पासी जाती पर अंग्रेजो द्वारा लगाये “जरायम पेशा कानून ” को हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी बापू मसूरियादीन ने , आज जयंती दिवस पर विशेष !

 

एक ही दिन पर यानी आज के दिन २ अक्टूबर को तीन महान विभूतियों ने भारत देश में जन्म लेकर भारत माता को गौरवान्वित किया। गाँधी जी, लाल बहादूर शास्त्री और मसूरियादीन पासी जैसी अदभुत प्रतिभाओ का 2 अक्टूबर के ही दिन जन्म हुआ था । हम सभी के लिये ख़ुशी का पल है। सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेजों के शासन से से भारत देश को स्वतंत्र करा कर हम सभी को स्वतंत्र भारत का अनमोल उपहार देने वाले महापुरूष गाँधी जी को राष्ट्र ने राष्ट्रपिता के रूप में समान्नित किया। वहीं जय जवान, जय किसान का नारा देकर भारत के दो आधार स्तंभ को महान कहने वाले महापुरूष लाल बहादुर शास्त्री जी ने स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधान मंत्री के रूप में राष्ट्र को विश्वपटल पर उच्चकोटी की पहचान दिलाई। गांधी जी ,और लालबहादुर शास्त्री के विषय में अधिकतर सभी लोग जानते है, परंतु स्वतन्त्रता संग्राम में अहम् भूमिका निभाने वाले पासी समुदाय में जन्मे महाशय मसूरियादीन जी को नई पीढ़ी नहीं जानती । भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में मसूरियादीन जी ने इलाहाबाद का नेतृत्व किया था और करीब नौ वर्षो तक जेल में रहे। आजादी के बाद 1951 में प्रथम लोकसभा में फूलपुर से सांसद रहे । संघर्ष के दौरान नेहरू जी के साथ कई बार जेल गए। खास तौर पर महाशय जी ने पासी जाती पर अंग्रेजो द्वारा लगाये “जरायम पेशा कानून ” को हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी। 

ख़ास बाते 

  • आज २ अक्टूबर के ही दिन भारत के तिन महापुरुषों गाँधी जी , लालबहादुर शास्त्री और पासी नायक मा. बापू मसुरियादीन पासी का जन्म हुआ था 
  • पासी जाती सहित भारत के २०० जातियों पर लगे जरायम पेशा एक्ट को हटाने में अहम भूमिका निभाने वाले महाशय मसूरियादीन को नई पीढ़ी के बहुत कम लोग ही जानते है 
  • भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने के बावजूद भी भारत के इतिहासकारों ने उन्हें वो सम्मान नही दिया जिसका वो हक़दार थे 

माननीय बापू मसुरियादीन  पासी  – एक संक्षिप्त परिचय 


जन्म तिथि – 02 अक्टूबर 1911

पूण्यतिथि -21 जुलाई 1978

माननीय साहब का जन्म आज के ही दिन २ अक्टूबर को हुआ था , भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में इनके इतने अहम योगदान के बावजूद भी भारत के जातिवादी और पक्षपाती इतिहासकारों ने उन्हें भारतीय इतिहास में वो जगह नही दिया जिनके वो हक़दार थे ,  भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन में मसूरियादीन जी ने इलाहाबाद का नेतृत्व किया था और करीब नौ वर्षो तक जेल में रहे।  संघर्ष के दौरान नेहरू जी के साथ कई बार जेल गए। आजादी के बाद 1951 में प्रथम लोकसभा में फूलपुर से सांसद रहे ।1952 से लेकर 1967 तक संसद सदस्य रहे महाशय मसुरियादीन पासी समाज को अंग्रेजो द्वारा लगाए गए “जरायम पेशा एक्ट” को खत्म कराकर एक नया जीवन दान दिया । अखिल भारतीय पासी महासभा के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने विभिन्न कुरूतियों में जकड़े पासी समाज को मुक्त कराने के लिए संघठित आंदोलन चलवाए । आज पासी समाज में जो समृद्धि थोड़ी बहुत दिखाई पड़ती है । उसमें बाबू जी के खून और पसीना शामिल है । लेकिन बाबू जी के बाद कि पीढ़ी निकम्मी हो गई वह केवल राजनीतिक लाभ लेने तक सीमित हो गई ,खास तौर पर महाशय जी ने पासी जाती पर अंग्रेजो द्वारा लगाये “जरायम पेशा कानून ” को हटवाने में अहम भूमिका निभाई थी। 

  • क्या है जरायम पेशा कानून और क्रिमिनल ट्राइब एक्ट 

अंग्रेजो ने भारत के उन तमाम जातियों , जनजातियो के एक समूह विशेष को प्रताड़ित करने के लिए एक विशेष कानून पास किया जिसे क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट या जरायम पेशा कानून का नाम दिया गया ,अंग्रज इस कानून का दुरूपयोग उन तमाम जाती के लोगो के विरुद्ध करते थे जो उनके खिलाफ बगावत करते थे ,उनके खिलाफ आन्दोलन करते थे , उनके बहकावे तथा प्रलोभन में नही आते थे तथा स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे , पासी जाती भी इन जातियों में एक थी जिसने एक काफी समय तक क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट और जरायम पेशा एक्ट का मार झेला और अपना मान  सम्मान और जमीन जायदाद सब खो दिया , इस एक्ट के तहत क्रिमिनल ट्राइब्स में आने वाले जाती के परिवार के बच्चो को भी पुलिस नही छोडती थी और उन्हें हमेशा थाने  में रिपोर्ट करना पड़ता था ,यदि दलितों को चार वर्णों पर आधारित जाति व्यवस्था के उच्चताक्रम से उपजी हिंसा और बहिष्करण का शिकार होना पड़ा तो घुमंतू जातियां अंग्रेजी शासन का शिकार बनीं. 1871 के क्रिमिनल ट्राइब एक्ट से पूरे देश में दो सौ के लगभग समुदायों को अपराधी जनजाति में घोषित कर दिया गया इन दो सौ जातियों में पासी जाती भी शामिल थी  भारत के सामाजिक और विधिक क्षेत्र में घुमंतू समुदायों के लिए यह एक सामूहिक हादसा था. 1921 में क्रिमिनल ट्राइब एक्ट का विस्तार किया गया और कई अन्य समुदाय इस कानून की जद में ले आए गए देश को 1947 में आजादी मिली, भारत का संविधान बनाया गया और सबको बराबरी का हक़ मिला कि वह वोट डाल सके. 1952 में उन समुदायों को विमुक्त समुदाय का दर्जा दिया गया जो क्रिमिनल ट्राइब एक्ट के तहत अपराधी घोषित किए गए थे यह एक प्रकार से यह बताना था कि अमुक समुदाय अब अपराधी नहीं रह गए हैं! यह कानून की बिडंबना थी कि उन्हें एक पहचान से मुक्त कर दूसरी कम अपमानजनक पहचान से नवाज दिया गया  1959 में हैबीचुअल अफेंडर एक्ट ने पुलिस का ध्यान फिर उन्हीं समुदायों की ओर मोड़ दिया जो अब विमुक्त थे, यह सब आजाद भारत में हो रहा था

 

 

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