संघ का असली मकसद वोट देनें का अधिकार छीनना हैं – अजय प्रकाश सरोज

जब देश यह मुद्दा इतना गर्म है कि चारों तरफ सिर्फ इस कानून का विरोध हो रहा हैं । संविधान पसंद नागरिकों को यह बिल जो अब कानूनी रूप ले चुका हैँ क्यों इतना अखर रहा हैं । संघ और भाजपा के लोग कितना भी कहें यह देश और संविधान के खिलाफ नही नही लेकिन नोट बंदी और जीएसटी से सबक ले चुकें नागरिकों को इस पर भरोशा नही हैं । राष्ट्र निर्माताओं के सुझाव और बाबा साहब द्वारा बनाये गए संविधान में जो अधिकार मिला है उनमें से लोकतंत्र में लोगो की मत देनें का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण हैं । एनआरसी के बाद करोड़ो लोग मतदान से वंचित हो जाएंगे । जब तक लोग अपनी नागरिकता सिद्ध करेंगे तब तक कई बार चुनाव हो चुकें होंगे । इंसमे सबसे ज्यादा दलित आदिवासी और मुसलमान समुदाय के लोग होंगे ।

आइये NRC को समझते है –

बात हिंदू मुसलमान की है ही नहीं। NRC राष्ट्रीय स्तर पर बनेगा,ये बात गृह मंत्री अमित शाह बोल चुके हैं। कि 2024 तक पूरें देश में कराएंगे तो इसमें क्या होगा? क्या सिर्फ़ मुस्लिम लोगों को तकलीफ़ होगी?

अभी कोई तारीख़, कोई प्रक्रिया तय नहीं हुई है। हमारे सामने केवल असम का अनुभव है, जहाँ 13 लाख हिंदू और 6 लाख मुस्लिम/ आदिवासी अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए।

सवाल है कि क्यों नहीं कर पाए?

क्योंकि वहाँ सबको NRC के लिए 1971 से पहले के काग़ज़ात, डॉक्यूमेंट सबूत के तौर पर जमा करने थे। ये सबूत थे:

1. 1971 की वोटर लिस्ट में खुद का या माँ-बाप के नाम का सबूत; या
2. 1951 में, यानि बँटवारे के बाद बने NRC में मिला माँ-बाप/ दादा दादी आदि का कोड नम्बर

साथ ही, नीचे दिए गए दस्तावेज़ों में से 1971 से पहले का एक या अधिक सबूत:

1. नागरिकता सर्टिफिकेट
2. ज़मीन का रिकॉर्ड
3. किराये पर दी प्रापर्टी का रिकार्ड
4. रिफ्यूजी सर्टिफिकेट
5. तब का पासपोर्ट
6. तब का बैंक डाक्यूमेंट
7. तब की LIC पॉलिसी
8. उस वक्त का स्कूल सर्टिफिकेट
9. विवाहित महिलाओं के लिए सर्किल ऑफिसर या ग्राम पंचायत सचिव का सर्टिफिकेट

अब तय कर लें कि इन में से क्या आपके पास है। ये सबको चाहिये, सिर्फ़ मुस्लिमों को नहीं,और अगर नहीं हैं, तो कैसे इकट्ठा करेंगे। ये ध्यान दें कि 130 करोड़ लोग एक साथ ये डाक्यूमेंट ढूँढ रहे होंगे। जिन विभागों से से ये मिल सकते हैं, वहाँ कितनी लम्बी लाइनें लगेंगी, कितनी रिश्वत चलेगी?

असम में जो ये डाक्यूमेंट जमा नहीं कर सके, उनकी नागरिकता ख़ारिज होगी 12-13 लाख हिंदुओं की और 6 लाख मुस्लिमों/ आदिवासियों की, राष्ट्रीय NRC में भी यही होना है। BJP के हिंदू समर्थक आज निश्चिंत बैठ सकते हैं कि नागरिकता संशोधन क़ानून, जो सरकार संसद से पास करा चुकी है, उससे ग़ैर-मुस्लिम लोगों की नागरिकता तो बच ही जाएगी।

जी, ठीक सोच रहे हैं। लेकिन NRC बनने, अपील की प्रक्रिया पूरी होने तक, फिर नए क़ानून के तहत नागरिकता बहाल होने के बीच कई साल का फ़ासला होगा। 130 करोड़ के डाक्यूमेंट जाँचने में और फिर करोडों लोग जो फ़ेल हो जाएँगे, उनके मामलों को निपटाने में वक़्त लगता है। असम में छः साल लग चुके हैं, प्रक्रिया जारी है। आधार नम्बर के लिए 11 साल लग चुके हैं, जबकि उसमें ऊपर लिखे डाक्यूमेंट भी नहीं देने थे।

जो लोग NRC में फ़ेल हो जाएँगे, हिंदू हों या मुस्लिम या और कोई, उन सबको पहले किसी ट्रिब्युनल या कोर्ट की प्रक्रिया से गुज़रना होगा। NRC से बाहर होने और नागरिकता बहाल होने तक कितना समय लगेगा, इसका सिर्फ़ अनुमान लगाया जा सकता है। कई साल भी लग सकते हैं। उस बीच में जो भी नागरिकता खोएगा, उससे और उसके परिवार से बैंक सुविधा, प्रॉपर्टी के अधिकार, सरकारी नौकरी के अधिकार, सरकारी योजनाओं के फ़ायदे के अधिकार, वोट के अधिकार, चुनाव लड़ने के अधिकार नहीं होंगे।

अब तय कर लीजिए, कितने हिंदू और ग़ैर मुस्लिम ऊपर के डाक्यूमेंट पूरे कर सकेंगे, और उस रूप में पूरे कर सकेंगे जो सरकारी बाबू को स्वीकार्य हो। और नहीं कर सकेंगे तो नागरिकता बहाल होने तक क्या क्या क़ीमत देनी पड़ेगी?

बाक़ी बात रही मोदी- शाह के ऊपर विश्वास की, कि वो कोई रास्ता निकाल कर ऊपर लिखी गयी परेशानियों से बचा लेंगे, तो नोटबंदी और GST को याद कर लीजिए। तब भी विश्वास तो पूरा था, पर जो वायदा था वो मिला क्या, और जो परेशानी हुई, उससे बचे क्या?

यह मुसलमान की नहीं हम सबकी लड़ाई है। RSS अपना गंदा खेल शुरू कर चुका है। देश-संविधान बचाने के लिए हम अब एकजुट नहीं होंगे तो सब मटियामेट हो जाएगा। लोकतांत्रिक देश की बुनियाद नही बचेगी । बड़ी संख्या में लोगों को मतदान से वंचित कर दिया जाएगा और यह काम आरएसएस और बीजेपी बड़ी चालाकी से करना चाह रही है।

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