ढहता रहा किला, मायावती देखती रहीं तमाशा 

अच्छेलाल सरोज – जब रोम जल रहा था तो नीरो चैन की बंसी बजा रहा था। बसपा में कांशीराम के जमाने के नेताओं को आज भी यह कहावत दिल को छू जाती है। कभी आजमगढ़ के आजाद गांधी  भी बसपा में ठीक ठाक कद काठी के नेता थे और अब गुमनाम हैं। उ.प्र. में बसपा की करारी शिकस्त(19 सीट) के बाद तमाम नेताओं को इसका दर्द साल रहा है। नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि यह तो होना ही था, क्योंकि जब बसपा का किला ढह रहा था बसपा सुप्रीमों केवल तमाशा देख रही थीं।पार्टी के बड़े रणनीतिकार और कभी गुजरात राज्य के प्रभारी रहे सूत्र के अनुसार कांशीराम ने साइकिल के कैरियर पर बैठकर गाव, ब्लाक, तहसील, जिले का चक्कर लगाया था। तमाम दलित जातियों को इकट्ठा करके हर समाज में प्रतिनिधि खड़ा करने की कोशिश की थी। राजभर, तेली, शाक्य, पटेल, कोयरी, कुर्मी, लोध, चौहान, निषाद, मांझी, केवट, मल्लाह, तलवार, गोसाईं तक संपर्क बढ़ाया था। पासी, मुसहर को साथ लाने की पहल हुई थी।

कोहार, लोहार, बघेल, धानुक, कोल, गोड़, तड़माली पासी, वाल्मिकी समाज को जोडऩे का खाका तैयार हुआ था। लेकिन डेढ़ दशक से मायावती ने हर समाज में भाई चारा बनाने के प्रयासों पर जैसे विराम सा लगा दिया है। पुराने नेताओं को पार्टी ने महत्व नहीं दिया तो उन्होंने धीरे-धीरे किनारा कर लिया या करा दिए गए।

आज समाज यही कहता है माया हटाओ बसपा बचाओ, बसपा से नही माया से दिक्कत है, दलित नही दौलत की बेटी की संज्ञा देते है लोग। 

 जय भीम जय भारत 

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