उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार मे नेताओं के बयान का गिरता स्तर और चुनाव आयोग की खामोशी 

उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए राजनितिक पार्टियों द्वारा की जा रही रैलियों मे प्रमुख नेताओं द्वारा एक दुसरे पर जमकर हमला बोला गया । एक दुसरे पर टिका टिप्पणी करने का दौर ईस तरह चला कि नेताओ ने अपना संयम खो दिया और उन्हे अपनी भाषा और मर्यादा का ख्याल ही न रहा । उत्तरप्रदेश चुनाव मे तीन पार्टिया बसपा, सपा और भाजपा ही मुख्य रुप से लड़ाई मे है ।सपा और कांग्रेस गठबंधन में है। एक चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री की तुलना गधे से कर दी । तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी उत्तरप्रदेश के सपा शासन मे श्मशान और कब्रिस्तान में भेदभाव की बात कर दी और रमजान और दिवाली ,होलि मे बिजली के आपुर्ति पर सवाल करते हुए कहा कि रमजान मे बिजली ज्यादा दि जाति है जबकि होलि और दिवाली मे बिजलि की कटौति की जाती रही है । मोदी ने बसपा को बहन जी की संपत्ति पार्टी बताई तो मायावती ने भी मोदी और अमित शाह पर पलटवार किया । सपा के बयानवीर आजम खान ने भी एक विवादित बयान दिया कि मुस्लिम युवकों के पास कोई रोजगार ही नहीं है ईसिलिए वे केवल बच्चे पैदा करते है। भाजपा नेता विनय कटियार ने भी राममंदिर मुद्दे पर बड़ा बयान दिया कि ” अयोध्या में रहना है तो मंदिर कहना है ” ।मस्जिद कहने वाले जिद्द कर रहे है मस्जिद कही था ही नही । अयोध्या को विकास के साथ मंदिर भी चाहिए । भाजपा के एक और बड़े नेता साछी महाराज ने को यहा तक कह दिया कि कब्रिस्तान होने ही नहीं चाहिए ।कुल मिलाकर उत्तरप्रदेश चुनाव प्रचार में वोटों के धुव्रीकरण के लिए विवादित और संप्रदायिक बयानों का सभी पार्टियों द्वारा जमकर उपयोग किया गया विशेषत:भाजपा द्वारा ज्यादा ही । फिर भी चुनाव आयोग द्वारा ईन सभी पार्टियों की गतिविधियों को नजरअंदाज करते हुए केवल सभी पार्टियों के नाम एक अपील पत्र जारी किया गया जिसमे पार्टी और पार्टी नेताओं को ऐसे बयानों से बचने की सलाह दी गयी थी । क्या चुनाव आयोग को नेताओं के बयान पर कारवाई नहीं करनी चाहिए ?                                 प्रस्तुति :-                                                     अमित कुमार                                                 दिनारा रोहतास बिहार

                     

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