अरुण की मां और नई साडी

अरुण अपनी मां से बेहद प्यार करता था उसकी मां लोगों के घरों में बर्तन मांज कर घर का खर्च चलाती थी अरुण हालांकि अभी 12 साल का था पर परिवार की मदद के लिए छोटे-मोटे काम वह भी कर लेता था के कभी वह किसी होटल में बर्तन धो देता था तो कभी किसी के घर सामान पहुंचाने का काम कर दिया करता था इस तरह के काम करके वह महीने में चार पांच सौ रुपया कमा लिया करता था अरुण की मां का जन्म दिन नजदीक आ रहा था अरुण का बहुत मन था कि वह अपनी मां को नई साड़ी दिलाएं उसने पिछले कई महीनों में जोड़कर ₹1000 इकट्ठा किए थे जब रोड अपनी मां के लिए साड़ी लेकर आया तो उसकी मां बहुत नाराज हुई पहले तो वहां रोड़ पर चोरी का इल्जाम लगाने लगी जब उसने बताया कि यह पैसे उसने खुद मेहनत करके कमाए हैं

 वह बोली हमारे ऊपर कर्ज कम है क्या जो तुमने सारे पैसे इस सारी पर गवा दिए तुम्हारा पूरा जीवन ऐसे ही Karz में बीत जाएगा तुम कभी कुछ नहीं अच्छा कर पाओगे उन्होंने अरुण को बहुत भला बुरा कहा और साड़ी उसे वापस कर दी। 

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यह बात अरुण के मन में बैठ गई उसे बहुत बुरा लगा कि आज उसने कितने शौक से अपनी मां के लिए तोहफा खरीदा लेकिन मैंने उसे वापस कर दिया कई साल बीत गए और  अरुण पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करने लगा उसने अपना घर अपनी गाड़ी खरीदी एक बार फिर मां का जन्मदिन आया अरुण के लिए खरीदी व साड़ी अब तक संभाल कर रखी थी उसने जब मां को जन्मदिन पर वह साड़ी दी उनकी आंखों में आंसू आ गए वह बोली मैं वह दिन कभी भूल नहीं सकती तुमने अपनी पहली कमाई से मेरे लिए साड़ी खरीदी और मैंने अपना सारा गुस्सा तुम पर निकाल दिया मैं कभी अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगी अरुण बोला आज मैं इस मुकाम तक पहुंचा हूं तो इसकी वजह आपका उस दिन का गुस्सा ही है। 

Achchhelal Saroj 

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