इंस्पेक्टर दिनेश कुमार सरोज कों जनता ने किया सम्मानित

यूपी ,बस्ती / वैसे मैं पुलिस वालों की तारीफ बहुत कम लिखता हूँ लेकिन जब कोई पुलिस वाला अपनी वर्दी की हनक से ज्यादा मानवीय कार्य करता हैं तो, क़लम उसके समर्थन में उठ जाती हैं .

यह खबर हैं यूपी के बस्ती जनपद की जँहा एक ग्राहक सेवा केंद्र चलाने वालें 21 वर्षीय युवक को चार गुंडों ने तब अपहरण कर लिया जब वह शाम को अपनी दुकान बंद कर घर जाने वाला था.

अपहरण के बाद युवक के फोन से ही अपरहण कर्ताओं ने उसके परिवार से 12 लाख रुपये की मांग की ,जिसे सर्विलांस प्रभारी इंस्पेक्टर दिनेश कुमार सरोज की टीम द्वारा 24 घण्टे के अंदर ही साहसिक मुठभेड़ में अपराधियों को गोली मारकर गिरफ्तार कर लिया और अपहृत युवक शिवम श्रीवास्तव को सकुशल बरामद किया.

जिसपर उच्य अधिकारियों ने 50 हजार का इनाम दिया ,इतना ही नही स्थानीय जनता द्वारा खुले मंच पर से दिनेश सरोज (नीलें जीन्स में ) और उनकी टीम का स्वागत सत्कार किया. इसके अलावा उन्हें 41 हजार रुपये नगद पुरस्कार देकर सम्मानित किया साथ मे स्मृति चिन्ह व अंग वस्त्र प्रदान किया गया. बस्ती पुलिस और उनकी टीम को सलाम …!

सावित्रीबाई फुले:भारत की पहली अध्यापिका -एच.एल.दुसाध

आज देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेत्री सावित्रीबाई फुले का जन्म दिन है.इसे लेकर विगत एक सप्ताह से सोशल मीडिया में उस बहुजन समाज के जागरूक लोगों के मध्य भारी उन्माद है जो उन्हें अब राष्ट्रमाता के ख़िताब से नवाज रहा है.सोशल मीडिया से पता चलता है कि आज के दिन देश के कोने-कोने में भारी उत्साह के साथ बहुजनों की राष्ट्रमाता की जयंती मनाई जाएगी.इसके लिए निश्चय ही हमें मान्यवर कांशीराम का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इतिहास की कब्र में दफ़न किये गए बहुजन नायक/नायिकाओं के व्यक्तित्व और कृतित्व को सामने ला कर समाज परिवर्तनकामी लोगों को प्रेरणा का सामान मुहैया कराया,जिनमें सावित्रीबाई फुले भी एक हैं, जिन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से देश में महिला शिक्षा की नींव रखी। 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव नमक छोटे से गांव में जन्मीं व 10 मार्च 1897 को पुणे में परिनिवृत हुईं सावित्रीबाई फुले ने उन्नीसवीं सदी में महिला शिक्षा की शुरुआत के रूप में घोर ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को सीधी चुनौती देने का काम किया था। उन्नीसवीं सदी में यह काम उन्होंने तब किया जब छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह, तथा विधवा-विवाह व शुद्रतिशुद्रों व महिलाओं की शिक्षा निषेध जैसी सामाजिक बुराइयां किसी प्रदेश विशेष में ही सीमित न होकर संपूर्ण भारत में फैली हुई थीं। महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक, विधवा पुनर्विवाह आंदोलन के तथा स्त्री शिक्षा समानता के अगुआ महात्मा ज्योतिबा फुले की धर्मपत्नी सावित्रीबाई ने अपने पति के सामाजिक कार्यों में न केवल हाथ बंटाया बल्कि अनेक बार उनका मार्ग-दर्शन भी किया।

दरअसल अशिक्षा को दलित,पिछड़ों और महिलाओं की गुलामी के प्रधान कारण के रूप में उपलब्धि करनेवाले जोतोराव फुले ने वंचितों में शिक्षा प्रसार एवं शिक्षा को ‘ऊपर’ से ‘नीचे’के विपरीत नीचे से ऊपर ले जाने की जो परिकल्पना की उसी क्रम में भारत की पहली अध्यापिका का उदय हुआ.स्मरण रहे अंग्रेजों अपनी सार्वजनीन शिक्षा नीति के शुद्रतिशूद्रों के लिए भी शिक्षा के दरवाजे जरुर मुक्त किये ,पर उसमे एक दोष था जिसके लिए जिम्मेवार लार्ड मैकाले जैसे शिक्षा-मसीहा भी रहे .मैकाले ने ने जो शिक्षा सम्बन्धी अपना ऐतिहासिक सिद्धांत प्रस्तुत किया था उसमे व्यवस्था यह थी कि शिक्षा पहले समाज के उच्च वर्ग को दी जानी चाहिए .समाज के उच्च वर्ग को शिक्षा मिलने के पश्चात्,वहां से झरते हुए निम्न वर्ग की ओर जाएगी.निम्न वर्ग को शिक्षा देने की आवश्यकता नहीं..समाज के उच्च वर्ग को शिक्षा देने के पश्चात् अपने आप शिक्षा का प्रसार निम्न वर्ग की ओर हो जायेगा.पहाड़ से नीचे की ओर आते पानी की तरह शिक्षा का प्रसार होगा.’फुले ने ऊपर से नीचे की शिक्षा के इस सिद्धांत को ख़ारिज करते हुए शिक्षा प्रसार का अभियान अपने घर ही शुरू किया .

पहले प्रयास के रूप में महात्मा फुले ने अपने खेत में आम के वृक्ष के नीचे विद्यालय शुरु किया। यही स्त्री शिक्षा की सबसे पहली प्रयोगशाला भी थी, जिसमें उनके दूर के रिश्ते की विधवा बुआ सगुणाबाई क्षीरसागर व सावित्रीबाई विद्यार्थी थीं। उन्होंने खेत की मिटटी में टहनियों की कलम बनाकर शिक्षा लेना प्रारंभ किया।दोनों ने मराठी उत्तम ज्ञान प्राप्त कर लिया .उन दिनों पुणे में मिशेल नामक एक ब्रिटिश मिशनरी महिला नार्मल स्कुल चलती थीं. जोतीराव ने वहीं सावित्रीबाई और सगुणा को तीसरी कक्षा में दाखिल करवा दिया जहाँ से दोनों ने अध्यापन कार्य का भी प्रशिक्षण लिया.फिर तो शुरू हुआ हिन्दू-धर्म-संस्कृति के खिलाफ अभूतपूर्व विद्रोह.
जिस हिन्दू धर्म –संस्कृति का गौरव गान कर हिन्दू राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया चलाई जा रही है उसका एक अन्यतम वैशिष्ट्य ज्ञान-संकोचन रहा है ,जिसका शिकार शुद्रातिशूद्र और नारी बने.इन्हें ज्ञान क्षेत्र से इसलिए दूर रखा गया था की ज्ञान हासिल करने के बाद ये दैविक-दासत्व (डिवाइन-स्लेवरी) से मुक्त हो जाते .और डिवाइन-स्लेवरी से मुक्त होने का मतलब उन मुट्ठी भर शोषकों के चंगुल से मुक्ति होना था जिन्होंने धार्मिक शिक्षा के जरिये सदियों से शक्ति के तमाम स्रोतों (आर्थिक-राजनैतिक-धार्मिक) पर एकाधिकार कायम कर रखा था.जोतीराव इस एकाधिकार को तोडना चाहते थे इसलिए उन्होंने 1 जनवरी,1848 को पुणे में एक बालिका विद्यालय की स्थापना की,जो बौद्धोत्तर भारत में किसी भारतीय द्वारा स्थापित पहला विद्यालय था .सावित्रीबाई फुले इसी विद्यालय में शिक्षिका बन कर आधुनिक भारत की पहली अध्यापिका बनने का गौरव हासिल किया.इस विद्यालय की सफलता से उत्साहित हो कर फुले दंपत्ति ने 15 मई ,1848 को पुणे की अछूत बस्ती में अस्पृश्य लडके-लड़कियों के लिए भारत के इतिहास में पहली बार विद्यालय की स्थापना की.थोड़े ही अन्तराल में इन्होने पुणे उसके निकटवर्ती गाँव में 18 स्कूल स्थापित कर दिए.चूंकि शिक्षा के एकाधिकारी ब्राह्मणोंने शुद्रतिशूद्रों और महिलाओं शिक्षा ग्रहण व दान धर्मविरोधी आचरण घोषित कर रखा था इसलिए इस शिक्षा रूपी धर्मविरोधी कार्य से फुले दंपति को दूर करने के लिए धर्म के ठेकेदारों ने जोरदार अभियान शुरू किया.
जब सावित्रीबाई फुले स्कूल के लिए निकलतीं ,वे लोग उनपर गोबर-पत्थर फेंकते और भद्दी-भद्दी गालियाँ देते.लेकिन लम्बे समय तक यह कार्य करके भी जब वे सफल नहीं हुए तो शिकायत फुले के के पिता तक पहुंचाए.पुणे के धर्माधिकारियों का विरोध इतना प्रबल था कि उनके पिता को कहना पड़ा ,या तो अपना स्कूल चलाओ या मेरा घर छोडो.फुले दंपति ने गृह-निष्कासन वरण किया.इस निराश्रित दंपति को पनाह दिया उस्मान उस्मान शेख ने.फुले ने अपने कारवां में शेष साहब की पत्नी बीबी फातिमा शेख को भी शामिल कर अध्यापन का प्रशिक्षण दिलाया.फिर अछूतों के एक स्कूल में अध्यापन का दायित्व सौंप कर फातिमा शेख को उन्नीसवीं सदी की पहली मुस्लिम शिक्षिका बनने का अवसर मुहैया कराया.

भारत में जोतीराव तथा सावि़त्री बाई ने शुद्र एवं स्त्री शिक्षा का आंरभ करके नये युग की नींव रखी। इसलिये ये दोनों युगपुरुष और युगस्त्री का गौरव पाने के अधिकारी हुये । दोनों ने मिलकर 24 सितम्बर ,1873 को ‘सत्यशोधक समाज‘ की स्थापना की. उनकी बनाई हुई संस्था ‘सत्यशोधक समाज‘ ने शुद्रातिशूद्रों और महिलाओं में शिक्षा प्रसार सहित समाज सुधार के अन्य कामों में ऐतिहासिक योगदान किया.सत्यशोधक समाज की ‘तीसरे वार्षिक समारोह ‘की रपट 24 सितम्बर ,1876 को पेश की गयी जिसमे कहा गया था-‘शुद्रातिशूद्रों में शिक्षा के प्रति रूचि नहीं है.उनमे शिक्षा के प्रति रूचि होनी चाहिए.उनके बच्चे बुरे बच्चों की संगत में पड़कर रास्तों पर तमाशा आदि देखने और खेलने में में अपना समय गंवाते हैं.उन्हें इस तरह की बुरी आदत से न लगे और वे प्रत्येक दिन समय पर पाठशाला में जांय तथा उनको समय पर घर वापस लाने के लिए सत्यशोधक समाज ने एक पट्टेवाला पांच रूपये प्रतिमाह पर 11 जनवरी से 11 मई तक रखा.

शूद्रों के जो बच्चे इंजीनियरिंग कालेज में जाते थे ,उनमें गरीब बच्चों को मुफ्त प्रवेश मिले ,इसके लिए वहां के प्रिंसिपल के समक्ष समाज की ओर से निवेदन प्रस्तुत किया गया था .परिणामस्वरूप कॉलेज के प्रिंसिपल साहब ने दो-तीन बच्चों को नि:शुल्क प्रवेश दिया था.जो गरीब मा-बाप अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते थे ,उनके लिए प्रतिमाह पांच रूपये सत्यशोधक समाज ने खर्च करने का प्रस्ताव पास किया था. देहात के बच्चों को भी शिक्षा मिलनी चाहिए,इसके लिए समाज की ओर से पाठशालाओं की स्थापना की गयी.’महात्मा जोतीराव फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई। तब सावित्रीबाई ने सत्यशोधक समाज के जरिये उनके अधूरे कार्यों को आगे बढाया । सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजों की देखभाल करने के दौरान हुयी।उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से धन्य बहुजन भारत उन्हें अब राष्ट्रमाता के रूप में याद करता है.

पासियों में नई पार्टी बनाकर सत्ता प्राप्त करने का फार्मूला फेल हो चुका हैं – डॉ.अजय प्रकाश

●भाजपा छोड़ी , बसपा-सपा नें ठुकराया तो कांग्रेस नें गलें लगाया लेकिन नही टिकी सावित्रीबाई फुले

बीजेपी से बहराइच लोकसभा की सांसद रह चुकी सावित्रीबाई फूलें संसद से लेकर सड़क तक सामाजिक न्याय और संविधान बचाने की वकालत करने वाली नेता हैं .सांसद सदस्य रहतें हुए उन्होंने अपनी ही पार्टी भाजपा के खिलाफ मुखर होकर दलितों पिछड़ो के हक़ में आवाज उठाती रहीं हैं.
इनके पीछें विपक्षी पार्टी ख़ासतौर पर बसपा से जुड़े लोगों का समर्थन प्राप्त था. उन्हें यह भरोशा दिलाया गया था कि आप इसी तरह भाजपा के विरोध में आवाज़ उठाती रहें आपको अगला चुनाव बसपा टिकट देकर लड़ाएगी .

उनके सिपह सलाहकार खुद को कांशीराम का अनुवाई बताने वालें अक्षयबरनाथ कनोजिया जिन्हें वह अपना गुरु बताती हैं और प्यार से’ चाचा ‘कहतीं हैं , ने बसपा के ज़िम्मेदार लोगो से बातचीत भी कर चुकें थें । यह माना जा रहा था कि फूले अगला चुनाव बसपा से लड़ेंगी . उनके समर्थक यहां तक कहने लगें थें, कि फूलें ,बहन मायावती के बाद बसपा में दूसरें नम्बर की नेता होंगी ?

इससे आश्वस्त होकर सावित्रीबाई फूलें नें भाजपा से बग़ावत कर दीं और पार्टी छोड़कर आंदोलन की राह पकड़ लीं . लेकिन शायद फूलें को बसपा के इतिहास और मायावती की महत्वाकांक्षा का अंदाज़ा नही रहा होगा कि जिस अनुसूचित जाती पासी समुदाय से वह आती हैं उसे राजनैतिक हाशिये पर ठकेंलने में मायावती कोई भी मौका नही छोड़ती .इसकी चर्चा फिर कभी करूँगा , लेकिन फूलें के सामाजिक न्याय की तेवर से बहुजन समाज में उनके प्रति आकर्षण को मायावती की दुरगामी नज़र नें पहचान लिया और 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती के निर्देश पर उनके स्वाजातीय कोआर्डिनेटरों नें फूलें को महत्व देना बंद कर दिया ।

इसके बाद फूलें नें समाजवादी पार्टी की तरफ़ रुख किया ,और लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाक़ात किया यह माना जा रहा था कि दलित वोटरों के लिए अखिलेश यादव फूलें को टिकट देकर चुनाव लड़ाएंगे लेकिन जब तक यह सब तय हो पाता मायावती नें नया दांव चलकर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया . इस गठबंधन को दलित- पिछड़ा- मुसलमान का बेजोड़ गठबंधन के रूप में देखें जानें से अखिलेश यादव नें मायावती के दबाव में अपनी पार्टी में पूर्व मंत्री आरके चौधरी समेत पासी समाज के नेताओ को नजरअंदाज कर सावित्रीबाई फूलें को टिकट नही दिया .

अब सावित्रीबाई फूलें के समाने राजनैतिक पहचान बचाने का संकट आ गया फिर उन्होंने कांग्रेस की तरफ़ हाथ बढ़ाया और तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के समक्ष पार्टी की सदस्यता लीं और पुनः बहराइच लोकसभा से चुनाव लड़ी हालाकि यह इस चुनाव में उन्हें सफ़लता नही मिलीं । लेकिन यूपी में कांग्रेस पार्टी के लिए सावित्रीबाई फूलें जैसी बेबाक़ नेता की जरूरत थीं इसीलिए यूपी की प्रभारी प्रियंका गाँधी नें इलाहाबाद से वाराणसी तक कि गंगा यात्रा में तमाम वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर फूलें को साथ साथ लेकर चलीं तो राजनैतिक गलियारों में सावित्रीबाई की चर्चा जोर पकड़ ली, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद सावित्रीबाई फूलें की पारम्परिक सीट बलहा (सुरक्षित) जहां से वह पहली बार विधायक बनी थीं .उस विधानसभा पर उपचुनाव होना था जिसके लिए उन्होंने अपने सिपहसलाकर ‘चाचा’ के लिए टिकट की मांग कर दीं जिस पर पार्टी नें असमर्थता ज़ाहिर की, बस यहीं से उनकी दिलचस्पी पार्टी में कम सामाजिक कार्यक्रमों में ज्यादा हो गई और अब अचानक कांग्रेस पार्टी छोड़कर अपनी खुद की नई पार्टी बनाने की बात कर रहीं हैं।

अब सवाल उठता हैं कि पिछले तीस सालों से सपा बसपा अब भाजपा के बनें बनाये जनाधार के बीच खुद के नेतृत्व वाली नई पार्टी को कैसें बढ़ा पाएंगी ? जबकि प्रदेश में दर्जनों पार्टियां हैं जो पन्द्रह से बीस वर्षों से संघर्ष कर रहीं हैं फिर भी चुनाव में उनका कोई वजूद नही बन पाता ! प्रदेश में कई बड़े नेताओं का उदाहरण उनके समाने हैं जिनके सारें प्रयोग फेल हो चुकें हैं । ऐसा भी नही हैं कि आगें कोई सफ़ल नही होगा लेकिन चुनावी राजनीति करने वालीं सावित्रीबाई फूलें को भी इन सभी सवालों पर विचार करना चाहिए फिर अपनी रणनीति तय करके आगें बढ़ना चाहिए । वरना आने वालें दिनों में उनके समर्थकों की थकान उन्हें हताश व निराश करेंगी फिर कहीं न कहीं यह निष्कर्ष निकलेगा की समाज के लोगों ने साथ नही दिया .

(लेखक : पत्रिका के मुख्य संपादक हैं www.shripasisatta.com )

पासी समाज की 120 वर्षीय चिरौंजी दाई का निधन, अंतिम संस्कार कल

झूँसी प्रयागराज के चक हरिहरवन गाँव में पूर्व राज्यमंत्री रामानंद भारती की समाजसेवी दादी चिरौजी जी का निधन हो गया । वें लगभग 120 वर्ष तक जिंदा रहीं । चिरौंजी दाई अब तक पासी समाज में सबसे ज्यादा वर्षों तक जीवित रहने वालीं महिला थीं । उनके निधन पर चक हरिहरवन के पूर्व प्रधान शीतला प्रसाद की अध्यक्षता में एक शोक सभा का आयोजन किया गया । जिसमें मृत आत्मा की शांति के लिए पार्थना की गई।

इस असवर पर पूर्वमंत्री रामानंद भारती, श्रीकांत, बनारसी यादव, प्रधान पप्पू यादव,ननकऊ यादव, लल्ला भुर्जी, फूलचंद, नीरज पासी, राम प्रवेश पासी, इन्द्रकांत, अजीत भारती, सचिन भारतीय, गुरुजी गोस्वामी आदि लोग उपस्थित रहें

श्री रामानंद के अनुसार दादी का अंतिम संस्कार कल नववर्ष 2020 की खुशी में छ्तनाग घाट पर धूमधाम से किया जाएगा ।

महाराजा बिजली पासी जयंती समारोह में उमड़ी भीड़, पटना के कृष्ण मेमोरियल हॉल में हुआ भव्य कार्यक्रम

बिहार की राजधानी पटना में महाराजा बिजली पासी जयंती समारोह श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित हुआ ,जिसमे बड़ी संख्या में गणमान्य लोग उपस्थित रहें ।

कार्यक्रम का उद्घाटन जीतन राम मांझी ,पूर्व मुख्तमंत्री बिहार,उदय नरायण चौधरी ,पूर्व बिहार विधानसभा अध्यक्ष ,भूदेव चौधरी पूर्व सांसद जमुई,सह प्रदेश अध्यक्ष रालोसपा,प्रेमा चौधरी विधायका,बंटी चौधरी ,विधायक जमुई ,सुरेंद्र चौधरी कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष, डॉ धर्मेंद्र कुमार चौधरी ,राजा चौधरी युवा प्रदेश अध्यक्ष,निशान्त चौधरी युवा प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता एवं अन्य लोग दूर दराज से भारी सख्या में समाजसेवी भागीदार रहें ।

संघ का असली मकसद वोट देनें का अधिकार छीनना हैं – अजय प्रकाश सरोज

जब देश यह मुद्दा इतना गर्म है कि चारों तरफ सिर्फ इस कानून का विरोध हो रहा हैं । संविधान पसंद नागरिकों को यह बिल जो अब कानूनी रूप ले चुका हैँ क्यों इतना अखर रहा हैं । संघ और भाजपा के लोग कितना भी कहें यह देश और संविधान के खिलाफ नही नही लेकिन नोट बंदी और जीएसटी से सबक ले चुकें नागरिकों को इस पर भरोशा नही हैं । राष्ट्र निर्माताओं के सुझाव और बाबा साहब द्वारा बनाये गए संविधान में जो अधिकार मिला है उनमें से लोकतंत्र में लोगो की मत देनें का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण हैं । एनआरसी के बाद करोड़ो लोग मतदान से वंचित हो जाएंगे । जब तक लोग अपनी नागरिकता सिद्ध करेंगे तब तक कई बार चुनाव हो चुकें होंगे । इंसमे सबसे ज्यादा दलित आदिवासी और मुसलमान समुदाय के लोग होंगे ।

आइये NRC को समझते है –

बात हिंदू मुसलमान की है ही नहीं। NRC राष्ट्रीय स्तर पर बनेगा,ये बात गृह मंत्री अमित शाह बोल चुके हैं। कि 2024 तक पूरें देश में कराएंगे तो इसमें क्या होगा? क्या सिर्फ़ मुस्लिम लोगों को तकलीफ़ होगी?

अभी कोई तारीख़, कोई प्रक्रिया तय नहीं हुई है। हमारे सामने केवल असम का अनुभव है, जहाँ 13 लाख हिंदू और 6 लाख मुस्लिम/ आदिवासी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए।

सवाल है कि क्यों नहीं कर पाए?

क्योंकि वहाँ सबको NRC के लिए 1971 से पहले के काग़ज़ात, डॉक्यूमेंट सबूत के तौर पर जमा करने थे। ये सबूत थे:

1. 1971 की वोटर लिस्ट में खुद का या माँ-बाप के नाम का सबूत; या
2. 1951 में, यानि बँटवारे के बाद बने NRC में मिला माँ-बाप/ दादा दादी आदि का कोड नम्बर

साथ ही, नीचे दिए गए दस्तावेज़ों में से 1971 से पहले का एक या अधिक सबूत:

1. नागरिकता सर्टिफिकेट
2. ज़मीन का रिकॉर्ड
3. किराये पर दी प्रापर्टी का रिकार्ड
4. रिफ्यूजी सर्टिफिकेट
5. तब का पासपोर्ट
6. तब का बैंक डाक्यूमेंट
7. तब की LIC पॉलिसी
8. उस वक्त का स्कूल सर्टिफिकेट
9. विवाहित महिलाओं के लिए सर्किल ऑफिसर या ग्राम पंचायत सचिव का सर्टिफिकेट

अब तय कर लें कि इन में से क्या आपके पास है। ये सबको चाहिये, सिर्फ़ मुस्लिमों को नहीं,और अगर नहीं हैं, तो कैसे इकट्ठा करेंगे। ये ध्यान दें कि 130 करोड़ लोग एक साथ ये डाक्यूमेंट ढूँढ रहे होंगे। जिन विभागों से से ये मिल सकते हैं, वहाँ कितनी लम्बी लाइनें लगेंगी, कितनी रिश्वत चलेगी?

असम में जो ये डाक्यूमेंट जमा नहीं कर सके, उनकी नागरिकता ख़ारिज होगी 12-13 लाख हिंदुओं की और 6 लाख मुस्लिमों/ आदिवासियों की, राष्ट्रीय NRC में भी यही होना है। BJP के हिंदू समर्थक आज निश्चिंत बैठ सकते हैं कि नागरिकता संशोधन क़ानून, जो सरकार संसद से पास करा चुकी है, उससे ग़ैर-मुस्लिम लोगों की नागरिकता तो बच ही जाएगी।

जी, ठीक सोच रहे हैं। लेकिन NRC बनने, अपील की प्रक्रिया पूरी होने तक, फिर नए क़ानून के तहत नागरिकता बहाल होने के बीच कई साल का फ़ासला होगा। 130 करोड़ के डाक्यूमेंट जाँचने में और फिर करोडों लोग जो फ़ेल हो जाएँगे, उनके मामलों को निपटाने में वक़्त लगता है। असम में छः साल लग चुके हैं, प्रक्रिया जारी है। आधार नम्बर के लिए 11 साल लग चुके हैं, जबकि उसमें ऊपर लिखे डाक्यूमेंट भी नहीं देने थे।

जो लोग NRC में फ़ेल हो जाएँगे, हिंदू हों या मुस्लिम या और कोई, उन सबको पहले किसी ट्रिब्युनल या कोर्ट की प्रक्रिया से गुज़रना होगा। NRC से बाहर होने और नागरिकता बहाल होने तक कितना समय लगेगा, इसका सिर्फ़ अनुमान लगाया जा सकता है। कई साल भी लग सकते हैं। उस बीच में जो भी नागरिकता खोएगा, उससे और उसके परिवार से बैंक सुविधा, प्रॉपर्टी के अधिकार, सरकारी नौकरी के अधिकार, सरकारी योजनाओं के फ़ायदे के अधिकार, वोट के अधिकार, चुनाव लड़ने के अधिकार नहीं होंगे।

अब तय कर लीजिए, कितने हिंदू और ग़ैर मुस्लिम ऊपर के डाक्यूमेंट पूरे कर सकेंगे, और उस रूप में पूरे कर सकेंगे जो सरकारी बाबू को स्वीकार्य हो। और नहीं कर सकेंगे तो नागरिकता बहाल होने तक क्या क्या क़ीमत देनी पड़ेगी?

बाक़ी बात रही मोदी- शाह के ऊपर विश्वास की, कि वो कोई रास्ता निकाल कर ऊपर लिखी गयी परेशानियों से बचा लेंगे, तो नोटबंदी और GST को याद कर लीजिए। तब भी विश्वास तो पूरा था, पर जो वायदा था वो मिला क्या, और जो परेशानी हुई, उससे बचे क्या?

यह मुसलमान की नहीं हम सबकी लड़ाई है। RSS अपना गंदा खेल शुरू कर चुका है। देश-संविधान बचाने के लिए हम अब एकजुट नहीं होंगे तो सब मटियामेट हो जाएगा। लोकतांत्रिक देश की बुनियाद नही बचेगी । बड़ी संख्या में लोगों को मतदान से वंचित कर दिया जाएगा और यह काम आरएसएस और बीजेपी बड़ी चालाकी से करना चाह रही है।

संविधान बचाने के लिए देश में कांग्रेस जरूरी – सुशील पासी

भारत रत्न बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का परिनिर्वाण दिवस शहीद चौक डिग्री कॉलेज चौराहा रायबरेली में राष्ट्रीय भागीदारी मिशन द्वारा आयोजित किया गया । इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव और राष्ट्रीय भागीदारी मिशन के मुख्य संयोजक माननीय सुशील पासी जी ने कहा कि बाबा साहेब आधुनिक भारत के निर्माता थे, बाबासाहेब सबकों सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक न्याय दिलाना चाहते थे ।

उन्होंने कहा देश में आज आर्थिक मंदी आर्थिक विषमता का परिणाम है, देश में जब तक गैर बराबरी को खत्म कर सामाजिक एवं आर्थिक समानता नहीं होगी तब तक देश मजबूत नहीं हो सकता ।बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के सपनों का भारत बनाने के लिए देश में सामाजिक आर्थिक और गैर बराबरी को खत्म करना होगा , आज संविधान की धज्जियां उड़ाने वाले लोग बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के अनुयाई बनने का ड्रामा कर रहे हैं ।

देश की सरकारी कंपनियों और संस्थानों को कुछ चंद लोगों के द्वारा और चंद लोगों के हाथ बेचा जा रहा है, धन व संपत्ति का विकेंद्रीकरण न होने के कारण देश में आर्थिक मंदी का दौर आ गया है। नोटबंदी से काले धन को सफेदकर धन का केंद्रीयकरण किया गया है।

देश आर्थिक संकट के चंगुल में फंस चुका है देश में अभियान चलाकर एनपीए का एक-एक पाई वसूला जाए । इस मौके पर सुशील पासी जी ने कहा भारत बचाने के लिए देश के हर जाति मजहब के लोगों को एकजुट होकर सोनिया गांधी जी के आवाहन पर 14 दिसंबर को दिल्ली में देश बचाओ रैली में शामिल होना चाहिए, उन्होंने अनुरोध किया कि अधिक से अधिक संख्या में लोग दिल्ली पहुंचे ।

इस मौके पर सुशील पासी जी ने कहा आज देश में बेटियां सुरक्षित नहीं है महंगाई और भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है । कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो पूरे देश में मोदी सरकार को बेनकाब करने का काम कर रही है, इस मौके पर राष्ट्रीय भागीदारी मिशन के जिला प्रभारी सुरेंद्र मौर्य, जिला अध्यक्ष यशपाल एडवोकेट, मिशन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर योगेश कुमार, जिला कोषाध्यक्ष चौधरी विचित्र पटेल, विनोद कुमार कोरी ,एवं सरेनी विधानसभा अध्यक्ष रामकुमार, जिला महासचिव दिलीप कुमार ,सलोन विधानसभा के प्रभारी विजय , समेत तमाम लोग मौजूद रहे।

महाशय मसूरियादीन नें पासी समाज को जरायम पेशा एक्ट से मुक्ति के लिए संघर्ष किया

आज प्रबुद्ध वादी बहुजन मोर्चा के अध्यक्ष एडवोकेट लालाराम सरोज की अध्यक्षता में वीरांगना ऊदा देवी पासी के 162वें बलिदान दिवस पर एक कार्यक्रम का आयोजन प्रयागराज ,कचेहरी में हुआ।

जिसमें मुख्य विषय-“1857की क्रांति में जरायमपेशा जातियों की भूमिका-” पर वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए।

विषय पर वक्ताओं ने इस बात को प्रमुखता से उठाया कि 1857 की क्रांति में वह सभी जातियां जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ा वे सभी लगभग 200 जातियों को टारगेट करते हुए जरायमपेशा एक्ट(criminal tribes act)1871 के अंतर्गत अपराधी जाति घोषित कर दिया गया।उसी क्रांति की बहादुर वीरांगना ऊदा देवी पासी भी एक बहुत बड़ी स्टार रहीं जो अकेले अंग्रेजों की सेना के 36 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।

वक्ताओं ने कहा कि जरायमपेशा एक्ट में सम्मिलित जातियां आजादी के बाद संविधान लागू होने बाद तक इस एक्ट के कारण प्रताड़ित होती रही।इस एक्ट से 31 अगस्त 1952 में छुटकारा मिला।जब संसद द्वारा इसे हटाया गया।

इस अवसर पूर्व मंत्री रामानन्द भारतीय, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष इलाहाबाद यूनिवर्सिटी अजीत यादव ,एडवोकेट समरबहादुर सरोज,रामबिशाल पासवान, बच्चा पासी , संजय सिंह,राजेश भारती, शशि कैथवास ,और बहुत से गणमान्य लोग उपस्थित थे।

मातादीन : जिसने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की पृष्ठिभूमि का नायक

● विजय कुँवरपाल जी की वॉल से आभार सहित

●29नवम्बर सभी मित्रों को मुबारक

दलितों को लेकर देश में अक्सर विरोधी माहौल बनते रहते हैं, पर सच यह है कि चाहे सामाजिक व्यवस्था हो, आजादी की लड़ाई हो या देश की रक्षा दलितों ने हर जगह बढ़ -चढ़ कर हिस्सा लिया है। आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में हम सभी मंगल पांडेय को जानते हैं, पर वास्तविकता यह है कि इसकी पटकथा लिखी थी मातादीन नाम के एक दलित ने और वे थे अमर शहीद मातादीन जी।

वैसे तो 1857 की क्रांति की पटकथा 31 मई को लिखी गई थी, लेकिन मार्च में ही विद्रोह छिड़ गया। दरअसल जो जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म के लिए हमेशा अभिशाप रही, उसी ने क्रांति की पहली नीव रखी।

हुआ यह था कि बैरकपुर छावनी कोलकत्ता से मात्र 16 किलोमीटर की दूरी पर था। फैक्ट्री में कारतूस बनाने वाले मजदूर मुसहर जाति के थे। एक दिन वहां से एक मुसहर मजदूर छावनी आया। उस मजदूर का नाम माता दीन था। मातादीन को प्यास लगी, तब उसने मंगल पांडेय नाम के सैनिक से पानी मांगा। मंगल पांडे ने ऊंची जाति का होने के कारण उसे पानी पिलाने से इंकार कर दिया। कहा जाता है कि इस पर माता दीन बौखला गया और उसने कहा कि कैसा है तुम्हारा धर्म जो एक प्यासे को पानी पिलाने की इजाजत नहीं देता और गाय जिसे तुम लोग मां मानते हो, सूअर जिससे मुसलमान नफरत करते हैं, लेकिन उसी के चमड़े से बने कारतूस को मुंह से खोलते हो। मंगल पांडेय यह सुनकर चकित रहे गए। उन्होंने मातादीन को पानी पिलाया और इस बातचीत के बारे में उन्होंने बैरक के सभी लोगों को बताया।

इस सच को जानकार मुसलमान भी बौखला उठे। इसके बाद मंगल पांडेय ने विद्रोह कर दिया। मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिन्गारी ने ज्वाला का रूप ले लिया। एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में सैनिकों ने बगावत कर दिया। बाद में क्रांति की ज्वाला पूरे उत्तरी भारत में फैल गई। बाद में अंग्रेजों ने जो चार्जशीट बनाई उसमें पहले नाम मातादीन का था। इतना ही नहीं, पहला फासी पर लटकाया जाने वाला शहीद मातादीन ही था। इसलिए यह सिद्ध होता है कि, 1857की क्रान्ति के मुख्य सूत्रधार पूज्य शहीद मातादीन ही थे।

हम सब इनके सम्पूर्ण इतिहास को खोजें और अंग्रेजो के विरुद्ध लडाई में जिन-जिन बहुजन (दलित) समाज के शहीदों का योगदान रहा है उसे राष्ट्र के समक्ष रखा जाए। हमारे अमर शहीद मातादीन जी को श्रद्धा पूर्वक शत-शत नमन एवं वंदन ।

संविधान की धज्जियां उड़ानें वाली सरकार संविधान दिवस मनाने का ड्रामा कर रहीं है- सुशील पासी

आज दिनाँक 26 /11/ 2019 को जनपद प्रयागराज म अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनियां गाँधी के आह्वान पर आगामी 14 दिसम्बर को रामलीला मैदान नई दिल्ली में ‘भारत बचाओं महारैली ‘ में इलाहाबाद भागीदारी के लिए शंकर लाल मेमोरियल हॉल सिविल लाइंस में इलाहाबाद के कांग्रेस कार्यकर्ताओ की तैयारी बैठक हुई ।

तैयारी बैठक यूपीसीसी के प्रदेश सचिव व जनपद प्रभारी सुशील पासी ने कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करतें हुए कहा कि आज 26 नवम्बर को भारतीय संविधान दिवस के रूप में मनाया जा रहा है और संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वालीं मोदी सरकार संविधान दिवस मनाने का ड्रामा कर रही हैं। देश में शिक्षा, रोजगार ब्यापार, खेती किसानी सब चौपट हो गई हैं । देश बचाने की जिम्मेदारी कांग्रेस के साथियों को लेना होगा ।

इसलिए आगामी 14 दिसम्बर को दिल्ली में रैली हो रही हैं जिसमे आपको बड़ी संख्या में दिल्ली पहुंचना है। रैली में जाने के आवश्यक दिशा निर्देश जारी किया । जिसमें जनपद के 12 विधानसभाओं में, विधानसभावार कम से कम 100 लोंगो को दिल्ली लें जाने के लिए प्रत्येक विधानसभा से कम से कम 10 – 10 लोगों को नाम सहित सूची बनाकर लें चलने की रणनीति बनाई गईं ।साथ ही दिल्ली पहुँचने हेतु साधनों के विषय पर कार्यताओ के साथ परिचर्चा हुई।

इसके बाद कांग्रेसियों नें हाईकोर्ट चौराहें पर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके संविधान दिवस के अवसर पर भारतीय सँविधान की उद्देश्य को पूरा करने का शपथ लिया।

इस अवसर पर पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह , पार्षद तस्लीमुद्दीन ,मुकुंद तिवारी, संजय तिवारी , रामकिशुन पटेल, सुरेश यादव,अजय प्रकाश सरोज,राम प्रवेश पासी, अजीत भारतीय, हरदेव सिंह, चमन रावत, सत्या पांडेय,अल्पना निषाद, जितेंद्र तिवारी, नफीस अहमद, संजय कृष्ण श्रीवास्तव, विजय मिश्रा, विजय पटेल, नरेंद्र पासी, राजेश राकेश, माधवी रॉय, शालिनी भारतीय आदि सैकड़ो कार्यकर्ता उपस्थित रहें।