केशव मौर्य मुख्यमंत्री क्यों नहीं ? 1980 में धर्मवीर का भी हुआ था विरोध , क्या फिर से पिछड़ो और अनुसूचितों को छला जाएगा?

इला०/ देश की सवर्णवादी मानसिकता का ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश की राजनीति में खूब झलक रहा है। विधानसभा के चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत भले ही लोगो के गले से न उतर रही हो लेकिन इलाहाबादी प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य की काबिलियत और मेहनत पर कोई भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता । गैर यादव अतिपिछड़े वर्ग को भाजपा के खेमे लाने का पूरा श्रेय  केशव को ही माना जा रहा है। केशव मौर्य अपनी रणनीति से अतिपिछड़ों में यह आश जगाने में कामयाब रहे कि भाजपा में अतिपिछड़ों को पूरा पूरा सम्मान मिलेगा । जिस पर भरोसा करके प्रदेश का यह वर्ग पूरी तरह से  भाजपा को वोट किया और भाजपा 325 सीट पाकर  प्रचंड बहुमत में आ गई। लेकिन सत्ता मिलते ही कोमा में रहे बूढ़े भाजपाइयों और RSS की सवर्णवादी मानसिकता  में ऊर्जा का संचार हुआ, तो लगे  केशव की जगह सवर्ण मुख्यमंत्री  बनाने की योजना बनाने । 

आपकों बता दें क़ि सत्र-1978 में काँग्रेस ने भी इलाहाबाद-कौशाम्बी (द्वबा) के अनुसूचित जाति के धर्मवीर पासी जी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। उन्ही नेतृत्व में कांग्रेस को विधान सभा चुनाव में 308 सीट मिली थी । तब नैतिक रूप से उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था लेकिन उस समय भी ब्राह्मणवादी शक्तियों ने इलाहाबादी अनुसूचित समाज के बड़े नेता को मुख्यमंत्री की शपथ नहीं लेने दिया,और विश्नाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री बने थे। साथ में यह भी याद दिला दूँ कि इस भेद भाव के बाद ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस गर्त में चली गई। जो आजतक उबर नहीं पायी । 

मैं इसलिए यह घटना जोड़ रहा हूँ कि दलित -पिछड़े  नेता ब्राह्मणवादी पार्टियों के लिए कितना भी जान लगाकर मेहनत करें अंततः उन्हें भेद भाव का शिकार होना ही पड़ता है । कहने को तो अब भाजपा ब्राहम्णवादी पार्टी नहीं रही ? तो क्यों न केशव मौर्य को मुख्यमंत्री बनाकर इसे सिद्ध करे दें।

क्या कांग्रेसी धर्मवीर के जैसे ही भाजपाई केशव मौर्य  के साथ भी होगा ? अगर ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में भाजपा भी कांग्रेस कि तरह ही  हो जायेगी । -अजय प्रकाश सरोज संपादक -श्री पासी सत्ता पत्रिका 

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