सम्पादकीय

“भारतरत्न डॉ भीमराव अंबेडकर ने महसूस किया था कि भारत में जाति ब्यवस्था की जड़े अत्यंत जटिल है।बिना इसके सुलझाये भारत का वास्तविक विकास संभव नहीं है। इसके लिए विभिन्न जातियों में बीच समन्वयन आवश्यक है।परंतु मनुवादियों ने कभी इस पर ब्यापक चर्चा करना उचित नहीं समझा। सामाजिक परिवर्तन के महानायक मान्यवर काशीराम ने भी जाति की समाप्ति के सवाल पर कहते थे कि जिन्होंने जाति बनाई है वही जाति समाप्ति के लिए संघर्ष करें हम अपना समय क्यों गवाएं, जाहिर है कि वें जाति को मज़बूती के तौर पर देखते थे। भारत ने जाति विनाश काल्पनिक सा लगता है। इसलिए जब तक जाति विहीन समाज का निर्माण नहीं हो जाता तब तक जातीय न्याय को प्रषांगिक बनाए रखना होगा। मज़बूत जातियां आपस में मिलकर बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दे सकती है। और जाति के विनाश पर भी निर्णय लेने को तैयार हो सकती है। लेकिन यह तब होगा जब सभी जातियां विकसित हों जायेंगी, सम्पन्नता प्राप्त कर लेंगी। और इसका असर सवर्णों पर बिपरीत पड़ने लगेगा। राजकुमार सिद्धार्थ ने भी जीवन की सम्पूर्णता के बाद तथागत बुद्ध कहलायें। और अशोक, सम्राट बनने के बाद शांति प्रियदर्शी अशोक महान कहलायें । कहने का तात्पर्य यह है कि बिना प्राप्ति के त्यागा नहीं जा सकता, चाहें वह वस्तु हो अथवा आचरण । एक साधारण सी कहावत है कि लोहा ही लोहा काटता है मतलब जातिवाद का चरमोत्कर्ष होना जरूरी है। जाति किसी के लिए ज़हर है तो किसी के लिए अमृत । इसे सबके लिए जहर बनाना होगा। 

अभी भारत के लोंगो में जाति ब्यवस्था कों तोड़ने का साहस नहीं दिखाई पड़ता, चाहे वह लाभार्थी हो अथवा पीड़ित। इसके पीछे कारण यह है कि लाभार्थी सुखमय जीवन जीते है। और पीड़ित में बौद्धिक सम्पनता नही कि संघर्ष करें। अब पीड़ित अपनी जाति में स्वम् को सुरक्षित महसूस करते है। परंतु जातीय सम्पन्नता का दावा कोई नही करता है। 

जातियों के समूह भारत का विकास तभी होगा जब उन सभी अविकसित जातियों को विकास का अवसर प्रदान होगा। खासतौर पर उन्हें जिन्हें अभी तक मानवीय जीवन का एहसास भी नहीं है। इसीलिए युगदृष्टा डॉ भीमराव अम्बेड़कर ने संविधान में जाति आधारित आरक्षण (प्रतिनिधित्व) की बात कहीं है। ताकि सभी जातियों कों प्रतिनिधित्व मिल सकें और वह अपने समाज का विकास कर सकें। आज जरूरत है समाज में जातीय स्वीकृति की ताकि सामाजिक न्याय में जातीय न्याय मिल सकें। 

‘श्री पासी सत्ता परिवार’ भारत में पासी जाति सहित, दरकिनार किये गए अविकसित जातियों को शिक्षा, सुरक्षा का अवसर प्रदान करने के लिए संघर्षरत है। हम उन सभी दबे कुचले, दुःखी, पीड़ित व् सतायें गए जातियों के विकास के प्रति समर्पित है जो आज भी इंसानी जीवन जीने को तड़प रहैं हैं। उन्हे इस छटपटाहट से मुक्त कर गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्रदान करना ही हमारा उद्देश्य है। साथ ही उनके हिस्से की ख़बर सरकार और उन तक पहुँचे इसके लिए पत्रिका का प्रकाशन जरूरी है। पत्रिका के माध्यम से हजारों वर्षो से पीड़ित वंचित समुदाय के अंदर उन सभी कारणों को तलाशने के पक्ष में है। जिसके कारण उनका विकास नहीं हो पाया है। इसके साथ ही पत्रिका परिवार समाज में फैली कुरूतियों, वाह्यआडम्बरों पर चोट करके उनमें वैज्ञानिक समझ पैदा करने के लिए प्रयासरत है। जिससे मानवीय चेतना का मुक्त रूप से विकास हो सकें। लोकतांत्रिक विकसित भारत का सपना पूरा हो सकें। संबिधान की भावना के अनुसार सबका विकास हो सकें। 

“मेरी सद्इच्छा है कि जिन जातियों को कभी सत्ता की चाभी नहीं मिली और उन्हें विकास का अवसर प्राप्त नहीं हुआ जिसकी वज़ह से आज भी वे अँधेरे में रहने को मजबूर है। उनको एक बार मौका दिया जाना चाहिए और जब तक यह नहीं होता मेरा संघर्ष जारी रहेगा।” — अजय प्रकाश सरोज (सम्पादक) जय संविधान, जयभारत, जय पासी समाज।”