आरक्षण क्या है एक जानकारी भरा लेख

आरक्षण विरोधी मुर्ख लोग इतना भी नही जानते की

   किस आरक्षण की सीमा 10 वर्ष  है।

   अगर जानते है तो गलत प्रचार करते है। 

   और अपनी मूर्खता और घटिया सोच का

   परिचय भी देते है।

   राजनितिक ताकतों ने सिर्फ वोट बैंक के लिए

   भारतीय जनमानस को ये जानने ही नही दिया। 

   कि,आरक्षण केवल 10 वर्ष के लिए नही था।

   सवर्ण और असवर्ण आरक्षण विरोधी आरक्षण

   समर्थक सभी ये जान ले की आरक्षण 10 वर्षो

   के लिए कभी भी नही था।

   आरक्षण 4 प्रकार के है ………………….

1. पोलिटिकल रिजर्वेशन

2. रिजर्वेशन इन एजुकेशन

3. रिजर्वेशन इन एम्प्लॉयमेंट

4. रिजर्वेशन इन प्रमोशन

    अनुच्छेद 330 के अनुसार

    लोकसभा में और अनुच्छेद 332 के अनुसार 

    विधानसभा में SC/ST को आरक्षण प्राप्त है। 

    और अनुच्छेद 334 में लिखा है की प्रत्येक 10

    वर्षो में लोकसभा और विधानसभा में मिले

    आरक्षण की समीक्षा होगी।

    और यही वो अनुच्छेद है। 

    जिसकी ग़लतफ़हमी सभी को है।

    सभी लोग ये जान ले ये सरासर झूठ है। 

    की सभी प्रकार के आरक्षण सिर्फ 10 वर्ष के

    लिए थे।”

    अब दूसरे तीसरे और चौथे प्रकार के आरक्षण 

    पर आते है………………

    अनुच्छेद 15 और 16 जो की मुलभुत 

    संवैधानिक अधिकार है। 

    इसमें सम्मिलित 15(4) और 16(4) में शिक्षा

    और रोजगार में SC/ST को आरक्षण दिया

    गया है।

    और जो ये मुलभुत अधिकार है……….. इन्हें

    कोई बदल नहीं सकता~~~ क्योकि ये

    मुलभुत संवैधानिक अधिकार है।  

    “संविधान लागू होने के बाद सत्ताधारी वर्ग 

    और विपक्ष ने जानबूझकर ये ग़लतफ़हमी 

    फैलाई।

    की रोजगार और शिक्षा में आरक्षण सिर्फ 10

    साल के लिए था”।

    हमारे सभी एस सी एसटी/ओबीसी बहुजन/     

    मूलनिवासी भाइयो से निवेदन है।

    की इस सच्चाई को सबके सामने लाये।

    की रोजगार और शिक्षा में आरक्षण सिर्फ 10

    साल के लिए नही हमेशा के लिए है।

    जाति व्यवस्था जब तक।

    आरक्षण व्यवस्था तब तक।

    जय मूलनिवासी! जय मूलनिवासी! 

   साथियों !

     जयभीम !
  *********नमोबुद्धाय*********

जानकारी

हिंदु मंदिर में नारियल क्यो फोड़ा जाता है??इसके बारे में यह ऐतिहासिक जानकारी होना जरूरी है…….
मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चक्रवर्ति सम्राट अशोक के वंशज मोर्य वंश के बौद्ध सम्राट राजा बृहद्रथ मोर्य की हत्या उसी के सेनापति ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से की थी और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था ।

उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम किया था।पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण (हिन्दू) धर्म कबूल करवाता था।

*इसके बाद ब्राह्मण* *पुष्यमित्र शुंग ने अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया।

पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी*…

*राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, भगवाधारी बौद्ध भिक्षु का सर(सिर) काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी।
*इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम हुआ।
राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर आने लगे ।
इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा ,बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था* । इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था*।

*राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात “सरयू” हो गया*।

*इसी “सरयू” नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने “रामायण” लिखी थी।* *जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और रावण के रूप में मौर्य सम्राट का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था।

*इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में “सरयू” नदी के किनारे हुई।

*बौद्ध भिक्षुओ के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए।तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा’ कि इन बौद्ध विहारों का क्या करे की आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नही लगे कि बीते वर्षो में यह क्या थे* ?*

*तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रो को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकाने खोल दी*।

*ध्यान रहे उक्त ब्रह्दथ मोर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था ना ही इस तरह की संस्क्रति थी।वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है*।

*पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी ” सच्ची रामायण” पुस्तक लिखी जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर* *412/1970 में वर्ष 1970-1971 व् सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बिच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला* ।

*जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती जस्टिस वी आर कृषणा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया !

की सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य वेध है*।

*सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है!

कि ” रामायण नामक देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक है और इनका पुरातातविक कोई आधार नही है*।

*अथार्त् फर्जी है*।

दलित फूड्स

दलित फूड्स
बाज़ार में    ”  दलित फूड्स ” ने छुवा छूत को  कड़ी चुनौती दिया!!
 यह अविष्वसनीय है किंतु सत्य है! आजादी के बाद बहुत ही कम समय में ही  अनुसूचित जातियों का इतना अधिक विकास होना निश्चित ही हजारों साल पुराने मनुवाद को  बहुत बड़ी चुनौती है!यहाँ  हम बात कर रहे हैं पासी समाज(अनुसूचित जाति) में जन्मे प्रसिद्ध दलित हित चिंतक बुद्धि जीवी चंद्रभान प्रसाद साहब की  जिन्होंने जाती गत भेद भाव को  पैक्ड फ़ूड से दूर करने की ठानी है। इनमें वह खाद्य वस्तुएँ शामिल हैं जो सदियों तक  पशुओं या दलित पिछड़ी जाति के लोगों का आहार रही है। मनुवादी समाज के लोग जिन्हें दोयम दर्जे का मान कर मुह बिचकाते थे। यह और बात है अब बड़े बड़े वैज्ञानिक साक्ष्य से ज्ञात हो चूका है। कि इन आहारों में कई गुना पोषक तत्व थे। जो मानव  की सेहत  के लिए बहुत  अधिक गुणकारी थे। अब  इनकी स्वीकारिता बढ़ती जा रही है। श्री प्रसाद जी ने हाल ही में मसाले अचार और मोटा अनाज बेंचने के लिए  “दलित फूड्स” सेवा  ऑन लाइन लॉन्च किया है। श्री प्रसाद जी ने एक इंटरवियू में बताया था कि जब वह बड़े हो रहे थे गांव में  अपनी शिक्षा के दौरान उन्हें और उनके परिवार जाति समाज के लोगों को न चाहते हुवे भी मोटा अनाज ही खाना पड़ता था। उस समय जौ ,चना, बाजरा, ज्वार ,मक्का आदि निम्न दर्जे का भोजन माना जाता था सवर्णो के यहाँ इसे  नौकर और पशुओं को खिलाया जाता था। समय का बदलाव देखिये आज इसे ही सुपर फ़ूड कहा जाता है । दलित फूड्स  योजना  उन्ही खाद्य  वस्तुओं को जन साधारण में लोक प्रिय बनाने के लिए दृढ संकल्पित है।

बड़े बड़े होटल आज स्वस्थ्य जागरण होने के नाते प्रायोगिक तौर पर दलित फूड्स खरीद रहे है। बड़े बड़े शहरों में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।।

    उद्द्योग संगठन एसोचैम की माने तो घरेलु पैक्ड फ़ूड मार्केट को सन 2017-18  तक 50 अरब डॉलर हो जाने के आसार है। बीते साल में इसका बाजार 32 अरब डॉलर का था वर्तमान उद्द्यमी, लेखक और महान दलित चिंतक, कार्यकर्त्ता श्री प्रसाद जी ने बताया कि दलित फूड्स  अभी बहुत छोटी रेंज में  अंचार और अनाज बेंच रही है। इसमें पिसी हल्दी,आम का अंचार,जौ का आटा और कुछ दालें शामिल हैं। आगे चल कर इसमें और कई उत्पाद जोड़े जाने की योजना है। जैसे अभी कुछ समय पूर्व ही सूचना मिल रही है टीशर्ट भी इस बैनर तले  बहुत कम रेट पर बिकेगी। इसी परिपेक्ष्य में श्री प्रसाद जी ने बताया  था कि मेरे परिवार के तीन सदस्सयो  की  मौत कैंसर के कारण हो चुकी है। मोटे अनाज में प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है जो इस रोग से बचाता भी है तथा और भी कई बीमारियों से रक्षा या बचाव भी  करता है। साथ ही समाज में फैली कुरीति छुआछूत जो सन 1955 से कानूनी तौर पर पूर्णतया प्रतिबंधित है फिर भी व्यवहारिक तौर पर दूर नहीं हो सकी है। आज भी लोग दलितों के हाथ से बने खाद्य पदार्थ को अशुद्ध मानते है यही सब कारण है की मेरा रुझान दलित फूड्स योजना की  स्थापना  की तरफ हुवा है । यह एक सामाजिक बदलाव के लिए प्रयोगात्मक  प्रक्रिया भी है। इस कार्य से दलित समाज  के प्रति फैली छुआछूत दूर करने का एवम उनकी बेरोजगारी दूर करने का प्रयास भी किया जाएगा। लोगों में उद्द्योग के प्रति रुझान भी पैदा हो यह प्रयास भी किया जायेगा।।

    मेरी(लेखक की)सोच है कि समाज के लोगों को इससे ज्यादा से ज्यादा संख्या में जुडना चाहिए इसमें कई सीढियां बनायीं जा सकती है बाबा राम देव की तरह इसमें लोगो को जोड़ कर देश व्यापी बिक्री हेतु प्रयास किया जाना  सकता है । जब अपने जीवन के सभी पायदान पर सफल श्री चंद्रभान प्रसाद साहब इस क्षेत्र में प्रयास कर सकते है तो अन्य लोग क्यों नहीं?? इसी कड़ी में मेरी सोच है अन्य शाखाएं भी बनायीं  जा सकती है जैसे “सुपर फाइबर फ़ूडस”  या “मूल खाद्य  पदार्थ” आदि नामो से बाजार में उतरने पर सफलता के चांस बढ़ जाएंगे।( पत्रिका दलित शब्द से इत्तेफाक नहीं रखती)

 आर के सरोज़

Ph no.9450639644

प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
हाल पता:-   साऊथ सिटी लखनऊ

पासी समाज के सम्मान में मुक्तक !


Title: (1) पासी  समाज के लिए
मुक्तक  जो किसी भी पासी सम्मेल्लन में पढ़े जा सकते है।।
👍👍👍👍👌👌👌💐👌👌👌👍👍👍👍👍

 जो सबको दे शुकून  वो समीर चाहिए  ।
जो सच्चा प्यार कर सके वो हीर चाहिए।
उन्नति का पथ प्रसश्त हो पासी समाज का।
जो पासियों के हित लड़ें वो वीर चाहिए।।
★★★★★★★★★★★★★★★★

             (  2)

 

मुग़ल भारत में जब आये मुकाबिल उनसे पासी थे।
और अंग्रेज जब आये लड़े उनसे भी पासी थे  ।
टूट जाए झुके ना जो  यही पहिचान पासी की।
धर्म की रक्षा की खातिर  मिटे जो वीर पासी थे।।
★★★★★★★★★°°℃℃℃ ★★★★★★

            (  3)
राजा से क्यों दलित हुवे ये जान लीजिए।
छीना गया जो हमसे उसे उसे छीन लीजिये
पासी के संगठन खड़े है साथ आपके।#
शिक्षा है सबकी कुंजी इसे जान लीजिए।।
★★★★★★®★★★★★★★★

           (  4)
झुका कर जो चले खुद को वो पासी हो नहीं सकता।
पसवां जो न कहलाये, वो पासी हो नहीं सकता।
खून में है वफादारी यही इतिहास कहता है।
नहीं जज़्बा है क़ुरबानी , वो पासी हो नहीं सकता।।
★★★★★★★★®★★★★★★★★★

                            ( 5)
मां गोमती का बरद हस्त जिस धरा को है।
लाखन ने बसाया इसे , अभिमान हमको है।
इतिहास बिजली पासी उदा।    वीरांगना ।
सौ बार नमन लखनऊ गौरव सभी को है।।
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