पासी समाज की जातियाँ

01-कैथवास: काशी प्रांत में रहने वाले पासियों को कैथवास कहा गया है। 02-गूजर: गुर्ज का मतलब गदा होता है जो लोग युद्ध में गदा प्रयोग करते थे उन्हें गुर्जर या गूजर कहा गया है। 03-कमानिया: जो लोग कमान (धनुष बाण) धारण करते थे, और युद्ध में प्रयोग करते थे। 04-त्रिशूलिया: जो पासी त्रिशूल को शस्त्र के रूप में प्रयोग करते थे। 05-तरमाली: वह पासी जाति जो ताड़ व खजूर से ताड़ी निकालते थे, यही उनका व्यवसाय था। 06-राजपासी या राजवंशी: यह अधिकांश राज्यों के राजा हुआ करते थे। 07-बौरिया या बौरासी: जो युद्धों में तलवार चलाते चलाते उन्मक्त अर्थात मदमस्त हो जाते थे। 08-खटिक: पासी समाज के ही अंग हैं जो खड्ग (तलवार) चलाया करते थे। 09-भुरजा :यह भर पासी थे, उड़ीसा में जाने पर भुरजा हो गये। 09-भर पासी: भाला धारण करने वाले भल या भर पासी कहे जाते थे, सन् 1900 के पूर्व भर लोग पिछड़े वर्ग में शामिल कर दिये गए थे। 11-अहेरिया: जंगलों में आखेट (शिकार) करने वाले पासी जाति। 12-बहेलिया अथवा व्याधपासी:13 – पासवान : यह सभी पासी जाति में आते हैं, इनकी जनसंख्या आजमगढ़ जिले में अधिक है बौरिया रायबरेली एवं उन्नाव जिले में अधिक हैं नेपाल, असम,बंगाल तथा बिहार में भी करोड़ों की संख्या में पासी हैं असम का पासी घाट बहुत ही प्रसिद्ध स्थान है। अरूणाचल में पासी धनाढ्य है। आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के पासी अपने को किंग पासी कहते हैं। 800 वर्ष पहले भारतवर्ष में कई प्रदेशों में पासी राजाओं का शासन था। उत्तर प्रदेश में तो सैकड़ों छोटे बड़े राजा महाराजा 12वीं शताब्दी तक थे। और बहराइच के राजा त्रिलोक चंद ने दिल्ली के राजा विक्रमपाल को हरा कर सारे अवध पर राज्य स्थापित कर लिया था। पहली शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अवध प्रान्त में पासियों का साम्राज्य रहा है।