महाराजा महासेन पासी (महासेन बाबा) बलिदान दिवस:- अषाढ मास सत्तमी

सांकेतिक व काल्पनिक तस्वीर
पासी धर्म रक्षक राज वंश की हस्तियां मिट गयी ,
राष्ट्र धर्म और राज्य धर्म निभाने मे ।

गद्दार राजवंशो की गद्दारी सन्धि मे टिक गयी ,

परतंत्र भारत मे शर्म नही आयी राजा कहलाने मे ।।

मित्रो ,बात है १२वीं सदी की उस समय तक गुजरात पर मुगलो का शासन हो गया था । वहां के बाछिल राजपूतो का आधिपत्य समाप्त हो गया था । मुगलो ने सन्धि के तहत देश के अन्य राज्यो पर अधिकार करने के लिए अपने साथ मिला लिया ।

उस समय बहुत राजपूत इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था ।उनमे से बहुत से परिवार आज भी भारत मे है उनकी अलग पहचान है खांन पठान टाइटिल से जाने जाते हैं ।

   जयचन्द के हमराही बाछिल राजपूत अहवंश ने गुजरात राजपूत सोफी गोपी और मुगल सैनिको के साथ मिल कर मितौली खीरी के राजा मितान पासी , अमृता पासी के महलो पर रात्रि मे हमेसा करके धोखे से मार कर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया। इसका बदला लेने के लिए महोली के राजा हंसा पासी ने अहवंश की पुत्री चन्द्रा से विवाह/ युद्ध का प्रस्ताव भेजा जिस पर वह विवाह के लिए राजा हो गया । वारात विदाई के समय धोखे से राजा हंसा सहित वराती सैनिको को भी मरवा दिया ।इसी कडी मे अहवंश ने अपने सहयोगी बाछिल राजपूत और मुगल सैनिको के साथ एक कर पासी राजाओं पर धावा बोल दिया , महासेन पासी राजा को उनके कोडरी ढीह किले के पास कोडरी डेगरा के मैदान मे घेर लिया घात युद्ध मे पासी राजा महासेन सहीद हो गये । समयकाल 1170 से 1190ई की है उस दिन असाढ मास की सत्तमी थी ।

तब से आज तक क्षेत्र के पासी लोग उस दिन को बलिदान दिवस के रूप मे मनाते हैं । शोकाकुल पासी खरो मे इस दिन तबा तक नही चढता था और पासी लोग डेगरा के मैदान मे इकट्ठा होते थे और अपने रिस्तेदारों को भी बुलाते है । बदला लेने के लिए कूबत इकट्ठा करने का काम करते थे ।

 मित्रो समयकाल का तकाजा है लोग इकट्ठा आज भी होते हैं , बलिदान दिवस आज भी मनाते हैं ,घरों मे तवा तो आज भी नही चढता , लेकिन इतिहास को लोग भूल चुके हैं अब तो यह बस केवल परम्परा है । इकट्ठा होने के नाम पर मेला लगने लगा , बलिदान दिवस के नाम पर बकडो की बलि चढने लगी , तवा न चढा कर कढाई मे पूडियां बनने लगी । 

महासेन पासी राजा की पत्नी महोठेरानी भी महोली मे सहीद हो गयी थी कई पासी सैनिक भी सहीद हुए थे । इनका एक किला कसमण्डा के उत्तर टीले के रूप मे विद्दमान है ।

ऊंचा खेरा कसमण्डा मार्ग पर झरसौवां के पास महासेन महोठेरानी द्वारा बनवाया गया महरुवा तालाब आज भी है लेकिन इस पर पट्टे और अतिक्रमण हो गया है!

  जनपद सीतापुर मे लहरी पासी राजा लहरपुर सन् 1375 के बाद पासी राज समाप्त हो गया।

लेकिन पासी अपने को राजपासी, राजबंसी कहते अपने को परशुराम का वंशज कहकर शन्तोष पा लेते है।

  मेरे बडे बेटे द्वारा हमे और आपको सम्बोधित पंक्ति-

”उठो रावत वीर सपूतो, रइयत तुम पर नजर पसारे है।   महापुराणो मे देखो भगवान भी तुमसे हारे हैं।

मातृ शक्ति का आवाहन करता अभिकल लाल तुमारा है।

पहचानो अपनी ताकत को,यमराज भी तुम से हारा है।।

ऊदा,लक्ष्मी,झलकारी जैसी ताकत तुममे,पल मे दुश्मन संहारा है।

20वीं शदी के उन्नत युग मे हो रहा शोषण अत्याचार तुम्हारा है।।

मां काली,दुर्गा,चण्डी बन जाओ तुम,मातृभूमि रक्षा को अवतार तुम्हारा है।।

चौका चूल्हा लालन पालन बहुत किया, अब भारतीयता और विकास के पथ पर पग धारो।

काला सफेद होगा भारत सोने की चिडिया ,बस राजनीतिक गुण्डो को मतान्तर से पछारो

कमला रावत

सीतापुर उ.प्र.

बहुजनों के लिए ​राष्ट्रपति का चुनाव नीम और करेला जैसा  –दर्शन ‘रत्न’ रावण 

राष्ट्रपति के चुनाव से हमारा {आम आदमी} का कोई सीधा सम्बन्ध तो होता नहीं लेकिन जब चर्चा चली है तो बात कर लेते हैं। वैसे विकल्प भी नहीं है ज्यादा। नीम और करेले में से ही किसी को चुना जाना है। कम और ज्यादा कड़वा इसमें से चुनना भी हमारे हाथ में नहीं। 
मीरा कुमार को अधिकांश दलित संगठन ये कह कर बेहतर सिद्ध करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि रामनाथ कोविंद आरएसएस या भाजपा से जुड़े हैं। वास्तविकता ये नहीं है मीरा कुमार उस चमार जाति से है जिसका अधिकाँश स्थानों पर कब्ज़ा है। 
  चर्चा ये भी थी कि भाजपा मायावती को अपना उम्मीदवार बना सकती है। तब इन सभी के तर्क बदल जाते। फिर आरएसएस से राखी का सम्बन्ध भी जुड़ जाता। कटटरता, गुजरात, सहारनपुर सब फीके पड़ जाते। ये भूल जाते कि मायावती का राजनीतिक सरोकार दलित के साथ रह कितना गया है ?

जहाँ तक मेरी समझ है। मीरा कुमार के पिता बाबा साहिब के सामने खड़े किये गए कॉंग्रेस के मोहरे थे। जिनके चलते दलितों में दूरियाँ पैदा हुई। एक बात को सिद्दांतिक रूप में फैलाया गया कि वाल्मीकिन कौम {सफाई कामगार समाज} के युवा को लड़की भले दे देना मगर वोट कभी मत देना। 
मायावती ने हमेशा इस सिद्दहनत का पालन किया और 403 की विधानसभा का एक भी टिकट वाल्मीकिन समाज को नहीं दिया। काशी राम जी ने भी इस दूरी को ख़त्म करने की कभी कोशिश या सोच भी नहीं बनाई बल्कि उनके नारे, “जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी” ने जातियों को और मज़बूत किया। 
दूसरा नाम है रामनाथ कोविंद का। उसकी सबसे बड़ी अयोग्यता ये मानी जाती है कि वो जाटव {रविदासी} नहीं है। उस पर ये कि वो जिस कोली जाति से हैं वो ज्यादा गुजरात और महाराष्ट्र के तटवर्तीय क्षेत्र में मछली का कारोबार करती है और आदिकवि वाल्मीकि दयावान को अपना आरध्या मानती है। 
जहाँ तक सामाजिक सरोकार की बात है मुझे याद है जब 1999 आरक्षण पर संकट चल रहा था तब चरणजीत सिंह अटवाल जी ने उत्तर-प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल सूरजभान के सहयोग से पूरे भारत के सभी राजनीतिक दलों के दलित सांसदों को एकजुट करने में कामयाब हो गए थे, उसमे बड़ी भूमिका रामनाथ कोविंद जी की थी। 
जब गोहाना हिँसा के बाद वीर राकेश लारा का क़त्ल हुआ तब गोहाना में स.चरणजीत सिंह अटवाल के साथ रामनाथ कोविंद गोहाना पहुँचे थे। जबकि मीरा कुमार के पिता का बूत गोहाना की उसी वाल्मीकि बस्ती के बाहर लगा है पर मुसीबत के समय नहीं आई। 
जगजीवन राम का पैदा किया जातिवाद मीरा कुमार जी में भी खूब भरा है। केन्द्रीय मंत्री रहते हुए वाल्मीकि समाज के विकास हित बने राष्ट्रीय सफाई मज़दूर आयोग की अध्यक्ष चमार समाज की संतोष चौधरी को बना दिया। यानि केन्द्रीय मंत्रिमंडल न सही ये एक उम्मीद थी। 
अगर बात ब्राह्मणवाद की है तो रामनाथ कोविन्द यकीनन आरएसएस से जुड़े होंगे। मगर सामाजिक व राजनैतिक रूप में। मेरे कुमार जी तो पारिवारिक तौर पर ब्राह्मणवाद से जुडी हैं। एक उनकी पैदाइश ही अमबेडकर विरोधी परिवार में हुई। दूसरा शादी गैर दलित से की। फिर सोचिये तन-मन कहाँ है ?   

प्रसिद्द दलित चिंतक डॉ0 सीबी भारती आज सेवा निवृत्त/ लिखेंगे पासी समाज पर साहित्य

उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ के श्रम विभाग/ सेवा योजन विभाग  में ‘एडिशनल डॉयरेक्टर’के पद पर कार्यरत रहें ”डॉ0 सीबी भारती जी” आज सेवानिवृत्त हो गए है। 

भारती जी नौकरी के साथ ही साथ दलित साहित्य के विकास में  सराहनीय योगदान दिया है। इनके लिखे लेख देश की कई मानी जानी पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है। इनके द्वारा लिखे काव्य संग्रह ‘आक्रोश ‘को बीएचयू के  पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। 

पिछलों दिनों किसान नेता मदारी पासी पर शोध परक बेहतरीन लेख को श्रीपासी सत्ता पत्रिका ने कवर पेज़ के साथ लीड स्टोरी बनाया था। जिसे लोगो ने खूब पसंद किया । 

परिवार के बीच डॉ0 सीबी भारती

भारती जी हिंदी विषय में डॉक्टरेट है। सेवाकाल समाप्ति के बाद आपने सम्पादक अजय प्रकाश सरोज से वादा किया है अब वह (भारती जी)पासी समाज के लिए समर्पित भाव से लेखन कार्य करेंगे। और पासी समाज में जन्मे महापुरुषों पर शोध परक लेख लिखते रहेंगे।
पत्रिका परिवार डॉ0 सीबी भारती जी के लम्बे एवं सुखद जीवन की कामना करता हैं।

आप लोग भी उन्हें बधाई देना न भूले । उनका न0 है – 9415788944

इनसे जीवन से जुड़े कई रोचक जानकारी पत्रिका में वेब पर जल्द ही पोस्ट किया जाएगा।

पासी विकास मण्डल मुम्बई ने भारती सरोज और आकाश का किया सम्मान

आकाश और भारती सरोज

अपनी प्रतिभा द्वारा न सिर्फ अपने परिवार और समाज बल्कि पुरे देश का नाम रोशन करने वाले दो युवओं का सत्कार और अभिनन्दन “अखिल भारतीय पासी विकास मंडल  मुंबई” द्वारा दिनांक 25 जून 2017 को मंडल कार्यालय में किया गया।

  1- कुमारी भारती पुत्री राजेंद्र सरोज – 

काठमांडू, नेपाल में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय “वर्ल्ड गेम – 2017” में “जोमासार” स्पर्धा में गोल्ड मेडल हासिल किया।  

2-आकाश पुत्र शीतला प्रसाद सरोज – अंतर्राष्ट्रीय स्तर की  डांस प्रतियोगिता में “हिप-हॉप”  डांस स्टाइल में आकाश और उनकी टीम ने प्रथम स्थान हासिल किया।  
एक सामाजिक संस्था के दायित्व का निर्वाह करते हुए अखिल भारतीय पासी विकास मंडल, समाज के उत्थान और विकास के लिए निरंतर कार्यरत है।  इसी कड़ी में, उपरोक्त दो बच्चों जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत से आज समाज और देश का नाम रोशन किया उन्हें प्रोत्साहित और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए मंडल के दादर स्थित केंद्रीय कार्यालय में दोनों बच्चों और उनके अभिभावकों का स्वागत-सत्कार किया गया। 

इस अवसर पर मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मिठाईलाल सरोज जी,  महामंत्री  प्रकाश पासी जी, मंडल शुभचिंतक और बुद्धिजीवी श्री विजय नारायण जी,बाबू लाल पासी जी,  बाबूराम जी, उमापति पासी जी, प्रो. वीरेन्द्र पासी जी,  एस. प्रसाद सरोज जी, श्री गोपाल सरोज जी साथ ही साथ मंडल सहयोगी “युवा पासी क्लब” के संस्थापक श्री राकेश सरोज जी उपस्थित हुए। 

मंडल के राष्ट्रिय अध्यक्ष और महामंत्री के साथ उपस्थित सभी सदस्यों ने दोनों बच्चो को पुष्पगुच्छ देकर शुभकामनाये दी तथा उनके अभिभावकों को बधाई  देकर उनका मनोबल बढ़ाया तथा आगे भी जरुरत पड़ने पर यथाशक्ति सहयोग करने की बात का आश्वाशन दिया।  
मंडल अपने सभी शुभचिंतको और सहयोगियों को धन्यवाद देता है और साथ ही साथ पासी बंधुओं-बहनो से निवेदन करता है कि संस्था से जुड़कर संगठन को मजबूत बनाये, एक मजबूत संगठन ही समाज के विकास की नीव है।   

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मीरा कुमार बिहार के दलित समुदाय में चमार जाति से हैं । और वे पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री जगजीवन राम की सुपुत्री हैं। मीरा कुमार 1973 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुई। वे कई देशों में नियुक्त रहीं और बेहतर प्रशासक साबित हुई। इनके पति मंजुल कुमार  

राजनीति में उनका प्रवेश अस्सी के दशक में हुआ था। 1985 में वे पहली बार बिजनौर से संसद में चुन कर आई। 1990 में वे कांग्रेस पार्टी की कार्यकारिणी समिति की सदस्य और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की महासचिव भी चुनी गई। 1996 में वे दूसरी बार सांसद बनीं और तीसरी पारी उन्होंने 1998में शुरु की, 2004में बिहार के सासाराम से लोक सभा सीट जीती। 2004 में यूनाईटेड प्रोग्रेसिव अलायन्स सरकार में उन्हें सामाजिक न्याय मंत्रालय में मंत्री बनाया गया। इस बार वे पाँचवीं बार संसद के लिए चुनी गई हैं। मीरा कुमार भारत की पहली महिला लोकसभा स्पीकर हैं। जीएमएसी बालयोगी के बाद वे दूसरी दलित नेता है जो इस पद तक पहुंचे।

 बुरा न माने ,योग दिवस पर कुछ कड़े शब्द भी बर्दाश्त कर मन शुद्ध करें 

समाज के सरकारी नौकर जो अपनी जिंदगी के 60 बरस फाइलों में गवां दिए हो। 
समाज का दर्द क्या ,जो अपने गांव वाले परिवार का दर्द भी महसूस न किये हो।
भ्रष्टाचार से अकूत धन कमाने के लिए जो अपने मित्र और रिस्तेदारों तक को न बक्शा हो ।
जिनके मन और मष्तिष्क में लोभ ,लालच, हवस भरा हो। जिनकी निगाहें गरीब बहन बेटियों पर तिरक्षी हो। 
जिनको सरकार अब फ़ाइल पलटने और उस पर दस्तख़त के लायक भी न समझ रही हो । 
रिटायर्ड होने के बाद ऐसे लोग समाज को संगठित करने का ठेका लेते है।
कहाँ ले जाएंगे समाज को ? जीवन के अंतिम पड़ाव पर संगठन जैसा जोख़िम भरा काम कैसे कर सकेंगे ?
 न उम्र की दौलत ,न शारीरिक क्षमताएँ ,बस अंहकार की दौलत के सहारे कब तक चलेंगे ?

कैसे होगा समाज का बेहतर निर्माण , कैसे होगा युवाओं का सपना साकार ।
कुछ तो शर्म करों ,युवाओं का साथ दों 
खुद को सम्मान दों, समाज को बढ़ने दों।

मीना देवी पासी के घर रात में धावा बोलने वाले दबंग भू माफियाओं पर कार्यवाही क्यो नही ?


इलाहाबाद ब्यूरो /सरायइनायत थाना के समाने ही विधवा महिला मीना देवी अपने विकलांग बच्चों के साथ रहती है । इसी स्थान पर इनकी कई पीढ़िया गुजर गई । वर्षो पुराना कच्चा मकान जर्जर हो गया है। कब ढह जाए कुछ पता नही । पिछले कई महीनों से इसी चिंता में मीना देवी परेशान थीं  कि स्थानीय ग्राम प्रधान ने उसकी इस समस्या के  समाधान के लिए उसे एक कॉलोनी प्रस्तावित कराया जो मंजूर हो गई। कलोनी मिलते ही उसके सपनों में एक उम्मीद जगी कि उसके बच्चे भी अब पक्के मकान में रह सकेंगे । 
लेकिन मीना देवी को क्या पता था कि गांव के ही पूँजीपति किस्म के दबंगो की निगाह उसकी जमीन पर है । 6 जून की रात जब मीना अपने बच्चों के लिए  अपने घर मे खाना बना रही थीं कि अचानक यूपी पुलिस की 100 डायल वाली बोलोरो गाड़ी चमकते हुए उनके दरवाजे पंहुची उसके साथ मे एक सफारी स्टॉर्म भी थे जिसमें गांव के वहीं दबंग भू माफ़िया अविनाश जायसवाल ,गणेश ,सोनू उतरे और बाहर बैठे विकलांग बालक रोहित को लात घूंसों से पीटने लगे आवाज सुनकर मीना बाहर आई तो देखा कि उसके विकलांग बेटे को लोग बेहरमी से पीट रहे है । मीना शोर मचाने लगी तो दबंगो ने उसे भी जातिसूचक गालिया देते हुए पीटने लगे बोले कि जितनी जल्दी हो सके यह घर छोड़कर भाग जाओ वरना जिंदा जला दिए जाओगी । 

 रोजी रोटी बचाओ संग़ठन की नेता अनु सिंह , नीरज पासी ने लोगो के साथ इस मामले को लेकर आज जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना प्रदर्शन करके ज्ञापन दिया और दबंगो पर जल्द कार्यवाही की मांग की है । नीरज पासी ने बताया कि इन दबंग भूमाफियाओ पर उपजिलाधिकारी द्वरा ग्राम सभा की जमीनों पर कब्जा करने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कराई है । लेकिन पुलिस अब तक इन्हें गिफ्तार नही कर रही है ।

 
धरने के समर्थन करने पंहुचे संपादक अजय प्रकाश सरोज ने कहा कि योगी सरकार में भू- माफ़ियाओ के हौशले बुलन्द है वे पट्टे पर ग्राम सभा की जमीनों पर रह रहें दलितों को बेदखल करने के कामों में लगे है । ऐसे लोगो के खिलाफ़ आवाज़ उठाया जाता रहेगा । धर्मेन्द्र कुमार भारतीय , राम सागर सिंह,ग्राम प्रधान अंतिम यादव, लल्ला यादव , सहित पीड़िता मीना देवी , राधा देवी आदि बड़ी संख्या में महिलाए उपस्थित रहीं 


मरने के बाद मोमबत्तियां जलाने वालों , जीते जी प्रोफेसर वाघमारे के साथ खड़े होने का साहस कीजिये  !

प्रोफेसर सुनील वाघमारे 34 साल के नवजवान है ,जो महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के खोपोली कस्बे के के एम सी कॉलेज के कॉमर्स डिपार्टमेंट के हेड रहे है और इसी महाविद्यालय के वाईस प्रिंसीपल भी रहे है .
उत्साही ,ईमानदार और अपने काम के प्रति निष्ठावान . वे मूलतः नांदेड के रहने वाले है , वाणिज्य परास्नातक और बी एड करने के बाद वाघमारे ने वर्ष 2009 में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर इस कॉलेज को ज्वाइन किया था .वर्ष 2012 तक तो सब कुछ ठीक चला , मगर जैसे ही वर्तमान प्राचार्य डॉ एन बी पवार ने प्रिंसिपल का दायित्व संभाला .प्रोफेसर वाघमारे के लिये मुश्किलों का दौर शुरू हो गया .
प्राचार्य पवार प्रोफेसर वाघमारे को अपमानित करने का कोई न कोई मौका ढूंढ लेते ,बिना बात कारण बताओ नोटिस देना तो प्रिंसिपल का शगल ही बन गया ,वाघमारे को औसतन हर दूसरे महीने मेमो पकड़ा दिया जाता ,उनके सहकर्मियों को उनके विरुद्ध करने की भी कोशिस डॉ पवार की तरफ से होती रहती .
इस अघोषित उत्पीडन का एक संभावित कारण प्रोफेसर वाघमारे का अम्बेडकरी मूवमेंट से जुड़े हुए  होना तथा अपने स्वतंत्र व अलग विचार रखना था .संभवतः प्राचार्य डॉ पवार को यह भी ग्वारा नहीं था कि एक दलित प्रोफेसर उप प्राचार्य की हैसियत से उनके बराबर बैठे .इसका रास्ता यह निकाला गया कि वाघमारे को वायस प्रिंसिपल की ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया तथा अपने वाणिज्य विभाग तक ही सीमित कर दिया गया .
प्रोफेसर सुनील वाघमारे महाराष्ट्र के दलित समुदाय मातंग से आते है .वे  अपने कॉलेज में फुले ,अम्बेडकर और अन्ना भाऊ साठे के विचारों को प्रमुखता से रखते तथा बहुजन महापुरुषों की जयंतियों का आयोजन करते ,जिससे प्राचार्य खुश नहीं थे .देखा जाये तो वाघमारे और पवार के मध्य विचारधारा का मतभेद तो प्रारम्भ से ही रहा है . धीरे धीरे इस मतभेद ने उच्च शिक्षण संस्थाओं में व्याप्त जातिगत भेदभाव और उत्पीडन का स्वरुप धारण कर लिया और यह बढ़ता ही रहा .
प्रोफेसर वाघमारे ने अपने साथ हो रहे उत्पीडन की शिकायत अनुसूचित जाति आयोग  से करनी चाही तो कॉलेज की प्रबंधन समिति ने उनको रोक लिया तथा उन्हें उनकी शिकायतों का निवारण करने हेतु आश्वस्त भी किया ,लेकिन शिकायत निवारण नहीं हुई ,उल्टे प्रिंसिपल ने इसे अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और मौके की तलाश में रहे ताकि दलित प्रोफेसर वाघमारे को सबक सिखाया जा सके .
मन में ग्रंथि पाले हुए ,खार खाए प्रिंसिपल पवार को यह मौका इस साल 15 मार्च को प्रोफेसर वाघमारे के एक व्हाट्सएप मैसेज फोरवर्ड से मिल गया .
दरअसल 15 मार्च 2017 की रात तक़रीबन पौने बारह बजे के एम सी कॉलेज के एक क्लोज्ड ग्रुप पर प्रोफेसर वाघमारे ने एक मैसेज फोरवर्ड किया ,जिसका सन्देश था कि  “हम उन बातों को सिर्फ इसलिए क्यों मान ले कि वे किसी ने कही है .” साथ ही यह भी कि – ” तुम्हारे पिता की दो दो जयन्तियां क्यों मनाई जाती है ” कहा जाता है कि इसका संदर्भ शिवाजी महाराज की अलग अलग दो तिथियों पर जयंती समारोह मनाने को लेकर था .इस सन्देश पर ग्रुप में थोड़ी बहुत कहा सुनी हुई ,जो कि आम तौर पर हरेक ग्रुप में होती ही है .बाद में ग्रुप एडमिन प्रो अमोल नागरगोजे ने इस ग्रुप से सबको निकाल दिया ,सिर्फ प्रिंसिपल , नागरगोजे और वाघमारे ही रह गए ।
बात आई गई हो गई क्योकि यह कॉलेज फेकल्टी का एक भीतरी समूह था जिसमे सिर्फ प्रोफेसर्स इत्यादि ही मेम्बर थे. लेकिन इसी दौरान प्राचार्य महोदय ने अपनी जातीय घृणा का इस्तेमाल कर लिया ,उन्होंने उस वक़्त इस सन्देश का स्क्रीन शॉट ले लिया जब ग्रुप में नागरगोजे तथा वाघमारे एवं प्रिंसिपल तीनों ही बचे थे . 
प्राचार्य ने इस स्क्रीन शॉट को योजनाबद्ध तरीके से प्रचारित किया ,जन भावनाओं को भड़काने का कुत्सित कृत्य करते हुए प्रोफेसर वाघमारे के खिलाफ अपराधिक षड्यंत्र रचते हुये उनके विरुद्ध भीड़ को तैयार किया .इस सामान्य से व्हाट्सएप फोरवर्ड को शिवाजी का अपमान कहते हुए एक प्रिंसिपल ने अपनी ही कॉलेज के एक प्रोफेसर के खिलाफ जन उन्माद भड़काया तथा उन्मादी भीड़ को कॉलेज परिसर में आ कर प्रोफेसर वाघमारे पर हिंसक कार्यवाही करने का भी मौका दे दिया .इतना ही नहीं बल्कि भीड़ के कॉलेज में घुसने से पूर्व ही प्रिंसिपल बाहर चले गये और आश्चर्यजनक रूप से सारे सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए गये .
17 मार्च 2017 की दोपहर दर्जनों लोगों ने कॉलेज परिसर में प्रवेश किया तथा कॉलेज मेनेजमेंट के समक्ष प्रोफेसर वाघमारे की निर्मम पिटाई की ,उनको कुर्सी से उठा कर लोगों के कदमो के पास जमीन पर बैठने को मजबूर किया गया ,भद्दी गालियाँ दी गई ,मारते हुए जमीन पर पटक दिया और अधमरा करके जोशीले नारे चिल्लाने लगे . इस अप्रत्याशित हमले से वाघमारे बेहोश हो गये और उनके कानों से खून बहने लगा .बाद में पुलिस पंहुची जिसने लगभग घसीटते हुए वाघमारे को पुलिस जीप में डाला और थाने ले गये .थाने में ले जा कर पुलिस सुरक्षा देने के बजाय आनन फानन में वाघमारे पर ही प्रकरण दर्ज करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस अभिरक्षा में धकेल दिया गया .
दलित प्रोफेसर सुनिल वाघमारे के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ( ए ) अधिरोपित की गई ,उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने शिवाजी का अपमान करते हुए लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया .ग्रुप एडमिन प्रोफेसर नागरगोजे की शिकायत पर केस दर्ज करवा कर वाघमारे को तुरंत गिरफ्तार कर हवालात में भेज दिया गया . बिना किसी प्रक्रिया को अपनाये कॉलेज प्रबन्धन समिति ने एक आपात बैठक बुला कर प्रोफेसर वाघमारे को उसी शाम तुरंत प्रभाव से निलम्बित करने का आदेश भी दे दिया . इससे भी जयादा शर्मनाक तथ्य यह है कि प्रोफसर वाघमारे को खोपोली छोड़ कर अपने परिवार सहित वापस नांदेड जाने को विवश किया गया .अब वे अपनी पत्नी ज्योत्स्ना और दो जुड़वा बेटियों के साथ लगभग गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर है .
कॉलेज प्रबंधन और प्राचार्य ने महाविद्यालय परिसर में घुस कर अपने ही एक प्रोफेसर पर किये गये हमले के विरुद्ध किसी प्रकार की कोई शिकायत अब तक दर्ज नहीं करवाई है ,जबकि संवाद मराठी नामक एक वेब चैनल पर हमले के फुटेज साफ देखे जा सकते है ,एक एक हमलावर साफ दिख रहा है ,मगर प्राचार्य मौन है ,वे हमलावरों के विरुद्ध कार्यवाही करने के बजाय वाघमारे के कैरियर और जीवन दोनों को नष्ट करने में अधिक उत्सुक नज़र आते है .
अगर व्हाट्सएप फोरवर्ड शिवाजी महाराज का अपमान था तो उस मैसेज का स्क्रीन शॉट ले कर पब्लिक में फैलाना क्या कानून सम्मत कहा जा सकता है  ? कायदे से तो कार्यवाही ग्रुप एडमिन नागरगोजे और स्क्रीन शॉट लेकर उसे आम जन के बीच फ़ैलाने वाले प्राचार्य पवार के विरुद्ध  भी होनी चाहिए ,मगर सिर्फ एक दलित प्रोफेसर को बलि का बकरा बनाया गया और उनके कैरियर ,सुरक्षा और गरिमा सब कुछ एक साज़िश के तहत खत्म कर दी गई है .
इस सुनियोजित षड्यंत्र के शिकार प्रोफेसर वाघमारे ने अपनी ओर से खोपोली पुलिस स्टेशन में 1 मई 2017 को प्राचार्य डॉ पवार के विरुद दलित अत्याचार अधिनियम सहित भादस की अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करवाया है ,जिसके लिए भी उन्हें बहुत जोर लगाना पड़ा और अब कार्यवाही के नाम पर कुछ भी होता नज़र नहीं आ रहा है .
उच्च शिक्षा के इदारे में जातिगत भेदभाव और आपराधिक षड्यंत्र करते हुए एक दलित प्रोफेसर के जीवन और कैरियर को नष्ट करने के इतने भयंकर मामले को लेकर प्रतिरोध की जो आवाजें दलित बहुजन मूलनिवासी आन्दोलन की तरफ से उठनी चाहिए थी ,उनका नहीं उठना निहायत ही शर्मनाक बात है .पूरे देश के लोग महाराष्ट्र के फुले अम्बेडकरवादी संस्था ,संगठनो ,नेताओं से प्रेरणा लेते है और उन पर गर्व करते है ,मगर आज प्रोफेसर वाघमारे के साथ जो जुल्म हो रहा है ,उस पर महाराष्ट्र सहित देश भर के भीम मिशनरियों की चुप्पी अखरने वाली है .
आखिर वाघमारे के साथ हुए अन्याय को कैसे बर्दाश्त कर लिया गया ? छोटी छोटी बातों के लिए मोर्चे निकालने वाले लोग  सड़कों पर क्यों नहीं आये ? सड़क तो छोड़िये प्रोफेसर वाघमारे से मिलने की भी जहमत नहीं उठाई गई . देश भर में कई नामचीन दलित संगठन सक्रिय है ,उनमें से एक आध को छोड़ कर बाकी को तो मालूम भी नहीं होगा कि एक दलित प्रोफसर की जिंदगी कैसे बर्बाद की जा रही है .
जुल्म का सिलसिला अभी भी रुका नहीं है .शारीरिक हिंसा और मानसिक प्रताड़ना के बाद अब प्रोफेसर वाघमारे की आर्थिक नाकाबंदी की जा रही है .नियमानुसार उन्हें निलम्बित रहने के दौरान आधी तनख्वाह मिलनी चाहिए ,मगर वह भी रोक ली गई है ,ताकि हर तरफ से टूट कर प्रोफेसर वाघमारे जैसा होनहार व्यक्ति एक दिन पंखे के लटक कर जान दे दें …और तब हम हाथों में मोमबत्तियां ले कर उदास चेहरों के साथ संघर्ष का आगाज करेंगे .कितनी विडम्बना की बात है कि एक इन्सान अपनी पूरी क्षमता के साथ अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ अकेला युद्धरत है ,तब साथ देने को हम तैयार नहीं है .शायद शर्मनाक हद तक हम सिर्फ सहानुभूति और शोक जताने में माहिर हो चुके है . 
आज जरुरत है प्रोफेसर सुनिल वाघमारे के साथ खड़े होने की ,उनके साथ जो साज़िश की गई ,उसका पर्दाफाश करने की ,लम्बे समय से जातिगत प्रताड़ना के विरुद्ध उनके द्वारा लड़ी जा रही लडाई को पहचानने तथा केएमसी कॉलेज के प्रिंसिपल की कारगुजारियों को सबके सामने ला कर उसे कानूनन सजा दिलाने की .
यह तटस्थ रहने का वक्त नहीं है .यह महाराष्ट्र में जारी मराठा मूक मोर्चों से डरने का समय नहीं है ,यह देश पर हावी हो रही जातिवादी मनुवादी ताकतों के सामने घुटने टेकने का समय नहीं है ,यह समय जंग का है ,न्याय के लिए संघर्ष का समय है . सिर्फ भाषणवीर बन कर फर्जी अम्बेडकरवादी बनने के बजाय सडक पर उतर कर हर जुल्म ज्यादती का मुकाबला करने की आज सर्वाधिक जरुरत  है .
बाद में मोमबतियां जलाने से बेहतर है कि हम जीते जी प्रोफेसर वाघमारे के साथ संघर्ष में शामिल हो जायें. मुझे पक्का भरोसा है वाघमारे ना डरेंगे और ना ही पीछे हटेंगे ,उनकी आँखों में न्याय के लिए लड़ने की चमक साफ देखी जा सकती है .बस इस वक़्त उन्हें हमारी  थोड़ी सी मदद की जरुरत है .
– भंवर मेघवंशी 

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता है ,जिनसे bhanwarmeghwanshi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )

​सहारनपुर की घटना की निंदा  लेकिन चमार नेतृत्व स्वीकार नही– नीरज पासी

कांशीराम के आंदोलन से दलित एकता के नाम पर भावनात्मक रूप से जुड़कर पासी नेतृत्व की बलि चढ़ गई थी। आज फिर भीम आर्मी से जोड़कर दलित एकता बात बड़ी तेजी से हो रही है। इसका भी हश्र वही होगा जो कांशीराम के दलित आंदोलन का हुआ है। आप को याद होगा  इलाहाबाद के झूसी,नैनी और गोरखपुर जैसी दर्जनों जगहों पर पासियों का कत्लेआम हुआ तो कोई दलित आंदोलन क्यों नही शुरू हुआ ?

 मै आगाह करना चाहता हूं पासी समाज के नवजवानों, बुद्दजीवियो और नेताओं को की इतिहास अपने आप को दोहरा रहा है और फिर दलित एकता के नाम पर जाति विशेष का नेतृत्व उभारने की कोशिश हो रही है। कही फिर हम लोग ऐतिहासिक भूल को दोहराने तो नही जा रहे हैं ? हमें सहारनपुर की घटना से पूरी तरह गमदर्दी है और सामाजिक बन्धुओ पर हुए हमले पर  इनकी चुप्पी पर शिकायत भी है। लेकिन जाति विशेष का नेतृत्वई स्वीकार नही है।

 अध्यक्ष – पासी महासभा इलाहाबाद