ को मार पीटकर दंबंगो ने लहूलुहान कर दिया। पुलिस कार्यवाही में जुटी है लेकिन दबंगो पर भाजपाई नेताओ का संरक्षण प्राप्त है। -अजय प्रकाश सरोज 

दलित राजनिति के प्रणेता थे कांशीराम , जयंती दिवस पर विशेष ।

   

           “कांशीराम तेरी नेक कमाई ”

          “तुने सोती कौम जगाई ”

‘वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा नहीं चलेगा ‘

जैसे नारों से दलित और बहुजन समाज को भारतीय राजनिती में तथा सत्ता मे भागीदारी के लिए जागरुक करने वाले दलित राजनिती के परिचायक मान्यवर कांशीराम जी को आज उनके जयंती दिवस पर नमन 

कांशी राम एक भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। उन्होंने अछूतों और दलितों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए जीवन पर्यान्त कार्य किया। उन्होंने समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए एक ऐसी जमीन तैयार की जहा पर वे अपनी बात कह सकें और अपने हक़ के लिए लड़ सके। इस कार्य को करने के लिए उन्होंने कई रास्ते अपनाए पर बहुजन समाज पार्टी की स्थापना इन सब में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम था। कांशी राम ने अपना पूरा जीवन पिछड़े वर्ग के लोगों की उन्नति के लिए और उन्हें एक मजबूत और संगठित आवाज़ देने के लिए समर्पित कर दिया। वे आजीवन अविवाहित रहे और अपना समग्र जीवन पिछड़े लोगों लड़ाई और उन्हें मजबूत बनाने में समर्पित कर दिया।

प्रारंभिक जीवन

कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोरापुर में एक रैदासी सिख परिवार में हुआ था। यह एक ऐसा समाज है जिन्होंने अपना धर्म छोड़ कर सिख धर्म अपनाया था। कांशी राम के पिता अल्प शिक्षित थे लेकिन उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि अपने सभी बच्चों को उच्च शिक्षा देंगे। कांशी राम के दो भाई और चार बहने थीं। कांशी राम सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े और सबसे अधिक शिक्षित भी। उन्होंने बी एससी की पढाई की थी। 1958 में स्नातक होने के बाद कांशी राम पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए।

कार्यकाल

1965 में उन्होंने डॉ अम्बेडकर के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश रद्द करने के विरोध में संघर्ष किया। इस घटना के बाद उन्होंने पीड़ित समाज के लिए लड़ने का मन बना लिया। उन्होंने संपूर्ण जातिवादी प्रथा और डॉ बी आर अम्बेडकर के कार्यो का गहन अध्ययन किया और दलितों के उद्धार के लिए बहुत प्रयास किए। आख़िरकार, सन 1971 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने एक सहकर्मी के साथ मिल कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संस्था की स्थापना की।

यह संस्था पूना परोपकार अधिकारी कार्यालय में पंजीकृत की गई थी। हालांकि इस संस्था का गठन पीड़ित समाज के कर्मचारियों का शोषण रोकने हेतु और असरदार समाधान के लिए किया गया था लेकिन इस संस्था का मुख्य उद्देश था लोगों को शिक्षित और जाति प्रथा के बारे में जागृत करना। धीरे-धीरे इस संस्था से अधिक से अधिक लोग जुड़ते गए जिससे यह काफी सफल रही। सन 1973 में कांशी राम ने अपने सहकर्मियो के साथ मिल कर BAMCEF (बेकवार्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीस एम्प्लोई फेडरेशन) की स्थापना की जिसका पहला क्रियाशील कार्यालय सन 1976 में दिल्ली में शुरू किया गया। इस संस्था का आदर्श वाक्य था एड्यूकेट ओर्गनाइज एंड ऐजिटेट। इस संस्था ने अम्बेडकर के विचार और उनकी मान्यता को लोगों तक पहुचाने का बुनियादी कार्य किया। इस के पश्चात कांशी राम ने अपना प्रसार तंत्र मजबूत किया और लोगों को जाति प्रथा, भारत में इसकी उपज और अम्बेडकर के विचारों के बारे में जागरूक किया। वे जहाँ-जहाँ गए उन्होंने अपनी बात का प्रचार किया और उन्हें बड़ी संख्या में लोगो का समर्थन प्राप्त हुआ।

सन 1980 में उन्होंने ‘अम्बेडकर मेला’ नाम से पद यात्रा शुरू की जिसमें अम्बेडकर के जीवन और उनके विचारों को चित्रों और कहानी के माध्यम से दर्शाया गया। 1984 में कांशी राम ने BAMCEF के समानांतर दलित शोषित समाज संघर्ष समिति की स्थापना की। इस समिति की स्थापना उन कार्यकर्ताओं के बचाव के लिए की गई थी जिन पर जाति प्रथा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हमले होते थे। हालाँकि यह संस्था पंजीकृत नहीं थी लेकिन यह एक राजनैतिक संगठन था। 1984 में कांशी राम ने बहुजन समाज पार्टी के नाम से राजनैतिक दल का गठन किया। 1986 में उन्होंने ये कहते हुए कि अब वे बहुजन समाज पार्टी के अलावा किसी और संस्था के लिए काम नहीं करेंगे, अपने आप को सामाजिक कार्यकर्ता से एक राजनेता के रूप में परिवर्तित किया। पार्टी की बैठकों और अपने भाषणों के माध्यम से कांशी राम ने कहा कि अगर सरकारें कुछ करने का वादा करती हैं तो उसे पूरा भी करना चाहिए अन्यथा ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनमें वादे पूरे करने की क्षमता नहीं है।

राजनिती में योगदान 


अपने सामाजिक और राजनैतिक कार्यो के द्वारा कांशी राम ने निचली जाति के लोगो को एक ऐसी बुलंद आवाज़ दी जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश और अन्य उत्तरी राज्यों जैसे मध्य प्रदेश और बिहार में निचली जाति के लोगों को असरदार स्वर प्रदान किया। 

कृतियॉ

  • चमचों का युग

मृत्यु

कांशी राम को मधुमेह और उच्च रक्तचाप की समस्या थी। 1994 में उन्हें दिल का दौरा भी पड़ चुका था। दिमाग की नस में खून का गट्ठा जमने से 2003 में उन्हें दिमाग का दौरा पड़ा। 2004 के बाद ख़राब सेहत के चलते उन्होंने सार्वजनिक जीवन छोड़ दिया। करीब 2 साल तक शय्याग्रस्त रहेने के बाद 9 अक्टूबर 2006 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी आखिरी इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति-रिवाजो से किया गया।

विरासत

कांशी राम की सबसे महत्वपूर्ण विरासत है उनके द्वारा स्थापित किया गया राजनैतिक दल – बहुजन समाज पार्टी। उन के सम्मान में कुछ पुरस्कार भी प्रदान किये जाते हैं। इन पुरस्कारों में कांशी राम आंतर्राष्ट्रीय खेल कूद पुरस्कार (10 लाख), कांशी राम कला रत्न पुरस्कार (5 लाख) और कांशी राम भाषा रत्न सम्मान (2.5 लाख) शामिल हैं । उत्तर प्रदेश में एक जिले का नाम कांशी राम नगर रखा गया है। इस जिले का नामकरण 15 अप्रैल 2008 को किया गया था।

जीवन घटनाक्रम

1934: रोरापुर, पंजाब में जन्म

1958: पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्ति

1971: नौकरी छोड़ कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति और

अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संस्था की स्थापना की

1973: BAMCEF की स्थापना

1976: दिल्ली में BAMCEF के पहले कार्यरत कार्यालय की स्थापना

1981: दलित शोषित समाज संघर्ष समित्ति की स्थापना

1984: बहुजन समाज पार्टी की स्थापना

2006: 9 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।

               अमित कुमार

              दिनारा रोहतास बिहार 

विविध रंगो का त्योहार है होली,होलिका की अवधारण भ्रामक –अजय प्रकाश सरोज

देश के हर त्यौहार का कुछ न कुछ कहानी आप लोगो ने जरूर सुनी होंगी । भारत में लगभग सभी त्योहारों का अपना अपना कारण है। जरा सोचिए क़ि प्राचीन काल से ही भोले भाली जनता क्या सांस्कृतिक तौर पर इतनी हिंसक रही होगी क़ि अपनी महिलाओ को जलाकर उत्सव मनाते होंगे ? लेकिन आर्यो के आगमन के बाद कुछ ऐसा ही भारत की संस्कृतिक गतिविधियों में शामिल होना पाया जाता है।
होली के त्यौहार से जुडी जो घटना बताई जाती है मुझे ब्यक्तिगत तौर पर इसमें भी साज़िश लगती है । एक तो हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का अपने भतीजे विष्णु भक्त प्रह्लाद के साथ आग में बैठना और दूसरा प्रह्लाद की खोज में गई होलिका का ब्राह्मण -आर्यो द्वरा बलात्कार करके जला देना । फिर उस अपराध को छुपाने के लिए रंगों के साथ उत्सव मनाने का षणयंत्र रचना ।

इस त्यौहार को लेकर दो विचारधरा पढ़ने और सुनने को मिलती है।
यह तो कई विद्वानों ने सिध्द किया क़ि सभ्यता के शुरुआती दौर में भारत प्रकृति पूजक समाज रहा है। हमारे त्यौहार अधिकांश प्रकृति के साथ जुड़े हुए है। होली का त्यौहार भी ग्रामीण किसानों की लहराती खेती के समय से जुड़ा हुआ है। ऐसा लगता है यह परंपरा भारत में आर्यो के आगमन से पहले कि रही होगी। जिसको आज कई प्रान्तों में अलग अलग नाम से मनाते है।
बाद में इन त्योहारों में आर्यो ने अपनी  ईश्वरी अवधरणा के सिद्धांत को जोड़कर दैवीय सिद्धन्तो को मजबूत किया । ताकि यहाँ  के प्रकृति पूजक समाज को प्रकृति के मूल सौंदर्य और महत्व से अलग किया जा सकें।
फिर  इन्ही के मायाजाल में फंसे लेखकों ने इस प्रकरण के जवाब में  होलिका को बहादुर व साहसी महिला बताने के साथ ही प्रह्लाद को निकम्मा और बिगड़ा हुआ लड़का बताया ।  जिसके कारण होलिका की हत्या की गई। जरा सोचिए कि इस घटना को सर्वप्रथम किसने कहा होगा ? और क्यों ?
लेकिन इस विवाद में उन ग्रामीणों और खेतिहर मजदूरों वाला होली के त्यौहार कहीं गुम होता जा रहा है। जिसमे प्रेम ,भाईचारा ,सौहार्दय की मिठास थीं । जाति -पाति , लिंग -भेद  आपसी मनमुटाव दरकिनार कर एक दूसरे से गले मिलते थे। लेकिन अब विविध रंगों और विभिन्न प्रकार के पकवानों से सजे रसोइयों की महक कम होती जा रही। ऐसे कई बहुजनों को अक्सर होली के त्यौहार से दूरी बनाते हुए देंखा जा सकता है।
मेरा मानना हैं किअगर मन करें तों  विविध जातियों ,विविध धर्मो, विविध संस्कृतियों के देश भारत में विविध रंगों का त्यौहार होली जरूर मनाएं लेकिन होलिका के  विवादित प्रकरण को इससे न जोड़ के देंखे। ध्यान रहें विविध रंगों का प्रयोग करें। न कि एक रंग जिसे आजकल  एक पार्टी के लोग कह रहे है। अपनी विविधता के इस सौंदर्य को हमे  बरक़रार रखना होगा।

पत्रकार रवीश कुमार के जातीय आंकड़े का विरोध – अजय प्रकाश सरोज

10 मार्च को एनडी टीवी के वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार ने अपने प्राइम टाइम के कार्यक्रम में पासी जाति की संख्या 14 प्रतिशत बताया है जो बिलकुल गलत है। जाटवों की संख्या को उन्होंने 56 ℅ बताया यह आंकड़ा भी झूठ है । 
रवीश जी को मैं अक्सर आंकड़े के साथ ही बोलते देखा है लेकिन यह आंकड़ा जहां से उन्होंने लिया है यह सही नहीं है। यह प्रश्न उस वेबसाइट पर तो खड़ा होता ही है जहाँ से उन्होंने यह आंकड़ा निकाला है। साथ में रविश कुमार पर भी है कि इतने जागरूक पत्रकार होंते हुए उन्होंने जल्दबाजी में बिना पड़ताल के यह आंकड़ा प्रस्तुत किया ? 
उत्तर प्रदेश में 66 जातियों का समूह अनुसूचित जातियों का है । जिसमें जाटवों की संख्या कम है। लेकिन सत्र 1981में कांग्रेसी नेता जग जीवनराम सहित उत्तर प्रदेश में राजनीति की फ़सल उगाने को उत्सुक जाटव नेताओ ने बड़ी चालाकी से उत्तर प्रदेश की धुसिया,झुसिया,चमार ,और अधिकांश मात्रा में पाये जाने वाली मोची जाति को मिलवा लिया । यह सभी जातियां 1971 तक अलग अलग थीं।
 जिसे बाद कांशीराम के रहते मायावती अपने मुख्यमंत्रित्व काल और मज़बूत किया । जाटवों ने यह सब काम दूरदृष्टि रखते हुए सत्ता की हनक से की थीं। यहीं नहीं बसपा के सरकार में कोरी जाति का प्रमाण देना बंद करा दिया । लेखपाल कोरी से बोलता था कि चमार का सर्टिफिकेट बनेगा ? 

मायावती ने सत्ता का दुर्योपयोग करते हुए जाटवों के साथ अन्य पाँच जातियों को मिलाकर अपनी संख्या बढ़ा ली। जिसकी सही आंकड़ा 52% है । लेकिन पासी समाज की संख्या उपजातियों सहित लगभग 25% है। 

मायावती अपनी बसपा सरकार में इन्हें अलग रखने का षड़यंत्र करती रही। पासी जाति की संख्या को तोड़ दिया गया। जिसकी संख्या 16 प्रतिशत बची है। लेकिन आज भी पासी की रावत जाति सहित कई उपजातियों को पासी का प्रमाण पत्र मिलता है । 

लेकिन इनकी संख्या पासी के साथ नहीं जोड़ी जाती है। यह पासी जाति की जातीय संख्या पर गंभीर हमला है। आपको जानकर आश्चर्य होगा, 1881 में जनगणना आयुक्त नेस्फील्ड के आंकड़े के अनुसार पासी जाति की संख्या चमारों से 26 गुना ज्यादा थीं। 
रविश कुमार के इस तरह गैर जिम्मेदार ख़बर पर श्रीपासी सत्ता अपना आपत्ति दर्ज करवाता है। और सलाह देता है कि एक जिम्मेदार पत्रकार की विश्वनियता बनाये रखने के लिए अपनी इस गलती के लिए पासी समाज से माफ़ी मांगना चाहिए । – अजय  सरोज ( सम्पादक श्री पासी सत्ता )

धर्मेंद्र भारतीय का असिस्टेंट प्रोफ़ेसर में चयन

इलाहाबाद निवासी धर्मेंद्र कुमार भारतीय हिंदी अर्थशास्त्र,समाजकार्य , विषयों में परास्नातक के साथ ही शिक्षाशास्त्र से नेट( NET )है। इसके अलावा बीएड, एम.एड, एम.फिल की डिग्रियां भी प्रॉप्त की है। धर्मेंद्र अब तक 11 राष्ट्रीय और 2 अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भाग ले चुके है। कई शोध पत्रिकाओं में इनके लेख भी छपे है। कल उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी रिजल्ट में धर्मेन्द्र का चयन शिक्षाशास्त्र के लिए हुआ है।
वर्तमान में आप सीतापुर जिले में एक इंटर कॉलेज में लगभग छः वर्षो से अर्थ शास्त्र के प्रवक्ता पद पर शिक्षण कार्य कर रहें  है। इनके चयन से कॉलेज के शिक्षक और बच्चे भी ख़ुशी है।

अध्यापन के साथ आप सामाजिक संघठनो में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहते है। इनकी सामाजिक सक्रियता को देंखकर माध्यमिक शिक्षक संघ ने सीतापुर का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया है। जिसकी जिम्मेदारी बख़ूबी  निभा रहे है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान आप छात्र महापरिषद के सदस्य भी रह चुके है। मूलतः  ग्राम दलापुर,पोस्ट हनुमानगंज के रहने वाले धर्मेंद्र के पिता श्री सूर्यदीन भारतीय का देहावसान हो चुका है। माता श्रीमती बड़का देवी गांव में ही रहती है। जबकि एजी ऑफिस में सीनियर ऑडिटर बड़े भाई अरविन्द पत्नी सीमा भारतीय और बच्चों के संग शहर के अशोक नगर  मोहल्ले रहते है। धर्मेंद्र अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता और भैया -भाभी को देते है ।
साधारण ब्यक्तितत्व और मृदुभाषी धर्मेंद्र जी के सफ़लता पर इनसे जुड़े मित्रो ने सोशल मीडिया  व्हाट्सअप ,फेशबुक के जरिये बधाई दें रहे है। पासी समाज के लिए यह गर्व का विषय है कि हमारे समाज के युवक सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं बल्कि उच्चशिक्षण संस्थाओं में भी पहुँचने लगे है। जँहा से देश और समाज को नई नई जानकारियां उपलब्ध होती है। नए विचार ही समाज को आगे ले जाएंगे। धर्मेंद्र जी से यहीं अपेक्षा की जाती है। सफलता की बधाई और शुभकामना — अजय प्रकाश सरोज ,सम्पादक