दलित राजनिति के प्रणेता थे कांशीराम , जयंती दिवस पर विशेष ।

   

           “कांशीराम तेरी नेक कमाई ”

          “तुने सोती कौम जगाई ”

‘वोट हमारा राज तुम्हारा नहीं चलेगा नहीं चलेगा ‘

जैसे नारों से दलित और बहुजन समाज को भारतीय राजनिती में तथा सत्ता मे भागीदारी के लिए जागरुक करने वाले दलित राजनिती के परिचायक मान्यवर कांशीराम जी को आज उनके जयंती दिवस पर नमन 

कांशी राम एक भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। उन्होंने अछूतों और दलितों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए जीवन पर्यान्त कार्य किया। उन्होंने समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए एक ऐसी जमीन तैयार की जहा पर वे अपनी बात कह सकें और अपने हक़ के लिए लड़ सके। इस कार्य को करने के लिए उन्होंने कई रास्ते अपनाए पर बहुजन समाज पार्टी की स्थापना इन सब में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम था। कांशी राम ने अपना पूरा जीवन पिछड़े वर्ग के लोगों की उन्नति के लिए और उन्हें एक मजबूत और संगठित आवाज़ देने के लिए समर्पित कर दिया। वे आजीवन अविवाहित रहे और अपना समग्र जीवन पिछड़े लोगों लड़ाई और उन्हें मजबूत बनाने में समर्पित कर दिया।

प्रारंभिक जीवन

कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोरापुर में एक रैदासी सिख परिवार में हुआ था। यह एक ऐसा समाज है जिन्होंने अपना धर्म छोड़ कर सिख धर्म अपनाया था। कांशी राम के पिता अल्प शिक्षित थे लेकिन उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि अपने सभी बच्चों को उच्च शिक्षा देंगे। कांशी राम के दो भाई और चार बहने थीं। कांशी राम सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े और सबसे अधिक शिक्षित भी। उन्होंने बी एससी की पढाई की थी। 1958 में स्नातक होने के बाद कांशी राम पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए।

कार्यकाल

1965 में उन्होंने डॉ अम्बेडकर के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश रद्द करने के विरोध में संघर्ष किया। इस घटना के बाद उन्होंने पीड़ित समाज के लिए लड़ने का मन बना लिया। उन्होंने संपूर्ण जातिवादी प्रथा और डॉ बी आर अम्बेडकर के कार्यो का गहन अध्ययन किया और दलितों के उद्धार के लिए बहुत प्रयास किए। आख़िरकार, सन 1971 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने एक सहकर्मी के साथ मिल कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति और अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संस्था की स्थापना की।

यह संस्था पूना परोपकार अधिकारी कार्यालय में पंजीकृत की गई थी। हालांकि इस संस्था का गठन पीड़ित समाज के कर्मचारियों का शोषण रोकने हेतु और असरदार समाधान के लिए किया गया था लेकिन इस संस्था का मुख्य उद्देश था लोगों को शिक्षित और जाति प्रथा के बारे में जागृत करना। धीरे-धीरे इस संस्था से अधिक से अधिक लोग जुड़ते गए जिससे यह काफी सफल रही। सन 1973 में कांशी राम ने अपने सहकर्मियो के साथ मिल कर BAMCEF (बेकवार्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीस एम्प्लोई फेडरेशन) की स्थापना की जिसका पहला क्रियाशील कार्यालय सन 1976 में दिल्ली में शुरू किया गया। इस संस्था का आदर्श वाक्य था एड्यूकेट ओर्गनाइज एंड ऐजिटेट। इस संस्था ने अम्बेडकर के विचार और उनकी मान्यता को लोगों तक पहुचाने का बुनियादी कार्य किया। इस के पश्चात कांशी राम ने अपना प्रसार तंत्र मजबूत किया और लोगों को जाति प्रथा, भारत में इसकी उपज और अम्बेडकर के विचारों के बारे में जागरूक किया। वे जहाँ-जहाँ गए उन्होंने अपनी बात का प्रचार किया और उन्हें बड़ी संख्या में लोगो का समर्थन प्राप्त हुआ।

सन 1980 में उन्होंने ‘अम्बेडकर मेला’ नाम से पद यात्रा शुरू की जिसमें अम्बेडकर के जीवन और उनके विचारों को चित्रों और कहानी के माध्यम से दर्शाया गया। 1984 में कांशी राम ने BAMCEF के समानांतर दलित शोषित समाज संघर्ष समिति की स्थापना की। इस समिति की स्थापना उन कार्यकर्ताओं के बचाव के लिए की गई थी जिन पर जाति प्रथा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हमले होते थे। हालाँकि यह संस्था पंजीकृत नहीं थी लेकिन यह एक राजनैतिक संगठन था। 1984 में कांशी राम ने बहुजन समाज पार्टी के नाम से राजनैतिक दल का गठन किया। 1986 में उन्होंने ये कहते हुए कि अब वे बहुजन समाज पार्टी के अलावा किसी और संस्था के लिए काम नहीं करेंगे, अपने आप को सामाजिक कार्यकर्ता से एक राजनेता के रूप में परिवर्तित किया। पार्टी की बैठकों और अपने भाषणों के माध्यम से कांशी राम ने कहा कि अगर सरकारें कुछ करने का वादा करती हैं तो उसे पूरा भी करना चाहिए अन्यथा ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनमें वादे पूरे करने की क्षमता नहीं है।

राजनिती में योगदान 


अपने सामाजिक और राजनैतिक कार्यो के द्वारा कांशी राम ने निचली जाति के लोगो को एक ऐसी बुलंद आवाज़ दी जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश और अन्य उत्तरी राज्यों जैसे मध्य प्रदेश और बिहार में निचली जाति के लोगों को असरदार स्वर प्रदान किया। 

कृतियॉ

  • चमचों का युग

मृत्यु

कांशी राम को मधुमेह और उच्च रक्तचाप की समस्या थी। 1994 में उन्हें दिल का दौरा भी पड़ चुका था। दिमाग की नस में खून का गट्ठा जमने से 2003 में उन्हें दिमाग का दौरा पड़ा। 2004 के बाद ख़राब सेहत के चलते उन्होंने सार्वजनिक जीवन छोड़ दिया। करीब 2 साल तक शय्याग्रस्त रहेने के बाद 9 अक्टूबर 2006 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी आखिरी इच्छा के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार बौद्ध रीति-रिवाजो से किया गया।

विरासत

कांशी राम की सबसे महत्वपूर्ण विरासत है उनके द्वारा स्थापित किया गया राजनैतिक दल – बहुजन समाज पार्टी। उन के सम्मान में कुछ पुरस्कार भी प्रदान किये जाते हैं। इन पुरस्कारों में कांशी राम आंतर्राष्ट्रीय खेल कूद पुरस्कार (10 लाख), कांशी राम कला रत्न पुरस्कार (5 लाख) और कांशी राम भाषा रत्न सम्मान (2.5 लाख) शामिल हैं । उत्तर प्रदेश में एक जिले का नाम कांशी राम नगर रखा गया है। इस जिले का नामकरण 15 अप्रैल 2008 को किया गया था।

जीवन घटनाक्रम

1934: रोरापुर, पंजाब में जन्म

1958: पूना में रक्षा उत्पादन विभाग में सहायक वैज्ञानिक के पद पर नियुक्ति

1971: नौकरी छोड़ कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जाति और

अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संस्था की स्थापना की

1973: BAMCEF की स्थापना

1976: दिल्ली में BAMCEF के पहले कार्यरत कार्यालय की स्थापना

1981: दलित शोषित समाज संघर्ष समित्ति की स्थापना

1984: बहुजन समाज पार्टी की स्थापना

2006: 9 अक्टूबर को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।

               अमित कुमार

              दिनारा रोहतास बिहार 

विविध रंगो का त्योहार है होली,होलिका की अवधारण भ्रामक –अजय प्रकाश सरोज

देश के हर त्यौहार का कुछ न कुछ कहानी आप लोगो ने जरूर सुनी होंगी । भारत में लगभग सभी त्योहारों का अपना अपना कारण है। जरा सोचिए क़ि प्राचीन काल से ही भोले भाली जनता क्या सांस्कृतिक तौर पर इतनी हिंसक रही होगी क़ि अपनी महिलाओ को जलाकर उत्सव मनाते होंगे ? लेकिन आर्यो के आगमन के बाद कुछ ऐसा ही भारत की संस्कृतिक गतिविधियों में शामिल होना पाया जाता है।
होली के त्यौहार से जुडी जो घटना बताई जाती है मुझे ब्यक्तिगत तौर पर इसमें भी साज़िश लगती है । एक तो हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का अपने भतीजे विष्णु भक्त प्रह्लाद के साथ आग में बैठना और दूसरा प्रह्लाद की खोज में गई होलिका का ब्राह्मण -आर्यो द्वरा बलात्कार करके जला देना । फिर उस अपराध को छुपाने के लिए रंगों के साथ उत्सव मनाने का षणयंत्र रचना ।

इस त्यौहार को लेकर दो विचारधरा पढ़ने और सुनने को मिलती है।
यह तो कई विद्वानों ने सिध्द किया क़ि सभ्यता के शुरुआती दौर में भारत प्रकृति पूजक समाज रहा है। हमारे त्यौहार अधिकांश प्रकृति के साथ जुड़े हुए है। होली का त्यौहार भी ग्रामीण किसानों की लहराती खेती के समय से जुड़ा हुआ है। ऐसा लगता है यह परंपरा भारत में आर्यो के आगमन से पहले कि रही होगी। जिसको आज कई प्रान्तों में अलग अलग नाम से मनाते है।
बाद में इन त्योहारों में आर्यो ने अपनी  ईश्वरी अवधरणा के सिद्धांत को जोड़कर दैवीय सिद्धन्तो को मजबूत किया । ताकि यहाँ  के प्रकृति पूजक समाज को प्रकृति के मूल सौंदर्य और महत्व से अलग किया जा सकें।
फिर  इन्ही के मायाजाल में फंसे लेखकों ने इस प्रकरण के जवाब में  होलिका को बहादुर व साहसी महिला बताने के साथ ही प्रह्लाद को निकम्मा और बिगड़ा हुआ लड़का बताया ।  जिसके कारण होलिका की हत्या की गई। जरा सोचिए कि इस घटना को सर्वप्रथम किसने कहा होगा ? और क्यों ?
लेकिन इस विवाद में उन ग्रामीणों और खेतिहर मजदूरों वाला होली के त्यौहार कहीं गुम होता जा रहा है। जिसमे प्रेम ,भाईचारा ,सौहार्दय की मिठास थीं । जाति -पाति , लिंग -भेद  आपसी मनमुटाव दरकिनार कर एक दूसरे से गले मिलते थे। लेकिन अब विविध रंगों और विभिन्न प्रकार के पकवानों से सजे रसोइयों की महक कम होती जा रही। ऐसे कई बहुजनों को अक्सर होली के त्यौहार से दूरी बनाते हुए देंखा जा सकता है।
मेरा मानना हैं किअगर मन करें तों  विविध जातियों ,विविध धर्मो, विविध संस्कृतियों के देश भारत में विविध रंगों का त्यौहार होली जरूर मनाएं लेकिन होलिका के  विवादित प्रकरण को इससे न जोड़ के देंखे। ध्यान रहें विविध रंगों का प्रयोग करें। न कि एक रंग जिसे आजकल  एक पार्टी के लोग कह रहे है। अपनी विविधता के इस सौंदर्य को हमे  बरक़रार रखना होगा।

धर्मेंद्र भारतीय का असिस्टेंट प्रोफ़ेसर में चयन

इलाहाबाद निवासी धर्मेंद्र कुमार भारतीय हिंदी अर्थशास्त्र,समाजकार्य , विषयों में परास्नातक के साथ ही शिक्षाशास्त्र से नेट( NET )है। इसके अलावा बीएड, एम.एड, एम.फिल की डिग्रियां भी प्रॉप्त की है। धर्मेंद्र अब तक 11 राष्ट्रीय और 2 अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भाग ले चुके है। कई शोध पत्रिकाओं में इनके लेख भी छपे है। कल उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी रिजल्ट में धर्मेन्द्र का चयन शिक्षाशास्त्र के लिए हुआ है।
वर्तमान में आप सीतापुर जिले में एक इंटर कॉलेज में लगभग छः वर्षो से अर्थ शास्त्र के प्रवक्ता पद पर शिक्षण कार्य कर रहें  है। इनके चयन से कॉलेज के शिक्षक और बच्चे भी ख़ुशी है।

अध्यापन के साथ आप सामाजिक संघठनो में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते रहते है। इनकी सामाजिक सक्रियता को देंखकर माध्यमिक शिक्षक संघ ने सीतापुर का जिला अध्यक्ष नियुक्त किया है। जिसकी जिम्मेदारी बख़ूबी  निभा रहे है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान आप छात्र महापरिषद के सदस्य भी रह चुके है। मूलतः  ग्राम दलापुर,पोस्ट हनुमानगंज के रहने वाले धर्मेंद्र के पिता श्री सूर्यदीन भारतीय का देहावसान हो चुका है। माता श्रीमती बड़का देवी गांव में ही रहती है। जबकि एजी ऑफिस में सीनियर ऑडिटर बड़े भाई अरविन्द पत्नी सीमा भारतीय और बच्चों के संग शहर के अशोक नगर  मोहल्ले रहते है। धर्मेंद्र अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता और भैया -भाभी को देते है ।
साधारण ब्यक्तितत्व और मृदुभाषी धर्मेंद्र जी के सफ़लता पर इनसे जुड़े मित्रो ने सोशल मीडिया  व्हाट्सअप ,फेशबुक के जरिये बधाई दें रहे है। पासी समाज के लिए यह गर्व का विषय है कि हमारे समाज के युवक सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं बल्कि उच्चशिक्षण संस्थाओं में भी पहुँचने लगे है। जँहा से देश और समाज को नई नई जानकारियां उपलब्ध होती है। नए विचार ही समाज को आगे ले जाएंगे। धर्मेंद्र जी से यहीं अपेक्षा की जाती है। सफलता की बधाई और शुभकामना — अजय प्रकाश सरोज ,सम्पादक  

इंटरनेशनल महिला दिवस पर देश की सबसे ताकतवर बहुजन महिलाओ को जानिये !

इंटरनेशनल लेवल पर महिला दिवस मनाया जा रहा है। भारत में भी चारों ओर महिला दिवस की बधाईयां दी जा रही हैं। कुछ महिलाओं को आज सम्मानित किया जाएगा और उनके संघर्षों की बात की जाएगी। लेकिन इस पूरे विमर्श से बहुजन महिलाओं का संघर्ष गायब है। सैंकड़ों बहुजन महिलाएं देश को मजबूत बनाने और देश की तरक्की के लिए संघर्ष कर रही हैं। लेकिन उनको मुख्य धारा के विमर्श से बाहर रखा गया है।
सावित्री बाई फुले
सावित्री बाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका थी। सावित्री बाई फुले ने ही ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला। महिलाओं के अधिकार और समानता के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। इस संघर्ष के चलते उनको घर भी छोड़ना पड़ा था। देश की बहुत सारी कुप्रथाओं के खिलाफ उन्होंने संघर्ष किया।
फातिमा शेख

फातिमा शेख पहली मुस्लिम शिक्षिका थी। फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने ज्यातिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले को स्कूल खोलने के लिए अपना घर दिया था। और उसी स्कूल में फातिमा शेख ने पढ़ाना शुरू किया था।

उदा देवी पासी 

ऊदा देवी ने वर्ष 1857 के ‘प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ के दौरान भारतीय सिपाहियों की ओर से युद्ध में भाग लिया था ।इस लड़ाई के दौरान ऊदा देवी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर स्वयं को एक पुरुष के रूप में तैयार किया था। लड़ाई के समय वे अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला-बारूद लेकर एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गयी थीं। उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया, जब तक कि उनका गोला बारूद समाप्त नहीं हो गया। ऊदा देवी 16 नवम्बर, 1857 को 32 अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुईं। ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें उस समय गोली मारी, जब वे पेड़ से उतर रही थीं। उसके बाद जब ब्रिटिश लोगों ने जब बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्होने ऊदा देवी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही वर्ष पूर्व स्थापित की गयी है।लंदन टाइम्स’ के संवाददाता विलियम हावर्ड रसेल ने लड़ाई के समाचार में उदा देवी का विशेष उल्लेख किया था ।
फूलनदेवी
विद्रोह की प्रतीक वंचित तबके से आने वाली फूलन देवी जिन्होंने सामंती वर्चस्व को चुनौती दी। और खुद के उपर हुए जुर्म के ख़िलाफ़ डटकर संघर्ष किया। वह खुद को बागी कहती थी, उनका कहना था ‘मैं कोई अपराधी नहीं हुं, मैंने तो अपने ऊपर हुए जुर्म का प्रतिकार किया है।’ मशहूर टाइम मैगज़ीन ने विश्व की 16 विद्रोही महिलाओं में चौथे पायदान पर फूलन देवी को जगह दी है। लेकिन भारत में उनको उचित सम्मान नहीं मिला।

कल्पना सरोज
कल्पना सरोज बड़ी बहुजन उद्यमी महिला हैं। कमानी ट्यूब्स, कमानी स्टील्स, केएस क्रिएशंस, कल्पना बिल्डर एंड डैवलपर्स, कल्पना एसोसिएट्स जैसे दर्जनों कंपनियों की मालकिन हैं। इन कंपनियों का रोज का टर्नओवर करोड़ों का है। समाजसेवा और उद्यमिता के लिए कल्पना को पद्मश्री और राजीव गांधी रत्न के अलावा देश विदेश में दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं। 12 साल की उम्र में बाल विवाह, घरेलू हिंसा और अमानवीय सामाजिक दंश झेल चुकी कल्पना आज कमानी ट्यूब्स के साथ साथ रियल्टी, फिल्म मेकिंग और स्टील जैसे दर्जनों कारोबार संभाल रही हैं।
डॉ. मनीषा बांगर 
मनीषा बांगर सामाजिक सक्रियता और राजनीतिक चेतना के लिए बहुजन आंदोलन में एक प्रसिद्ध नाम हैं। ऐसी बहुत कम महिलायें हुई हैं, जो अपने मेडिकल प्रोफेशनल कैरियर के साथ-साथ सामजिक क्षेत्र में भी बहुत सक्रिय हों। लेकिन मनीषा ने मेडिकल प्रोफेशनल के साथ-साथ समाज में व्याप्त रोगों की पहचान की और वे उनके निदान के लिए लगातार प्रयत्नशील भी हैं। पेशे से डॉक्टर मनीषा अभी डिपार्टमेंट ऑफ़ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, डेक्कन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज हैदराबाद में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और हैदराबाद के कॉरपरेट हॉस्पिटल में लीवर ट्रांसप्लांट की विशेषज्ञ हैं।
सोनी सोरी
सोनी सोरी आदिवासी महिला हैं जो खुद पर हुए अत्याचार के खिलाफ लड़ रही हैं। सोनी सोरी छत्तीसगढ़ के एक गाँव में शिक्षिका हैं। पुलिस हिरासत में सोनी सोरी के साथ बहुत अमानवीय व्यवहार हुआ है। उनके चेहरे को भी तेजाब से जला दिया गया। उसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार संघर्ष कर रही हैं।
मायावती
मायावती भारत की सबसे बड़ी दलित महिला नेता हैं। चार बार यूपी की सीएम रह चुकी हैं। राजनीति के शुरूआती दौर में उन्होंने बहुत संघर्ष किया है। अपने जीवन के अहम फैसले उन्होंने खुद किए हैं। बावजूद इसके मुख्य धारा के महिला विमर्श में उनकी बात नहीं की जाती। –आर सी रावत,भुसावल 

वंचित समाज और संविधान

प्लेटो का आदर्श राज्य न्याय पर आधारित है , न्याय ही राज्य की एकता को बनाए रखने का सूत्र है , प्लेटो का कहना है की “समाज अथवा राज्य समाज की आवश्यकता और व्यक्ति को दृष्टि में रखते हुए प्रत्येक व्यक्ति के लिए कुछ कर्तव्य निश्चित करते है और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा संतोषपूर्वक अपने अपने कर्तव्यों का पालन करना ही न्याय है , प्लेटो का आदर्श राज्य एक ऐसी वयस्था है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने निश्चित कर्तव्यों का पालन करता है ।

प्लेटो म उपरोक्त कथन उनकी राज्य के प्रति अवधारणा की स्पष्ट करता है । किसी देश की अंतरात्मा उसके संविधान में निहित होती है । भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है इस देश का संविधान इसका नेतृत्व करता है , जिसके जनक बाबा साहेब डा. भीम राव अम्बेडकर है किसी देश की प्रकृति कैसी है यह उसके संविधान से स्पष्ट होता है उसकी न्याय प्रणाली ,सामाजिक वयस्था , राजनीतिक तंत्र ये सभी संविधान से बँधे होते है ।

संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो अगर उसको आत्मर्पित करने वाले लोग सही नहि होंगे तो उस देश का भविष्य अच्छा हो सकता । बाबा साहब के संविधान पर महान दार्शनिक प्लेटो के उपरोक्त कथन का प्रभाव स्पष्टत: इंगित होता है , अब इसे हम संयोग kahe या बाबा साहब की विध्व्ता जिन्होंने सैंड्रा के सभी अच्छे संविधानों के बेहतरीन तथ्य भारतीय संविधान में तिरोहित किया है । बाबा साहेब ने संविधान निर्माण के समय विश्व के सभी देशों के संविधान का अध्याय निश्चित रूप से किया होगा , साथ ही साथ विश्व के महान दर्शिनको तथा विद्वानों का भी अध्यन किया होगा , तभी तो भारत का संविधान इतना उत्कृष्ट बना है ।२९ अगस्त सन १९४७ को जब बाबा साहेब को भारतीय संविधान निर्माण की ज़िम्मेदारी मिली तभी यह स्पष्ट हो गया था कि एक ख़ूबसूरत संविधान देखने को मिलने बाला है । तथा बाबा साहब ने दिन रात मेहनत करके २ वर्ष ११ महीने १८ दिन में इस आशय को सिद्ध भी कर दिया । संविधान निर्माण समय बैन साहेब के समक्ष लगभग ३० करोड़ जनसंख्या को न्याय दिलाने और सब की उम्मीदों के अनुरूप निर्माण की चुनौती थी , जिसे बाबा साहेब ने बख़ूबी निभाया ।
भारतीय समाज का इतने भागो में विभाजित होना , भारतीय समाज में विश्व की लगभग सभी जातियों और वर्गों के निवास करने और उन सब में अंतर्कलह की स्थिति के बावजूद संविधान में हर तबके के लिए सम्पूर्ण वयस्था निहित है । आज़ादी के पूर्ण भारत में भारत की ६० प्रतिशत जन्स्ख्या ग़ुलामों जैसी ज़िंदगी जी रही थी , वैसे तो भारत की ८०प्रतीशत् जन्स्ख्या की यहाँ बड़ी ही हेय दृष्टि से देखा जाता था । फिर भी विषम परिस्थितियों बाबा साहेब ने संविधान का निर्माण किया । महान दार्शनिक प्लेटो तथा अन्य महान विद्वानों ने जो आदर्श राज्य के जो नियम प्रतिपादित किए थे उन सभी को संविधान में तिरोहित किया । उन्होंने समाज के har वर्ग को उसकी योग्यता अनुसार राष्ट्र के vikas के लिए उसके कर्तव्य निर्धारित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया , जिससे देश का प्रत्येक नागरिक पढ़ लिख कर तरक़्क़ी कर सके और और राष्ट्र निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दे सके

परंतु पिछले ६७ वर्षोंसे कुछ वर्ग विशेष के लोग उन्हें निरंतर दबाने में लगे है , जिन्हें बैन साहब , ज्योतिबा फुले ने संघर्ष कर अधिकार दिलाया था , यदि इन मनवादियो को उस तबके की तार्किक से इतनी नफ़रत है तो ऐसी कौन सी मजबूरी थी ? जिसके वजह से इन मनवादियो ने बैन साहेब को पूना पैक्ट के लिए मजबूर किया था , जो दबे कुचले है उन्हें यथावत उसी स्थितियों में बनाए रखना था , अंकन वाई तबक़ा तरक़्क़ी करने लगा तो इन मनवादियो को कष्ट होने लगा , जिसके फ़लस्वरोप सदैव उसकी राहों में रोड़े अटकाए गए । आजाती के इतने वर्षों के पश्चात भी संविधान में की गई आरक्षण कि पूर्ण व्यवस्था पूरी तरह से आज भी लागू नहि की गई , न्यायालय ,सेना, PMO , प्राइवट सेक्टर में तीन -तीन पीढ़ी बीत जाने के बाद भी कोई ख़ास प्रतिनिधित्व आज राज क्यों नहि मिला ? ऐसा क्या चल रहा है इन मनुवादी के मस्तिष्क जो उन दबे कुचले लोगों को अग्रिम पंक्ति में नहि आने देना चाहता ।

यदि आज हम किसी भी संस्थान में उठा कर देखे ले तो उच्च पदों पर या तो नियुक्ति ही नहि की जाती यदि की भी जाती है तो विषम परिस्थितियों में न के बराबर आज़ादी के पश्चात –

– क्या तीनो सेनाओं के प्रमुख के रूप में किसी वंचित समाज के सदस्य की नियुक्ति हुई ?
– क्या कोई प्रधान मंत्री बना
– एक राष्ट्रपति छोड़ क्या धारक कोई राष्ट्रपति बना
– न्यायालयों में आजतक कितने चीफ़ जस्टिस पहुँचे ।लोवर तबके पर कितने वंचित समाज के वकीलों को सरकारी वक़ील या जज के रूप में प्रमोशन मिलता है ? एक चीफ़ जस्टिस नियुक्त हुए थे कुछ समय के लिए जब चीफ़ जस्टिस की को अपनी संपती की घोषणा सार्वजनिक रूप से करनी थी ।
– विश्वविद्धलयो में कितने कुलपति , प्रोफ़ेसर अब तक नियुक्त हुए ?
– विभिन्न राज्यों में अब तक कितने मुख्यमंत्री और राज्यपाल बने ?
– कहा जाता था की कांग्रेस वंचित समाज की सहयोगी पार्टी है अब तक कितने अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बने ?
– कांग्रेस की सरका रहते कोई प्रधान मंत्री बना ?
– ५०-५५ वर्षों के कांग्रेस शासन में कितने कैबिनेट मंत्री बने ?
– आज भाजपा की सरकार है कितने वंचित समाज से संबंधित उसकी कैबिनेट मंत्रालय में है ?
– कितने लोगों को इन्होंने पार्टी के शीर्ष पदों स्थान दिया है ?
– भारतीय क्रिकेट टर्म जहाँ एक सिख और मुस्लिम स्थान लगभग हमेशा संरक्षित रहा SC/ST के कितने खिलाड़ियों को प्रतिनिधित्व का मौक़ा मिला?
– अन्य खेलो जैसे हाकी फ़ुट्बॉल इत्यादि में अब तक इस वर्ग को कितना प्रतिनिधित्व मिला है
– विश्व हिंदू परिषद, आर॰एस॰एस॰ ,बजरंग दल, शिवसेना , प्रांतीय दल , रक्षक वहिनी , दुर्गा वहिनी , न जाने कितनो में वंचित समाज की भागीदारी करोड़ो में होती है , परंतु जैन अधिकार ,प्रतिष्ठा की बात आती है तो हमेशा अगली पंक्ति में मनुवादी के पोषक ही दिखाई पड़ते है
– संघीयों ने अब तक कितने पासी ,जाटव,कोरी ,धोबी, इत्यादि को अध्यक्ष या प्रमुख के पद पर आसीन होने दिया है ।
– क्या इनकी कार्य प्रणाली मन में शंका नहि पैदा करती ?
वहीं दूसरी तरफ़ पेरियार साहब तमिलनाडु में पिछड़े और परिगणित जातियों के लिए एक पार्टी का गठन किया जो की बाद में दो भागो AIDMK और DMK में विभाजित हुई दोनो के ही मुख्यमंत्री ब्राह्मण रहे है । मान्यवर स्वर्गीय श्री कांशीराम साहब ने बामसेफ और बीएसपी की स्थापना की स्थापना लोअर तबके लिए किया परंतु आज इसमें ब्रह्मणो को बराबर सम्मान मिलता है पर क्या वंचित समाज को सम्मान मिलता है ?मात्र एक-दो राज्यों में इनकी सरकार क्या बनी माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ गया की जाती और धर्म के आधार पर वोट न माँगे जाए मैं पूछना चाहता हु की जाती और धर्म की इस देश को ज़रूरत क्या है ?
उसे समाप्त क्यों नहि कर दिया जाता ? कटघरे में खड़े व्यक्ति को गीता और क़ुरान पर हाथ रखकर क़सम क्यों खिलाई जातीहै ?

– क्या गीता जातिवादी पुस्तक नहि है ?
– क्या गीता रामायण महाभारत जातिवाद को बढ़ावा नहि देते ? ऐसी पुस्तकें जिसमें कपोल कथाएँ है उससे नागरिकों को क्या फ़ायदा है ?
– ऐसी पुस्तक न्याय के मंदिर में प्रयोग क्यों की जाती है।
– आज भारत की जो स्थिति है उसका ज़िम्मेदार कौन है ? कहीं नक्सलवाद कहीं उल्फ़ा ,कहीं एल॰टी॰टी॰ कही आतंकवाद जगह जगह अलगाववाद को बढ़ावा क्यों मिल रहा है ? क्या इसके पीछे केंद्र की कमज़ोर जीती नहि है ?
– भारत के तत्कालिक परिवेश को देखने पर लेनिन के ये शब्द याद आते है – साम्राज्यवाद पूँजीवादी सर्वोत्तम अवस्था है ?
– राज्य धनवान वर्ग के हाथ की कठपुतली है वह सर्वहित या जैन कल्याण का साधन नहि हो सकता ।
– राज्य जनसंख्या के अधिकांश भाग पर शासन करने वाले पूँजीपतियों के हाथो में शोषण का साधन है ।लेनिन के उपरोक्त कथनो और भारत के मोदी युग का विश्लेषण करे रो आज का मोदी युग पूँजीवादी की ओर अग्रसर हो रहा है ।
– मोदी एंड कम्पनी देश को किस दिशा में ले जा रहे है ?
– क्या पूँजीवाद और समराज्यवाद देश के लिए ख़तरा नहि है
– क्या मोदी कंपनी लेनिन के उपरोक्त कथन की ओर नहि बढ़ रहे है
– क्या भाजपा की ये कार्यशैली प्लेटो के आदर्श राज्य के विपरीत नहि जा रहे है ?
– क्या इस देश में प्रत्येक समझके प्रत्येक वक्ति राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निर्वाह करने का मौक़ा मिलता है ?
– क्या इस वर्ग को आरक्षण के तहत जो अधिकार है उसके अंतर्गत जीवन जीने का मौक़ा मिलता है ?
– १९९२ से अब तक लगातार अयोध्या के ऊपर राजनीति की रोटी क्यों सेकी जा रही है ? २५ वर्ष हो रहे है जो बनाना है या नहि बनाना है फ़ाइनल करिए क्यों जनता को बेवक़ूफ़ बाना रहे है
– भाजपा नेता विनय कटियार का यह कहना की सुप्रीम कोर्ट कहे ना कहे मंदिर ज़रूर बनेगा । क्या ये मानननिय सुप्रीम कोर्ट से ऊपर होग गए है ।
– यदि सम्पूर्ण जनता को साथ लेकर चलना चाहते है तो क्यों नहि आदिवासियों के ज़मीन संभ्धित अधिकार उन्हेंसौंप देते ?
– क्यों आरक्षण का पेंच फँसा कर बैठे है ?क्यों नहि उसे पास करवाते ?
– आरक्षण पर मानननिय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भी उसका पालन क्यों नहि करवा रहे है ?
– बार – बार संविधान संशोधन और आरक्षण पर बहस क्यों छिड़तीं है ?
– क्या ये वर्ग क्रांति चाहता है ?
– यदि किसी वर्ग विशेष के अधिकारों का दमन किया गया तो क्या देश के लिए विनाशकारी नहि होगा ?
– उससे देश को क्या फ़ायदा होगा
– क्यों मीडिया और न्यूज़ चैनल इस ओर आमादा है ?
– क्या इससे देश की तरक़्क़ी में बाधा नहि पहुँचेगी ?
– देश की जनता को भ्रमित क्यों किया जा रहा है ?

क्या आज माननिय प्रधानमंत्री और उनके मंत्रालय अर्थात भारत सरकार को इस विषय पर गम्भीरता से विचार नहि करना चाहिए ?

जय भीम

लेखक – डा ० यशवंत सिंह ,लखनऊ

महिला दिवस पर विशेष

स्त्री और पुरुष में शारीरिक संरचना के आधार पर भले अलग हो बल्कि यूँ कह लीजिए कि कुदरत का यही विभेद ही उनकी अपनी  ख़ासियत भी है लेकिन उनकी जीवन की जरूरतें लगभग एक तरह की है। जैसे भूख,प्यास,थकान,बीमारी आदि आदि। 

परन्तु सौन्दर्य बोध की गलत अवधारणा ने महिलाओ और पुरुषों को एक प्रतियोगिता में शामिल कर दीया है। 
            हवाई जहाज से लेकर दाड़ी बनाने वाली ब्लेड का प्रचार भी बिना स्त्री के पूरा नही होता यहाँ तक की महिलाओं के बिना गाली दे कर किसी का विरोध और प्यार भी न जताया जा सकता है।
  महिलां आजादी की  बात भी उठी तो विदेशी महिलाओं की तरह शारीरिक आजादी तक ही सिमित रह गयी और आर्थिक आजादी को दरकिनार किया गया। 
      और हमने स्वछन्दता को ही आजादी की परिभाषा बता डाली। आजादी का मतलब नियमो और कानूनो के दायरे में रहना और स्वछन्दता का मतलब बिना नियम कानून के समाज में जीवन यापन करना । हम लड़की को लड़के की तरह बनाने और लड़की लड़के से कम नहीँ होती । यह बताने में ही हम शेखी बघारने लगे और कुदरत की इस विविधता को घृणा में बदल दिया।
इसलिए महिला दिवस के इस अवसर पर कुदरत की इस विविधता का सम्मान करते हुए आधुनिक और वैज्ञानिक समाज बनाने के लिए संकल्पबद्ध हो | niraj pasi mob.9839782772

​महिला दिवस पर वीरांगना उदा देवी पासी की याद 

वीरांगना उदा देवी यह नाम भारत की उस वीर नारी का है जिसने भारत की आज़ादी की क्रांति को गर्म हवा देने के लिए अंग्रेजो के 36 सिपाहियो को मार गिराया था। ऐसी घटना विश्व के किसी देश में पढ़ने और सुनने को नही मिलती । देश के खातिर अपनी जान की बाज़ी लगाकर बहादुरी के साथ दुश्मनो से लड़कर शहीद होने वाली वीरांगना उदा देवी भारत में महिला संम्मान और स्वभिमान की एक मात्र प्रतीक बनकर उभरी है। देश की सवर्णवादी जातीय मानसिकता के कारण हम कई बार गुलाम हुए। इसलिए कि देश में लड़ने की जिम्मेदारी केवल एक जाति को सौंपी गई थी। सोचिये अगर उदा देवी जैसे सैकड़ो बहादुर महिलाओं की फ़ौज हमारे पास होती तो क्या तब भी देश  गुलाम हो पाता ? इसी तरह पुरुषों की भी एक लंबी फेहरिस्त है । जिन्हें लड़ाई से दूर रखा गया । सवर्ण महिलाओ को सिर्फ भोग का वस्तु बनाकर रखा गया। तो अवर्णों ने  महिलाओं को  चूल्हे, चौके सहित खेती बारी तक सीमित रखा। पुरुषवादी मानसिकता ने उसे कभी एहसास ही नहीं करने दिया कि वह भी समाज और देश की समस्याओं पर खुलकर अपनी बात रख सकती है। और जरूरत पड़ने पर देश की रक्षा के लिए हथियार भी उठा सकती है। लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई कोरी , दुर्गा भाभी ,फूलन देवी निषाद , ने देश और समाज के लिए क्या कुछ नहीं किया ? लेकिन हमारे देश के पुरुषवादी मानसिकता के महिलाओ की बहादुरी को नोटिस नही किया गया।  यंहा तक की उनकी स्मृति में बने पार्क और प्रतिमाओं को निशाना बनाया जा रहा। कितनी शर्म की बात है कि पिछले महीनो कानपुर में उदा देवी पासी के नाम बने पार्क को सरकार ने तोड़ दिया । 

आज़ादी के बाद ड़ॉ अम्बेड़कर द्वारा संबिधान ने उन्हें बराबरी का अधिकार दिया।  शिक्षा के साथ ही उन्हें देश और समाज की नीतिया बनाने में भी भागी दार बनाया जा रहा है । आज कई उदाहरण हमारे सामने है। फिल्म, उधोग, शिक्षा , समाज, पा, मिडिया के साथ ही राजनीति के उच्च पदों पर आप महिलाओं की भागीदारी को देख पा रहे है।  बावजूद इसके बहुत से सेक्टरों में अभी  इन्हें जाना शेष है । इसके लिए हम सबको अपने पुरुषवादी मानसिकता से निकलकर उनके साथ आगे बढ़ना होगा। – अजय प्रकाश सरोज

आज़ादी की नायिका शाहिद वीरांगना उदा देवी पासी

पासी माँगलिक भवन का उद्घाटन – इन्दौर ,मध्यप्रदेश !

पासी धर्म इन्दौर मे पासी मांगलिक भवन का हुवा उदघाटन जिसमे मा प्रेम चन्द जी गुड्डू {पूर्व सासंद} मा सोहन जी वालमिकी विधायक {छिदवाडा :परासिया} शुन्दरलाल जी बोरासी {थाना प्रभारी} मा महेश जी बोरासी मा बालकिशन जी बोरासी मा जीतु पटवारी विधाय मा महेन्द्र हार्डिया जी परसराम जी व अन्य पासी धर्म बन्धु उपस्थित थे। साभार – भंवरलाल कैथवास , रतलाम ।

बिहार में नही थम रहा दलित अत्याचार , पटना (फुलवारीशरीफ) में दबंगों ने दलित महिला का किया सामुहिक बलात्कार 


अभी ऑटोमोबाईल कारोबारी और कांग्रेस नेता ब्रजेश पांडेय द्वारा दलित पीड़ीता की यौन शोषण और उत्पीड़न का मामला चर्चा में ही था कि एक और दलित महिला के सामुहिक बलात्कार की घटना सामने आ गयी और सुशासन बाबु के अपराध मुक्त और भयमुक्त समाज बनाने का दावा एक बार फिर खोखली साबित हुई ।

बिहार में राजधानी पटना के फुलवारीशरीफ थाना क्षेत्र में एक दलित महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला प्रकाश में आने के बाद पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी कर रही है।

पुलिस सूत्रों ने यहां बताया कि गोनपुरा मुसहरी की 35 वर्षीय महिला के बयान पर संबंधित थाना में आज गोनपुरा गांव के नौ लोगों के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया है। दर्ज प्राथमिकी में कहा गया है कि कल रात नौ लोगों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया।

महिला को आज मेडिकल जांच के लिए पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेज दिया गया है। सूत्रों ने बताया कि महिला ने जिन आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है वे सभी फरार हैं। पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी कर रही है। ईस घटना का विरोध अभी तक केवल भाकपा माले के द्वारा ही किया गया है । देश और प्रदेश में दलितों के नाम पर अपनी राजनिति चमकाने वाले तथाकथित दलित नेताओ ने ईस घटना का विरोध तो क्या ईस घटना की जानकारी लेना भी जरुरी नहीं समझा । 

  अमित कुमार 

दिनारा रोहतास सासाराम बिहार 

देशभक्ति के लिए ज़रूरी क़दम , सरकार और आम जनद्वारा !

 

हम भारतीय 120 करोड़ से ज्यादा होंगे और ओर जब तक हम लिख रहे होंगे कुछ लाख और बढ़ चुके होंगे,सभी लोग न सिर्फ़ अपने देश वरन दुनिया और इस पृथ्वी ,ब्रह्माण्ड का भला चाहते हैं। अपने देश को मज़बूत,समृद्ध बनते देखना चाहते हैं। दुश्मनों को हराना भी चाहते हैं।
लेकिन कुछ ऐसी जानकारियां जो आपको आमतौर पर मीडिया और सरकारों से नहीं मिलतीं वह बताता वह आपको बताना चाहता हूँ। और स्वयं देखिये कि देशभक्ति के लिए, देश की तरक्की के लिए ,देश की मजबूती के लिए इन स्थितियों पर जीत हासिल करना कितना ज़रूरी है। शिशु मृत्यु दर(IMR )
भारत 44,
पाकिस्तान 69,
बांग्लादेश 33,श्रीलंका8,
चीन 12 यू एस ए 6 जापान 8.

उपरोक्त शब्द शिशु म्रत्यु दर (IMR) का अर्थ है
एक साल से छोटे बच्चों की मृत्यु दर प्रति हज़ार जीवित जन्म।
IMR सिर्फ शिशु मृत्यु दर ही नहीं अपितु देश की समृद्धि और जीवन की गुणवत्ता को मापने का भी पैमाना है। और आप देख सकते हैं कि जहाँ हमारे पड़ोसी छोटे से देश श्रीलंका में मात्र 8 बच्चे प्रति हज़ार जन्म की मृत्यु होती है। भारत में यह दर 44 बच्चे प्रति हज़ार शिशु जन्म है। विकसित देशों जैसे अमेरिका,जापान,इंग्लैंड,सिंगापूर,फ़्रांस,ऑस्ट्रेलिया वगैरह से तो हम बहुत पीछे हैं ही हमारे पड़ोसी चीन और बांग्लादेश ने इस मामले में बहुत तरक्की की है। हम बस इसमें खुश होते रहें क्या कि पाकिस्तान हमसे भी कहीं ख़राब हालात में है । पांच वर्ष से छोटे बच्चों की मृत्यु दर प्रति हज़ार जन्म।
.भारत 56
पाकिस्तान 86
बांग्लादेश 41
चीन 14,
जापान 3
श्रीलंका14.
भारत के कुछ राज्य जिनमे यह दर राष्ट्रीय औसत से भी कहीं ज़्यादा है निम्न हैं।
टॉप पर था मध्य प्रदेशश (2012 जनगणना)
सबसे जयादा शिशु म्रत्यु दर मध्य प्रदेश 56, आसाम 55, उड़ीसा 53, उतर प्रदेश 53.
विश्व में: Child survival rate सबसे अच्छा सिंगापुर का 99 है ।
भारत अनेकों बीमारियों में विश्व में नंबर 1 या नंबर 2 की पोज़िशन पर है। और हमारी ओलंपिक टैली इसी बात का लक्षण मात्र है।
कुछ बीमारियां,
टीबी मे प्रथम
डायबिटीज मे प्रथम
मुह का कैन्सर मे प्रथम
निम्न दो देश दुनिया की सबसे ज़्यादा मातृ मृत्यु वाले देश हैं।
पहला है भारत 17 प्रतिशत
दूसरा नाइजीरिया 14 प्रतिशत।
अर्थात गर्भस्थ माँ या डिलीवरी और उसके बाद की होने वाली
जटिलताओं से मौतों की संख्या में से 17 प्रतिशत पूरे विश्व भारत में सर्वाधिक मातृ मृत्यु दर है।
एड्स के सर्वाधिक केस दुनिया में निम्न देशों में हैं। हम शर्मीले, तीसरे स्थान पर हैं। जब पाश्चात्य संस्कृति की बिकनी को हम निम्न स्तरीय संस्कृति कह रहे थे वे अपने देश से एड्स के प्रसार को ख़त्म कर प्रसार दर शून्य पर ला रहे थे।
एच आई वी इंफेक्शन से पीड़ित पहले तीन देश:
1. साउथ अफ्रीका 52 लाख
2.नाइजीरिया 33 लाख
3. भारत 24 लाख।
मैंने सिर्फ ट्रेलर दिया है छोटा सा।
मूल कारण:
क्रमानुसार हैं
अज्ञानता,
ग़रीबी,
अशिक्षा
अज्ञानता अर्थात स्वास्थ्य जागरूकता में नितांत कमी और अवैज्ञानिक धारणाएं और परंपराएं प्रमुख हैं।
ग़रीबी से 10 गुना बड़ा कारण है अज्ञानता। और अज्ञानता तथा अशिक्षा अलग अलग बात है। शिक्षित व्यक्ति भी अज्ञानी हो सकता है और अशिक्षित भी ज्ञानी।
सरकार की बहुत कोशिशों और विज्ञापनों के बावजूद सिर्फ 50 प्रतिशत माएं फ्री में दिया जाने वाला माँ का दूध पिलाती हैं।
टीकाकारण मात्र 40 प्रतिशत शिशुओं को दिलवाया जाता है।
माँ को आज भी गर्भावस्था में प्रोटीन और आयरन युक्त खाना न देकर बहुत से फर्जी परहेज़ कराये जाते हैं।
हमारे पास दो रास्ते हैं या तो तेज़ तेज़ मेरा भारत महान चिल्ला कर कुछ दशक और निकालें या भारत को महान बनाने छोटे छोटे प्रयास शुरू करें।

स्वस्थ रहना और स्वस्थ रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी और यह भी देशभक्ति है यह भावना विकसित करने की ज़रूरत है
सरकारें प्रयासरत हैं चलिए हम सब भी प्रयास करते है ।
स्वस्थ जन
समृद्ध राष्ट्र
कुछ व्यवहारिक उपाय:
1. गन्दगी न करें। ज़मीन,अस्पताल,कलेक्ट्रेट,कोर्ट जैसी। इमारतों की इज़्ज़त करें यह हमारी हैं।
2. शिशु स्वास्थ्य जैसे स्तनपान,टीकाकरण, पोषण पर ध्यान दें।
मानसिक विकास और मानसिक एवं आत्मिक स्वास्थ्य के लिए उन्हें समय दें, प्रेरक कहानी सुनाएँ।
3. मीडिया से जुड़े लोग स्वास्थ्य के विषय को ज़रूर ज़गह दें अपने पन्नों एवं कार्यक्रमों में। यदि संभव हो तो एक साप्ताहिक कॉलम मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य का आरंभ करें।
धन्यवाद आपका डॉ रमेश रावत (7800977008)