सवर्णो को ५०% आरक्षण !


पिछले कुछ दीनो से आरक्षण को लेकर काफ़ी बहस हो रही है ….कुछ लोग आरक्षण को बैसाखी साबित करने पर तुले है ….तो कुछ को कहना है …की अपने बल और ताक़त पर मेहनत करनी चाहिए …आरक्षण के भरोसे अपने बच्चों को नहि बैठाना चाहिए …असल में परेशानी यह है की इन्हें आरक्षण का सही मतलब तो पता नहि …पर उसका विरोध करने में आगे रहते है ….दुख की बात है …की ऐसे लोग अपने आपको पासी समाज का अगुआ मानते है …पूरे देश में ऐसे लोगों की कमी नहि है …मुंबई में भी ……

ऐसे लोगों को बिलकुल ताज़ा उदाहरण देकर समझाने की कोशिश कर रहा हु ..
झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में सवर्णों को 50% रिज़र्वेशन दे दिया गया है। जी हाँ आपने सही सुना है …बिना आरक्षण के भी उन्हें ५० % रेज़र्वेशन दे दिया है …..

होता यह है कि भले हमारे समाज के कितने भी अंक लाए ….पर यह लोग उन्हें सीमित सीटों पर ही सलेक्ट करते है ..

उदाहरण के लिए १० सीट है ….५ बहूजनो के लिए रिज़र्व है ….तो पहले ५ सीट सबसे ज़्यादा नम्बर वालों को सलेक्ट करना चाहिए चाहे Sc/ओबीसी हो या जेनरल ….उदाहरण के लिए १०० में से ९० नम्बर वालों का सलेक्त्श्न ….सभी लिए ।उसके बाद रिज़र्व में ९० से कम नम्बर वालों का सिलेक्शन सिर्फ़ sc/obc ke लिए ……

पर अब sc/obc के कट off मार्क जेनरल से ज़्यादा आ रहे है …तो भी उन्हें सीट नहि मिल रही है …

उदाहरण के लिए …अगर Sc वाले ८ लोग ९५ नम्बर से ज़्यादा पाए …है तो भी ….उन्हें ५ सीटों पर ही सलेक्ट करेंगे …बाक़ी ३ को सीट नहि मिलती भले उनके ९५ नम्बर है ….पर जो जनरल वाले है जिनका नम्बर ९० से कम है उन्हें अड्मिशन मिल जाता है …..

जो लोग कह रहे है …..की उन्हें या उनके बच्चों को आरक्षण नहि चाहिए ….उन्हें सवर्ण की तरह लगता है की आरक्षण वाले कम नम्बर लाते है ….या कमज़ोर
होते है ….

इन लोगों को यह पता नहि है की पिछले २-३ सालों से रिज़र्व की कैटेगरी ….जेनरल से ज़्यादा नम्बर पर कई इग्ज़ैम में क्लोज़ हुई है …

उदाहरण के लिए इसी झारखंड के इग्ज़ैम में कई लोगों को जेनरल से ज़्यादा नम्बर मिला है …पर जेनरल सिलेक्शन हो गया …पर sc/obc का नहि…यह लोग कुछ न कुछ तोड़ निकालते रहते है …..

जो लोग कहते है की आरक्षण के बजाय मेहनत किया जाय …वह लोग सोचे की कितना मेहनत करेंगे ……मेहनत करके …ज़्यादा नम्बर के बावजूद …..??

इसके अलावा इंटर्व्यू तो रहता ही है ……आगर आरक्षण न रहे तो ….एक भी सीट भरे ही नहि ….

कितनी ही आरक्षण की सीटें कोलेज और यूनिवर्सिटी में खली है …पर भरे नहि जाती क्योंकि ….यह लोग कहते है की कोई योग्य व्यक्ति इस पोस्ट के लिए मिला नहि ….

क्या पोस्सिबल है …..क्या इतनी बड़ी आबादी में इन्हें योग्य नहि मिलता …..देश भर में ऐसी सीटें खली है …..

कितनी मेहनत करेंगे आप …….

कुछ लोग इन सबके बावजूद सलेक्ट हो जाते है …उनका स्वागत है ….पर ऐसे कितने लोग समाज ….है …..पर आपको हज़ारों लोग मिलगे ..जो कई बार लिखित परीक्षा पास करने के बाद सिर्फ़ इंटर्व्यू में नहि सलेक्ट होते …….

जो लोग आरक्षण का विरोध कर रहे है …यह वह लोग है जो जाती वस्था को बहुत सम्मान करते है ….अंबेडकरवादी , बौधिष्ठ , यहाँ तक की मूलसलिम और क्रिस्चन को भी कभी आरक्षण का विरोध करते नहि दिखेंगे ….,पर हिंदुवादी ..जातिवादी , और जो लोग हिंदू रितिरिवाज को छोड़ नहि पाए है ….वही लोग विरोध करते है …चाहे सववर्ण हो या बहुजन ….

सोचिए आरक्षण होने पर यह हाल है ….

आरक्षण का विरोध करने से पहले आरक्षण के बारे में समझे । और अगर आप अपने आप को समाज का अगुआ मानते है तो ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है ।

-राजेश पासी , मुंबई 

चितौड़गढ का क़िला राणा के वंशजों ने नहि एक मोर्या राजा ने बनाया था

चित्तोंड़गढ़ का का क़िला
चितौड़गढ का जो किला भारतीय इतिहास में राणा के वंशजों की शान का प्रतीक है , उसका निर्माण एक मौर्य राजा चित्रांगद मौर्य ने 7 वीं सदी में कराया था । 
8 वीं सदी के मध्य में सिसौदिया वंश के संस्थापक बप्पा रावल ने राजस्थान में मौर्य वंश के अंतिम शासक मान मौर्य से यह किला अपने कब्जे में कर लिया था । 
मान कवि के राजविलास में चित्रांगद मौर्य द्वारा चितौड़ दुर्ग की स्थापना तथा उसके द्वारा 18 प्रांतों पर शासन करने का शानदार वर्णन है । चित्रांगद मौर्य की सेना में 3 लाख अश्व , 3 हजार हाथी, 1 हजार रथ और असंख्य पदाति थे । 
चित्रांगद मौर्य तथा उसके वंशजों का गौरवशाली वृत्तांत इतिहास – ग्रंथों से गायब हैं । बावजूद इसके चित्रांगद मौर्य एक शक्तिशाली और प्रभावशाली राजा था जिसने एक अजेय दुर्ग की स्थापना की जो अपने ढंग का अनुपम किला है ।

( संदर्भ :- राजपुताने का इतिहास , पहली जिल्द पृ. 95 , 305 ( पाद – टिप्पणी -1 ) तथा राजविलास , छंद 16 , 21 , पृ. 18 )
– भाषा वैज्ञानिक राजेंद्र प्रसाद की वाल से 

ब्राह्मण मजदूर कैसे जान गया कि किचेन में चिकेन बन रहा है ?

रविवार का दिन पापा के लिये नॉनवेज का दिन होता है । उन्हें बहुत पसंद है इधर कुछ दिनों से हमारे यहाँ माकान मरम्मत का काम चल रहा तो कुछ नॉनवेज बन नहीं रहा था । आज छुट्टी के दिन पापा का मन नहीं माना तो नॉनवेज ले आये।
अब पासी के घर में मीट बने तो है तो खुशबू तो आएगी। देशी मशालों की खुशबू किचेन के बाहर भी गई तो काम करने वाले मजदूर बोल वैठे क़ि आज कुछ विशेष बन रहा है । 

 पूछने पर मैंने कहा अंदाजा लगाओ बोला जरूर चिकेन बन रहा है। हमने भी बड़े सरल स्वाभाव से बोल दिया चिकेन नहीं बकरे का मीट है। तो उनके चेहरर पर कुछ अलग ही भाव दिखे मेने पूछ लिया क्यों आपलोग नहीं खाते । वो बोले हम ब्राम्हण है । तो चिकेन की महक कैसे जान गए ? कुछ शरमा के रह गया..

पापा बताया कि 50 वर्ष पहले यंही लोग कितनी क्रूर हुवा करते थे । यह लोकतंत्र का कमाल है जिसकी वजह से एक ब्राह्मण मजदूरी के लिए हमारे किसी भी जाति के घर काम कर लेते है। वरना एक समय था जब इनकी जाति के लोग शुद्र के घर पानी तक पीना पसंद नहीं करते थे। अत्यचार ऊपर से करते थे। मुझे लगा कि सच में मेरे कालेज की ब्राह्मण लड़कियां अपने जाति पे कितना घमण्ड करती थीं। समय का बदलाव है कि रोजी रोटी के लिए एक ब्राह्मण एक पासी अनुसूचित के यहाँ काम कर रहा । रोजी रोटी के लिए कोई जात पात नहीं देखते तो इतना ढोंग क्यों करते है। पैसे में कोई छूत नहीं लगती लेकिन वही इंसान अगर उनके घर के किसी बर्तन में पानी पी ले तो उसे क्या से क्या नहीं सहन करना पड़ता है। तो क्या आर्थिक सम्पनता ही जातीय बन्दन को तोड़ रही है ? 

लोक तंत्र का उत्सव है वोट देने जरूर जाइये। सामाजिक परिवर्तन होकर रहेगा। –रागिनी पासी, इलाहाबाद

दलित नहीं भारत में अनुसूचित जातियाँ है ।

_अनुसूचित_” जाति का अर्थ

(_जाति_) का मतलब तो हमको पता है, परन्तु ये (_अनुसूचित_ ) का क्या मतलब है?

पढ़िए…

सन् 1931 में पहली बार उस समय के _ जनगणना आयुक्त (“_मी. जे. एच. हटन_”) ने संपूर्ण भारत के _अस्पृश्य जातियों _ की _जनगणना_ की और बताया कि _‘भारत में 1108 अस्पृश्य जातियां_ है, और वे सभी जातियां (_हिन्दू धर्म के बाहर_) हैं।’

इसलिए, इन जातियों को (_बहिष्कृत जाति_) कहा गया है। उस समय के “_प्रधानमंत्री (_ रैम्से मैक्डोनाल्ड_”) ने देखा कि हिन्दू, मुसलमान, सिख, एंग्लो इंडियन की तरह ( _बहिष्कृत जातियां _ एक स्वतंत्र वर्ग _ ) है।

और इन सभी जातियों का _हिन्दू धर्म_ में समाविष्ट (_नही_ ) है,

इसलिए उनकी (_”एक “सूची”_) तैयार की गयी। उस (_”सूची”_) में समाविष्ट जातियों’ को ही (_‘अनुसूचित जाति’ _ ) कहा जाता है।

इसी के आधार पर भारत सरकार द्वारा _‘अनुसूचित जाति अध्यादेश_ 1935’_ के अनुसार _(कुछ सुविधाएं_ ) दी गई हैं।

उसी आधार पर भारत सरकार ने _‘अनुसूचित जाति अध्यादेश 1936’_ जारी कर (_आरक्षण सुविधा प्रदान_) की।

आगे _1936 के उसी अनुसूचित जाति अध्यादेश_ में _थोड़ी हेरफेर_ कर _‘अनुसूचित जाति अध्यादेश 1950’ _ पारित कर _(आरक्षण का प्रावधान_) किया गया।

💐💐💐 निष्कर्ष 💐💐💐

अनुसूचित जाति का नामकरण का उदय का इतिहास यही कहता है कि भारत वर्ष में 1931 की जनगणना के पहले की (अस्पशर्य~ बहिष्कृत~ हिन्दू से बाहर) जातियाँ थी। इन्ही बहिष्कृत जातियों की “सूची”तैयार की गई।

और उसी (अश्पृषय ~ बहिष्कृत~ हिन्दू से बहार ) जातियोँ की (“_सूचि_”) के ‘आधार’ पर डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर जी ने _ ब्राह्मणों के खिलाफ जाकर _ अंग्रेजो से लड़कर हमें “मानवीय अधिकार” दिलाने में “सफल” हुए।

“अनुसूचित जाती” का (_मतलब_) ही यहि है…

तो हमें भी ये जान लेना चाहिए की अनुसूचित का मतलब उस दौर में (अश्पृषय ~ बहिष्कृत~ हिन्दू से बाहर), मतलब (_जो हिन्दू नहीं थी_ वे जातीया ) है। (_हिन्दू से स्वंतंत्र_ _वर्ण व्यवस्था से बाहर_पाँचवाँ अघोषित वर्ण ~ अतिशूद्र)

(अनुसूचित जाती ) हमारी_ संवेधानिक पहचान_ है।

और जो कुछ आज हम फायदा ले रहे हे वह _सिर्फ और सिर्फ_ मिलता हे _अनुसूचित जाति_ के नाम पर _ ना कि _दलित _वंणकर _चमार _या वाल्मीकि _के नाम पर ।

और एक (हम लोग SC) हैं, “अनुसूचित जाति” नाम का उद्भव के _इतिहास की जानकारी _ होने के बावजूद भी हमारे लोग _हिन्दू हिन्दू_ को पकडे _ हुए हैं।

अगर आप अभी भी _हिन्दू_ को पकडे हुवे तो ये _नेतिक रूप_ से _बाबासाहेब के सविधान_ का _अपमान_ कर रहे हे ।

हमेशा याद रहे की (अनुसूचित) का मतलंब _सिर्फ और सिर्फ_ यही है कि जो लोग _हिन्दू धर्म _ में _नहीं है_वे लोग_अनुसूचित है।

रवीश कुमार की क़लम से …


ध्रुव सक्सेना, मनीष गांधी, मोहित अग्रवाल, बलराम पटेल, ब्रजेश पटेल, राजीव पटेल, कुश पंडित, जितेंद्र ठाकुर,रितेश खुल्लर,जितेंद्र सिंह यादव,त्रिलोक सिंह। ये सारे नाम है उन लोगों को जिन्हें मध्य प्रदेश के एंटी टेरर स्कॉड ने पाकिस्तानी की ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए काम करने के आरोप में पकड़ा है। गनीमत है कि इनमें से कोई जे एन यू का नहीं है और न ही मुसलमान है वर्ना आज मीडिया में तूफान मच रहा होता और इसके बहाने यूपी के बड़े वाले वोट बैंक को एकजुट होने के लिए ललकारा जाता।अगर इन नामों की जगह मुस्लिम नाम होते तो मीडिया में हंगामा मच रहा होता। ट्रोल सारा काम छोड़ कर बवाल मचा चुके होते। तूफान मचाने की राजनीति का एक ही मकसद है कि किसी तरह हिन्दू मुस्लिम गोलबंदी करो और वो गोलबंदी एक पार्टी के हक में करो। जहां कहीं दंगा हो, वहां से ऐसा कोई किस्सा चुन लो और फिर सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में हंगामा करो, सवाल पूछो कि फलां कहां हैं,वो चुप क्यों हैं। अपनी सरकारों से नहीं पूछेंगे, दो चार पत्रकार से पूछकर ये बराबरी और इंसाफ मांगते हैं। एकाध ट्वीट अपने मंत्री को ही कर देते कि आप क्यों नहीं बोल रहे हैं। जांच क्यों नहीं हो रही है। आए दिन यही होता रहता है।

@DailyIndiaIN: बीजेपी नेता ISI एजेंट निकला पर ना तो कोई देश बचाने सड़क पर उतरा ना ह् मीडिया ट्रायल चला ।

पढ़िए रविश कुमार को:

बीजेपी नेता ISI एजेंट निकला पर ना तो कोई देश बचाने सड़क पर उतरा ना ही मिडिया ट्रायल चला !

उपेक्षित है महाराजा कल्यान मणि पासी की प्रतिमा

महाराजा कल्याण मणि पासी की प्रतिमा
इंजीनियर नीतीश पासी महाराजा कल्याण मणि पासी की प्रतिमा को नमन करते हुए
लखनऊ : कई दिनो से फेसबुक पर इजी.नीतिश पासी द्वारा पोस्ट की गई महाराजा कल्याण मणि पासी की जर्जर स्मारक को देखा जा रहा है । लेकिन यकीं नहीं हो रहा था कि यह हमारे पूर्वजों का शहर है। बेढंग तरह से बने इस प्रतिमा को देखकर गुस्सा सातवे आसमान पर था । 

उन सरकारों पर ज्यादा गुस्सा आया जिनके कार्यकाल में प्रतिमाओं और पार्को का जबरदस्त काम किया गया। लगा की किस तरीके से लोग अपनी अपनी सरकारो मे सिर्फ अपने अपने महापुरुषों की मूर्ति स्थापना करते है । लेकिन पासी समाज की पहले से बनाई गई मूर्तिया व किले खंडहरो मे तब्दील या धीरे धीरे नष्ट हो रहे हैं। इसकी देख भाल के लिए शासन की तरफ से किसी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं निभाई जा रही हैं। नीतिश जी से मिली जानकारी के अनुसार ‘

महाराजा कल्याण मणि पासी जी जो (बिजली पासी के समकक्ष) का किला लखनऊ, कल्ली पश्चिम में आज टीले के रूप में ही शेष बचा है इनके किले मे पासी रत्न रामलखन पासी के प्रेरणा से १५ अगस्त २००१ मे स्थापना की गई थी । लक्ष्मी प्रसाद रावत जैसे कई जुझारू समाज सेवियो का नाम शिलापट पर दर्ज है । उनके टीले में अब शिव जी का मंदिर बना है, यह किला SGPGI से मोहनलाल गंज की तरफ जाने पर PGI से 5 से 6 KM की दूरी पर जाने में दायी तरफ पड़ता है।
यहा पासी समाज के समृद्ध लोग लखनऊ में रहते है जिनमे विधायक और सांसद भी शामिल है लेकिन पासियों की विरासत की शुध लेने वाला कोई नही वहा लगभग 80% पासी की जनसंख्या रहती है फिर भी यह हाल है स्मारक का यह कही ना कही हम लोगो की जागरुकता की भी कमी है या समाज के प्रति झुकाव नही है ।