बहुजनों के लिए ​राष्ट्रपति का चुनाव नीम और करेला जैसा  –दर्शन ‘रत्न’ रावण 

राष्ट्रपति के चुनाव से हमारा {आम आदमी} का कोई सीधा सम्बन्ध तो होता नहीं लेकिन जब चर्चा चली है तो बात कर लेते हैं। वैसे विकल्प भी नहीं है ज्यादा। नीम और करेले में से ही किसी को चुना जाना है। कम और ज्यादा कड़वा इसमें से चुनना भी हमारे हाथ में नहीं। 
मीरा कुमार को अधिकांश दलित संगठन ये कह कर बेहतर सिद्ध करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं कि रामनाथ कोविंद आरएसएस या भाजपा से जुड़े हैं। वास्तविकता ये नहीं है मीरा कुमार उस चमार जाति से है जिसका अधिकाँश स्थानों पर कब्ज़ा है। 
  चर्चा ये भी थी कि भाजपा मायावती को अपना उम्मीदवार बना सकती है। तब इन सभी के तर्क बदल जाते। फिर आरएसएस से राखी का सम्बन्ध भी जुड़ जाता। कटटरता, गुजरात, सहारनपुर सब फीके पड़ जाते। ये भूल जाते कि मायावती का राजनीतिक सरोकार दलित के साथ रह कितना गया है ?

जहाँ तक मेरी समझ है। मीरा कुमार के पिता बाबा साहिब के सामने खड़े किये गए कॉंग्रेस के मोहरे थे। जिनके चलते दलितों में दूरियाँ पैदा हुई। एक बात को सिद्दांतिक रूप में फैलाया गया कि वाल्मीकिन कौम {सफाई कामगार समाज} के युवा को लड़की भले दे देना मगर वोट कभी मत देना। 
मायावती ने हमेशा इस सिद्दहनत का पालन किया और 403 की विधानसभा का एक भी टिकट वाल्मीकिन समाज को नहीं दिया। काशी राम जी ने भी इस दूरी को ख़त्म करने की कभी कोशिश या सोच भी नहीं बनाई बल्कि उनके नारे, “जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी” ने जातियों को और मज़बूत किया। 
दूसरा नाम है रामनाथ कोविंद का। उसकी सबसे बड़ी अयोग्यता ये मानी जाती है कि वो जाटव {रविदासी} नहीं है। उस पर ये कि वो जिस कोली जाति से हैं वो ज्यादा गुजरात और महाराष्ट्र के तटवर्तीय क्षेत्र में मछली का कारोबार करती है और आदिकवि वाल्मीकि दयावान को अपना आरध्या मानती है। 
जहाँ तक सामाजिक सरोकार की बात है मुझे याद है जब 1999 आरक्षण पर संकट चल रहा था तब चरणजीत सिंह अटवाल जी ने उत्तर-प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल सूरजभान के सहयोग से पूरे भारत के सभी राजनीतिक दलों के दलित सांसदों को एकजुट करने में कामयाब हो गए थे, उसमे बड़ी भूमिका रामनाथ कोविंद जी की थी। 
जब गोहाना हिँसा के बाद वीर राकेश लारा का क़त्ल हुआ तब गोहाना में स.चरणजीत सिंह अटवाल के साथ रामनाथ कोविंद गोहाना पहुँचे थे। जबकि मीरा कुमार के पिता का बूत गोहाना की उसी वाल्मीकि बस्ती के बाहर लगा है पर मुसीबत के समय नहीं आई। 
जगजीवन राम का पैदा किया जातिवाद मीरा कुमार जी में भी खूब भरा है। केन्द्रीय मंत्री रहते हुए वाल्मीकि समाज के विकास हित बने राष्ट्रीय सफाई मज़दूर आयोग की अध्यक्ष चमार समाज की संतोष चौधरी को बना दिया। यानि केन्द्रीय मंत्रिमंडल न सही ये एक उम्मीद थी। 
अगर बात ब्राह्मणवाद की है तो रामनाथ कोविन्द यकीनन आरएसएस से जुड़े होंगे। मगर सामाजिक व राजनैतिक रूप में। मेरे कुमार जी तो पारिवारिक तौर पर ब्राह्मणवाद से जुडी हैं। एक उनकी पैदाइश ही अमबेडकर विरोधी परिवार में हुई। दूसरा शादी गैर दलित से की। फिर सोचिये तन-मन कहाँ है ?   

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