विविध रंगो का त्योहार है होली,होलिका की अवधारण भ्रामक –अजय प्रकाश सरोज

देश के हर त्यौहार का कुछ न कुछ कहानी आप लोगो ने जरूर सुनी होंगी । भारत में लगभग सभी त्योहारों का अपना अपना कारण है। जरा सोचिए क़ि प्राचीन काल से ही भोले भाली जनता क्या सांस्कृतिक तौर पर इतनी हिंसक रही होगी क़ि अपनी महिलाओ को जलाकर उत्सव मनाते होंगे ? लेकिन आर्यो के आगमन के बाद कुछ ऐसा ही भारत की संस्कृतिक गतिविधियों में शामिल होना पाया जाता है।
होली के त्यौहार से जुडी जो घटना बताई जाती है मुझे ब्यक्तिगत तौर पर इसमें भी साज़िश लगती है । एक तो हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का अपने भतीजे विष्णु भक्त प्रह्लाद के साथ आग में बैठना और दूसरा प्रह्लाद की खोज में गई होलिका का ब्राह्मण -आर्यो द्वरा बलात्कार करके जला देना । फिर उस अपराध को छुपाने के लिए रंगों के साथ उत्सव मनाने का षणयंत्र रचना ।

इस त्यौहार को लेकर दो विचारधरा पढ़ने और सुनने को मिलती है।
यह तो कई विद्वानों ने सिध्द किया क़ि सभ्यता के शुरुआती दौर में भारत प्रकृति पूजक समाज रहा है। हमारे त्यौहार अधिकांश प्रकृति के साथ जुड़े हुए है। होली का त्यौहार भी ग्रामीण किसानों की लहराती खेती के समय से जुड़ा हुआ है। ऐसा लगता है यह परंपरा भारत में आर्यो के आगमन से पहले कि रही होगी। जिसको आज कई प्रान्तों में अलग अलग नाम से मनाते है।
बाद में इन त्योहारों में आर्यो ने अपनी  ईश्वरी अवधरणा के सिद्धांत को जोड़कर दैवीय सिद्धन्तो को मजबूत किया । ताकि यहाँ  के प्रकृति पूजक समाज को प्रकृति के मूल सौंदर्य और महत्व से अलग किया जा सकें।
फिर  इन्ही के मायाजाल में फंसे लेखकों ने इस प्रकरण के जवाब में  होलिका को बहादुर व साहसी महिला बताने के साथ ही प्रह्लाद को निकम्मा और बिगड़ा हुआ लड़का बताया ।  जिसके कारण होलिका की हत्या की गई। जरा सोचिए कि इस घटना को सर्वप्रथम किसने कहा होगा ? और क्यों ?
लेकिन इस विवाद में उन ग्रामीणों और खेतिहर मजदूरों वाला होली के त्यौहार कहीं गुम होता जा रहा है। जिसमे प्रेम ,भाईचारा ,सौहार्दय की मिठास थीं । जाति -पाति , लिंग -भेद  आपसी मनमुटाव दरकिनार कर एक दूसरे से गले मिलते थे। लेकिन अब विविध रंगों और विभिन्न प्रकार के पकवानों से सजे रसोइयों की महक कम होती जा रही। ऐसे कई बहुजनों को अक्सर होली के त्यौहार से दूरी बनाते हुए देंखा जा सकता है।
मेरा मानना हैं किअगर मन करें तों  विविध जातियों ,विविध धर्मो, विविध संस्कृतियों के देश भारत में विविध रंगों का त्यौहार होली जरूर मनाएं लेकिन होलिका के  विवादित प्रकरण को इससे न जोड़ के देंखे। ध्यान रहें विविध रंगों का प्रयोग करें। न कि एक रंग जिसे आजकल  एक पार्टी के लोग कह रहे है। अपनी विविधता के इस सौंदर्य को हमे  बरक़रार रखना होगा।

One thought on “विविध रंगो का त्योहार है होली,होलिका की अवधारण भ्रामक –अजय प्रकाश सरोज”

  1. सही बात है ईस होली में एक रंग के प्रयोग से परहेज करे विविध रंगो का ईस्तेमाल करे ।

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