अजय पासी ने एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 28 साल बाद भारत को गोल्ड दिलाने के बाद तुर्कमेनिस्तान में चल रहे एशियन इनडोर गेम्स में देश को दिया स्वर्ण पदक… 

इलाहाबाद के लाल एथलीट अजय कुमार सरोज ने भुवनेश्वर में हो रही एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 28 साल बाद भारत को गोल्ड दिलाने के बाद 

अजय कुमार सरोज ने तुर्कमेनिस्तान में चल रहे एशियन इनडोर गेम्स में 1500 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता है..

ग्राम-कजियानी..

तहसील-सोरांव..

गंगापार इलाहाबाद निवासी श्री धर्मपाल सरोज के पुत्र अजय कुमार सरोज ने तुर्कमेनिस्तान में चल रहे एशियन इनडोर गेम्स में 1500 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीत कर देश मान बढ़ाया.. 

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बहुजन आवाम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा. मिठाईलाल पासी से खास बातचीत के अंश… 

वर्तमान में क्षरण होते बहुजन समाज के राजनौतिक मूल्यों को पुन: संभालने  के उद्देश्य से राजनीति के क्षेत्र में बहुत तेजी से उभर कर एक राजनौतिक दल  *बहुजन अवाम  पार्टी* दलित समाज के लिए आशा की किरण बन कर आयी है। प्रस्तुत है इस दल के संयोजक और राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मिठाईलाल पासी जी से बात-चीत के कुछ अंश—-

प्रश्न  : श्री पासी जी आपको बहुजन अवाम  पार्टी गठन की प्रेरणा कहाँ से मिली..?

अध्यक्ष  : बाबा साहब के क्षरण होते सिद्धांतों को पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से। हमारी विचारधारा यह है कि आजादी के ७० साल बीत जाने के बाद भी देश के बहुसंख्यक समाज के लोगों को मौलिक अधिकारों और नैसर्गिक न्याय से वंचित रखा गया है। हम इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संघर्ष करना चाहते हैं।
प्रश्न  : आप किनके लिए काम करना चाहते हैं….?

अध्यक्ष जी: जो लोग वर्षों पुरानी मनुवादी व्यवस्था से पीड़ित रहे हैं। इनके तहत अनु० जाति, अनु० जनजाति, पिछड़ी जातियां एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों व आर्थिक रूप से कमजोरों आदि के लिए।

प्रश्न : आपकी पार्टी का मिशन क्या है..?

अध्यक्ष : समान शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, स्वच्छता, रोजगार और भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था की स्थापना ।
प्रशन : पार्टी के विस्तार के लिए आपकी क्या योजना है..?

अध्यक्ष : पार्टी विस्तार के लिए सभी स्तर पर छात्र शाखा/युवजन सभा, किसान/मजदूर संघ, व्यापारी हितकारी समिति व महिला शाखा के गठन की हमारी योजना है।
प्रश्न  : पिछले चुनावों में भाग लेने पर आपकी पार्टी की क्या स्थिति रही है..?

अध्यक्ष जी: उ०प्र० के विधानसभाई चुनावों में हमने 31 प्रत्याशी उतारे थे जिन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था। वंचित समाज यदि रुचि लेता तो हमारे बहुत से प्रत्याशी चुनाव जीत सकते थे। लेकिन हम निराश नहीं हैं।  भविष्य में सभी सुरक्षित सीटों के साथ आगामी चुनावों में सभी १४५ दलित बाहुल्य सीटों पर प्रत्याशी उतारेंगें।

प्रश्न  : क्या आप 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारेंगें….?

अध्यक्ष जी : हाँ…हाँ…. क्यों नहीं …..बहुत ही अच्छे सक्षम समाजसेवी गण हमारे पास हैं जो पूरी तरह से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।
प्रश्न : आपके अपने कुछ विचार जो जनता में देना चाहते हों….?

अध्यक्ष जी: यही कहना चाहूँगा कि बाबा साहब के सिद्धांतों और मान्यवर कांशीराम के आन्दोलन, बाबा पेरियार के संदेश और लोहिया के संघर्ष को हम मरने नहीं देंगे उसकी रक्षा के लिए हम अंतिम सांस तक लड़ेंगें। हमसे जो भी साथी जुड़ना चाहते हैं वे प्रत्येक रविवार सुबह ११:००-०२:०० बजे, इलाहाबाद स्थित कार्यालय में भेंट कर सकते हैं या हमारे पार्टी पदाधिकारियौं से संपर्क कर सकते हैं…….
श्री मिठाई लाल पासी राष्ट्रीय अध्यक्ष, बहुजन अवाम पार्टी 

 इस मुलाकात के बाद अध्यक्ष जी को उनके मिशन की सफलता के लिए शुभकामनाएं ।

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भाजपा नेता स्वामी ने कहा – आरक्षण को वहां पहुंचा देंगे, जहां होना या न होना बराबर होगा

नई दिल्ली ।। आरक्षण को एकदम खत्म करने की बात करना पगलपन है, लेकिन भाजपा सरकार आरक्षण को उस स्तर तक पहुंचा देगी, जहां उसका होना या नहीं होना बराबर होगा। इस दिशा में काम शुरू हो गया है।

उपरोक्त बातें एक महिला पत्रकार के सवाल के जवाब में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कही है। महिला पत्रकार का सवाल था कि 97 फीसदी मार्क्स लाने के बाद भी प्रवेश विश्वविद्यालयों में नहीं मिल रहा है। जबकि 50 फीसदी वाले छात्र कक्षा में बैठ जाते हैं।

इस मुद्दे पर फेसबुक पर डॉ. सुनील कुमार सुमन लिखते हैं…

पैर के नीचे की ज़मीन खोदने के कई तरीके होते हैं। जरूरी नहीं कि इसे दिखाकर ही किया जाए। ये महाधूर्त और मायावी लोग हैं। विध्वंस करने में सिद्धहस्त हैं। ये बोलते कम हैं, करते बहुत ज्यादा हैं। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जो कहा, भाजपा सरकारें इस काम में लगी हुई हैं। अभी हमारे लोगों को नहीं दिख रहा, लेकिन वंचित तबकों के वजूद की संवैधानिक ज़मीन दरकाने का काम अंदर-अंदर तेजी में चल रहा है।

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अरुण की मां और नई साडी

अरुण अपनी मां से बेहद प्यार करता था उसकी मां लोगों के घरों में बर्तन मांज कर घर का खर्च चलाती थी अरुण हालांकि अभी 12 साल का था पर परिवार की मदद के लिए छोटे-मोटे काम वह भी कर लेता था के कभी वह किसी होटल में बर्तन धो देता था तो कभी किसी के घर सामान पहुंचाने का काम कर दिया करता था इस तरह के काम करके वह महीने में चार पांच सौ रुपया कमा लिया करता था अरुण की मां का जन्म दिन नजदीक आ रहा था अरुण का बहुत मन था कि वह अपनी मां को नई साड़ी दिलाएं उसने पिछले कई महीनों में जोड़कर ₹1000 इकट्ठा किए थे जब रोड अपनी मां के लिए साड़ी लेकर आया तो उसकी मां बहुत नाराज हुई पहले तो वहां रोड़ पर चोरी का इल्जाम लगाने लगी जब उसने बताया कि यह पैसे उसने खुद मेहनत करके कमाए हैं

 वह बोली हमारे ऊपर कर्ज कम है क्या जो तुमने सारे पैसे इस सारी पर गवा दिए तुम्हारा पूरा जीवन ऐसे ही Karz में बीत जाएगा तुम कभी कुछ नहीं अच्छा कर पाओगे उन्होंने अरुण को बहुत भला बुरा कहा और साड़ी उसे वापस कर दी। 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिया इस्तीफा राजनीति में भूचाल 
यह बात अरुण के मन में बैठ गई उसे बहुत बुरा लगा कि आज उसने कितने शौक से अपनी मां के लिए तोहफा खरीदा लेकिन मैंने उसे वापस कर दिया कई साल बीत गए और  अरुण पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करने लगा उसने अपना घर अपनी गाड़ी खरीदी एक बार फिर मां का जन्मदिन आया अरुण के लिए खरीदी व साड़ी अब तक संभाल कर रखी थी उसने जब मां को जन्मदिन पर वह साड़ी दी उनकी आंखों में आंसू आ गए वह बोली मैं वह दिन कभी भूल नहीं सकती तुमने अपनी पहली कमाई से मेरे लिए साड़ी खरीदी और मैंने अपना सारा गुस्सा तुम पर निकाल दिया मैं कभी अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगी अरुण बोला आज मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं तो इसकी वजह आपका उस दिन का गुस्सा ही है। 

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कोल्हापुर के नरेश और आरक्षण के जनक क्षत्रपति साहू जी महाराज की जयंती पर विशेष 

छत्रपति साहू महाराज ( अंग्रेज़ी : Chhatrapati Shahu Maharaj , जन्म- 26 जुलाई , 1874 ; मृत्यु- 10 मई , 1922 , मुम्बई ) को एक भारत में सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता था। वे कोल्हापुर के इतिहास में एक अमूल्य मणि के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। छत्रपति साहू महाराज ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने राजा होते हुए भी दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझा और सदा उनसे निकटता बनाए रखी। उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की थी। गरीब छात्रों के छात्रावास स्थापित किये और बाहरी छात्रों को शरण प्रदान करने के आदेश दिए। साहू महाराज के शासन के दौरान ‘ बाल विवाह ‘ पर ईमानदारी से प्रतिबंधित लगाया गया। उन्होंने अंतरजातिय विवाह और विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में समर्थन की आवाज उठाई थी। इन गतिविधियों के लिए महाराज साहू को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। साहू महाराज ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे और लंबे समय तक ‘सत्य शोधक समाज’, फुले द्वारा गठित संस्था के संरक्षण भी रहे।

जन्म परिचय

छत्रपति साहू महाराज का जन्म 26 जुलाई , 1874 ई. को हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था। छत्रपति साहू महाराज का बचपन का नाम ‘यशवंतराव’ था। छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे। ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण

दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च ,

1884 ई. में गोद ले लिया। बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा। यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफ़ी समय बाद अर्थात 2 अप्रैल, सन 1894 में आया था।

विवाह

छत्रपति साहू महाराज का विवाह बड़ौदा के

मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था।

शिक्षा

साहू महाराज की शिक्षा राजकोट के ‘राजकुमार महाविद्यालय’ और धारवाड़ में हुई थी। वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने। उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है। अतः उन्होंने दलितों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया। छत्रपति साहू महाराज ने दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए। इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी। परन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया। वे छत्रपति साहू महाराज को अपना शत्रु समझने लगे। उनके पुरोहित तक ने यह कह दिया कि- “आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है। छत्रपति साहू महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया।

यज्ञोपवीत संस्कार

साहू महाराज हर दिन बड़े सबेरे ही पास की नदी में स्नान करने जाया करते थे। परम्परा से चली आ रही प्रथा के अनुसार, इस दौरान ब्राह्मण पंडित मंत्रोच्चार किया करता था। एक दिन बंबई से पधारे प्रसिद्ध समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भागवत भी उनके साथ हो लिए थे। महाराजा कोल्हापुर के स्नान के दौरान ब्राह्मण पंडित द्वारा मंत्रोच्चार किये गए

श्लोक को सुनकर राजाराम शास्त्री अचम्भित रह गए। पूछे जाने पर ब्राह्मण पंडित ने कहा की- “चूँकि महाराजा शूद्र हैं, इसलिए वे वैदिक मंत्रोच्चार न कर पौराणिक मंत्रोच्चार करते है।” ब्राह्मण पंडित की बातें साहू महाराज को अपमानजनक लगीं। उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया। महाराज साहू के सिपहसालारों ने एक प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित नारायण भट्ट सेवेकरी को महाराजा का यज्ञोपवीत संस्कार करने को राजी किया। यह सन 1901 की घटना है। जब यह खबर कोल्हापुर के ब्राह्मणों को हुई तो वे बड़े कुपित हुए। उन्होंने नारायण भट्ट पर कई तरह की पाबंदी लगाने की धमकी दी। तब इस मामले पर साहू महाराज ने राज-पुरोहित से सलाह ली, किंतु राज-पुरोहित ने भी इस दिशा में कुछ करने में अपनी असमर्थता प्रगट कर दी। इस पर साहू महाराज ने गुस्सा होकर राज-पुरोहित को बर्खास्त कर दिया।

आरक्षण की व्यवस्था

सन 1902 के मध्य में साहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए थे। उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये। महाराज के इस आदेश से कोल्हापुर के ब्राह्मणों पर जैसे गाज गिर गयी। उल्लेखनीय है कि सन

1894 में, जब साहू महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे। इसी प्रकार लिपिकीय पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे। साहू महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के कारण सन 1912 में 95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या अब 35 रह गई थी। सन 1903 में साहू महाराज ने कोल्हापुर स्थित शंकराचार्य मठ की सम्पत्ति जप्त करने का आदेश दिया। दरअसल, मठ को राज्य के ख़ज़ाने से भारी मदद दी जाती थी। कोल्हापुर के पूर्व महाराजा द्वारा अगस्त , 1863 में प्रसारित एक आदेश के अनुसार, कोल्हापुर स्थित मठ के शंकराचार्य को अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति से पहले महाराजा से अनुमति लेनी आवश्यक थी, परन्तु तत्कालीन शंकराचार्य उक्त आदेश को दरकिनार करते हुए संकेश्वर मठ में रहने चले गए थे, जो कोल्हापुर रियासत के बाहर था। 23 फ़रवरी , 1903 को शंकराचार्य ने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति की थी। यह नए शंकराचार्य लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के क़रीबी थे। 10 जुलाई , 1905 को इन्हीं शंकराचार्य ने घोषणा की कि- “चूँकि कोल्हापुर भोसले वंश की जागीर रही है, जो कि क्षत्रिय घराना था। इसलिए राजगद्दी के उत्तराधिकारी छत्रपति साहू महाराज स्वाभविक रूप से क्षत्रिय हैं।”

स्कूलों व छात्रावासों की स्थापना

मंत्री ब्राह्मण हो और राजा भी ब्राह्मण या

क्षत्रिय हो तो किसी को कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन राजा की कुर्सी पर वैश्य या फिर

शूद्र शख्स बैठा हो तो दिक्कत होती थी। छत्रपति साहू महाराज क्षत्रिय नहीं, शूद्र मानी गयी जातियों में आते थे। कोल्हापुर रियासत के शासन-प्रशासन में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व नि:संदेह उनकी अभिनव पहल थी। छत्रपति साहू महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों मराठा , महार, ब्राह्मण,

क्षत्रिय , वैश्य , ईसाई, मुस्लिम और जैन सभी के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएँ खोलने की पहल की। साहू महाराज ने उनके लिए स्कूल और छात्रावास खोलने के आदेश जारी किये। जातियों के आधार पर स्कूल और छात्रावास असहज लग सकते हैं, किंतु नि:संदेह यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं। उन्होंने दलित-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए ख़ास प्रयास किये थे। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। साहू महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था। स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले पिछड़ी जातियों के लड़के-लड़कियों की संख्या में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी। कोल्हापुर के महाराजा के तौर पर साहू महाराज ने सभी जाति और वर्गों के लिए काम किया। उन्होंने ‘ प्रार्थना समाज’ के लिए भी काफ़ी काम किया था। ‘राजाराम कॉलेज’ का प्रबंधन उन्होंने ‘प्रार्थना समाज’ को दिया था।

कथन

छत्रपति साहू महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे। इस पर उन्होंने कहा था कि- “वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते।”

साहू महाराज जी ने 15 जनवरी , 1919 के अपने आदेश में कहा था कि- “उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी दलित-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये। उनका स्पष्ट कहना था कि- “छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा। उच्च जातियों को दलित जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए। जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है।”

15 अप्रैल, 1920 को नासिक में ‘उदोजी विद्यार्थी’ छात्रावास की नीव का पत्थर रखते हुए साहू महाराज ने कहा था कि- “जातिवाद का अंत ज़रूरी है. जाति को समर्थन देना अपराध है। हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा जाति है। जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं। निश्चित रूप से ऐसे संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना चाहिए।

समानता की भावना

छत्रपति साहू महाराज ने कोल्हापुर की नगरपालिका के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी। यह पहला मौका था की राज्य नगरपालिका का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुन कर आया था। उन्होंने हमेशा ही सभी जाति वर्गों के लोगों को समानता की नज़र से देखा। साहू महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने एक आदेश से इनके लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करा करवा दिया और उन्हें सामान्य व उच्च जाति के छात्रों के साथ ही पढने की सुविधा प्रदान की।

भीमराव अम्बेडकर के मददगार

ये छत्रपति साहू महाराज ही थे, जिन्होंने ‘ भारतीय संविधान ‘ के निर्माण में महत्त्वपूर्व भूमिका निभाने वाले भीमराव अम्बेडकर को उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजने में अहम भूमिका अदा की। महाराजाधिराज को बालक भीमराव की तीक्ष्ण बुद्धि के बारे में पता चला तो वे खुद बालक भीमराव का पता लगाकर मुम्बई की सीमेंट परेल चाल में उनसे मिलने गए, ताकि उन्हें किसी सहायता की आवश्यकता हो तो दी जा सके। साहू महाराज ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के ‘मूकनायक’ समाचार पत्र के प्रकाशन में भी सहायता की। महाराजा के राज्य में कोल्हापुर के अन्दर ही दलित-पिछड़ी जातियों के दर्जनों समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं। सदियों से जिन लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं था, महाराजा के शासन-प्रशासन ने उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी थी।

निधन

छत्रपति साहूजी महाराज का निधन 10 मई,

1922 मुम्बई में हुआ। महाराज ने पुनर्विवाह को क़ानूनी मान्यता दी थी। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार का द्वेष नहीं था। साहू महाराज के मन में दलित वर्ग के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रन्तिकारी उपाय किये थे, वह इतिहास में याद रखे जायेंगे।

बहुत लाभकारी व्यवसाय है सुअर पालन 

इलाहाबाद के राजनीति शास्त्र के प्रख्यात विशेषज्ञ मो यूनुस खान इस समय SSC परिवर्तन एकेडेमी व  IAS के लिये समर्पण संस्थान जैसी कोचिंगे चलाते है, वे बताते है कि उनके एक दोस्त नाम प्रवीण तिवारी है जो इस समय बांदा में किसी पोस्ट पर कार्यरत है। 

बात लगभग १५-२० वर्ष पूर्व की है तब तिवारी जी इलाहाबाद में रहकर नौकरी की तैयारी कर रहे थे, एसे ही बीच मे इनका एक इंटरव्यू कोई ले रहा था, शायद कल्याण सिंह का राजनीतिक बोर्ड भी था, इंटरव्यू लेने वाला तिवारी से पूछा तिवारी जी इतना पढाई कर रहे हैं अगर सफल ना हुये तो?  तो तिवारी जी जबाब दिये और मेहनत करूंगा . उस व्यक्ति ने फिर पूछा तब भी सफलता ना मिली तो – तिवारी जी कहते हैं थोडा और मेहनत करूंगा .

इंटरव्यू लेने वाला व्यक्ति सिर्फ ये जानना चाहता था कि अगर तिवारी जी को नौकरी नही मिली तो ये क्या करेगे इस बार पूछने पर तिवारी जी और मेहनत करने की बात नही की उन्होंने सीधा जबाब दिया नौकरी नही मिलेगी तो सुअर पालेगे। 

सोचो दोस्तो तिवारी जी को पता है जितना इस बिजनेस में फायदा है उतना किसी बिजनेस में नही। मादा सुवर वर्ष में दो तीन बार 10-12 बच्चे देती है जो तीन चार माह में 50 से 40 किलो तक तैयार हो जाता है। 

दोस्तो यह दिमाग से बिल्कुल निकाल दीजिये की सुवर पालन का कार्य पासी करते है, इसका उपयोग पासियो ने अंग्रेजों को भगाने के लिये किया था जो कुछ समय तक पासी जाति पालते रह गये। मै अभी नेट पर Search कर रहा था कि तिवारी, मिश्रा, ठाकुर बनिया, यादव सुअर पालन की जानकारी मागते रहते है। 

 आज के समय में बनिया, ठाकुर, ब्राह्मण बहुतायत में सुअर पालन कर रहे हैं। कही कही पालन मालिक ब्राह्मण बनिया है और खिलाने पिलाने वाला दलित नौकर जो मात्र ₹ 1500 या ₹ 2000 मे कार्य करते है इससे अच्छा है ऐसे लोग खुद यह पालन करे दोस्तो मै ये नही कह रहा हू कि आप अपने घर सुवर पाले इसको घर से दूर ही रखे पर अगर पालन करना है तो बिजनेस की तरह करे जिससे अत्यधिक लाभ हो इसी के बाल से तरह तरह के ब्रश बनाये जाते हैं जो सभी जाति धर्म के लोग उपयोग करते है। 

सूअर फार्म के साथ अगर मछली पालन का बिजनेस किया जाए तो काफी लाभकारी साबित हो सकता है। क्योंकि सूअर की वेस्ट मटेरियल मछली की पसंद खुराक है। मै कुछ लिंक दे रहा हू कैसे करे सुअर पालन…

– Achchhela Saroj 

 http://www.hindiremedy.com/pig-farming-suar-palan/

लश्करे तैयबा का खतरनाक आतंकवादी पंडित संदीप शर्मा गिरफ्तार

 Mon, Jul 10, 2017 3:35 PM

जम्मू-कश्मीर में पुलिस ने संदीप शर्मा नाम के लश्कर ए तैयबा के एक खतरनाक आतंकवादी को गिरफ्तार किया है। संदीप शर्मा की गिरफ्तारी की खबर कश्मीर के आईजी मुनीर खान ने जानकारी दी।

यूपी का रहने वाला संदीप शर्मा खतरनाक आतंकवादी बशीर लश्करी का साथी था जो एक जुलाई को अनंतनाग में मुठभेड़ में मारा गया था। मुठभेड़ के समय आतंकवादी संदीप शर्मा भी बशीर के साथ एक ही मकान में छिपा था।

 आतंकवादी संदीप कश्मीर में बैंक और एटीएम लूट की घटनाओं में भी शामिल रहता था। पुलिस की गाड़ी लूटने में भी संदीप शर्मा का हाथ रहा है। अन्य मामलों में उसकी भूमिका की जांच की जा रही है। आईजी मुनीर खान ने बताया, “हमने संदीप शर्मा को गिरफ्तार किया है जो उत्तर प्रदेश का रहने वाला है। संदीप एक पेशेवर अपराधी है जो सोपोर में आतंकी शाहरूख की मदद से लश्कर के संपर्क में आया था।”

संदीप को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से गिरफ्तार किया गया था। संदीप के पिता का नाम पंडित राम शर्मा बताया जा रहा है। पुलिस ने बताया है कि, “संदीप स्थानीय लोगों के बीच अपना नाम आदिल बताया करता था।”

आतंकवादी संदीप शर्मा पर हत्याओं के भी आरोप हैं। एसएचओ फिरोज डार की हत्या में भी संदीप शर्मा  शामिल था।  16 जून को ही फिरोज डार की हत्या की गई थी। इसके अलावा संदीप ने तीन और आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया है।

पंडित राम शर्मा का बेटा संदीप  2012 में घाटी में आया था और 2017 में आतंकवाद में शामिल हुआ था।  

इलाहाबाद के अजय पासी ने 28 साल बाद दिलाया भारत को स्वर्ण पदक 

इलाहाबाद के लाल एथलीट अजय कुमार सरोज ने भुवनेश्वर में हो रही एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 28 साल बाद भारत को गोल्ड दिलाया है। गोल्ड दिलाकर अजय ने न केवल इलाहाबाद का बल्कि उत्तर प्रदेश और देश का अभिमान बढ़ाने के साथ-साथ पूरा पासी समाज गर्व महसूस कर रहा है। 

इलाहाबाद के राजापुर कस्बे में रहने वाले एथलीट अजय कुमार सरोज ने शुक्रवार को शानदार प्रदर्शन करते हुए 1500 मीटर की दौड़ में अपने प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ते हुए गोल्ड पर कब्जा जमाया। अजय ने 1500 मीटर की रेस महज 4 मिनट 45.85 सेकेंड में पूरी कर यह कारनामा किया। इस तरह 28 साल बाद किसी भारतीय ने एथलेटिक्स में गोल्ड दिलाने का काम किया है।

28 साल पहले बलिया के बहादुर प्रसाद ने इस दौड़ का स्वर्ण पदक जीता था। अब इस जीत के बाद अजय भी रतन सिंह, सुरेश यादव, बगीचा सिंह व बहादुर प्रसाद जैसे महान धावकों की लिस्ट में शामिल हो गए हैं। वहीं अब इलाहाबाद के लाल द्वारा गोल्ड पर कब्जा जमाने के बाद यहाँ लोगों में खुशी का माहौल है। बहुत जल्द अजय सरोज से मुलाकात कर पासी समाज उन्हे सम्मानित करेगा। 

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राय मांगने पर भी नही मिलता, बदलता भारत? 

नमस्कार शुभ प्रभात राय माँगने पर भी नहीं मिलता है,बदलता भारत ..क्या बदलाव आया है,हम कुछ बदलाव को पूरा बदलता नहीं कहेंगे,क्यूँ कि मालूम है,देश की जनता जो मूल देश की धरोहर है,मूल निवासियों की बात कर रहे हैं,

आज जंगल,रोड़,स्टेशन,फुटपाथ,अन्य,जगह जगह पर सोने को मजबूर हैं,खाना,पानी,तो दूसरी बात,,वो आज तक वोट तक नहीं डाला है,,तो सरकार ने १९५७से  किसका बदलाव कर रही है,मेरे समझ में आया है,हम कुछ पढ़ें लिखे हैं जानते हैं,पर ६०%देश की जनता अनपढ़ है,साछर हैं,पर दसखत करने भर आगे कुछ भी नहीं आता,यहाँ तक दूसरों पर निर्भर रहते हैं,बैंक मे पैसा निकालने,या पैसा गिनना बाबू साहब या पंडित जी को ले जाते हैं,चाहे अपना घर की लड़की,लड़का,बीए पास हो भरोसा नहीं है,,, आप बदलाव की बात कर रहे हैं बहुत अच्छा लगता है,पर क्या समाज के लिए शासन प्रशासन,या समाजिक,समाजसेवी संस्थाओं,का काम क्या है,ंअपना घर भरे,या यूज कर छोड़ कर मंत्री बन कर अपना जीवन सफल बना ले,समाज जहाँ है,वहाँ पर छोड़ कर भागने वाले दलबदल नेता जी हैं,हम गुलगुलिया समाज को देखते रूह कांप जाती है,झूठा भोजन जो आप की पत्तल का बचा हुआ फेका जाता,एक तरफ कुत्ते और एक तरफ गुलगुलिया समाज के लोग,खाना चुनते हैं,और पता नहीं कितने दिन खाते हैं,हम बासी रोटी नहीं खाते हैं,जो अपने बच्चों को करतब और भीख माँगने पर मजबूर हैं,सरकार क्या कर रही हैं,या समाज के लोग क्या कर रहे हैं,हम आज भी गुलाम है,स्रवनो के मानसिकता गुलाम है,हम कुछ दोस्तों के साथ रहा जो मुझे पसंद करते हैं पर जाति पाति के नाम पर,ंछोटजातिया कहते थे,हमारे साथ रहना खाना खा ना और कुछ रहना,पर उनकी अभिलाषा की हमेशा गुलाम की तरह ही रहे हमे गुलामी पसंद नहीं है,हमने उनको छोड़ दिया, हम आकेला मंजूर रहना पर स्वाभिमान के साथ जीवन जिऊँगा,बाबा साहब के वासूलो पर चलूँगा,जय भीम जय भारत,,

लेखक- अर्जुन रावत  

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महाराजा बिजली पासी और पाँच सिख गुरु 

महाराजा बिजली पासी की मूर्तियाँ आपने उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर लगी देखी होगी। पासी समुदाय के इतिहास में उनका प्रमुख स्थान है। माना जाता है कि मध्यकालीन भारत में उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों पर उन्होंने शासन किया था। वह दलितों के सामुदायिक गौरव के प्रतीक भी हैं जो इस बात का प्रमाण हैं कि उनके समुदाय के लोगों ने भी अतीत में शासन किया है। जिस किले से उन्होंने अपने शासन का संचालन किया था उसके अवशेष आज भी लखनऊ में मौज़ूद हैं और जिसे अब एक स्मारक में तब्दील कर दिया गया है। इस स्मारक में बिजली पासी की एक भव्य प्रतिमा लगाई गई है जिसमें उन्हें एक बहादुर मध्यकालीन योद्धा के रूप में धनुष और बाण धारण किए हुए दिखाया गया है।

उनकी इस प्रतीकात्मक छवि के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। जब कांशीराम ने इस मूर्ति को लगाने का निर्णय किया तो उन्होंने शिल्पकारों से कहा कि वे उनकी मूर्ति में उन पाँच सिख गुरुओं के तमाम अच्छी विशेषताओं का समावेश करें जिनकी पूजा दलित भी करते हैं। जैसे कि गुरु अर्जुन देव, गुरु गोविंद सिंह, गुरु नानक देव इत्यादि। यदि बिजली पासी की प्रतिमा को कोई गौर से देखे तो उसमें इन पाँचों गुरुओं के व्यक्तित्व की सर्वोत्तम विशेषताओं की झलक देखी जा सकती है।,,,   ( यह जानकारी समाचार पत्र से ) 

-अच्छेलाल सरोज Join Facebook