पाखंड छोड़ वैज्ञानिक जीवन पध्दति अपनाने पर जोर देते थे अर्जक संघ संस्थापक रामस्वरूप वर्मा , जयंती दिवस पर विशेष

 

महात्मा ज्योतिबा राव फुले और बाबा साहब डॉ अम्बेडकर के बाद 60 के दशक में जानेमाने मानववादी और समाजवादी विचारक रामस्वरूप वर्मा ने भारतीय समाज को नजदीक से देखा ,परखा  और अर्जक संघ की स्थापना करके देश और समाज को नयी दिशा देने का प्रयास किया , 01 जून 1968 को इन्होने अर्जक संघ की स्थापना करके समाज में व्याप्त अन्धविश्वास और सामाजिक तथा धार्मिक कुरीतियों , ब्राह्मणवाद और पाखंड को खतम करने का एक अभियान चलाया , आज 22 अगस्त उनकी जयंती पर उनको नमन करते हुए उनके बारे में जानने की कोशिश करते है ,

ख़ास बाते 

  • समाज में व्याप्त ब्राह्मणवादी कुरीतियों पर प्रहार करने वाले रामस्वरूप वर्मा का कहना था की आत्मा का अस्तित्व ही नही है ,किसी के मरने पर दूसरा जन्म नही होता है ,भाग्य-भगवान , श्राप ,नरक आदि काल्पनिक बातो का डर बनाकर कर्मकांड करके शोषण और ठगी होती है साथ ही इन कर्मकाण्डो के माध्यम से महिलाओ को निचा बनाया जाता है 
  • रामस्वरूप वर्मा उतरप्रदेश  सरकार के चर्चित वित्तमंत्री थे जिन्होंने उस समय 20करोड़ लाभ का बजट पेश कर पूरे आर्थिक जगत को अचम्भित कर दिया 
  •  उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा  की परीक्षा भी उत्तीर्ण की और इतिहास में सर्वोच्च अंक पाये जबकि पढ़ाई में इतिहास उनका विषय नहीं रहा। पर नौकरी न करने दृढ़ निश्चय के कारण साक्षात्कार में शामिल नहीं हुए।
  • इन्होने अर्जक संघ की स्थापना करके समाज को अनेक कुरीतियों से आजादी दिलाई 

संक्षिप्त परिचय (जीवनी) :-

रामस्वरूप वर्मा

जन्म -22 अगस्त, 1923

मृत्यु -19 अगस्त, 1998

ये एक समाजवादी नेता थे जिन्होने अर्जक संघ  की स्थापना की, इनका जन्म वर्तमान कानपूर देहात के गौरीकरण गाव के एक साधारण किसन परिवार में हुआ था , ये चार भाई थे और सबसे छोटे थे , इनके पिता का नाम वंशगोपाल था इनकी मृत्यु 19 अगस्त 1988 में हुई

शिक्षा 

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा कालपी और पुखरायां में हुई जहां से उन्होंने हाई स्कूल और इंटर की परीक्षाएं उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्मा जी सदैव मेधावी छात्र रहे और स्वभाव से अत्यन्त सौम्य, विनम्र, मिलनसार थे पर आत्मस्म्मान और स्वभिमान उनके व्यक्तित्व में कूट-कूट कर भरा हुआ था। उन्होंने १९४९ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय हिन्दी में एम०ए० और इसके बाद कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा भी उत्तीर्ण की और इतिहास में सर्वोच्च अंक पाये जबकि पढ़ाई में इतिहास उनका विषय नहीं रहा। पर नौकरी न करने दृढ़ निश्चय के कारण साक्षात्कार में शामिल नहीं हुए।

राजनीतिक  जीवन

सर्वप्रथम वे १९५७ में सोशलिस्ट पार्टी से भोगनीपुर विधानसभा क्षेत्र उत्तर प्रदेश विधान सभा के सद्स्य चुने गये, उस समय उनकी उम्र मात्र ३४ वर्ष की थी। १९६७ में संयुक्त सोशलिस्ट पर्टी से, १९६९ में निर्दलीय, १९८०, १९८९ में शोषित समाजदल से उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गये। १९९१ में छठी बार शोषित समाजदल से विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। जनान्दोलनों में भाग लेते हुए वर्मा जी १९५५, १९५७, १९५८, १९६०, १९६४, १९६९, और १९७६ में १८८ आई०पी०सी० की धारा ३ स्पेशल एक्ट धारा १४४ डी० आई० आर० आदि के अन्तर्गत जिला जेल कानपुर, बांदा, उन्नाव, लखनऊ तथा तिहाड़ जेल दिल्ली में राजनैतिक बन्दी के रूप में सजाएं भोगीं। वर्मा जी ने १९६७-६८ में उत्तर प्रदेश की संविद सरकार में वित्तमंत्री के रूप में २० करोड़ के लाभ का बजट पेश कर पूरे आर्थिक जगत को अचम्भे में डाल दिया। बेशक संविद सरकार की यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। कहा जाता है कि एक बार सरकार घाटे में आने के बाद फायदे में नहीं लाया जा सकता है, अधिक से अधिक राजकोषीय घाटा कम किया जा सकता है। दुनिया के आर्थिक इतिहास में यह एक अजूबी घटना थी जिसके लिए विश्व मीडीया ने वर्मा जी से साक्षात्कार कर इसका रहस्य जानना चाहा। संक्षिप्त जबाब में तो उन्होंने यही कहा कि किसान से अच्छा अर्थशास्त्री और कुशल प्रशासक कोई नहीं हो सकता क्योंकि लाभ-हानि के नाम पर लोग अपना व्यवसाय बदलते रहते हैं पर किसान सूखा-बाढ़ झेलते हुए भी किसानी करना नहीं छोडता। वर्मा जी भले ही डिग्रीधारी अर्थशास्त्री नहीं थे पर किसान के बेटे होने का गौरव उन्हें प्राप्त था। बाबजूद इसके कि वर्मा जी ने कृषि, सिंचाई, शिक्षा, चिकित्सा, सार्वजनिक निर्माण जैसे तमाम महत्वपूर्ण विभागों को गत वर्ष से डेढ़ गुना अधिक बजट आवंटित किया तथा कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते में वृद्धि करते हुए फायदे का बजट पेश किया।

प्रमुख कृतिया 

इन्होने  “क्रांन्ति क्यों और कैसे”, ब्राह्मणवाद की शव-परीक्षा, अछूत समस्या और समाधान, ब्राह्मणण महिमा क्यों और कैसे? मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक, निरादर कैसे मिटे, अम्बेडकर साहित्य की जब्ती और बहाली, भंडाफोड़, ‘मानववादी प्रश्नोत्तरी’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी जो अर्जक प्रकाशन से प्रकाशित हुई़ं

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *