प्रतिशोध का प्रतीक है वीरांगना फूलन देवी की अमर गाथा

25 जुलाई ​शहादत दिवस पर विशेष} 

राम विलास पासवान को राखी बांधती हुई फूलन देवी

फूलन देवी (10 अगस्त 1963  25 जुलाई 2001) 

वीरांगना फूलन देवी डकैत से सांसद बनी एक भारत की एक राजनेता थीं। एक निम्न जाति में उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव गोरहा का पूर्वा में एक मल्लाह के घर हुअा था। फूलन की शादी ग्यारह साल की उम्र में हुई थी लेकिन उनके पति और पति के परिवार ने उन्हें छोड़ दिया था। बहुत तरह की प्रताड़ना और कष्ट झेलने के बाद फूलन देवी का झुकाव डकैतों की तरफ हुआ था। धीरे धीरे फूलनदेवी ने अपने खुद का एक गिरोह खड़ा कर लिया और उसकी नेता बनीं।

गिरोह बनाने से पहले गांव के कुछ लोगों ने कथित तौर पर फूलन के साथ दुराचार किया। फूलन इसी का बदला लेने इसी का बदला लेने की मंशा से फूलन ने बीहड का रास्‍ता अपनाया। डकैत गिरोह में उसकी सर्वाधिक नजदीकी विक्रम मल्‍लाह से रही। माना जाता है कि पुलिस मुठभेड में विक्रम की मौत के बाद फूलन टूट गई।

आमतौर पर फूलनदेवी को डकैत के रूप में (रॉबिनहुड) की तरह गरीबों का पैरोकार समझा जाता था। सबसे पहली बार (1981) में वे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में तब आई जब उन्होने ऊँची जातियों के बाइस लोगों का एक साथ तथाकथित (नरसंहार) किया जो (ठाकुर) जाति के (ज़मींदार) लोग थे। लेकिन बाद में उन्होने इस नरसंहार से इन्कार किया था।

बाद में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार तथा प्रतिद्वंदी गिरोहों ने फूलन को पकड़ने की बहुत सी नाकाम कोशिशे की। इंदिरा गाँधी की सरकार ने (1983) में उनसे समझौता किया की उसे (मृत्यु दंड) नहीं दिया जायेगा और उनके परिवार के सदस्यों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जायेगा और फूलनदेवी ने इस शर्त के तहत अपने दस हजार समर्थकों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।

सांसद फूलन देवी जी की अर्थी को कंधा देते मुलायम सिंह यादव

बिना मुकदमा चलाये ग्यारह साल तक जेल में रहने के बाद फूलन को 1994 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने रिहा कर दिया। ऐसा उस समय हुआ जब दलित लोग फूलन के समर्थन में गोलबंद हो रहे थे और फूलन इस समुदाय के प्रतीक के रूप में देखी जाती थी। फूलन ने अपनी रिहाई के बौद्ध धर्म में अपना धर्मातंरण किया। 1996 में फूलन ने उत्तर प्रदेश के भदोही सीट से (लोकसभा) का चुनाव जीता और वह संसद पहुँची। 25 जुलाई सन 2001 को दिल्ली में उनके आवास पर फूलन की हत्या कर दी गयी। उसके परिवार में सिर्फ़ उसके पति उम्मेद सिंह हैं। 1994 में शेखर कपूर ने फूलन पर आधारित एक फिल्म बैंडिट क्वीन बनाई जो काफी चर्चित और विवादित रही। फूलन ने इस फिल्म पर बहुत सारी आपत्तियां दर्ज कराईं और भारत सरकार द्वारा भारत में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गयी। फूलन के साथ जमिदारों ने बलात्कार किया था।

दिल्‍ली के तिहाड़ जेल में कैद अपराधी शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्‍या की। हत्‍या से पहले वह देश की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली तिहाड़ जेल से फर्जी तरीके से जमानत पर रिहा होने में कामयाब हो गया। 

सांसद फूलन देवी का हत्यारा शेर सिंह राणा

हत्‍या के बाद शेर सिंह फरार हो गया। कुछ समय बाद शेर सिंह ने एक वीडियो क्‍िलप जारी करके अंतिम हिन्‍दू सम्राट पृथ्‍वीराज चौहान की समाधी ढूढंकर उनकी अस्थियां भारत लेकर आने की कोशिश का दावा किया। हालांकि बाद में दिल्‍ली पुलिस ने उसे पकड़ लिया। फूलन की हत्‍या का राजनीतिक षडयंत्र भी माना जाता है। उसकी हत्‍या के छींटे उसके पति उम्‍मेद सिंह पर भी आए। हालांकि उम्‍मेद आरोपित नहीं हुआ।

आज 25 जुलाई को उनकी शहादत दिवस पर शत शत नमन

सत्ता में जुगाड़ से बनते है सरकारी वकील

हाई कोर्ट्स में लॉ ऑफिसर्स ( स्टैंडिंग कौंसिल्स / गवर्नमेंट एडवोकेट्स एवं ब्रीफ होल्डर्स) का एप्वाइंटमेंट बेहद ही महत्वपूर्ण दायित्व वाला पब्लिक सर्विस का पद है जिसकी नियुक्तियों में संविधान के प्राविधानों का पालन अनिवार्य है । 

लेकिन अफ़सोस की पंजाब एवं बिहार राज्यों को छोड़कर देश के तमाम राज्यों में राज्य सरकारों के पास हाई कोर्ट्स में लॉ ऑफिसर्स की नियुक्ति के लिए आज तक कोई पारदर्शी एवं लिखित प्रक्रिया नहीं है जिसमे उत्तर प्रदेश भी शामिल है।

 प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होते ही लगभग सभी सत्ताधारी विधायकों एवं नेताओं के यहां सरकारी वकील बनाने के लिए ‘निजी रोजगार दफ्तर’ खोल दिए जाते हैं और प्रदेश के लगभग सभी वकील लोग अपने-२ जुगाड़ टेक्नोलॉजी के प्रभाव -दबाव के लाव लश्कर के साथ अपना-२ बायोडाटा लेकर सत्ताधारी राजनेताओं -विधायकों-मंत्रियों के उक्त रोजगार कार्यलयों में दरबार लगा चापलूसी की पराकाष्ठा करते रहते हैं। 

चापलूसी एवं जुगाड़ टेक्नोलॉजी का यही गंदा एवं घिनौना खेल हाई कोर्ट्स में सरकारी वकील (लॉ ऑफिसर्स) महीने -दो महीने चलता है और बड़े से बड़े चापलूस, अपनी-2 चापलूसी की अति महान योग्यता एवं भारी भरकम जुगाड़ से “योग्यता / मेरिट” की सीढ़ी को पकड़ कर हाई कोर्ट्स में सरकारी वकील [लॉ ऑफिसर्स] बन जाते हैं ।

जिसका सीधा -2 अर्थ हुआ की देश की हायर जुडिसियरी में भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं क्यूंकि हाई कोर्ट्स में लॉ ऑफिसर्स (सरकारी वकील)की “चयन एवं नियुक्ति” के लिए ना कोई पारदर्शी / लिखित नियम हैं ना प्रक्रिया है । 

जिसके चलते संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 का अवमानना है।  क्यूंकि इन सरकारी वकीलों की नियुक्ति में एस सी / एस टी / ओबीसी वर्ग के आरक्षण के प्रावधान बिलकुल ही लागू नहीं किये जाते हैं । इस मांग को लेकर कुछ वकीलों ने कल लखनऊ में धरना परदर्शन भी किया। 

ऐसे में देश की उच्च न्यायपालिकाओं के बारे में वर्ग विशेष का कब्जा बना रहता है। और वंचित समुदाय के लोगो की भागीदारी नही मिल पाती है। जिससे संवैधानिक प्रक्रियाओं में बंधा उतपन्न होती रहेगी। न्यायपालिका में मानक और योग्यता के अनुसार अभी समुदाय के वकीलों की भागीदारी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। 

समर्थक इस नेता को पासी टाइगर कहते है 

पोस्टर में निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष बंशीधर राज के साथ समर्थक गंगाराम राजवंशी

जनपद लखीमपुर खीरी ही नहीं पूरे भारत में पासियों के लिए संघर्ष करने वाले माननीय बंशीधर राज (बाबू जी) पूर्व मंत्री का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है।
जब आरक्षण नहीं लागू हुआ था उस समय गन्ना सोसायटी के चुनाव से शुरुआत करने वाले माननीय बंशीधर राज प्रथम बार सामान्य सीट पर ब्लॉक बेहजम से प्रमुख चुने गए।  उसके उपरांत मोहम्मदी विधानसभा से वे पांच बार विधायक भी बने इसके बाद दो बार जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रहे, सामान्य निर्वाचन 1995 में जिला पंचायत के अध्यक्ष भी रहे ,उत्तर प्रदेश में परिवहन विभाग के मंत्री भंडारागार निगम के अध्यक्ष, अनुसूचित वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष जैसे पदों पर रहकर जनता के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाई ।

इसी दौरान शुरुआत में बाबू जी ने पूर्व सांसद माननीय संकटा प्रसाद जी एवं इलाहाबाद के माननीय धर्मवीर जी, मसूरिया दीन पासी जी इत्यादि लोगों ने पासी समाज के लिए बहुत संघर्ष किया इंदिरा जी के समय में एक समय ऐसा आया जब उत्तर प्रदेश में कुछ लोगों ने हमारे पासी समाज को अनुसूचित जाति से निकलवाने का प्लान बनाया जिसके संघर्ष में बाबूजी एवं उपरोक्त सांसदों एवं धर्मवीर जी ने मिलकर माननीय प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा जी से मिलकर पासी समाज का पक्ष रखा और उसे अनुसूचित जाति में ही रहने देने के लिए कहा इन लोगों का संघर्ष काम आया और इंदिरा जी ने यह कहा कि पासी समाज अनुसूचित जाति का ही हिस्सा रहेगा । 

आज भी जनपद लखीमपुर खीरी ही नहीं आसपास के  जिलों में  उनके समर्थकों की संख्या भारी तादाद में है  लखीमपुर जनपद में  आज भी इनके एक इशारे पर  लाखों मतदाता अपना वोट देता है  इन्होंने  पासी समाज के इतिहास को बढ़ाने के लिए छाउछ चौराहा लखीमपुर में  महाराजा वीर शिरोमणि  बिजली पासी की  भव्य मूर्ति का  निर्माण भी करवाया  और पासी समाज के सम्मान को  ऊंचे उठाने का काम किया ।

सन 2016 में इन्हें पुनः एक बार फिर जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया गया वर्तमान में लोगों की तुच्छ राजनीति से आजिज होकर उन्होंने 2017 में जिला पंचायत अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और अपने मान और सम्मान को बनाए रखा और पासी समाज के स्वाभिमान को भी बनाए रखने में अपनी अहम भूमिका निभाई समाज के ऐसे योद्धा को कोटि कोटि प्रणाम ……गंगाराम राजवंशी की कलम से

मायावती राज्यसभा से इस्तीफा दे ना गहरी राजनीति तो नहीं ?

Date -19/07/2017, Shripasi satta ,Allahabad

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी ( बसपा ) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने मंगलवार को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. राज्यसभा के सभापति को भेजे गए तीन पन्ने के इस्तीफे में उन्होंने सहारनपुर कांड और देश के अन्य हिस्सों में दलितों पर हो रहे अत्याचार पर उन्हें न बोले देने की बात कही है. लिखा है कि उन्हें इस गम्भीर मुद्दे पर बोलने के लिए सिर्फ तीन मिनट का समय दिया गया. क्या इतने कम समय में इस मुद्दे पर बोला जा सकता है ? इस पर सत्ता पक्ष के सदस्य लगातार शोर मचाते रहे. सभापति से आग्रह के बाद भी उन्हें तो बोलने से नहीं रोका गया, लेकिन मुझे बैठने के लिए कह दिया गया. जब सदन में बोल ही नहीं सकते तो हम सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे . शाम होते-होते उन्होंने राज्यसभा के सभापति को इस्तीफा भेज दिया.
*उप चुनाव में भाजपा, बसपा और गठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर*
यह इस्तीफा कई बिंदुओं पर मंथन करने को विवश करता है. परिणाम जो भी निकले, लेकिन राजनीति में हर कदम फूंक-फूंक कर उठाया जाता है. मायावती का यह कदम भी भावावेश में उठाया गया कदम तो नहीं ही होगा. वह लंबे समय से राजनीति में हैं. इसलिए अच्छी तरह से जानतीं होंगी कि वह किस मुद्दे पर बोलने जा रहीं हैं और सत्ता पक्ष की ओर से इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी. इसके बाद उन्हें क्या फैसला लेना है.

2012 में पराजय के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था. उस वक्त वह विधानपरिषद सदस्य थीं. उन्होंने विधानपरिषद की सदस्यता से इस्तीफा दिया और राज्यसभा के लिए फार्म भरा. उस वक्त बसपा के 89 सदस्य थे और वह राज्यसभा के लिए चुन ली गईं. अब यह कार्यकाल 3 अप्रैल 2018 को समाप्त हो रहा है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मात्र 19 सीट पर ही बसपा सदस्य जीत हासिल कर सके. ये संख्या इतनी कम है कि न तो वह विधानपरिषद और न ही राज्यसभा सदस्य बन सकती हैं. अब उनके सामने 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ना ही एकमात्र विकल्प है. उनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने में सिर्फ 8-9 महीने बचे हैं, इसलिए इस्तीफा देने में कोई हर्ज नहीं है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य वर्तमान में क्रमशः गोरखपुर और इलाहाबाद जिले के फूलपुर से सांसद हैं. उपरोक्त पद पर बने रहने के लिए सांसद की सीट से इस्तीफा देकर विधानसभा चुनाव जीतना होगा. लोकसभा की खाली हुई सीट के लिए भी उप चुनाव होगा. आम लोगों के बीच चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ की खाली हुई सीट पर तो भाजपा फिर से परचम लहराएगी, लेकिन फूलपुर सीट से मायावती मैदान में उतर सकती हैं और उन्हें विपक्ष के सभी दलों का समर्थन भी मिल सकता है. ऐसी स्थिति में भाजपा को इस सीट को बचाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है. मायावती के राजनीतिक कैरियर के लिए भी यह खास है. यदि वह इस उप चुनाव में विजयी हुईं तो 2019 का लोकसभा का आम चुनाव भाजपा की कड़ी परीक्षा लेगा. यदि हार गईं तो कैरियर खत्म. यानी उप चुनाव में भाजपा, बसपा और यदि गठबंधन बना तो, तीनों की प्रतिष्ठा दांव पर है.
*इस्तीफा स्वीकार होगा*
मायावती ने तीन पन्ने का इस्तीफा दिया है. नियम के मुताबिक त्यागपत्र सिर्फ दो लाइन का होता है. इसमें सफाई और कारण का विवरण नहीं होता. ऐसे में क्या इस्तीफा स्वीकार होगा ? या सिर्फ शिगूफा है ? दलितों तक सिर्फ संदेश पहुंचाना है कि उनकी आवाज को सदन में दबाया जा रहा है और वे अगले लोकसभा चुनाव में बसपा को ही जिताएं, जिससे कोई उनको न तो नुकसान पहुंचा सके और न ही उनकी आवाज को दबा सके. खैर ये तो चर्चा और आकलन है, कारण तो मायावती जानतीं होंगी या समय बता देगा.

रिपोर्ट_ उमा शंकर 

जानिए कैसे रहें दुनिया में सबसे खुशहाल ?

एक पुराना ग्रुप, कॉलेज छोड़ने के बहुत दिनों बाद मिला। वे सभी अच्छे कैरियर के साथ खूब पैसे कमा रहे थे।

वे अपने सबसे फेवरेट प्रोफेसर के घर जाकर मिले।
प्रोफेसर साहब उनके काम के बारे में पूछने लगे। धीरे-धीरे बात लाइफ में बढ़ती स्ट्रेस (तनाव)और काम के प्रेशर पर आ गयी।
इस मुद्दे पर सभी एक मत थे कि, भले वे अब आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हों पर उनकी लाइफ में अब वो मजा नहीं रह गया जो पहले हुआ करता था।
प्रोफेसर साहब बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे, वे अचानक ही उठे और थोड़ी देर बाद किचन से लौटे और बोले,
“डीयर स्टूडेंट्स, मैं आपके लिए गरमा-गरम 

कॉफ़ी बना कर लाया हूँ , 

लेकिन प्लीज आप सब किचन में जाकर अपने-अपने लिए कप्स लेते आइये।”
लड़के तेजी से अंदर गए, वहाँ कई तरह के कप रखे हुए थे, सभी अपने लिए अच्छा से अच्छा कप उठाने में लग गये,
किसी ने क्रिस्टल का शानदार कप उठाया तो किसी ने पोर्सिलेन का कप सेलेक्ट किया, तो किसी ने शीशे का कप उठाया।
सभी के हाथों में कॉफी आ गयी । तो प्रोफ़ेसर साहब बोले-

“अगर आपने ध्यान दिया हो तो, जो कप दिखने में अच्छे और महंगे थे। आपने उन्हें ही चुना और साधारण दिखने वाले कप्स की तरफ ध्यान नहीं दिया।जहाँ एक तरफ अपने लिए सबसे अच्छे की चाह रखना 
एक नॉर्मल बात है। वहीँ दूसरी तरफ ये हमारी लाइफ में प्रोब्लम्स और स्ट्रेस लेकर आता है।
फ्रेंड्स, ये तो पक्का है कि कप, कॉफी की क्वालिटी 

में कोई बदलाव नहीं लाता। ये तो बस एक जरिया है जिसके माध्यम से आप कॉफी पीते है। 

असल में जो आपको चाहिए था। वो बस कॉफ़ी थी, कप नहीं, पर फिर भी आप सब सबसे अच्छे कप के पीछे ही गए 

और अपना लेने के बाद दूसरों के कप निहारने लगे।”
अब इस बात को ध्यान से सुनिये … 

“ये लाइफ कॉफ़ी की तरह है ; 

हमारी नौकरी, पैसा, पोजीशन, कप की तरह हैं।
ये बस लाइफ जीने के साधन हैं, खुद लाइफ नहीं ! 

और हमारे पास कौन सा कप है। ये न हमारी लाइफ को डिफाइन करता है और ना ही उसे चेंज करता है।इसीलिए कॉफी की चिंता करिये कप की नहीं।”


दुनियां में खुशहाल वो लोग नही होते

जिनके पास सबकुछ सबसे बढ़िया होता है, 
खुशहाल वे होते हैं, जिनके पास जो होता है।

 बस उसका सबसे अच्छे से यूज़ करते हैं, 

एन्जॉय करते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं!

सदा हंसते रहो। सादगी से जियो।
सबसे प्रेम करो। सबकी फिक्र करो।
जीवन का आनन्द लो ।

महेंद्र यादव की लोककथा – एक तेजस्वी, सब पर भारी 

तेजस्वी यादव का इस्तीफा चाहिए? ठीक है, पर नरोत्तम मिश्रा को तो मंत्री पद से हटा दीजिए न. आरोप साबित हो गए हैं। कदाचारी साबित हुए हैं। विधायकी चली गई है। बहुत बदनामी हो रही है।
*-देखिए, वो मामला अलग है।

-तो सुषमा स्वराज को ही हटा दीजिए, ललित मोदी की हेल्पर हैं। उनकी बेटी ललित मोदी की वकील हैं। सुषमा ने इस भगोड़े के लिए सिफारिशी चिट्ठी लिखी थी। 

*-वो मामला भिन्न है।

-वसुंधरा को ही देख लेते..वो भी ललित की हेल्पर हैं। वसुंधरा के बेटे की कंपनी में ललित का इनवेस्टमेंट है। ललित मान चुका है कि वह वसुंधरा का साथी है।

*-वो भी मामला जुदा ही है।
-डीडीसीए वाले मामले पर आपके ही सांसद कीर्ति आजाद ने अरुण जेटली जी के बारे में कुछ गंभीर आरोप लगाए हैं। माल्या को भी उन्होंने ही भगाया है…

*-वो मामला तो “उलटा” ही है।
-येल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट करने वाली ईरानी मैम का तो बनता है..

*-वो मामला तो एकदम ही “अनरिलेटेड” है। कुछौ रिलेशन हो तो बताइए, सिर काटकर चरणों में रख देंगे।
-तो मंत्री निहालचंद तो बलात्कार के मामले में फंसा है. कम से कम उसे तो.

*-वो मामला तो डिफरेंट है।
-व्यापम और डंपर घोटाले वाले शिवराज को. इतने लोग मार डाले गए व्यापम में।

*-वो मामला तो एकदम अलहदा है।
– पर, रमन सिंह तो धान-नान घोटाले के साथ-साथ न जाने कितने आदिवासियों को खाए बैठे हैं…

*-वो मामला तो मुख्तलिफ है।
-गडकरी जी तो साफ-साफ घोटाला किए, ड्राइवर को डायरेक्टर दिखाया..पूर्ति घोटाला तो उन्हीं का किया है न। सिंचाई स्कैम भी उसके सिर पर है। .

*- वो मामला तो अलग किस्म का है।
– जोगी ठाकुर आदित्यनाथ पर तो इतने केस हैं कि गिन ही नहीं सकते। अटैंप्ट टू मर्डर भी लगा है। उनकी अपनी एफिडेविट देख लीजिए..

*-वो मामला तो स्पेशल है

-उनके डिप्टी केशव मौर्या पर तो मर्डर तक का..

*-इसमें उसमें फर्क है
-खुद साहब पर भी तो दंगों समेत न जाने कितने केस में हैं। अनार पटेल को 400 एकड़ जमीन 92% डिस्काउंट में दे दी. सहारा डायरी में साहब के पैसा लेने का तो प्रमाण भी है. अडानी का प्लेन भी चुनाव में खूब उड़ाया था….

*वो तो मामला ही उस प्रकार का है. ..
देखिए.. ये सब छोड़िए..केवल तेजस्वी का इस्तीफा दिलाने से सब हो जाएगा। वो क्या है कि एक तरफ ये अकेला है..दूसरी तरफ इतनी लंबी फौज. एक तराजू पर तेजस्वी है..दूसरी पर ये सारे..
अब इतने सारे लोगों को इस्तीफा कराएंगे तो दिक्कत हो जाएगी न..इसलिए केवल तेजस्वी ही इस्तीफा दे दे तो उससे ही राजनीति स्वच्छ मान ली जाएगी। इससे क्या फर्क पड़ता है कि उस पर 2006 का एक केस हमने लगवाया है, जब उसकी उम्र यही कोई 13-14 साल रही होगी. क्रिकेट खेलता था शायद वह बच्चा.

-Mahendra Yadav

भू -माफ़ियाओं के उत्पीड़न के खिलाफ़ डीसी छात्रावास के दलित छात्रों ने सांसद विनोद सोनकर से की शिकायत

 

बालसन चौराहे पर स्थित 8 कमरे का छात्रावास जिसमें अनुसूचित जाति के छात्र रहकर अध्ययन करते है।  लेकिन दलित छात्रों का यहाँ रहकर पढ़ना ,कुछ भू -माफियाओं को अच्छा नही लग रहा है।
 कुछ वर्षों से इस हॉस्टल पर दबंग किस्म के पूंजीपतियों और भू माफियाओं की बुरी नज़र है। हॉस्टल 70 साल पुराना है। सत्र 1952 में तत्कालीन सांसद रहें स्व0 महाशय मसुरियादीन ने दलित छात्रों के लिए इलाहाबाद शहर में 6 हॉस्टल संचालित करवाएं थे। 

उनमें से अब तीन ही छात्रावास बचें है  एक बलुआघाट में  दूसरा राजपुर स्थित आदि हिन्दू छात्रावास तीसरा 2 -बी हाशिमपुर रोड पर स्थित है। इस छात्रावास को संचालित करने के लिए समाजकल्याण विभाग अनुदान भी दिया करता था लेकिन भू माफियाओ ने उसे बंद करा दिया। और सारे दस्तावेज़ गायब कर दिए। 

अब फर्जी रजिस्ट्री दिखाकर आए दिन रहने वाले छात्रों को खाली करने के लिए दबाव बनाया जाता है। जिसमे पुलिस छात्रों को परेशान करती है। परेसान होकर दलित छात्रों जा एक समूह आज भाजपा के अनुसूचित मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष व  सांसद विनोद सोनकर मिलकर उत्पीड़न की शिकायत की ,जिस पर सांसद ने गम्भीरता से लेते हुए तत्काल कार्यवाही के आदेश दिए है। 

इलाहाबाद शहीद वॉल षणयंत्र का हिस्सा 

शहीद वॉल का निरीक्षण करते हुए कमिश्नर आशीष गोयल साथ मे है संचालक वीरेंद्र पाठक

शहीदवाल हिन्दू महिला इंटर कालेज सिविल लाइंस इलाहाबाद का निर्माण, अवैध कब्जा व अवैध निर्माण करार दिया। जैसा कि मालूम होगा कि हिन्दू महिला इंटर कालेज किराये पर चल रहा है, इसकी जमीन भवन व चहारदीवारियां का मालिकाना हक व मालिक श्री राजीव दबे जी हैं। उन्होंने कहा कि मेरी दीवाल पर बिना मेरी अनुमति के उसमें जो चित्र लगाकर शहीदवाल नाम दिया वह पूर्णतः अवैध कब्जा व अवैध निर्माण है। मेरे किरायेदार हिन्दू महिला इंटर कालेज की प्रबंध समिति व प्रबंधक को किसी तरह का कोई अधिकार मेरे जमीन पर निर्माण करने व किसी को निर्माण करने को कहने का नहीं है। 
यह एक वीरेन्द्र पाठक की साजिश व षडयंत्र है जो पूर्व सैनिकों, दानदाताओं व आम जनों को गुमराह कर उनके साथ धोखाधड़ी व चार सौ बीस का कार्य किया है। जिससे पूर्व सैनिक जबकि कारगिल वीर शहीद लालमणि यादव के चित्र को निकालकर फेंक देने व शहीदों के अपमान पर आक्रोशित हैं वहीं यह जानकर कि वीरेन्द्र पाठक का शहीदवाल बनाने के पीछे कालेज के अंदर कब्जा करने व एएनआई का कार्यालय चलाकर हर माह दस हजार रूपये किराया बचाने व निजी लाभ लेने के लिए बनाया । 

इसी तरह तमाम अवैध क्रियाकलाप व षडयंत्र तथा साजिशपूर्ण जानकारियों से सभी पूर्व सैनिक एक बैठक कर यह निर्णय लिया कि इस अवैध कब्जा व अवैध निर्माण से हम लोगों का कोई वास्ता नहीं है और हमें इससे दूरी बनानी चाहिए। 

समाजसेवी श्याम सुन्दर सिंह पटेल ने बैठक के दौरान कहा कि हम शहीदों के सम्मान में व देशभक्ति के कारण वीरेन्द्र पाठक के मीठी मीठी बातों से प्रभावित होकर शामिल हुए थे और तन मन धन से सहयोग किया व तमाम उदारमना दानदाताओं से भी दान दिलाया ।

लेकिन खेद के साथ मैं सभी दानदाता बन्धुओं व मेरे वजह से शहीदवाल से जुड़ने वाले भाइयों से अनुरोध करता हूं कि वह अब शहीदवाल के कार्यक्रमों व क्रियाकलापों से अपनी दूरी बनावें नहीं तो हम सब एक दिन गैर कानूनी कार्य अवैध कब्जा व अवैध निर्माण के दोषी होंगे। यहाँ पर अपने उदारमना भाव का परिचय देते हुए ‘छोड़ी राम अयोध्या, जो पावे सो खाए’ के तहत धैर्य का परिचय दें । 

(श्याम सुंदर सिंह पटेल के फेसबुक वॉल से प्राप्त जानकारी)

आतंकी संगठन के सरगना है योगी- न्यूयार्क टाइम्स 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी

देश की मीडिया पर वर्तमान में केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार का महिमामंडन करने का आरोप लगता रहा है। देश के तमाम बुद्धिजीवी आरोप लगा रहे हैं कि देश का मीडिया सरकार के लिए काम कर रहा है। इसलिए देश का मीडिया सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलने से डर रहा है। लेकिन विदेशी मीडिया को कोई कैसे रोक सकता है। अमेरिका के एक मशहूर अखबार ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स #nytimes ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री पर भी हमला बोला है। अखबार ने लिखा है कि विकास की बात कहकर तीन साल पहले केंद्र की सत्ता में काबिज होने वाले प्रधानमंत्री मोदी के विकास एजेंडे की जगह हिंदुत्व ने ले ली है। अखबार ने लिखा कि मोदी सरकार भारत को हिंदू राष्ट्र में परिवर्तित करने की दिशा में काम करना चाहते हैं इसलिए विकास के एजेंडे को डुबो दिया है।

अखबार ने लिखा कि मोदी सरकार के शासन में देश के 17 करोड़ मुसलमान आर्थिक और सामाजिक हाशिए पर चले गए हैं। इसके अलावा न्यूयॉर्क टाइम्स ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी हमला बोला। अखबार ने योगी आदित्यनाथ के संगठन हिंदू युवा वाहिनी को आतंकी संगठन बताया है। साथ ही योगी आदित्यनाथ को आतंकी संगठन का सरगना बताया है। अखबार ने लिखा है कि देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में एक ऐसे महंत को शासन करने के लिए चुना गया है जो पहले से ही नफरत भरे बोल बोलता रहा है।

अखबार ने “हिन्दुस्तान में एक फायरब्रांड हिन्दू पुजारी राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ता” शीर्षक से लिखे लेख में कहा कि योगी को अधिकांश लोग योगी कहकर ही पुकारते हैं। योगी की पहचान एक ऐसे मंदिर के पुजारी के रुप में है जो अपने ‘आतंकवादी हिंदू सर्वोच्च जातिवादी’ परंपरा के लिए कुख्यात है। योगी एयर कंडीशनर यूज नहीं करते हैं और जमीन पर सोते हैं। वो कई बार रात में सिर्फ एक सेव खाकर रहते हैं।

अखबार ने लिखा कि योगी ने मुसलमान शासकों द्वारा ऐतिहासिक गलतियों का बदला लेने के लिए हिन्दू युवा वाहिनी बनाई है, जिसका मकसद मुस्लिमों की फसल को रोकना है। एक चुनावी रैली में उन्होंने चिल्लाकर कहा था, “हम सभी धार्मिक युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।”

मोदी जी का इज़राइल दौरा यहूदी और भारतीय चितपावन ब्राहम्णो के सम्बंध को मज़बूत करने के इरादे से तो नही ? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेपताहूँ
आरएसएस की स्थापना चितपावन ब्राह्मणों ने की और इसके ज्यादातर सरसंघचालक  अर्थात् मुखिया अब तक सिर्फ चितपावन ब्राह्मण होते आए हैं. क्या आप जानते हैं ये चितपावन ब्राह्मण कौन होते हैं ?
चितपावन ब्राह्मण भारत के पश्चिमी किनारे स्थित कोंकण के निवासी हैं. 18वीं शताब्दी तक चितपावन ब्राह्मणों को देशस्थ ब्राह्मणों द्वारा निम्न स्तर का समझा जाता था. यहां तक कि देशस्थ ब्राह्मण नासिक और गोदावरी स्थित घाटों को भी पेशवा समेत समस्त चितपावन ब्राह्मणों को उपयोग नहीं करने देते थे. 
दरअसल कोंकण वह इलाका है जिसे मध्यकाल में विदशों से आने वाले तमाम समूहों ने अपना निवास बनाया जिनमें पारसी, बेने इज़राइली, कुडालदेशकर गौड़ ब्राह्मण, कोंकणी सारस्वत ब्राह्मण और चितपावन ब्राह्मण, जो सबसे अंत में भारत आए, प्रमुख हैं. आज भी भारत की महानगरी मुंबई के कोलाबा में रहने वाले बेन इज़राइली लोगों की लोककथाओं में इस बात का जिक्र आता है कि चितपावन ब्राह्मण उन्हीं 14 इज़राइली यहूदियों के खानदान से हैं जो किसी समय कोंकण के तट पर आए थे। 

चितपावन ब्राह्मणों के बारे में 1707 से पहले बहुत कम जानकारी मिलती है. इसी समय के आसपास चितपावन ब्राह्मणों में से एक बालाजी विश्वनाथ भट्ट रत्नागिरी से चलकर पुणे सतारा क्षेत्र में पहुँचा. उसने किसी तरह छत्रपति शाहूजी का दिल जीत लिया और शाहूजी ने प्रसन्न होकर बालाजी विश्वनाथ भट्ट को अपना पेशवा यानी कि प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. यहीं से चितपावन ब्राह्मणों ने सत्ता पर पकड़ बनानी शुरू कर दी क्योंकि वह समझ गए थे कि सत्ता पर पकड़ बनाए रखना बहुत जरुरी है. मराठा साम्राज्य का अंत होने तक पेशवा का पद इसी चितपावन ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ भट्ट के परिवार के पास रहा। 
एक चितपावन ब्राह्मण के मराठा साम्राज्य का पेशवा बन जाने का असर यह हुआ कि कोंकण से चितपावन ब्राह्मणों ने बड़ी संख्या में पुणे आना शुरू कर दिया जहाँ उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया जाने लगा। चितपावन ब्राह्मणों को न सिर्फ मुफ़्त में जमीनें आबंटित की गईं बल्कि उन्हें तमाम करों से भी मुक्ति प्राप्त थी । चितपावन ब्राह्मणों ने अपनी जाति को सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठाने के इस अभियान में जबरदस्त भ्रष्टाचार किया।  इतिहासकारों के अनुसार 1818 में मराठा साम्राज्य के पतन का यह प्रमुख कारण था. रिचर्ड मैक्सवेल ने लिखा है कि राजनीतिक अवसर मिलने पर सामाजिक स्तर में ऊपर उठने का यह बेमिसाल उदाहरण है. (Richard Maxwell Eaton. A social history of the Deccan, 1300-1761: eight Indian lives, Volume 1. p. 192)
चितपावन ब्राह्मणों की भाषा भी इस देश के भाषा परिवार से नहीं मिलती थी । 1940 तक ज्यादातर कोंकणी चितपावन ब्राह्मण अपने घरों में चितपावनी कोंकणी बोली बोलते थे जो उस समय तेजी से विलुप्त होती बोलियों में शुमार थी।  आश्चर्यजनक रूप से चितपावन ब्राह्मणों ने इस बोली को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया।  उद्देश्य उनका सिर्फ एक ही था कि खुद को मुख्यधारा में स्थापित कर उच्च स्थान पर काबिज़ हुआ जाए।  खुद को बदलने में चितपावन ब्राह्मण कितने माहिर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने जब देश में इंग्लिश एजुकेशन की शुरुआत की तो इंग्लिश मीडियम स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने वालों में चितपावन ब्राह्मण सबसे आगे थे.
इस तरह अत्यंत कम जनसंख्या वाले चितपावन ब्राह्मणों ने, जो मूलरूप से इज़राइली यहूदी थे, न सिर्फ इस देश में खुद को स्थापित किया बल्कि आरएसएस नाम का संगठन बना कर वर्तमान में देश के नीति नियंत्रण करने की स्थिति तक खुद को पहुँचाया, जो अपने आप में एक मिसाल है।

कोलाबा में रहने वाले बेन इस्राइली महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों को कोंकण के तट पर आए 14 इस्राइल यहूदियों के खानदानों का वारिस मानते हैं। मलबारी या कोचिन के यहूदी अपना नाता बाइबल में उल्लिखित किंग सोलोमन से जोड़ते हैं। धारणा है कि जूडिया से भारत में उनका आगमन 175 ईसा पूर्व यूनानी सम्राट एंटियोकस चतुर्थ एपीफानेस के काल हुआ जब कोंकण के तट पर उनकी नौका ध्वस्त हो गई। 7 पुरुष और 7 महिलाएं-केवल 14 लोग बच पाए थे इस दुर्घटना में। यही कोंकणस्थ यहूदियों के पूर्वज माने जाते हैं। आजीविका के लिए खेतों में काम करने के अलावा वे तेल का कोल्हू चलाने लगे, स्थानीय बोली को अपनाया और उपनाम भी मराठियों की तरह ही गांव के आधार पर रख लिए, जैसे नवगांवकर, पनवेलकर (ऐसे 142 उपनाम) आदि।
 वे अपने आप को यहूदी न कहकर बेने इस्राइली कहते थे। परंतु स्थानीय लोग उन्हें शनिवारी तेली के नाम से जानते थे क्योंकि वे शनिवार के दिन (शब्बाथ) कोई काम नहीं करते थे। ठाणे के मॉयर मोजेज ने जानकारी दी, ‘समुदाय में शनिवार छुट्टी का दिन-केवल आराम (नौकर-चाकर, पशु-पक्षियों तक) के लिए मुकर्रर है। आम यहूदी परिवार इस दिन बाहर जाने, मेहमान बुलाने, खरीदारी करने तक से परहेज करता है। दिन में तीन नमाजें। यहूदी कैलेंडर का दिन शाम से शुरू होकर सुबह तक चलता है। यहूदी हफ्ते की शुरुआत रविवार से होती है।’
आम तौर पर माना जाता है कि यहूदियों का भारत आगमन कोच्चि के मार्फत 1500 वर्ष पहले हुआ। मुंबई में यहूदियों का आगमन 18वीं सदी में शुरू हुआ। उनकी दो बिल्कुल अलग धाराएं थीं- बेन इस्राइली (इस्राइली के लाल) और बगदादी। बेन इस्राइली 1749 में कोंकण के गांवों से आए थे। बगदादी यहूदी मामलूक वंश के आखिरी शासक दाऊद पाशा द्वारा 19वीं सदी की शुरुआत में मचाई गई तबाही और भीषण नरसंहार के बाद इराक से भागे थे। 

मुंबई में बसने वाला पहला बगदादी यहूदी 1730 में सूरत से आए जोसफ सेमाह को माना जाता है। कोंकण से आए सैमुअल इजेकिल दिवेकर ने मुंबई का प्रथम सिनेगॉग ‘शारे राहामीम’ (गेट ऑफ मर्सी) मई, 1796 में स्थापित किया। मसजिद स्टेशन ने अपना नाम सैमुअल स्ट्रीट के इसी सिनेगॉग से पाया है। जैकब ससून द्वारा 1884 में बना केनेथ इलियाहू भायखला के मागेन डेविड के अलावा दूसरा बगदादी यहूदी सिनेगॉग है। मागेन डेविड इस्राइल के बाहर सबसे बड़े सिनेगॉग में गिना जाता है।
बहुत वक्त तक भारत और इस्राइल के बीच राजनीतिक संबंध न होने से खुद को अलग-थलग महसूस करने वाले इस समुदाय में दोनों देशों में आई ताजा गर्मजोशी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस्राइल यात्रा की योजना से नई आशाएं जगी हैं।

हाल के वर्षों में भारत से इस्राइल जाकर बसे भारतीयों की नई पीढ़ियां बाप-दादों की यादें ताजा करने के लिए लौटने लगी हैं। भारत सरकार ने मुंबई सहित देश के अन्य यहूदी ठिकानों के लिए पैकेज टूर शुरू करने का निर्णय किया है।

–अजय प्रकाश सरोज ,( विभन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर लिखित)