एंटी रोमियो स्क्वाड से ईतना आश्चर्य क्यों ? मैडम सुदीप्ति बावरी की वाल से !

(नोट : लेख में कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग है जिन्हें शायद असभ्य या अश्लील माना जाय ,पर ऐसे शब्दों के बिना आज की यह सच्चाई समझ में नहीं आएगी , इसलिए नाबालिग़ और कट्टर धार्मिक लोग इस पोस्ट से दूर रहे )

एंटी  रोमियो स्क्वाड बनाते देख जाने लोग इतने आश्चर्य में क्यों भर गए हैं? रह-रह कर तर्क दे रहे हैं कि रोमियो एक महान आख्यान का नायक और प्रेमी किरदार है। उसे छेड़छाड़ वाला क्यों बना रहे हो? 
क्या आपको सच में लगता है कि बनाने वालों को नहीं पता है? उनको प्रेम, मुहब्बत, इश्क़ और छेड़छाड़, जबरदस्ती, बलात्कार का अंतर पता है और पर समझना चाहेंगे इसमें मुझे घोर संदेह है। 

दरअसल उनके लिए छेड़ और जबरन की जा रही चीजें स्वीकार्य हैं पर प्रेम नहीं। यह बात अज़ीब लग रही है आपको?
आप भला हमारे समाज को किन चश्मों से देखते हैं कि रह-रह कर आश्चर्य में भर उठते हैं?

यहाँ प्रेम निषिद्ध है। यहाँ प्रेम वर्जित है। यहाँ विवाह होते हैं प्रेम नहीं। 

प्रेम का मतलब उच्श्रृंखलता, नाक कटाना, इज्जत गवाना जैसा सब कुछ होता है। जिस आदमी को माँ-बाप, रिश्तेदार, समाज की अनुमति से तय कर लेते हैं वो अचानक से कुछ अटपटे मन्त्रों के बाद एक बिस्तर साझा करने के योग्य हो जाता है। पर यदि कोई लड़की/स्त्री किसी लड़के/पुरुष को परिचय, दोस्ती, प्रेम और लालसा वश ही चुनती है तो वो सबकी बेइज्जती हो जाती है। मुझे पहले कभी भी समझ नहीं आया कि स्वयं द्वारा चयनित सम्भोग इस समाज में इतना घृणित क्यों माना जाता है कि उसके लिए लोग क़त्ल तक कर जाते हैं। वहीं परिवार के लोगों द्वारा थोपा सम्भोग पवित्र माना जाता है।
फिर जब सोचना शुरू किया तो पाया कि क्योंकि प्रेम उदार बनाता है, प्रेम इनकी सीमाओं(धर्म, जाति, बिरादरी और भी बहुत) सीमाओं को तोड़ता है, प्रेम एक स्तर पर समानता भी लाता है। इसलिए समाज और पितृसत्ता के ठेकेदार तो उसके खिलाफ रहेंगे ही। प्रेम के कारण न सिर्फ स्त्रियों बल्कि युवा वर्ग पर भी प्रभुत्व ख़त्म हो जाएगा इसलिए इनके लिए वो अस्वीकार्य है।
आपने देखा है न दहेज़ का रोना रोते, बेटी को न चाहने की वजह दहेज़ की लोभी वृत्ति को बताने और लड़की को बोझ मानने वाले तथाकथित संस्कारी लोगों को। वे हर हाल में इन्हीं रूढ़ियों का वहन करना चाहते हैं जिनका रोना रोते हैं। बेटी/बेटा कोई इन सीमाओं से हट प्रेम कर ले तो दहेज़ इनके लिए मूल समस्या नहीं कटी हुई अदृश्य नाक है। 

इसलिए कंफ्यूज होने वाले मेरे फेसबुकिए दोस्तों मत सोचिए कि आपके त्रासद नायक ‘रोमियो’ को प्रेम से वंचित कर छेड़छाड़ का प्रतीक बनाया जा रहा है।
ये प्रेम के निषेध का एक संस्कारी और सरकारी उपाय है।
Note: क्राँतिकारी विचारों के जो दोस्त कृष्ण को छेड़छाड़ का प्रतीक बना रहे हैं उनसे मेरा निवेदन है मिथकों को इतने सरल रंगीन चश्मों से न देखें। कृष्ण कथाओं को पढ़िए। कृष्ण की वो सारी लीलाएँ चुहल थीं और चुहल और मोलेस्टेशन में फर्क होता है। चुहल जिससे की जाती है उसे भी गुदगुदी होती है। कृष्ण अक्सर इसलिए छेड़ते रहे कि जिनको छेड़ रहे हैं उनके मन को वह भा रहा था। वो ऐसा चाहती थीं। उनकी कामना थी कि कन्हैया उनको सताएँ।

मटकी तोड़ने, माखन खाने से लेकर प्रेम का निवेदन तक कृष्ण ने सामने वाले के रंजन के लिए किया है। किसी कृष्ण साहित्य में नहीं दिखाया गया है कि कृष्ण ने जबरन किसी को प्रेम/छेड़/चुहल की और उस गोपिका/स्त्री ने अपमान अनुभव किया। जरुरी नहीं है कि हम सभी पाठों को किसी विषाक्त विमर्श में तोड़-मरोड़ दें। 
ये कहते हुए मैं बताना चाहती हूँ कि कृष्ण के मिथकीय चरित्र के प्रति मेरा आकर्षण है पर उसके लिए कोई आग्रह नहीं। कमज़ोरी नहीं। पुराण और आख्यान पढ़ना पसंद है और उसी ज्ञान के आधार पर कह रही हूँ। कृष्ण को पूर्ण पुरुष कहा जाता है। क्यों? ये पता कीजिएगा। 
वैसे भी आप जिनका विरोध कर रहे हैं वो राम के आग्रही हैं, कृष्ण को वो स्वीकार ही नहीं कर पाएंगे। पत्नी को त्यागने वाले, स्त्री को अपने प्रेम नहीं मान-अपमान की वस्तु बना बदला ले उसकी अग्नि परीक्षा लेने वाले को आदर्श मानने वाले लोग क्या कृष्ण को समझेंगे?
और हाँ अगर मायथोलॉजी से एंटी स्क्वाड बनाना ही है तो

#एंटी_इंद्र_स्क्वाड बनाए जो स्त्री के शोषण में किसी भी भाषा के किसी आख्यान के महानतम खलपात्र को मात दे सकता है।

 #एंटी_विष्णु_स्क्वाड बनाएं। (उन्होंने दूसरे को हराने के लिए उसका वेश बना उसकी पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध बनाया।)

#एंटी_ब्रह्मा_स्क्वाड बनाएं जिसने पुत्री की मर्ज़ी के खिलाफ उससे बलात्कार किया और बदले में हमारे प्रिय शिव ने एक सिर काट दिया।

पर जैसा कि लिख चुकी हूँ। इनको स्त्री के हित के लिए नहीं उसको काबू में करने के लिए बनाना है। तो प्रेम-विरोधी ही बनाएंगे न ?

भाजपा सरकार की छवि को दागदार कर देगा नवनीत सहगल

  

उत्‍तर प्रदेश का सबसे विवादित एवं भ्रष्‍ट आईएएस अफसर नवनीत सहगल, फिर नई सरकार में मुख्‍यमंत्री को अपने मोहपाश में लेने को बेचैन हो उठा है। कभी मायावती और बाद में अखिलेश यादव का खासमखास बना यह अधिकारी अब योगी आदित्‍यनाथ के आसपास भी मंडराने लगा है। संभव है कि दिल्‍ली के चर्च की जमीन को अपनी पत्‍नी तथा अखिलेश दास की पत्‍नी के नाम से फर्जी पॉवर ऑफ अटार्नी बनवाने वाला यह अधिकारी अब भाजपा की सरकार में अपने स्‍वजातीय खत्री नेता लालजी टंडन और उनके पुत्र कैबिनेट मंत्री आशुतोष उर्फ गोपालजी टंडन तथा इंडिया टीवी के पत्रकार हेमंत शर्मा का हाथ पकड़कर मुख्‍यमंत्री का प्रमुख सचिव या सरकार का मुख्‍य सचिव भी बन जाए। अगर ऐसा होता है तो सवाल योगी या उत्‍तर प्रदेश की सरकार से ज्‍यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर उठेगा। उन्‍हीं अमित शाह पर, जिन्‍होंने समाजवादी पार्टी की सरकार पर लखनऊ-आगरा एक्‍सप्रेस वे को लेकर सवाल उठाए थे। इसी नवनीत सहगल ने 18 करोड़ प्रति किमी के हिसाब से बनने वाले एक्‍सप्रेस वे को 31 करोड़ रुपए प्रतिकिमी से ज्‍यादा में बनवाकर अपनी काबिलियत को अंजाम दिया है। इसी सहगल के कारनामें के चलते पहले मायावती की सरकार और अब अखिलेश की सरकार भी चली गई। अगर भाजपा ने एनआरएचएम घोटाले में नाम आने वाले इस अधिकारी से दूरी नहीं बनाई तो उसे भी इसकी पूरी कीमत चुकानी पड़ेगी। एनआरएचएम घोटाले में इस भ्रष्‍टाचारी का नाम घोटाले का सूत्रधार गिरीश मलिक ने भी लिया था, लेकिन अपनी पहुंच और पहचान की बदौलत यह पाक-साफ हो गया। अगर इस मामले की ईमानदारी से जांच कराई जाए तो सहगल को प्रदीप शुक्‍ला और बाबू सिंह कुशवाहा की तरह जेल में होना चाहिए था, लेकिन शातिर सहगल अपनी सेटिंग की बदौलत बच निकला। जिस भरोसे के साथ प्रदेश की जनता ने भाजपा को बहुमत दिया है, अगर सहगल जैसे भ्रष्‍ट अधिकारियों को इस सरकार में भी महत्‍वपूर्ण विभाग दिए गए तो यह जनता के साथ विश्‍वासघात और नाइंसाफी होगी। खुद भाजपा के दिग्‍गज नेता आईपी सिंह ने पीएमओ पत्र लिखकर इस भ्रष्‍टाचारी अधिकारी के जांच की मांग की थी, इसके बाद भी भाजपा सहगल को प्रमुखता देती है तो फिर माना जाएगा कि पैसे और सेटिंग से सबकुछ बिक सकता है। यह अधिकारी जहां भी रहा, वहां इसने भ्रष्‍टाचार और पैसे उगाहने का ताना-बाना रचा। भाजपा के एजेंडे में शामिल काशी विश्‍वनाथ मंदिर तक को अपने गंदी सोच के जरिए भ्रष्‍टाचार का अड्डा बनाने का प्रयास किया। अगर काशी के पुरोहितों ने विरोध नहीं‍ किया होता तो बाबा भोलेनाथ के नाम पर फर्जी प्रसाद वितरण ऑनलाइन चल रहा होता। इसी भ्रष्‍ट अधिकारी ने मायावती के शासन काल में सरकारी चीनी मिलें औने-पौने दामों पर पोंटी चड्ढा को बिकवा कर अपनी भी जेबें भरी और मायावती को भी खूब कमवाया। जनता के पैसा इनकी जेब में गया। इसी सहगल ने ता‍ज कारिडोर मामले में अपने बचाव के लिए कांग्रेसी नेता संजीव अवस्‍थी का फिल्‍मी अंदाज में पुलिस से अपहरण करवाकर उसको फर्जी मामले में जेल भिजवाया था। आगरा का टोरेंट पावर घोटाला हो या फिर कानपुर का पाइप लाइन बिछाने का घोटाला, प्रत्‍येक घोटाले में इसी अधिकारी का नाम आया, लेकिन अपनी सेटिंग-पहुंच और पैसे के बल पर हर बार यह बचता गया। अगर भाजपा सरकार में भी इस भ्रष्‍ट नौकरशाह की ताजपोशी होती है तो यह लोकतंत्र का काला अध्‍याय होगा। यह भी साबित होगा कि चाहे सपा-बसपा हों या कांग्रेस या भाजपा, सारे दल अंदर से एक जैसे हैं। मक्‍खन मलाई चटाकर और सेटिंग करके यह प्रमुख पद पर पहुंच गया तो यह भाजपा की असफ़लता  

के पतन की शुरुआत होगी।

 —पत्रकार अनूप गुप्ता की रिपोर्ट

२० मार्च १९२७ महाड आंदोलन , क्रांति की भूमि की एक यात्रा और आज की स्थिति !

आज ही के दिन २० मार्च १९२७ को एक क्रांति हुई थी , एक ऐसी शांति पूर्ण क्रांति जिसने हज़ारों सालों की मान्यताओं को एक झटके से ध्वस्त कर दिया । आज के दिन ही बाबा साहेब ने महाड के तालाब में पानी पी कर मनुवादी द्वारा बनाए नियम क़ायदे ध्वस्त कर दिये और सबको एक ही तालाब में पीने की आज़ादी दी । यह सिर्फ़ पानी पीने की आज़ादी की क्रांति नहि थी बल्कि उस मनुवादी वस्था के ख़िलाफ़ यलगार था जहाँ तालाब में जानवर तो पानी पी सकता था पर ..एक इंसान पानी नहि पी सकता था । 


आज मैं राजेश पासी उस ऐतिहासिक स्थल को महसूस किया जहाँ उसी जगह बाबा साहेब ने मनुवादी वयस्था के ख़िलाफ़ क्रांति की शुरुआत की थी । आज मैं तालाब की उन्ही सीढ़ियों पर मौजूद था जहाँ से कभी बाबा साहेब ने क्रांति की चिंगारी जलाई थी जिसकी धमक पूरी दुनिया में दिखाई दी । आज इस ऐतहसिक स्थल पर मैं राजेश पासी अपने साथियों के साथ उस स्थान के दर्शन के किए । 


हमने उस ऐतिहासिक स्थल को और उस क्रांति को महसूस करने की कोशिश की जिसने इस देश के आने वाले इतिहास को बदल दिया । अब यह छोटा सा गाँव गाँव नहि रह गया है बल्कि शहर में तब्दील हो गया है । आज २० मार्च के दिन लाखों लोग आते है यहाँ बाबा साहेब को याद करने , पर मीडिया में कभी चर्चा नहि होती । प्रशासन से भी कोई ख़ास सहायता नहि मिलती वहाँ के लोकल रहवासी ही और कुछ प्राइवेट कम्पनियाँ रहने और खाने पीने की भी मुफ़्त वस्था करते है .रास्ते में पड़ने वाले गाँवो में जगह जगह लोगों के लिए मुफ़्त जलपान का स्टाल लगाए हुए थे । पूरे महाड में इसे आज भी एक उत्सव की तरह मानते है और क्रांति को याद करते है। देश और प्रशासन भले भूल गए हो पर  लाखों लोग आज भी २० मार्च के दिन यहाँ बाबा साहेब  को याद करने के लिए उनके अनुयायी मौजूद रहते है । – जय भीम , राजेश पासी ,मुंबई 

आज़ादी के बाद प्रदेश के मंत्रीमण्डल में पासी समाज को जगह क्यों नहीं ? पढ़िए पूरा लेख़

“राजनाथ टीम के पासी नेता मंत्रीमण्डल से आउट,  स्मृति ईरानी कोटे से सुरेश पासी को बनाया गया है राज्यमंत्री”

उत्तर प्रदेश के नवगठित मंत्री मण्डल में आज़ादी के बाद पहली बार किसी पासी नेता क्यों नहीं लिया गया ? इस प्रश्न का ज़बाब खोजने बैठा तो कुछ सूझ नहीं रहा, मन में सवाल उठ रहा था कि भाजपा जो ‘सबका साथ ,सबका विकास ‘के साथ सामाजिक और जातीय समरसता की दुहाई आजकल कुछ ज्यादा ही दे रही है तो ऐसे में प्रदेश की अनुसूचित जाति में 25 प्रतिशत हिस्सा रखने वाली जाति ‘पासी’ को असन्तुष्ट क्यों करेगी ? जबकि भाजपा के रणनीतिकार इस बात से बिल्कुल परिचित है पूरे अवध क्षेत्रों में भारी मात्रा में फैले पासी जाति की संख्या प्रदेश की 125 से ज्यादा विधानसभाओं में निर्णायक भूमिका में है।

चुनाव पूर्व इसी को ध्यान में रखकर भाजपा ने पासी जाति के जूझारू नेता सांसद कौशल किशोर को अनुसूचित मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। इसके अलावा रामनरेश रावत को पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष बनाकर पासी नेताओ  की गोलबंदी की । यह सभी गृहमंत्री राजनाथ के समर्थक के तौर पर पहचाने जाते है। 
बावजूद इसके प्रदेश भर में पासियों का एक हिस्सा बीएस4 के अध्यक्ष पूर्व मंत्री आरके चौधरी के साथ लगा रहा । जिसे साधने के लिए भाजपा  ने चौधरी की सीट मोहनलालगंज में गठबंधन कर बीएस4 के लिए छोड़ दिया । यह अब सपा बसपा से उपेक्षित हुआ पासी समाज आस्वस्थ हो गया कि भाजपा में  पासियो का सम्मान बढेगा, उसके नेताओं को सत्ता में भागीदार बनाया जाएगा । इस सोच के साथ प्रदेश का 80 प्रतिशत पासी समाज भाजपा को अपना मतदान किया , और भाजपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गई । लेकिन दुर्भाग्य से बीएस4 के अध्यक्ष आरके चौधरी चुनाव हार गए।
लेकिन भाजपा के टिकट पर 20 विधायक पासी समाज से चुनकर आये। समाज के चिंतक कयास लगा रहे थे कि नवगठित मंत्रीमंडल में पासी समाज से कम से कम 2 कैबिनेट और 2 राज्य मंत्री बनाये जा सकते है। यह संभावना और बढ़ गई जब राजनाथ सिंह को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाये जाने चर्चा हुई। 
परन्तु बीजेपी नेतृत्व ने बड़े नाटकीय ढंग से मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट उर्फ़ योगी आदित्य नाथ को बना दिया। और राजनाथ सिंह के प्रभाव को कम करने के लिए  योगी ने भारी मतों से जीते उनके बेटे पंकज सिंह को मंत्री मंडल मे जगह नहीं दी । जिसकी नाराजगी शपथ ग्रहण समारोह राजनाथ जी के चेहरें पर दिखी । अब आप समझ सकते है कि जब उनके बेटे को मन्त्री मण्डल में जगह नहीं तो उनके चाहने वाले पासी नेता कैसे ? 

इससे इतर अमेठी के जगदीशपुर विधानसभा के युवा विधायक सुरेश पासी को स्मृति ईरानी से की वफादारी का इनाम मिला क्योकि ब्लाक प्रमुख रहते हुए लोकसभा के चुनाव में सुरेश ने अपना ब्लाक उन्हें जिताया था। स्मृति ईरानी के संसदीय क्षेत्र अमेठी पासी बाहुल इलाका है जिसे साधने के लिए सुरेश पासी को राज्यमंत्री बनाया गया है। 

पासी समाज के साथ हुई इस उपेक्षा से  समाज का बुद्धजीवी तपका आक्रोशित है । लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ा है उसे लग रहा है कि मंत्री मंडल के विस्तार में पासी समाज को कैबिनेट जगह मिलेंगी । अंत में उपेक्षित भाजपाई पासी नेताओ को शुभकामना सम्भावनाओ के खेल राजनीति में कुछ भी हो सकता है।

लेख़क -अजय प्रकाश सरोज ( सम्पादक -श्री पासी सत्ता) whatsap no. 9838703861


 पासी समाज के साथ भाजपा ने की गद्दारी ,कैबिनेट में नहीं किया पासी को शामिल , सुरेश पासी को अंतिम में  दिलाई गई राज्यमंत्री की शपथ  

उत्तर प्रदेश की गठित नई सरकार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और  दो उप मुख्यमंत्रियों सहित 44 मंन्त्रियो ने आज शपथ ली  है। जिनमे अधिकांश सवर्ण ही कैबिनेट में शामिल किये गए है।  उत्तर प्रदेश में अनुसूचित समाज में 25 प्रतिशत की बड़ी आबादी वाली जाति पासी के साथ भाजपा ने बड़ा धोखा किया है। यह समाज अबकी बार जमकर भाजपा को वोट किया है। लेकिन इस समाज से एक भी कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया गया।

आजादी के बाद पहली बार यह भेदभाव है जब प्रदेश की सरकार में पासी समाज का कोई भी नेता  कैबिनेट मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया है। जबकि पासी समाज से 20 विधायक भाजपा के टिकट पर जीते हुये है। यह माना जा रहा है कि अनुसूचित मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सांसद कौशल किशोर पासी समाज को सरकार में भागीदारी दिलाने में नाकाम  रहे । 
सपा और बसपा के जातिवादी मानसिकता से त्रस्त होकर पासी समाज के लोगो ने इस बार सामाजिक समरसता की बात करने वाली भाजपा को वोट दिया कि ,पासी समाज को सत्ता में भागीदारी मिलेगी। 

पासी वोट पाने के बाद मनुवादी ब्यवस्था से ग्रसित सवर्ण भाजपाई वर्षो से सत्ता के वनवास से लौटे है। उनकी भूख का अंदाजा उनकी कैबिनेट को देखकर लगा सकते है। फैज़ाबाद में टीवी देंख रहे एक बुद्धजीवी ने फोन पर बताये कि अंतिम दौर में एक सुरेश पासी नाम के युवक को राज्यमंत्री का शपथ दिलाया गया है। 

पूर्व मंत्री बैजनाथ रावत, पूर्व एमएलसी व भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष  राम नरेश रावत, कृष्णा पासवान , पूर्व सांसद कमलरानी ,रामपाल वर्मा पासी समाज के वरिष्ठ नेता व बीजेपी विधायक है जिनके मंत्री बनने की प्रबल संभावना थीं

लेकिन भाजपा का अनुसूचित विरोधी मानसिकता ही कहा जा सकता है  कि पासी समाज के साथ इतना बड़ा धोखा किया गया है। जिसे लेकर सोशल मीडिया पर पासी चिंतको के बीच चर्चा गर्म है। कोई सुरेश पासी को बधाई देने में मस्त है तो कोई कैबिनेट में समाज की उपेक्षा से दुखी है। पासी समाज के बौद्धिक तपके की मानें तो बीजेपी का यह रवैया बर्दास्त के लायक नहीं है। लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए वरना परिणाम घातक होते है। —-अजय प्रकाश सरोज( संपादक -श्रीपासी सत्ता) 

हिंदुत्व के नाम पर मनुवाद का छल, प्रदेश में पहली बार हिन्दु मुख्य मन्त्री ??

दोस्तों आप टीवी चैनल पर देखो या समाचार पत्रों को उठाकर देखो या किसी सार्वजनिक स्थलों पर खड़े होकर देखिए आपको चर्चा का एक ही विषय नजर आयेगा हिन्दू धर्म,हिन्दू समाज,हिन्दू उत्कर्ष,हिन्दूओं का सम्मान, हिन्दू देश,हिन्दू दर्शन,हिन्दू राज्य, हिन्दू आतंकवाद इत्यादि इत्यादि आज के दौर में हिन्दू पर इतनी चर्चा क्यों क्या उ०प्र० की धरती पर पिछले २५ वर्षों से हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं था क्या ये राज्य विदेशियों के हाथ में था क्या मुलायम,मायावती और अखिलेश यादव हिन्दू नहीं थे फिर हिन्दू को लेकर इतना भ्रम क्यों फैलाया जा रहा था अब जब भाजपा की सरकार बन रही है तो बिकाऊ मीडिया द्वारा ये दिखाना कि अब हिन्दू एकजुट हुआ है तो सवाल ये है कि जब २००७ मे बहन जी। की सरकार और २०१२ में अखिलेश की सरकार बनी तो क्या हिन्दू एकजुट नहीं था उत्तर मिलेगा शायद नहीं क्यों कि ये तो दलित और महादलित हैं एक शूद्र तो दूसरा महाशूद्र ये तो कभी हिन्दू था ही नहीं जब भी हिन्दू उत्थान की बात आती हैं उसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का ही नाम आता है भारत में इनकी कुल आबादी लगभग १५%के करीब है इनका उत्थान हिन्दू का उत्थान माना जाता है इनकी प्रगति देश की प्रगति मानी जाती है तो फिर ८५% जनता का देश में क्या योगदान है यह एक विचारणीय प्रश्न है तो साथियों क्या ८५% जनसंख्या को छला जा रहा है ये इसे वर्ग को कब समझ में आयोगा इसका पहले भी शोषण होता रहा है और आगे भी पूरी सम्भावना है कि धोखे मे रख कर शोषण की पूरी पटकथा तैयार की जा चुकी है केंद्र में आपका प्रतिनिधित्व करने वाले वाले कितने कैबिनेट मंत्री हैं तो उमाभारती जैसी कुछ एक हैं जिनकी औकात हिन्दू समाज में वैसी ही है जैसी आदि शंकराचार्य की बौद्ध भारत में थी परन्तु दोनों की जमीन में और विचारधारा में अन्तर है वो हिन्दू धर्म की स्थापना को लेकर प्रतिबद्ध था तो उमा भारती जैसी साधवी अपने समाज को छोड़ उस हिन्दू समाज में घुसपैठ की तैयारी कर रही हैं जिसमें से उन्हें एक न एक दिन बाहर फेंक दिया जायेगा।अब इन कथित हिन्दुओं का तो ये मास्टर प्लान ही रहता है कि “use and throw” जैसा कि केशव मौर्य के प्रकरण से स्पष्ट है अगर ये हास्पिटल में भर्ती नहीं होते इन्हें लगभग निकाल ही दिया गया था खैर इन्हें झुनझुना पकड़ाया गया है ये इन्हें कुछ समय पश्चात् पता चलेगा तब इन्हें समझ आयेगा की हम किसके चंगुल में फंसे हैं।अर्थात आशय स्पष्ट है कि ८५% जनसंख्या को बांटो और उसमें से ५० % जनसंख्या में ऐसा उनमाद फैला दो कि उन्हें हिन्दू जैसे पाखंड के अलावा कुछ याद ही न रहे माननीय प्रधानमंत्री महोदय का कहना है कि महत्मा गाँधी को चम्पारन की घटना ने महत्मा बना दिया तो मैं ये कहना चाहूँगा कि पूना पैक्ट ने उन्हें शैतानों की श्रेणी में भी तो खड़ाकर दिया इसका भी तो वर्णन करो,ये नहीं करेंगे क्योंकि इनकी १५% हिन्दूवादी छवि धूमिल हो जायेगी अगर इनकी सदैव ही यही विचारधारा रही है और ये अब भी उसी लीक पर चल रहे हैं तो ये समॻ देश को साथ कैसे लेकर चलेंगे और देश का विकास कैसे होगा यदि ८५% जनसंख्या के साथ भेदभाव होगा तो भारत वर्ष कैसे प्रगति करेगा सोचिए साथियों सोचिए???????(डॉ यशवंत सिंह सामजिक चिंतक और लेखक )

केशव मौर्य मुख्यमंत्री क्यों नहीं ? 1980 में धर्मवीर का भी हुआ था विरोध , क्या फिर से पिछड़ो और अनुसूचितों को छला जाएगा?

इला०/ देश की सवर्णवादी मानसिकता का ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश की राजनीति में खूब झलक रहा है। विधानसभा के चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत भले ही लोगो के गले से न उतर रही हो लेकिन इलाहाबादी प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य की काबिलियत और मेहनत पर कोई भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता । गैर यादव अतिपिछड़े वर्ग को भाजपा के खेमे लाने का पूरा श्रेय  केशव को ही माना जा रहा है। केशव मौर्य अपनी रणनीति से अतिपिछड़ों में यह आश जगाने में कामयाब रहे कि भाजपा में अतिपिछड़ों को पूरा पूरा सम्मान मिलेगा । जिस पर भरोसा करके प्रदेश का यह वर्ग पूरी तरह से  भाजपा को वोट किया और भाजपा 325 सीट पाकर  प्रचंड बहुमत में आ गई। लेकिन सत्ता मिलते ही कोमा में रहे बूढ़े भाजपाइयों और RSS की सवर्णवादी मानसिकता  में ऊर्जा का संचार हुआ, तो लगे  केशव की जगह सवर्ण मुख्यमंत्री  बनाने की योजना बनाने । 

आपकों बता दें क़ि सत्र-1978 में काँग्रेस ने भी इलाहाबाद-कौशाम्बी (द्वबा) के अनुसूचित जाति के धर्मवीर पासी जी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। उन्ही नेतृत्व में कांग्रेस को विधान सभा चुनाव में 308 सीट मिली थी । तब नैतिक रूप से उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था लेकिन उस समय भी ब्राह्मणवादी शक्तियों ने इलाहाबादी अनुसूचित समाज के बड़े नेता को मुख्यमंत्री की शपथ नहीं लेने दिया,और विश्नाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री बने थे। साथ में यह भी याद दिला दूँ कि इस भेद भाव के बाद ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस गर्त में चली गई। जो आजतक उबर नहीं पायी । 

मैं इसलिए यह घटना जोड़ रहा हूँ कि दलित -पिछड़े  नेता ब्राह्मणवादी पार्टियों के लिए कितना भी जान लगाकर मेहनत करें अंततः उन्हें भेद भाव का शिकार होना ही पड़ता है । कहने को तो अब भाजपा ब्राहम्णवादी पार्टी नहीं रही ? तो क्यों न केशव मौर्य को मुख्यमंत्री बनाकर इसे सिद्ध करे दें।

क्या कांग्रेसी धर्मवीर के जैसे ही भाजपाई केशव मौर्य  के साथ भी होगा ? अगर ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में भाजपा भी कांग्रेस कि तरह ही  हो जायेगी । -अजय प्रकाश सरोज संपादक -श्री पासी सत्ता पत्रिका 

मशहूर हैं पासी समाज के बीजेपी विधायक ,पूर्व मंत्री की सादगी के किस्से, (बैजनाथ रावत जी  )

बैजनाथ जी भैंसों के लिए चारा बनाते हुए और उनका आम निवास

उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व ऊर्जा मंत्री । भारत देश के बाराबंकी से पूर्व सांसद । क्या यह मामूली उपलब्धि है।
आज के ज़माने जहाँ एक गाँव का प्रधान भी इतने रुआब और घमंड से रहता है कोई एकाध बार कोई विधायक बन जाय तो पैर ही ज़मीन पर नहीं रहते आम आदमी उन्हें दिखते ही नहीं । बिना लाव लश्कर के चलते ही नहीं। 
यूपी के बाराबंकी जिले के भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक बैजनाथ रावत, जो पूर्व में विधायक, सांसद और सूबे के ऊर्जा राज्यमंत्री जैसे ऊंचे ओहदों पर पदासीन रह चुके हैं. लेकिन इनकी सादगी और ईमानदारी का पूरा जिला कायल है.

14 वर्षों बाद भाजपा के लिए वनवास काट रहे हैदरगढ़ विधानसभा क्षेत्र ने इस बार एक ईमानदार नेता बैजनाथ रावत को भारी बहुमत से जिताकर हैदरगढ़ का विधायक बनाया है. बैजनाथ रावत हैदरगढ़ विधानसभा क्षेत्र के भूलभुलैया गांव के रहने वाले हैं, जिन्होंने सपा से दो बार के विधायक रहे राममगन रावत को भारी मतों से हराकर जीत हासिल की है. बीजेपी के इस विधायक की सादगी और ईमानदारी के किस्से जिले भर में मशहूर हैं.

चाहे कोई भी उम्र हो, कोई भी जाति हो, कोई भी वर्ग हो बैजनाथ रावत के लोगों से मिलने का अंदाज नहीं बदला. वहीं बैजनाथ रावत की पहचान हमेशा से जमीनी नेता के तौर पर रही है. आज भी बैजनाथ रावत अपने पक्के लेकिन प्लास्टर और फर्श के बगैर बदसूरत से लगने वाले मकान में अपने परिवार सहित रहते हैं.

खास बात ये है कि ये बीजेपी विधायक अपने जानवरों के लिए मशीन में चारा काटकर अपने हाथों से खिलाते हैं और यही नहीं वो अपने खेतों में फसल बोने से लेकर फसल काटने तक का काम एक आम किसान की तरह खुद ही करते हैं.
हम Reachout countrywide Pasi ( RCP) टीम के साथ ४ जुलाई २०१६ को हम मिले बैजनाथ रावत जी और रामयश विक्रम जी से मिले मुंबई में । 

बायें से सुधीर , राजेश , बैजनाथ जी , मित्र रामयशजी और अशोक सरोज

वह आज भी इतनी सादगी से रहते है की विश्वास नहि होता की वह प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और सांसद भी रह चुके है । 

जब वह पहली बार मंत्री पद की शपथ लेने गए थे तब भी बिना किसी लाव लावशकर के सिर्फ़ बैजनाथ जी और उनके साथ रामयश जी केवल दो ही लोग राजभवन में पैदल चल कर गए थे । दूसरे दिन अखबारो में काफ़ी चर्चा थी बैजनाथ जी की । आज भी वह उसी सादगी से रहते है और कोई भी आम जन कभी भी कहीं भी मील सकते है ।

उनके साथ ही हम मिले हमारे लखनऊ के मित्र रामयश विक्रम जी से । जो कल तक सिर्फ़ मित्र की सूची में थे जो अब घनिश्ठ मित्रों की सूची में शामिल हो गए है । 

RCP और श्री पासी सत्ता की तरफ़ से मैं राजेश पासी , सुधीर सरोज और अशोक सरोज जी ने बैजनाथ रावत जी और रामयश विक्रम जी का मुंबई में स्वागत किया था और भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दी थी । उनकी वह मुलाक़ात हमेशा याद रहेगी । समय कम होने की वजह से सिर्फ़ २-३ घंटे ही साथ में बिता सके । सचमुच काफ़ी अच्छा लगता है जब अपने लोगों से निस्वार्थ भावना से मिलते है । और जब ऐसे लोगों की सादगी को दुनिया सलाम करती है 

बहुत बहुत धन्यवाद रामयश विक्रम जी और बैजनाथ रावत जी । -राजेश पासी,मुंबई 

​कमलरानी को मिल सकता है उत्तर प्रदेश की नई सरकार में  बड़ी जिम्मेदारी 

कानपुर / किसी-किसी के जीवन में राजयोग होता है तो आता है, जाता है और फिर आता है। सुश्री कमलरानी ने राजनीति में पहला कदम सीसामऊ, कानपुर से भाजपा सभासद के रूप में रखा और वर्ष 1996 म़े वहीं से सीधे घाटमपुर लोक सभा से सांसद के रूप में शोभायमान हुईं।  हलाकि 11 वीं लोकसभा अल्प अवधि की रही। सत्र 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए तो घाटमपुर से ही वें 12 वीं लोकसभा की फिर सांसद चुनी गयीं। अब हाल में हुए उ०प्र० विधानसभा चुनाव में घाटमपुर से ही भाजपा विधायक चुनी गई हैं ।        

(अपनी बेटी ट्विंकल के साथ नव निर्वाचित विधायक कमलरानी जी )

कानपुर के 218 ,घाटमपुर क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी कमलरानी ने 45000 के रिकार्ड मतों से जीत दर्ज कर ली है।  इसके पहले भी वह लोक सभा में इस सीट को पहली बार भारतीय जनता पार्टी के लिए जीत चुकी हैं और कमलरानी भाजपा की वरिष्ठ नेता है जो कि अटल जी के काफी करीब मानी जाती हैं । जिन्होनें महिला सशक्तिकरण तथा युवा कल्याण के लिए अपने सांसद कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं | बीजेपी हमेसा से ही अपने पुराने कार्यकर्ताओ मंत्रियो, नेताओ का सम्मान करती है और उनके ऊपर अत्यधिक विश्वास भी करती है | इसलिए कयास लगाये जा रहे है की दो बार लोकसभा में सांसद रही पासी समाज से सम्बन्ध रखने वाली कमलरानी जी को उत्तर प्रदेश सरकार में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है |  

कमल रानी जी दो बार लोकसभा सांसद रही हैं | कमल रानी जी के अनुसार वे हमेशा ही पार्टी के आदर्शों पर चलते हुए जीत हांसिल की है ।  कमल रानी अपनी जीत का श्रेय जनता और प्रधानमंत्री मोदी का कामकाज को बताती है।  उनकी शक्शियत अपने आप में अलग है उन्हें देश की जनता ने अपना प्रतिनिधि चुना है उत्तर प्रदेश में प्रचंड बहुमत दे कर देश की जनता ने हमारी पार्टी पर विश्वास दिखाया है जिसे हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन  में जनता के विश्वास पर खरा उतरने का प्रयास करेंगे | घाटमपुर की जनता के सभी वर्गों ने उन पर भरोसा किया और अपना अमूल्य समर्थन देकर वोट किया | 
उन्होंने  अपने द्वारा किये गए कामो के बारे में बताया था कि हमने अपना अनुदान यहाँ तबसे दिया है जब हम यहाँ सांसद हुए थे | उस समय हमें केवल डेढ़ वर्ष का समय मिला था | इतने कम  समय में  किये गए कामो को लोग आज तक याद करते है | अब इस बार हम 18 वर्ष के अन्तराल पर चुनाव लड़ रहे है | लोगो को पता है कि अगर इतने कम समय मिलने पर हमने घाटमपुर का विकास किया है | तो आगे आने वाले समय में भी यहाँ का विकास करेंगी | इसलिए जनता हमारा समर्थन करती है।  कमलरानी जी मूलरूप से बाराबंकी की रहने वाली है । उनकी शादी कानपुर जिले में हुई है। वे अपनी राजनीतिक पारी भाजपा से एक सभासद के रूप में शुरू की है। 

(उनका यह चित्र वर्ष 2008 में लेखक व कथाकार बृज मोहन जी द्वारा एक निजी समारोह में लिया गया है। जिसमे लेखक की पत्नी श्रीमती मनोरमा मोहन जी पीछे बैठी है।  ) 

बसपा समर्थक पासी को परिवार सहित दबंगों ने पीटकर किया लहूलुहान

इलाहाबाद : इसे सत्ता की हनक ही कह सकते हैं कि भाजपा नेताओ की सह पर बसपा कार्यकर्ता के साथ गुंडागर्दी की गई ।  हद तब पार हो गयी जब भाजपा नेताओं ने खुलेआम एसओ कैंट को पीड़ित पक्ष का मुकदमा पंजीकृत न करने धमकी दी । कैंट थानांतर्गत राजपुर निवासी प्रमोद पासी बसपा समर्थ है। रंजिश बस प्रमोद सहित उसके छोटे भाई और माँ को मार पीटकर दंबंगो ने लहूलुहान कर दिया। पुलिस कार्यवाही में जुटी है लेकिन दबंगो पर भाजपाई नेताओ का संरक्षण प्राप्त है। -अजय प्रकाश सरोज