श्रीपासी सत्ता द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार सफलता पूर्वक संपन्न!

13 मई 2017 को इलाहाबाद संग्रहालय सभागार में आयोजित एक दिवसीय सेमिनार सफलता पूर्वक पूर्ण हुआ । इस आयोजन में  उत्तरप्रदेश के अलावा दिल्ली , मुंबई , मध्य प्रदेश  और बिहार के साथियों ने भी भाग लिया । सेमिनार के लिए देश भर से पत्रिका से जुड़े लोग , साहित्य लेखन से जुड़े लोग , ऐसे युवा जो अपनी पहचान सिर्फ़ अपने बल बूते पर बनाए है और समाज  में ऐक्टिव है ऐसे सीमित लोगों को ख़ास तौर पर आमंत्रित किया गया था । राजनीतिक  और पासी समाज  की संस्थाओ को फ़िलहाल इसमें शामिल नही किया गया था । यह सेमिनार पत्रिका की वेब्सायट के एक साल पूर्ण होने पर हमारे साथी डा० रमेश ( कॉर्प्रोट मंत्रालय ) की सलाह पर प्रयोग के तौर पर किया जो पूरी तरह से सफल था ।

मंच पर उपस्थित लोगों में प्रमुख अतिथि श्री छोटालाल पासी (IAS) अपर आयुक्त फ़ैज़ाबाद मंडल थे , इतिहासकार में लखनऊ से राजकुमार इतिहासकार जी और हरदोई से बहुजन चिंतक राम दयाल वर्मा जी थे , युवा साथी डा० रमेश आईएएस अलायड ( कारपोरेट मंत्रालय ) , राम सुचित भारतीय जी (प्रबन्ध सम्पादक), फ़िल्मकार केशव कैथवास जी , प्रोफ़ेसर भगवानदीन उपस्थित थे ।

सेमिनार शानदार वातानुकूलित हाल में लंच की वयस्था के साथ रखा गया था । सभी उपस्थित साथियों के नाम तो पॉसिबल नहि है पर सम्पादकीय मंडल के R K सरोज ( कवि /दरोग़ा ) , बिहार के वेद प्रकाश ( सोशल मीडिया स्टार ) उनके साथ अमित जी , राम यश विक्रम जी , बनारस के सोनू सिंह पासी , मुंबई के राजेश पासी , प्रतापगढ़ के वेद ( आर्यन ) जी , साथी यशवंत सिंह , प्रियांक जी , नोयडा से संजीव जी ,रागिनी जी , राजू पासी जी , नीरज जी आकर्षण के केंद्र थे ।

चूँकि यह एक दिवसीय सेमिनार था उपस्थित सभी लोगों ने अपने विचार रखे । मुख्य अतिथि छोटे लाल पासी जी कहा कि पासी समाज का चरित्र स्वाभिमानी है। वह आत्म सम्मान से समझौता नही करता है।इतिहासकार और साहित्य से जुड़े लोगों ने समाज पर अपना नज़रिया रखा । सम्पादक अजय जी ने  अपने व्याख्यान में समाज में वर्तमान के सभी पहुलुओं पर अपना पक्ष रखा । कम उम्र में इतनी परिपक्वता भरा विश्लेषण ने सभी का ध्यान खींचा। महिला साथियों में डा० सुधा जी ने महिलाओं और शिक्षा पर अपना दमदार पक्ष रखा , इलाहाबाद  के आसपास में सामाजिक रूप ऐक्टिव मिस रागिनी जी ने समाज में महिलाओं की भागीदारी पर ज़ोर दिया ।

इस सेमिनार  में भाग लेनेवाले 70% से ज़्यादा साथी 35 साल के आसपास के थे । सीनियर साथियों के सहयोग से आयोजित इस सेमिनार को युवा पासी समाज सेमिनार कहना ग़लत न होगा । और सबसे अच्छी बात  सेमिनार में अलग -अलग क्षेत्रों से  जुड़े लोगों का समावेश था । तक़रीबन  हर क्षेत्र में माहिर लोग  चाहे शिक्षा , साहित्य , फ़िल्म , लेखक , इतिहासकार , डॉक्टर , इंजीनियर , कवि , सरकारी अफ़सर , टीचर , विद्यार्थी , पत्रकार , सोशल मीडिया स्टार सभी क्षेत्र के लोग इस सेमिनार में उपस्थित थे । सभी लोगों से मिल कर एक दूसरे से मेल मुलाक़ात कर सभी बिंदुओं पर चर्चा हुई । 
सेमिनार में मंचाधीन साथियों के हाथो श्री पासी सत्ता पत्रिका के इस महीने के अंक का भी विमोचन हुआ । यह अंक मदारी पासी को समर्पित किया गया है जो जल्द ही आपके हाँथों में होगा ।
सेमिनार के अंत में हरदोई के पत्रकार साथी स्व0 हरिनाम रावत के सड़क हादसे में हुई असामयिक मृत्यु पर दो मिनट की शोक सभा होकर सम्पन्न हुई।

जय भीम , जय भारत

राजा सुहेलदेव पासी की वीरता पाठ्य पुस्तकों  में होगी शामिल–मुख्यमंत्री योगी


आखिर युपी के सीएम योगी ने भी मान ही लिया कि महाराजा सुहेलदेव पासी पासी ही थे । अंग्रेज इतिहासकारों ने भी महाराजा सुहेलदेव पासी के पासी होने का प्रमाण दिया है । यहा तक कि उत्तरप्रदेश लोक सेवा आयोग के पुस्तक में भी महाराजा सुहेलदेव पासी का ही जिक्र ही है । केवल एक मात्र जैन ग्रंथ में ही महाराजा सुहेलदेव का राजभर के रुप में जिक्र है लेकिन जैन ग्रंथों को सबुतों के तौर पर प्रमाणिक नहीं माना जाता है । अंग्रेज इतिहासकारों ने सुहेलदेव को भारपासी (भारशिव पासी) माना है। मतलब महाराजा सुहेलदेव पासी (भारशिव वंशज ) ही थे ।ईस बात को बीजेपी प्रमुख अमित शाह ने भी माना है । अब आशा करते है कि योगी जी अपने किये वायदे के अनुसार महाराजा सुहेलदेव पासी के इतिहास को केवल महाराजा सुहेलदेव नहीं बल्कि उनके पुरे नाम महाराजा सुहेलदेव पासी के नाम से पाठ्यक्रम मे शामिल करायेंगे ।  – अमित कुमार जी की वाल से 

शुद्ध भारतीय मदर्स डे पर स्पेशल 


मदर्स डे वाला फीवर सबका उतर गया हो तो हमहुँ कुछ बोलें…

क्या है कि ई मदर्स डे जो है ऊ उन देशों के लिये ज्यादा सटीक त्यौहार है जहाँ अठारह बीस का होते ही लौंडे लौंडिया अपना घर दुआर छोड़कर लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगते हैं…… अउर साल में एक दिन अपनी महतारी को चॉकलेट अउर फूल लेकर मिलने जाते हैं….. महतारी भी उस दिन केक बनाकर अपने लायक पूत का इन्तेजार करती है…।

लेकिन ई भारत देस जो कि अभी इण्डिया बनने से काफी दूर है , इहाँ अभी तीस – तीस साल के नखादे लौंडे महतारी बाप की रोटी तोड़ते हैं ..और दारु पीकर आते हैं तो बाप से बचने के लिए माँ के ही पीछे छिपते हैं….. नौकरी लग जाये तो बच्चों के भविष्य की खातिर माँ को अपने पास बुला लेते हैं… परिवार छोड़कर अगर अकेले बाहर रहते हैं तो दिन में सात बार अपनी महतारी को बतलाते हैं कि क्या खाया-क्या पीया… दिल्ली में दोस्तों के साथ दारु पी रहे हों और गाजीपुर से महतारी का फोन आ जाये तो सारा नशा उतर जाता है… प्रेमिका के साथ पिक्चर देख रहे हों अउर माँ का फोन आ जाये तो हिरन की तरह सिनेमाहाल के टोइलेट में घुसकर ऐसे बतियाने लगते हैं जैसे नौकरी का इंटरव्यू चल रहा हो….। और तो और गाय के बारे में एक शब्द नही सुन सकते काहें कि बचपन में सुना था कि गाय माता होती है..।

हम भारतीय अम्मा के पूत होते हैं मॉम के सन्स नहीं… । अम्मा को याद करने के लिये हमको किसी दिन की जरूरत नही.. ऊ तो हाथ में दाल भात का कौर और आँखों में गुस्सा लिये पूरी जिंदगी चौबीसो घण्टे हमारे पीछे पीछे ही घूमती है…  – साभार सोशल मीडिया

जस्टिन बीबर – भारत में पर्फ़ॉर्मन्स के लिए रखी ऐसी माँगे की इंग्लैंड की महारानी भी शर्मा जायें !

अब क्या कहे देश के लोगों के बारे में ……देश में इतनी समस्या है और देश में युवाओं की हालत यह है इस बन्दे के गाने के पीछे पड़े है ।मैंने तो इसका नाम भी नहि सुना था । अपनी बेटी सोनल पासी से सुना की यह बीबर कोई बहुत फ़ेमस सिंगर है , दुनिया पगलाई पड़ी है इसके पीछे …..यह इंडिया आ रहा है वह भी मुंबई में । 
हमने सोचा हम इतना पढ़ते रहते है यह कौन है जिसका हमने नाम नहि सुना ।
गूगल किया तो पता चला जनाब यूटूब स्टार है पॉप सिंगर है दुनिया माइकल जैक्सन की तरह इनकी भी दीवानी है ।

थोड़ा और पता किया तो इनके नख़रे देखकर पैरों तले ज़मीन खिसक गई …और ऐसे नख़रीले इंसान का गाना देखने हज़ारों रुपए ख़र्च करके जाएँगे …..हद है …….

इसका शो है 10 मई को. मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में. और ये भाई वहां शो करने के लिए जो भारी डिमांड किहिस है न, की का बताए …क्या ज़रूरत थी …पर कुछ लोगों का बिज़नेस है ….हमारे देश में मुँ***** कमी थोड़ी है पैसे भी देंगे नख़रे सहेंगे ।

म्यूजिक जर्नलिस्ट अर्थात संगीत पत्रकार हैं अर्जुन एस रवि. उन्होंने अपने ट्विटर पर दो टेक्स्ट इमेज पोस्ट की हैं. उसमें जस्टिन बीबर की तरफ से जारी की गई प्रेस रिलीज का फोटू है. इन डिमांड्स को देखकर लग रहा है कि कनाडा से कोई ईस्ट इंडिया कंपनी आ रही है भारत को लूटने. मुंबई पुलिस से Z सिक्योरिटी के अलावा एक प्राइवेट जेट की मांग की है, जिससे साहब स्टेडियम तक जाएंगे. नहीं तो शान में बट्टा लग जाएगा. इसके अलावा क्या क्या है, पढ़ डालो.

#1 इस शो का टिकट प्राइज जियरा उघार है. मतलब बड़े बड़े लोगों का भी करेजा नेच ले जाए. और वो पैसा बबुआ की लग्जरी में खर्च होगा. 120 लोग इसके क्रू में होंगे. उनके लिए 2 लग्जरी वॉल्वो बसों की व्यवस्था करनी होगी. खुद हुजूरे आला जिल्ले इलाही को एक रॉल्स रायस चाहिए और एक प्राइवेट प्लेन. और जाएंगे पूरा स्टेडियम तक उड़कर.

#2 भाई वहां से अपना डेली यूज का जरूरी सामान ला रहा है. और उस सामान का मतलब तुम चड्डी, बंडी, मंजन, बुरुस और मोजा समझे हो तो मोजा सूंघ लो. ये मुरहू 5 दिन के टूर के लिए टेबल टेनिस खेलने वाली टेबल, प्ले स्टेशन, आईओ हॉक(ये दो पहियों वाली चीज होती है जिसपर पैर रखकर बैलेंस बनाते हैं और स्पीड में चलते हैं) सोफा सेट, वाशिंग मशीन, फ्रिज और मसाज टेबल भी लेकर आ रहे हैं. ऐसा लग रहा है भाई को अपने पड़ोसियों पर भरोसा नहीं है. वो सोच रहा है कि घर पर ये चीजें सुरक्षित नहीं हैं तो इनको साथ ही ले चलते हैं. भाई अपना घर भी उठा लाता.

#3 दुइ ठो फाइव स्टार होटल बुक किए जाएंगे. और उनके कमरों की स्पेशल वाली सजावट होगी. बढ़िया मुगलिया स्टाइल में. अरे होगी काहे नहीं भाई. जलालुद्दीन बादशाह अकबर की सवारी आ रही है तो करना ही पड़ेगा. साथ में पर्पल कार्नेशन और लिली जैसे फूलों की सजावट होगी. पूरी टीम के लिए स्पेशल वाले कपड़े और एक बूमबॉक्स, ये हाई क्वालिटी के मोबाइल स्पीकर होते हैं. साथ में भाई को आईफोन की बैट्री भी चाहिए. साला कोहिनूर भी लाकर भाई की चड्डी में सजा देते.

#4 भैया जी इस टूर के दौरान योगा भी करेंगे. इसके लिए कमरे में खुशबू वाले तेल, अगरबत्ती और चक्र, आसनों वाली किताबों की सप्लाई होनी चाहिए. इत्ते से मन भरेगा नहीं. केरल से मसाज करने वाली भी बुलाई गई है. इत्ती अय्याशी करोगे तो शो कितनी टाइम करोगे यार.

#5 इनके अलावा वनीला रूम फ्रेशनर्स और वाइल्डबेरीज़, डव बॉडी वॉश और हाईड्रेटिंग लिप बाम. भाई इनमें से कुछ चीजों का नाम मैंने पहले नहीं सुना. गूगल बाबा की हेल्प ली.

#6 अब देखो भाई ने मैथ्स की क्लास लेने के बाद जो लिस्ट बनाई है. ड्रेसिंग रूम में सफेद परदे लगेंगे. ग्लास डोर अर्थात शीशे के दरवाजे वाला फ्रिज होना चाहिए. फ्रिज में निम्नलिखित चीजें होनी चाहिए. 24 बोतल नॉर्मल और अल्कलाइन वॉटर. अल्कलाइन पानी की एक प्रजाति है. मिनरल वॉटर से थोड़ा ऊपर. 4 तरह की एनर्जी ड्रिंक्स, 6 विटामिन की बोतलें, 6 क्रीम सोडा, 4 नैचुरल जूस, 4 वनीला प्रोटीन ड्रिंक्स और आधा गैलन बादाम वाला दूध. मतलब योगा ओगा से जो टाइम बचेगा वो भाई खाने पीने में लगाएगा.

#7 अब सुनो भाई के खाने का मेनू. सांस चढ़ाकर बैठो और चिंता बिल्कुल मत करो. बहुत कम लोगों को बहुत कम समझ में आने वाला है. मौसमी सब्जियां वो भी ऑर्गैनिक, मने बिना केमिकल खाद की डाली हुई. इंजेक्शन वाली लौकी नहीं. कटे हुए फल, ऑर्गैनिक केले, बिना बिया के अंगूर. इसके आगे जो लिखा है वो खुद हमारी समझ में नहीं आया लेकिन बता देते हैं. ऑर्गैनिक टर्की, ये देश नहीं किसी रेयर फल की बात हो रही है. लेटूस की सब्जी, कॉल्बी और प्रोवोलोन चीज़( ये फाड़ू विदेशी चीज है आगे हमसे न पूछो) काला जैतून और हरा बनाना पेपर. पसीना पोंछ लें हम फिर आगे बताएं.

#8 स्नैक्स में भाई क्या लेगा. बस थोड़े से स्लाइस्ड ब्रेड, आलू चिप्स, मिन्ट और तरबूज गम, सफेद भूना पॉपकॉर्न, गिरारडेल्ली डार्क चॉकलेट समुद्री नमक के साथ, बादाम, मेंथॉल, विनेगर चिप्स, ऑर्गेनिक मेवे, मूंगफली और बहुत कुछ. इनके अलावा ढेर सारी स्वीडिश यम्मी फिश, रिट्ज़ बिट्ज पीनट बटर और चीज़ सैंडविच वगैरह. मैं क्यों लिख रहा हूं ऐसे अजीब से नाम यार जब समझ में नहीं आ रहा. ऐसा लग रहा है एक आदमी उसने सिर्फ ये लिस्ट बनाने में खर्च कर दिया.

इस शो के ऑर्गनाइजर या तो लल्लूलाल हैं या तो बड़े सयाने. जिनके कस्टमर बड़े पेट वाले लोग हैं. नहीं तो ये एंटरटेनर के नाम पर ये सरग की सीढ़ी की जगह कोई अच्छा कलाकार बुला लेते. हमारे यहां तो लोग अल्ताफ राजा को भी शौक से सुनते हैं और हिमेश रेशमिया को भी. उनके इतने नखरे भी नहीं होते.

देखना १० मई का हमारे देश का युवा और भविष्य इसकी एक झलक पाने के लिए भागता दिखाई देगा । जब माइकल जैक्सन मुंबई आया था कुछ लोगों बात कर ली थी कुछ लोगों को छू लिया था कई दिन स्नान ही नहि किए 

यह ऐसी पीढ़ी है जो न देश के बारे सोचती है .. न सरकार के बारे में ..न देश की आम जनता के बारे में .. ..इनके लिए भारत देश यानी बड़े शहर , ब्राण्डेड कपड़े ,जूते , घड़ी सिर्फ़ दिखावे के लिए । हम अलग है ऊँचे है दूसरों से ।
ऐसी पीढ़ी से देश के लिए क्या करेगी …?? जिनके हाँथों में देश का भविष्य है वह नाचने गाने वाले के आगे कुछ सोच ही नहि पा रहे ….तो क्या आशा करे ..

रायपुर की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे की  नक्सल समस्या की टिप्पणी पर सरकार नाराज !


मुझे लगता है कि एक बार हम सभी को अपना गिरेबान झांकना चाहिए, सच्चाई खुदबखुद सामने आ जाऐगी… घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं…भारतीय हैं । इसलिए कोई भी मरे तकलिफ हम सबको होत है । लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना… उनकी जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिलाऐं नक्सली है या नहीं इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दुध निकालकर देखा जाता है । टाईगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों के जल जंगल जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है जबकि संविधान अनुसार 5 वी अनुसूची में शामिल होने के कारण सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल जंगल और जमींन को हड़पने का…. 

आखिर ये सबकुछ क्यों हो रहा है । नक्सलवाद खत्म करने के लिए… लगता नहीं । सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक खनिज संसाधन इन्ही जंगलों में है जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है । आदिवासी जल जंगल जमींन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है । वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी केशों में चार दिवारी में सड़ने भेजा जा रहा है । तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाऐ… ये सब मैं नहीं कह रही CBI रिपोर्ट कहता है, सुप्रीम कोर्ट कहता है, जमीनी हकीकत कहता है । जो भी आदिवासियों की समस्या समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं चाहे वह मानव अधिकार कार्यकर्ता हो चाहे पत्रकार… उन्हे फर्जी नक्सली केशों में जेल में ठूस दिया जाता है । अगर आदिवासी क्षेत्रों में सबकुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है । ऐसा क्या कारण है कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता ।

मैनें स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था । उनके दोनों हाथों की कलाईयों और स्तनों पर करेंट लगाया गया था जिसके निशान मैने स्वयं देखे । मैं भीतर तक सिहर उठी थी। कि इन छोटी छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किस लिए। मैनें डाक्टर से उचित उपचार व आवश्यक कार्यवाही के लिए कहा ।


हमारे देश का संविधान और कानून यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें…।

इसलिए सभी को जागना होगा ।राज्य में 5 वी अनुसूची लागू होनी चाहिए । आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए । उन पर जबरदस्ती विकास ना थोपा जावे । आदिवासी प्रकृति के संरक्षक हैं । हमें भी प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए ना कि संहारक । पूँजीपतियों के दलालों की दोगली नीति को समझे । किसान जवान सब भाई भाई है । अतः एक दुसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और ना ही विकास होगा। संविधान में न्याय सबके लिए है।इसलिए न्याय सबके साथ हो ।

हम भी इसी सिस्टम के शिकार हुए । लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े, षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई प्रलोभन रिश्वत का आफर भी दिया गया वह भी माननीय मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर छ.ग. के समक्ष निर्णय दिनांक 26.08.2016 का para no. 69 स्वयं देख सकते हैं । लेकिन हमने इनके सारे ईरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई ।आगे भी होगी ।

अब भी समय है। सच्चाई को समझे नहीं तो शतरंज की मोहरों की भांति इस्तेमाल कर पूंजीपतियों के दलाल इस देश से इन्सानियत ही खत्म कर देंगे ।

ना हम अन्याय करेंगे और ना सहेंगे….

जय संविधान जय भारत
रायपुर जेल की डिप्टी जेलर
वर्षा डोंगरे की वाल से

मोदी सरकार पर जोरदार व्यंगात्मक टिप्पणी!

J&K में हुए आतंकवादी हमले की सरकार ने कड़ी निंदा की है, इस कड़ी निंदा से आतंकवादी संगठन थर-थर कांप गये । सरकार ने ठोस कदम उठाने की बात है, जिससे करीब 2000 आतंकवादी घायल हो गए है ।

इस कड़ी निन्दा से आतंकवादी संगठनो में दहशत छा गयी है और वो लोग बोल रहे हैं की हमे कड़ी निंदा से बहुत डर लगता है, हमारी कड़ी निंदा बन्द की जाए वरना हम आत्मसमर्पण 🏳 कर देंगे।

सरकार ने जो 2 बड़े हथियार आतंकवादी संगठनो के विरुद्ध उपयोग किए, वो हैं …..

(1) कड़ी निंदा

(2) ठोस कदम

आशा है, इन दो खतरनाक हथियारो से आतंकवादी संगठन जल्दी समाप्त हो जाएंगे।गृहमंत्री माननीय राजनाथ सिंह जी ने जो आतंकबादी तथा नक्सलवादियों की जिस प्रकार घोर निंदा की इससे डरकर पाकिस्तान के सभी आतंकवादियो ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा पडोसीदेश चीन ने भी घुटने टेक दिए तथा उसकी सेना ने भी आत्म समर्पण कर दिया बहीं बांग्लादेश ने भी हमारे नेताओं के आगे अपने आप को आत्मसमपर्ण कर दिया।इस प्रकार की निंदा की कार्यबाही से डरकर समस्त यूरोपीय देशों ने तथा अमेरिका ने भी भारत के आगे आत्मसमर्पण करने का सरकार से कल तक का समय मांगा है।इस प्रकार हमारे देश के नेताओ का उत्साह अपने चरम पर है और वह सभी एक स्वर में घोर घोर निंदा कर विश्व के और देशो को भी घुटने टेकने को मजबूर कर रहे हैं।धन्य है भारत देश धन्य है भारत देश के नेता।

अभिनेत्री काजोल प्रकरण से एक बार फिर साबित हुआ की ब्राह्मण भी न सिर्फ़ माँसाहारी होते है बल्कि बीफ़ भी खाते है ।

हमारे उत्तर भारत में ख़ास तौर पर लोग मानते है की ब्राह्मण शुद्ध शाकाहारी होते है । ब्राह्मण भी कभी माँस खाते थे ऐसा सोच भी नहि सकते । जबकि ग्रंथो में भी माँस खाने और पशु बलि का ज़िक्र है । नेपाल के मंदिरो में तो आज भी पशु बलि चढ़ाई जाती है । 
पर उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में इस पर विश्वास नहि किया जाता उन्हें लगता है की ब्राह्मण सिर्फ़ शाकाहारी होते है । जबकि आज भी बंगाल और महाराष्ट्र के कोंकण के ब्राह्मण माँसाहारी होते है ।
जब बात बीफ़ की आती है तो टार्गट सिर्फ़ मुसलमान होते है या २-४% केसेस में दलित भी । जबकि कई रिपोर्ट आइ है जिनसे पता चलता है की बीफ़ के व्यापार में सबसे बड़ा बिज़नेस ब्राह्मण के ही है । यहाँ तक की कुछ ब्राह्मण व्यापारी दुनिया के टॉप १० बीफ़ व्यापारियों में आते है ।पर बीफ़ के लिए टार्गट सिर्फ़ दलित और मुस्लिम ही होते है ।
कल अभिनेत्री काजोल का एक विडीओ वाइरल हुआ था जिसमें वह बीफ़ पार्टी के आयोजन का हिस्सा थी । उनके प्लेट में बीफ़ परोसा हुआ था । हालाँकि ज़्यादा विरोध होने पर काजोल ने वह विडीओ अपने अकाउंट से हटा लिया । पर फिर भी कई लोगों तक पहुँच चुका था । इसलिए कल कलेरिफिकेशन देते हुए काजोल ने कहा वह मीट बीफ़ का था पर भैंसे का था जिस पर कोई बंदिश नहि है देश में । 
बता दे की महाराष्ट्र सहित कुछ प्रदेशों में गाय और बैल के माँस पर पाबंदी है पर भैंस के मटन पर नहि ।
काजोल ने ऐक्सेप्ट किया की वह सिर्फ़ भैंसे का मटन था । यह बताने की ज़रूरत नहि की काजोल बंगाल के ब्राह्मण सोमू मुखर्जी परिवार से संबंध रखती है।
आप सोचिए अगर यही बात किसी मुस्लिम या दलित ने ऐक्सेप्ट की होती तो मीडिया और धर्म के ठेकेदार कितना बवाल मचाते । अख़लाक़ और पहलू खान और गुजरात के बहूजनो पर हुए हमले को अभी ज़्यादा दिन नहि हुए है ।

इससे तो यही लगता है कि ब्राह्मण ही इस देश में ऐसा है जो कुछ भी खा सकता है पर बाक़ियों ने हिम्मत की तो .?

राजेश पासी,मुंबई

ताकि हम कभी तो हों पाएं कामयाब एक दिन..!


आज फिर एक मई है। आज फिर श्रम दिवस है। इसमें नया क्या है! इसमें कुछ भी तो नया नहीं है। हर साल आता है। हर साल इस दिन के पहले वाली शाम को मजदूरी करती महिलाएं या पुरुषों की फोटो अखबारों में फाइल होती हैं। हम उसे छापते रहे हैं, अब तो छापते भी नहीं। अब तो हममें श्रम दिवस के औपचारिक सम्मान की भी शर्म नहीं बची। श्रम दिवसों के विभिन्न आयोजनों में ‘हम होंगे कामयाब एक दिन’ गाते हुए अपने आप को कोसते हुए से घर लौट आते हैं। हम ऐसे ही श्रमिक हैं। या कुछ ऐसे भी छद्मी श्रमिक हमारी जमात में शामिल हैं, जो सत्ता-पूंजी-पीठों के दलाल हैं, उन्हीं का खाते हैं, उन्हीं का गाते हैं और हमें भरमाते हैं। हमारा जागना भी मर रहा है और हमारा सपना भी मर रहा है. यह किसी के सरोकार का मसला नहीं रहा, यह सत्ता, व्यवस्था और समाज की चिंता का विषय नहीं रहा। चिंताजनक और अफसोसजनक बात यह है। पिछले दिनों जब वोट पड़ रहे थे तब लाइन में खड़े एक मजदूर किस्म के अधेड़ से आदमी ने झुंझला कर कहा था, ‘देर हो रही है, काम नहीं हुआ तो खाएंगे क्या आज! वोट तो हर साल देते हैं, वोट ही देते-देते तो आज खाने-खाने को मोहताज हो गए। क्या मिलेगा वोट डालने से। बस हर बार कुछ न कुछ प्रलोभन के चक्कर में फंस कर आ जाते हैं। अब तो बंद कर देंगे वोट डालना। कुछ बदलना ही नहीं है तो वोट क्यों डालना? एक श्रमिक की बोली यह संदेश दे रही थी कि अब देश के श्रमिकों का सपना मर रहा है। पत्रकार भी खुद को श्रमजीवी कहते हैं। गंदे रास्ते से पत्रकारों के वित्तीय स्रोत बंद हो जाएं तो उनकी भी दशा उसी मजदूर की तरह है, जिसे अब सपने देखना भी गवारा नहीं। श्रम दिवस के दिन श्रमजीवियों के मरते स्वप्न पर हृदय से सहानुभूति प्रकट करता हूं. यह ठीक वैसे ही है जैसे जिंदा रहते हुए अपना श्राद्ध करना… अवतार सिंह पाश की एक कविता है, उसमें थोड़ा सामयिक-फेरबदल करके, आपके सामने रखता हूं। पाश, ऐसा श्रमचेता कवि है जो सपनों के मुर्दा होने के खिलाफ जीता है और जिसे युवावस्था में ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। हम-सब वह कविता पढ़ें और जतन करें कि हमारे सपने जिंदा रह पाएं, ताकि हम कभी तो हो पाएं कामयाब एक दिन..! 

…कपट के शोर में, सही होते हुए भी दब जाना- बुरा है,

मुट्ठियां भींचकर बस वक्त गुजार लेना- बुरा है।

सबसे खतरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना,

तड़प का न होना, सब सहन कर जाना।

सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना।

सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है,

जो हमारी कलाई पर चलती हुई भी,

हमारी नजर में रुकी होती है।

सबसे खतरनाक वो आंख होती है,

जो सबकुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है, 

जिसकी नजर दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है,

जो लोगों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है, 

जो रोजमर्रा के चलन को पीती हुई, जीती हुई, 

एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है।

सबसे खतरनाक वो चांद होता है, 

जो हर हत्याकांड के बाद,

वीरान हुए आंगन में चढ़ता है,

लेकिन हमारी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं चुभता।

सबसे खतरनाक वो गीत होता है,

जो हमारे कानों तक पहुंचने के लिए मरसिए पढ़ता है,  

डरे-सहमे लोगों के दरवाजों पर गुंडों की तरह अकड़ता है।

सबसे खतरनाक वह रात होती है, जो जिंदा रूह के कलेजों पर ढलती है, 

जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते हैं और हुआं-हुआं करते हैं गीदड़, 

हमारे मन के दरवाजे-चौखठों पर वही उल्लू साधने वाली बोलियां,

और हुआं-हुआं की रुदालियां चिपक जाती हैं।

सबसे खतरनाक वो दिशा होती है, 

जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए,

और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा

आपके जिस्म के बाएं हिस्से में चुभ जाए।

सबसे खतरनाक होता है, 

हमारे जीते-जी हमारा स्वप्न मर जाए…
-वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन

मज़दूर दिवस पर एक रचना “बाँध”

जो श्रम के मोर्चे पर आगे रखे जाएँगे,

निश्चित है दुर्घटना में वही मारे जाएँगे।

जब होगा बाँधो कारख़ानो का निर्माण,

दीहाड़ी मज़दूर ही देंगे सर्वोच्च बलिदान।

कहीं मज़दूर चुपचाप दफ़न किए जाएँगे,

कहीं अभागे होंगे जो कफ़न नहि पाएँगे ।

प्रबन्धक इंजीनियर होंगे ख़तरे से दूर ,

ख़तरा वही लेंगे जो होंगे मज़बुर ।

बाँध के लेख पर नेता का नाम लिखा होगा ,

बलिदानी मज़दूरों का ज़िक्र नहि होगा ।

मज़दूर दीहाड़ी लेकर चले जाएँगे,

इंजीनियर बाँध निर्माता कहलायेगें।

– दयाराम रावत

Mobile-+91 96509 99404

जानिए पासी सत्ता के आगे ‘श्री ‘ शब्द क्यों लगाया गया 


प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक प्रो0 राजेन्द्र सिंह के अनुसार-
पालि में जो ” थेर/थेरी ” है, वही उत्तर भारत में ” श्री ” है, दक्षिण में ” तिरु ” है और लोक बोलियों में ” सिरी ” है।
नामों के अंत में ” श्री ” जोड़ने की परंपरा बौद्धों की है।
पालि साहित्य में पटचारा थेरी, सुभा थेरी, उसभ थेर, चित्तक थेर आदि में थेर/ थेरी नामों के अंत में जुड़ा है।
बाद में भी थेर/ थेरी का संस्कारित रूप श्री बौद्ध नामों के अंत में मिलेगा जैसे मंजू श्री, राज्य श्री।
बौद्धों की यह परंपरा काफी बाद में हिंदी में आई है। सुश्री वगैरह का लेखन तो आधुनिक काल के छायावाद युग में आया है।