मजदूरों को घर पहुँचाने में प्रियंका गाँधी बनाम योगी

प्रियंका जी : मुख्यमंत्री योगी जी मजदूर पैदल चल रहें हैं ,आप इन्हें बसों से घर छोड़िए !

योगी जी : हल्के मन से – नही ! हमारें पास इतने संसाधन नही हैं !
प्रियंका जी : हम गरीबों को इस हालत में नही देख सकतें ,ये हमारे अपने मजदूर भाई बहन हैं ।
योगी जी : खीझतें हुए ..तो आप ही क्यों नही कर देती हैं !
प्रियंका : ठीक हैं आप हमें एक हजार बसों की अनुमति दीजिए ?

ठीक हैं ! सोचतें हैं – योगी जी !

योगी जी नें अपने दरबारियों को बुलाया और कहा कि यह इंदिरा की पोती बहुत परेशान कर रहीं है , अब तुम लोग इसे परेशान करों !

फिर दरबारियों नें पत्र जारी करके कहा कि आप हमें एक हजार बसों की सूची चालकों के नाम सहित तत्काल उपलब्ध कराइए !
दरबारियों के प्लान के मुताबिक ! इतनी बसों की ब्यवस्था तो हो नही सकती फिर तत्काल चालक खोजना और भी कठिन हैं ! ऐसे में प्रियंका हँसी की पात्र बन जाएगी !

लेकिन प्रियंका भी कम चतुर नही ! उन्होंने नहले पे दहला मारा और तुरन्त चालको के नाम सहित बसों की सूची पकड़ा दीं । दरबारी हड़बड़ा गए उन्हें लगा कि महराज जी अब हम लोगों को छोड़ेंगे नही ! फिर उन्होंने पैतरा बदला और रात 11 बजें पत्र भेजकर प्रियंका से कहा की आप कल सुबह 10 बजें सभी गाड़ियों को कागज़ सहित तकनीकी जाँच कराने लखनऊ भेजिए ? यह ड्रामा चल रहा हैं ..

मज़दूर अभी भी पैदल चलें जा रहें हैं किसी के पांव में छाले पड़ रहें हैं तो कुछ भूख से दम तोड़ रहें हैं ! प्रियंका परेशान होतें हुए अपना काम कर रहीं है योगी मुस्कुरा रहें हैं ।
– डॉ अजय प्रकाश सरोज ,संपादक -www.shripasisatta.com

महासचिव प्रियंका गांधी ने एक लाख मास्क लखनऊ भेजा

प्रदेश में 47 लाख लोगों को पहुंचाया जा चुका है राशन और खाना*

लखनऊ / अखिल भारती कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी श्रीमती प्रियंका गांधी ने एक लाख मास्क लखनऊ भेजा है।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा जारी प्रेस नोट में मीडिया संयोजक ललन कुमार ने बताया कि श्रीमती प्रियंका गांधी ने एक लाख मास्क भेजवाया है। इसके पहले महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी ने कई जिलों में राशन, लोगों को दवाएं भिजवा चुकी हैं। आज लखनऊ में उन्होंने एक लाख मास्क भिजवाया है। कल से कांग्रेस के सिपाही इसका वितरण करेंगे।

गौरतलब है कि महासचिव श्री प्रियंका गांधी कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में काफी सक्रिय रही हैं। उनके देखरेख में कई व्हाट्सएप ग्रुप संचालित हो रहे हैं जिनके माध्यम लोगों की मदद हो रही है।

ललन कुमार ने बताया कि लोगों की मदद के लिए लखनऊ, गाज़ियाबाद, हापुड़, आगरा, फतेहपुर, लखीमपुर, इलाहाबाद, समेत 17 जिलों में रसोईघर चलाया जा रहा है। साथ ही साथ हर जिले में जरूरतमंदों को राशन भी बांटा जा रहा है। प्रदेश में करीब 47 लाख लोगों को राशन और खाना पहुंचाया गया है। उत्तर प्रदेश के बाहर 4 लाख अपने प्रवासी मजदूरों और जरूरतमन्दों की मदद की गई है।

कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने मजदूरों ने सभी प्रदेश अध्यक्षों को निर्देशित किया मजदूर भाइयों का रेलवे किराया कांग्रेस पार्टी अदा करेगी।

ज्योतिबा फूले: भारतीय आधुनिकता के पिता

ज्योतिबा फुले के जन्मदिन पर आप एक बात गौर से देख पाएंगे। गैर बहुजनों के बीच में ही नहीं बल्कि बहुजनों अर्थात ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लोगों के बीच भी ज्योतिबा फुले को उनके वास्तविक रूप में पेश करने में एक खास किस्म की कमजोरी नजर आती है। ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के जितने भी महानायक हुए हैं लगभग उनके सभी के साथ यह समस्या नजर आती है।

भारत में ब्राह्मणवाद का जो षड्यंत्र सदियों से चला आ रहा है यह समस्या उस यंत्र से जुड़ती है। भारत के वे विद्वान और महापुरुष जो तथाकथित ऊंची जातियों मे जन्म लेते हैं वे अखिल भारतीय स्तर के महानायक मान लिए जाते हैं। और ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति से आने वाले महानायक उनके अपनी जातीय श्रेणी के अंदर विद्वान या महान माने जाते हैं। इस बात को ज्यादातर ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग ठीक से समझते नहीं हैं। इसीलिए भारत में इतनी शिक्षा, इंटरनेट और टेक्नोलॉजी के आने के बावजूद भारत का ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति का बड़ा समुदाय अपने नेरेटिवऔर ग्रैंड नेरेटिव का निर्माण नहीं कर पा रहा है।

आप बाबा साहब अंबेडकर का उदाहरण दीजिए, गैर बहुजन समाज ही नहीं बल्कि बहुजन समाज भी ज्यादातर उन्हें संविधान के निर्माता के रूप में देखता है। डॉक्टर अंबेडकर ने अपनी महान विद्वता का इस्तेमाल करते हुए सिर्फ संविधान की रचना नहीं की थी। संविधान और कानून के अलावा ना केवल उन्होंने अर्थशास्त्र और भारत के इतिहास के बारे में बहुत कुछ लिखा है बल्कि उन्होंने पूरे भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक नए बौद्ध धर्म को भी जन्म दिया है। लेकिन दुख की बात है कि खुद बहुजनों में इस बात को ज्यादातर लोग नहीं जानते। आज आप किसी भी शहर में या गांव में किसी बस्ती में जाकर पूछ लीजिए कि बाबा साहब अंबेडकर ने क्या काम किया था? ज्यादातर लोग यह जवाब देंगे कि उनका सबसे बड़ा काम संविधान की रचना करना था।

अगर आप पूछें कि बाबा साहब अंबेडकर ने कोई नया धर्म से बनाया था क्या ? तो मैं दावे से कहूंगा कि दस में से दस लोग यह कहेंगे कि नहीं उन्होंने कोई नया धर्म नहीं बनाया था। जो लोग यह जानते हैं कि बाबा साहब ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी, वे भी यही कहते हैं कि उन्होंने किसी पुराने रंग रूप के बौद्ध धर्म को अपना लिया था। इस तरह बाबा साहब का जो वास्तविक विराट स्वरूप है वह ना सिर्फ दुनिया के सामने नहीं आ पाता बल्कि अपने ही प्रेम करने वाले लोगों के बीच में भी बहुत छोटा होकर और सिकुड़ कर रह जाता है।

कल्पना कीजिए कि बाबासाहेब आंबेडकर को भारत में धम्मक्रांति का जनक कहकर प्रचारित किया जाए। या धम्म चक्र प्रवर्तन करने वाले महापुरुष या नए बौद्ध गुरु की तरह प्रचारित किया जाए तो क्या होगा?

आप सीधे-सीधे दो तरह के प्रचार की कल्पना कीजिए मैं एक राज्य में पचास हजार बच्चों के बीच दस सालों तक यह प्रचारित करूं कि बाबासाहेब आंबेडकर भारत में धर्म क्रांति के जनक हैं और उन्होंने भारत के संविधान का भी निर्माण किया है। और कोई दूसरा आदमी दूसरे राज्य में दस सालों तक पचास हजार बच्चों के बीच तक यह प्रचारित करें कि बाबासाहेब केवल एक वकील और संविधान के निर्माता थे। आप आसानी से समझ सकते हैं कि मैं जिस राज्य में मैंने बाबा साहब को धम्मक्रांति का जनक और संविधान निर्माता दोनों बता रहा हूं वहां के बच्चों के मन में अपने भविष्य के निर्माण की कितनी विराट योजना अचानक से प्रवेश कर जाएगी। और जिस राज्य में दस सालों तक केवल उन्हें संविधान का निर्माता बताया जा रहा है उस राज्य के बच्चे धर्म संस्कृति इतिहास और राजनीति के महत्व के बारे में बिल्कुल भी जागृत नहीं हो पाएंगे।

जैसे ही धर्म के निर्माण की बात आती है धर्म के साथ इतिहास संस्कृति कर्मकांड और सब तरह की सृजनात्मक प्रक्रियाएं अचानक जुड़ जाती है। लेकिन अपने महापुरुष को अगर सिर्फ संविधान और कानून तक सीमित कर दिया जाए बाबा साहब को आप सिर्फ एक काले कोट पहने वकील के रूप में ही कल्पना कर पाएंगे। आज भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों में बाबा साहब की जो कल्पना है वह सिर्फ काला कोट पहने और मोटी सी किताब पकड़े एक बैरिस्टर की कल्पना है। यह छवि और यह कल्पना भी बहुत अच्छी है, लेकिन पर्याप्त नहीं है। अगर बाबा साहब को भारत के भविष्य के ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक नए धर्म के जन्मदाता के रूप में या धम्म चक्र प्रवर्तन करने वाले आधुनिक बौद्ध गुरु की तरह चित्रित किया जाए तो क्या प्रभाव होगा आप सोच सकते हैं।

अब आप ज्योतिबा फुले पर आइए। ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले को सिर्फ शिक्षा और समाज सुधार से जोड़कर देखा और दिखाया जाता है। न केवल गैर बहु जनों में बल्कि ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकांश लोगों में भी उन्हें सिर्फ शिक्षक और शिक्षिका बताने की आत्मघाती बीमारी पाई जाती है। जिस तरह भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति बाबासाहेब आंबेडकर को उनके विराट रूप में प्रस्तुत नहीं करते, उसी तरह ज्योतिबा फुले को भी बहुत ही छोटा और बचकाना स्वरूप बनाकर पेश किया जाता है। ज्योतिबा फुले के साथ शिक्षा और ज्ञान को जोड़ देना अच्छी बात है, लेकिन पर्याप्त नहीं है। ज्योतिबा फुले ने शिक्षा के अलावा और भी बहुत सारे काम किए हैं जिसका कि लोगों को पता नहीं है। उन्होंने एक नई सत्यशोधक समाज की रचना की थी जिसका धर्म जिसकी संस्कृति कर्मकांड और प्रतीक बहुत ही अलग थे और नए थे। उन्होंने लगभग एक नए पंथ और कर्मकांडों की ही रचना कर डाली थी।

ज्योतिबा फुले ने ना सिर्फ शिक्षा के लिए काम किया था बल्कि, अनुसूचित जाति जनजाति और ओबीसी की महिलाओं के लिए और बच्चियों के लिए स्कूल खोला था। इतना ही नहीं बल्कि तथाकथित ऊंची जाति की विधवा एवं गर्भवती महिलाओं के लिए मुफ्त में बच्चा पैदा करने और बच्चा पालने के लिए एक आश्रम भी खोला था। उन्होंने महिलाओं के अधिकार के लिए सरकार से लड़ाई की और स्थानीय संस्थाओं से भी लड़ाई की। उस जमाने में ब्रिटिश गवर्नमेंट जब हंटर कमीशन लेकर आई थी तब ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए स्कूल एवं शिक्षा का प्रावधान करने के लिए उन्होंने आवाज उठाई थी। उस समय उन्होंने शराबबंदी को लेकर महिलाओं का एक आंदोलन चलाया था। उन्होंने मजदूरों और किसानों के लिए आंदोलन चलाए थे। अपने लेखन में उन्होंने ना सिर्फ अंधविश्वासों का विरोध किया था बल्कि ब्राह्मणों और बनियों के बीच जिस तरीके का षड्यंत्र बनाया जाता है और जिस तरीके से भारत की ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति को लोगों का शोषण होता है, उस पूरी तकनीक को उन्होंने उजागर किया था।

ज्योतिबा फुले ने जिस तरीके से भारत के पौराणिक शास्त्रों और उनकी कहानियां का विश्लेषण किया था, वह बिल्कुल डांटे की डिवाइन कॉमेडी के महत्व से मिलता-जुलता है। यूरोप मे डांटे की डिवाइन कॉमेडी एक बहुत महत्वपूर्ण रचना मानी जाती है जिसने की सेमेटिक परंपराओं में ईश्वर स्वर्ग नर्क और इस तरह की अंधविश्वासों का खूब मजाक उड़ाया गया है। आज भी यूरोप में डांटे को एक महान पुनर्जागरण के मसीहा के रूप में देखा जाता है। लेकिन भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग अपने ही सबसे बड़ी मसीहा को सिर्फ एक शिक्षक बनाकर छोड़ देते हैं। यह भारत की तथाकथित ऊंची जाति के लोगों का षड्यंत्र भी हो सकता है। लेकिन भारत के ओबीसी लोगों को तो कम से कम हजार बार सोच कर निर्णय लेना चाहिए । ज्योतिबा फुले खुद माली समाज से आते थे, खेती किसानी फूलों का धंधा और फूल सजाकर बेचना उनका पुश्तैनी काम था। इस तरह माली ओबीसी समाज से आने वाले इतने विराट महापुरुष को स्वयं ओबीसी समाज नहीं भुला दिया है।

उत्तर भारत में हिंदी बेल्ट में ज्योतिबा फुले को बहुत कम लोग जानते हैं। जैसे पेरियार महान को हिंदी बेल्ट में बहुत कम लोग जानते हैं वैसे ही ज्योतिबा फुले को भी ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं। कई लोगों को तो यह भी नहीं पता है कि ज्योतिबा फूले आदमी का नाम है या औरत का नाम है। मैंने कई लोगों को ज्योति बाई फुले कहते हुए सुना है, और वे अक्सर दावा करते हैं कि ज्योति बाई एक महिला का नाम था। भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के सामान्य ज्ञान की यह स्थिति है। वहीं अगर उनसे पहाड़ उठाकर हवा में उड़ने वाले या गरुड़ पर बैठकर उड़ने वाले किसी काल्पनिक देवता का नाम पूछेंगे तो वह पूरी चालीसा सुना कर आपको बता देंगे। ऐसे में इन ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों का क्या भविष्य हो सकता है?

जो समाज अपने ही पिता को, अपने ही महान पूर्वज को अपने हाथों से बौना बनाकर पेश करता है वह दूसरों से क्या उम्मीद कर सकता है? कल्पना कीजिए कि आप स्वयं अपने पिता को अनपढ़ और गंवार साबित कर देते हैं, तो आपका पड़ोसी जो आपका शोषण कर रहा है वह आपके पिता को विद्वान साबित क्यों करना चाहेगा? इस बात को ध्यान से समझने की कोशिश कीजिए। अगर आप अपने पिता और अपने पूर्वजों को महान साबित नहीं करना जानते तो आपके बच्चे भी कभी महान नहीं हो पाएंगे। इसलिए सारी संस्कृतियों में उन सभी धर्मों में आप देखेंगे कि वे अपने पूर्वजों को महानतम रूप में पेश करते आए हैं। भारत में एक विचित्र की परंपरा है। भारत के काल्पनिक और या पौराणिक इतिहास में जिन लोगों ने यहां के मूल निवासियों की बड़े पैमाने पर हत्या की है, उन्हे जगत का पिता और पूरी दुनिया का पालनहार बताया जाता है। कम से कम इसी बात से भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को कुछ सीख लेना चाहिए।

भारत में ऐसे लोग हैं जो इतिहास के सबसे बड़ा हत्यारों और षड्यंत्रकारियों को परमपिता और जगत का पालक सिद्ध करते आए हैं। ऐसे में ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को अपने पूर्वजों को सम्मान देना सीख लेना चाहिए। भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के पूर्वजों ने कभी भी बड़े पैमाने पर हत्याकांड नहीं किए, ना ही बलात्कार किए, ना ही महिलाओं का अपमान किया और ना गांव और शहरों को जलाया। इसके विपरीत इन श्रमशील जातियों से आने वाले महानायकों ने महिला सशक्ति करण, शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था, जागरूकता, आधुनिकता इत्यादि के लिए अनेक अनेक काम किए हैं। ज्योतिबा फुले बाबासाहेब आंबेडकर परियार जैसे लोग भारत को आधुनिक जगत में ले जाने वाले सबसे बड़े नाम हैं। इन जैसे लोगों ने काल्पनिक देवी देवताओं की तरह ना तो बड़े हत्याकांड रचे न ही नगरों और राजधानियां को जलाया बल्कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की तरफ पूरे देश को ले जाने का बड़ा काम किया।

ज्योतिबा फुले के जन्मदिन पर हमें यह बात गौर करते हुए नोट करनी चाहिए। ज्योतिबा फुले को केवल शिक्षक या समाज सुधारक बताने वाले लोग मासूम या फिर गलत लोग हैं। इन लोगों को मालूम नहीं है कि शिक्षा से भी बड़ा योगदान ज्योतिबा फुले ने इस देश को दिया है। ज्योतिबा फुले सही अर्थों में देखा जाए तो भारत की आधुनिकता के पिता है। ज्योतिबा फुले को “फादर ऑफ इंडियन मॉडर्निटी” कहा जाना चाहिए। लेकिन इस तरह से कहना और प्रचारित करना गैर बहुजनो को पसंद नहीं आएगा। अधिकांश बहुजन इन बातों को समझ नहीं पाते हैं, और तथाकथित ऊंची जाति के लोग यह कभी नहीं चाहेंगे कि ओबीसी समाज का कोई महानायक भारत की आधुनिकता का पितामह घोषित कर दिया जाए। इसलिए भारत के ओबीसी समुदाय पर एक बड़ी जिम्मेदारी है। उन्हें इस बात के लिए जोर लगाना चाहिए और कोशिश करना चाहिए कि ज्योतिबा फुले को भारत की आधुनिकता का पिता मानकर देखा जाए।

बहुजन और गैर बहुजन की बात निकलते ही अक्सर लोग कहने लगते हैं कि यह तो अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की समस्या है। उन्हें यह पता ही नहीं है कि भारत के ओबीसी जो कि यादव किसान काश्तकार कुम्हार विश्वकर्मा कुर्मी कुनबी सुतार इत्यादि जातियों के लोग होते हैं लोग भारतीय धर्मशास्त्रों में शूद्र कहे गए हैं। ज्योतिबा फुले स्वयं माली समाज से आते थे और स्वयं को शूद्र कहते थे, भारत के दलित लोग अतिशूद्र या पंचम माने जाते हैं। शूद्र का मतलब ओबीसी होता है और दलित का मतलब अस्पृश्य होता है, ज्यादातर बहुजन लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है। इसीलिए ज्यादातर ओबीसी अपने आप को किसी ना किसी तरीके से क्षत्रिय या वैश्य सिद्ध करने में लगे रहते हैं। हालांकि जो क्षत्रिय और वैश्य समुदाय हैं वे इन ओबीसी लोगों के साथ न शादी करते हैं न खाना खाते हैं और ना इनके घर में आना-जाना करते हैं।

ऐसे में भारत के ओबीसी लोगों को अपने भीतर छुपा आत्मसम्मान जगाते हुए इस तरह के नाटक बंद कर देना चाहिए। जिस तरह ज्योतिबा फुले ने अपनी अस्मिता और आत्मसम्मान से समझौता ना करते हुए अपने आपको शूद्र मानकर अपने इतिहास की खोज की थी, उसी तरह भारत के शेष ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को अपनी महान परंपरा और शास्त्रों का फिर से अध्ययन करना चाहिए। बाबासाहेब आंबेडकर ने भी यही काम किया था। उत्तर भारत में ललई सिंह यादव ने पेरियार के शिक्षाओं पर चलते हुए यही काम किया था, बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाह और महामना रामस्वरूप वर्मा, ने भी यही काम किया था। झारखंड से आने वाले महान जयपाल सिंह मुंडा ने भी यही काम किया था। उनके पहले महान टंट्या भील और महान बिरसा मुंडा ने भी यही काम किया था।

जो समुदाय अपने महापुरुषों के कार्यों को अपने कामों से आगे नहीं बढ़ाता वह समुदाय कभी भी आत्मसम्मान और गौरव हासिल नहीं कर सकता। आप भारत में यह पूरी दुनिया में जिन समुदायों को राजनीति व्यापार उद्योग धंधे और धर्म इत्यादि में मजबूत हालत में देखते हैं उनके घरों में झांक कर देखिए। वे भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की तरह अपने पूर्वजों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करते। वे लोग अपने पूर्वजों को दुनिया के सबसे महानतम मनुष्य की तरह घोषित करते हैं और उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ाते हुए भविष्य का निर्माण करते हैं। एक साधारण ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के घर में झांक कर देखिए, क्या उन्हें ज्योतिबा फुले बाबासाहेब अंबेडकर कृपाल सिंह मुंडा या बिरसा मुंडा के कुछ जानकारी है? क्या उनके घर में ज्योतिबा फुले या बाबासाहेब आंबेडकर या फिर पेरीयार महान की लिखी हुई किताबें हैं? क्या उनके घर में रैदास कबीर या गौतम बुद्ध की कोई किताब है?

मैं दावे से कहूंगा कि ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के सौ मे से 98 परिवारों में ना तो बहुजनों के महानायको की तस्वीर मिलेगी और ना उनकी लिखी हुई किताबें मिलेंगी। इसके विपरीत इन परिवारों में शूद्रों अतिक्षुद्रों को राक्षस या दैत्य बताकर उनकी हत्या करने वाले काल्पनिक महानायको की तस्वीरें और मूर्तियां जरूर मिल जाएंगी। जो समुदाय या समाज अपने ही पूर्वजों की हत्या करने वाले लोगों की पूजा करता है वह अपने बच्चों का भविष्य किस तरह निर्मित कर सकता है? आप कल्पना कीजिए कि मैं आपका शोषण कर रहा हूं और आप अपने बच्चों के सामने मेरी पूजा करते हैं। एसी स्थिति मे आपके बच्चे क्या भविष्य में मेरी गुलामी से आजाद होने की कोई योजना बना सकते हैं? ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता। जब आपके बच्चे आपको अपने ही खून चूसने वाले की पूजा करते हुए देखते हैं तो वह इस शोषण को शोषण की तरह नहीं बल्कि अपने पूर्वजों की परंपरा की तरह देखेंगे। इस तरह वे इस परंपरा को आगे बढ़ाते रहेंगे।

अगर आप अपने महापुरुषों को उनके वास्तविक और विराट स्वरूप में प्रस्तुत नहीं करते, और उनके कामों को बढ़ा चढ़ा कर पेश नहीं करते तो आप धीरे-धीरे उनको खो देंगे। भारत में यह खेल हजारों साल से चल रहा है। भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के हजारों नायकों को तथाकथित ऊंची जाति के लोगों ने अपने पाले में मिला लिया है। अभी हमारे सामने बाबा साहब अंबेडकर को चबा जाने और पचा जाने की कोशिशें चल रही हैं हम सब जानते हैं। इसके पहले कबीर, रैदास, गोरखनाथ, गौतम बुद्ध, श्री कृष्ण और शिव को भी इसी तरह चबाकर हड़प लिया गया है। अगर भारत के ओबीसी, अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग सावधान नहीं रहे तो ज्योतिबा फुले आंबेडकर और बिरसा मुंडा भी इसी तरह हड़प लिए जाएंगे।

आपको जैसे ही पता चलता है कि अंबेडकर या ज्योतिबा फुले को हड़पने की कोशिश चल रही है, तो आपको डरना नहीं चाहिए बल्कि खुश होना चाहिए कि आपके महापुरुषों की महानता से शोषक सत्ता के नेता भयभीत हो रहे हैं। ऐसे में आपको अपने महापुरुषों के सबसे रेडिकल प्रपोजल्स को सामने लेकर आना चाहिए। अभी आप देख पा रहे हैं कि बाबासाहेब अंबेडकर को हड़पने की कोशिश तेज हो गई है। ऐसे में कई लोग डर जाते हैं और कहते हैं कि अब हम क्या कर सकते हैं। मैं आपको कहना चाहता हूं कि यही सही समय है जब आप बाबासाहेब के सबसे रेडिकल प्रपोजल्स को सामने लेकर आएं। बाबा साहब अंबेडकर को महान सिद्ध कर करके हड़पने वाले लोग पूरी कोशिश करेंगे कि उन्हें अपने धर्म और संस्कृति के पाले में रखकर चुरा ले जाएं। एसे मे बहुजनों को भयभीत हुए बिना पूरी ताकत से नव यान बौद्ध धर्म और 22 प्रतिज्ञाओं की बात करनी चाहिए।

इसी तरह जो लोग ज्योतिबा फुले को हड़पना चाहते हैं उनके सामने सत्यशोधक समाज और उसके नए शादी विवाह के तरीकों की बात पर तेजी से फैला देनी चाहिए। जो लोग बाबासाहेब आंबेडकर को या ज्योतिबा फुले को बचाकर निगल जाना चाहते हैं, उनके मुंह में बाईस प्रतिज्ञाओ और सत्य शोधक समाज के नए कर्मकांडो की लोहे की कीले डाल देनी चाहिए। बाईस प्रतिज्ञाओं के साथ बाबासाहेब आंबेडकर को कोई नहीं चबा सकता कोई नहीं पचा सकता। इसी तरह सत्यशोधक समाज के नए कर्मकांड के साथ ज्योतिबा फुले को भी कोई नहीं चबा सकता और कोई नहीं पचा सकता। ठीक यही रणनीति हमें गौतम बुद्ध रैदास कबीर श्री कृष्ण और शिव के साथ भी भविष्य में अपनानी होगी।

मेरे कई ओबीसी मित्र हैं जो बिहार और उत्तर प्रदेश में श्री कृष्ण के इतिहास पर काम कर रहे हैं। इसलिए मैं इस विषय में कभी नहीं लिखता हूं। श्री कृष्ण पर मेरे लिखने से कई लोगों को गलतफहमी हो सकती है, श्री कृष्ण पर यादवों या ओबीसी समाज के अन्य लोगों को ही लिखना चाहिए। मेरे कई यादव मित्रों ने और ओबीसी बुद्धिजीवीयो ने श्री कृष्ण के बारे में लिखते हुए यह सिद्ध किया है कि श्रीकृष्ण असल मे भारत के प्राचीन मूल निवासियों के ही महानायक रहे हैं जिन्हें गौतम बुद्ध की तरह ब्राह्मण वादियों द्वारा चुरा लिया गया है। आर्यों के कृष्ण और बहुजनों के श्रीकृष्ण दो अलग अलग किरदार हैं। ओबीसी समुदाय के श्रीकृष्ण का आर्य इन्द्र से युद्ध होता है। इस मुद्दे पर काम करते हुए यादव एवं अन्य ओबीसी मित्रों को बहुत काम करना है, यह काम बहुजन भारत के भविष्य के लिए बहुत निर्णायक सिद्ध होने वाला है।

अंतिम रूप से हमें सबको यह याद रखना चाहिए कि भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति जनजाति के सभी महानायक उनको उनके विराट रूप में उनकी पूरी पृष्ठभूमि के साथ पेश करना चाहिए। अगर हम उन्हें उनके वास्तविक और बड़े स्वरुप में पेश करेंगे तो कोई भी उन्हें हमसे छीन नहीं पाएगा। छोटे छोटे पत्थर हमेशा चुरा लिए जाते हैं, लेकिन पहाड़ो को कोई नहीं चुरा सकता। इसीलिए अपने महापुरुषों को हिमालय की तरह बताकर पेश करना चाहिए। और वास्तव में हमारे महापुरुष हिमालय की तरह ही हैं। ज्योतिबा फुले बाबासाहेब आंबेडकर जयपाल सिंह मुंडा बिरसा मुंडा पेरियार और ललई सिंह यादव यह भारत के ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों में जन्मे वे महापुरुष है जो कि पूरे भारत को एक नई किस्म की आधुनिकता में लेकर जा रहे हैं। इन सबके बीच ओबीसी समाज से आने वाले ज्योतिबा फुले सबसे पुराने और सबसे दैदीप्यमान महानायक हैं इसलिए इन्हें भारतीय आधुनिकता के पिता की तरह देखना और दिखाना चाहिए।

– संजय श्रमण

गरीब भूखें के चेहरे पर मुस्कान देख तृप्त हुई अंतरात्मा – वीरेंद्र पासी ,मुम्बई

साथियों आपने सुना ही होगा की इंसान के जीवन में जो तीन बुनियादी जरूरत होती है, वो है रोटी, कपड़ा और मकान।विश्वभर में कोरोना के रूप में आयी महामारी से सभी जगह त्राही त्राही मची है। आज कपड़ा, मकान तो है, लेकिन अचानक जीवन में आये लॉकडाउन के चलते लोग जहाँ फंसे, वही फंसे ही रह गए।

दिनाँक 09/04/2020 को हमारे दिल्ली के मित्र श्री प्रेम चंद चौधरी जी का हमको फ़ोन आया था की आप लोग जो पासी समाज के लिए अखिल भारतीय पासी विकास मंडल मुम्बई के तरफ से राहत सामग्री वितरण का पुनीत कार्य कर रहे है उससे बड़ी कोई समाज सेवा नहीं। आप सभी लोग धन्यवाद के पात्र है। उनके द्वारा हमको यह बताया गया की उनके कोई शेखपुरा बरबीघा, बिहार के 4 से 5 लोगो का परिवार थाने, काल्हेर भिवंडी में फंसे है, उन सबको कुछ राहत सामग्री की व्यवस्था हो जाती तो ठीक था।

लेकिन उन्होंने कहा की वो अपने पासी समाज से तो नहीं है। हमने कहा ठीक है देखते है क्या हो सकता है। आज सुबह मन की आत्मा यही कही की भले अपने समाज से नहीं, लेकिन है तो मानव ही ना। और बात यहां भूखे परिवार को रोटी की है। तुरंत हमने काल्हेर में रहने वाले भाई जगदीश जी से बात किये, उनको सब बताया की ऐसी ऐसी बात है,बोले ठीक है भाई काम हो जाएगा। भाई जगदीश जी को श्री दीपक सादरीक ठाकुर जी का फ़ोन नंबर दिया। उन्होंने उनको कॉल करके अपने घर बुलाये, चाय, नास्ते करवाये, उसके बाद किराना की दूकान पर लेकर गए।हमारे तरफ से जो सामान की लिस्ट और पैसा भेजा गया था उतने की सामग्री लेकर दीपक जी को सुपुर्द किये।

जिसके लिए दीपक जी ने हम सबका बहुत-बहुत आभार माने। इस कार्य को सफलता पूर्वक नेक सोच के साथ मिलकर करवाने के लिए भाई जगदीश जी को धन्यवाद। आप जैसे साथियों पर पासी समाज को गर्व है। साथियों सही मायनों मे इस कार्य को करके जो संतुष्टि मिल रही है, उससे बड़ी कोई समाज सेवा नहीं। इसीलिए कहता हूँ की आपका सारा अहंकार और सब मोहमाया यही खत्म हो जायेगी।
ऐसे संकट में आप सभी से करबद्ध निवेदन करता हूँ की कुछ पुण्य कमा लीजिए, गरीब भूखे लचारो की सहायता कर अपने जीवन को सार्थक बना लीजिये।

जीवन एक सफ़र है, मौत उसकी मंजिल है, मोक्ष का द्वार कर्म है, यही जीवन का सत्य है।

प्रो.वीरेंद्र कुमार पासी
मुम्बई
9773779632

सुधर जाओं पुलिस के साथ लुकाछुपी मत खेलों कोरोना भयंकर बीमारी है – सीमा सरोज

दिल्ली में रहकर समाजसेवा में बढ़चढ़कर हिस्सा लेंनें वाली सीमा सरोज नें कोरोना जैसी महामारी को मजाक बनाने वालें युवाओं की हरकतों को देखतें हुए अपने फेसबुक एकाउंट पर अपने साथ बच्चों की तस्वीर शेयर करतें हुए लिखती हैं कि “जब से 21दिन के लिए लोकडाउन् किया गया है ,हम देख रहे है कि लोग घर में नहीं बैठ रहे हैं । बाहर घूमते है पुलिस पीछे भागती है तो भाग कर गलियों में आ जाते है, ऐसा लगता है पुलिस के साथ पकड़ म पकड़ाई का खेल खेल रहे है, और गलियों में आकर जोर जोर हँसते है।ऐसा लगता है आप को घर में बैठाने पर पुलिस या प्रशासन का निजी स्वार्थ है, सुधर जाओ ये बीमारी है भयंकर बीमारी ! इसको मजाक मत समझो, एक होकर इस का सामना करो,अपना ना सही अपनों के बारे में सोचो ,जिस के लिए आप पूरी दुनिया हो,आज पुलिस ,डॉक्टर ,नर्श ,जिस से जो बन सके वो देश के लिए कर रहा है,आप उनका धन्यवाद भी नहीं कर सकते,उल्टा मजाक बना रखा है। प्रधानमंत्री का आप से निवेदन है इस बात को समझो ,बार बार कोई नहीं समझाएगा,घरों में रहे, सुरक्षित रहे ।

सोरांव में 10 दिन से गायब पासी की हत्या , पूर्व विधायक नें मांगा 25 लाख का मुआवजा

प्रयागराज / मऊदोशपुर मऊआइमा में पासी राम बरन सरोज उम्र पचास वर्ष जो क़रीब दस दिन से लापता थे उनकी हत्या कर फेंकी गई लाश गाँव के ही मितवा तालाब में मिली है । जिसको लेकर के माउआइमा थाने का ग्रामीणों ने सुबह ही घेराव किया था । शिवबरन सरोज बिगत 11 फरवरी से घर से गायब था । घर वालों ने काफ़ी खोजबीन किया लेकिन कोई जानकारी न मिलने पर 12 फरवरी को गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थीं ।

हत्या की सूचना मिलते ही पूर्व विधायक सोराव सत्यवीर मुन्ना मृतक के घर पहुँच गए और रोते बिलखते परिजनों से मिल ढाँढस बँधाया और शोक संवेदना व्यक्त की और घटना के तत्काल खुलासे हेतु सी०ओ० सोराव से बात कर आरोपियों की जल्द गिरफ्तारी तथा उपज़िलाधिकारी सोराव से बात कर मृतक के परिजनों को अनुमान्य, पारिवारिक लाभ योजना, विधवा पेंशन, कृषक बीमा जैसी लाभार्थी योनाओं से पोषित कराने हेतु आवश्यक कार्यवाही करते हुए मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से 25 लाख रुपए की त्वरित आर्थिक मदद ग़रीब परिवार को सुलभ कराना की व्यवस्था हेतु मांग की ।

इस अवसर पर भारी संख्या में ग्रामीणों के साथ जिला उपाध्यक्ष समाजवादी पार्टी मेराज आरिफ़ विधानसभा अध्यक्ष सुभाष यादव, वि.स. उपाध्यक्ष लाल बाबू पटेल, अरविंद श्रीवास्तव, विनोद यादव मृतक के घर पहुँचे। इलाक़े के ग्रामीणों में वर्तमान सरकार में लचर क़ानून व्यवस्था और भय के माहौल को लेकर काफ़ी आक्रोश है।

ब्राह्मणों की पासी युवक की हत्या, रिपोर्ट दर्ज, कार्यवाही की मांग

प्रयागराज / कल बीती लगभग रात 7 बजे श्रृंगवेरपुर में संजय पासी की गांव के ही रमाकांत पांडेय देवेश पांडेय ,रामु पांडेय ,सुरेश पांडेय ने गोली मारकर हत्या कर दी, मृतक के दो बच्चे है । मृतक के बड़े भाई की पहलें ही मृत्यु हो चुकी हैं। उनके भी दो बच्चे हैं जिनका खर्च भी मृतक ही उठा रहा था । अब घर मे कोई कमाने वाला नही बचा ।

पत्नी के तहरीर पर पुलिस रिपोर्ट दर्ज करके धर पकड़ शुरू कर दीं है। अब तक एक आरोपी को पुलिस ने गिफ्तार कर लिया है, दूसरे को पब्लिक ने मारकर घायल कर दिया है ,जो पुलीस के कस्टडी इलाज करा रहा है। दो मुलजिम फरार हैं।

आज एडवोकेट लालाराम सरोज ने अपने जूनियरों के साथ जा कर पोस्टमार्टम करवाया और हर सम्भव कानूनी मदद का अस्वाशन दिया हैं और मांग किया कि सभी आरोपियों को जल्द गिरफ्तार किया जाए सहित मृतक परिवार को मुवावजा दिया जाए।

मोदी के सीएए-एनआरसी से भारत का संविधान खतरें में है – उदय नारायण चौधरी

• पटना में जगलाल चौधरी की 125वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई.

बिहार पटना के अनुग्रह नारायण सामाजिक अध्ययन संस्थान में स्वतंत्रता सग्राम सेनानी जगलाल चौधरी की 125 वीं जयंती मनाई गई । जिसका उद्घाटन बिहार विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने किया। इस जयंती समारोह का आयोजन जगलाल चौधरी स्मृति संस्थान के द्वारा किया गया। इस अवसर पर उदय नारायण चौधरी ने सभा को सम्बोधित करतें हुए कहा कि

आजादी की लड़ाई में जगलाल चौधरी बड़ी भूमिका रही है।उनके नेतृत्व में आजादी की लड़ाई में दलित समाज के साथ साथ आज़ादी के दीवानें समाज के युवाओं ने बडी मात्रा में साथ खड़े रहें । उनके करिश्माई नेतृत्व से जगलाल को ‘बिहार का गाँधी’ कहा जाने लगा था । लेकिन अफ़सोस कि जिस देश को उन्होंने आजादी दिलाई , उस देश का संविधान आज खतरे में है और लोकतांत्रिक ब्यवस्था को चोट पहुंचाया जा रहा हैं । मोदी द्वारा लाया गया एनआरसी, सीएए जैसे काले कानून देश पर थोपा जा रहा है। उदय नारायण चौधरी ने जोरदार शब्दों में इस काले कानून का विरोध किया। इसके पहले जगलाल चौधरी स्मृति संस्थान के अध्यक्ष बिहारी प्रसाद ने आए हुए अतिथियों का स्वागत किया।

जगलाल चौधरी एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिसका जन्म 05 फरवरी 1895 को छपरा जिले के गरखा गांव में एक पासी परिवार में हुआ था।वे बचपन से ही इतने मेधावी थे की उन्हें राज्य सरकार की ओर से कक्षा 9 से ही ₹5/- वजीफा मिलता था।वे कक्षा 10 में पूरे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। उन्हें गोल्ड मेडल भी मिला था।चौधरी जी जब मेडिकल के अंतिम वर्ष के छात्र थे उसी समय सन 1921 में महात्मा गांधी के संपर्क में आए।1932 के नमक आंदोलन में वे जेल भी गए।वर्ष 1937 में पूर्णिया जिले के कुर्सेला विधान सभा कांग्रेस पार्टी के विधायक भी चुने गए।और वे स्वास्थ्य एवम् उत्पाद मंत्री भी बनाए गए।1938 में सर्व प्रथम उन्होने ही मद्द निषेध लागू करवाया।1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया ,बिहार सरकार से उन्हें इस्तीफा दे दिया।सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 1941 में जेल जाना पड़ा।अंत में 22 अगस्त 1942 को गरखा में अंग्रेजों की गोली से शहीद हुए।14 अगस्त 2000 को जगलाल चौधरी के नाम पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया ।बिहार सरकार ने भी उनके जन्म दिन 05 फरवरी को राजकीय सम्मान के साथ उनकी प्रतिमा स्थल पर उनकी जयंती मनाया गया ।

जयंती समारोह को विधायक बंटी चौधरी, राघो चौधरी ,डॉ धर्मदेव चौधरी,हीरालाल चौधरी,राजा चौधरी,अशोक चौधरी, बी के चौबे ,कामेश्वर गुप्ता,बिनोद चौधरी,सुनील कुमार,शिबू महतो,अनुज चौधरी,निशांत चौधरी, अमित कुमार और देव कुमार चौधरी ने भी संबोधित किया।
समारोह का संचालन संस्थान के सचिव ई.विश्वनाथ चौधरी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन जगदीश चौधरी ने किया।

रिपोर्ट : निशांत चौधरी , अमित कुमार

‘बिहार के गाँधी ‘नाम से चर्चित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जगलाल चौधरी की जयंती

●अजय प्रकाश सरोज

बिहार के गाँधी नाम से चर्चित स्वतंत्रता सग्राम सेनानी व पूर्व मंत्री जगलाल चौधरी जी का आज 5 फरवरी को जयंती हैं । पटना में बिहार सरकार और पासी समाज के द्वरा प्रत्येक वर्ष कार्यक्रम आयोजित होता हैं जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होकर अपने नेता जगलाल चौधरी को याद करतें उनके किये गए के कार्यों पर चर्चा करतें हैं । इस वर्ष भी ए .एन.सिन्हा समाजिक अध्ययन संस्थान में कार्यक्रम किया गया है

कौन थें जगलाल चौधरी –

5 फरवरी 1895 को जगलाल चौधरी
एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता , नेता और बिहार , भारत के राजनीतिज्ञ थे । वह एक सुधारक भी थे, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों , दलितों की मुक्ति, शिक्षा और बिहार में भूमि सुधार के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे ।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जगलाल जी का जन्म बिहार में सारण जिले के गरखा गांव में पासी जाति के ताड़ी विक्रेता मुशन चौधरी के घर हुआ था । उनकी शिक्षा छपरा जिला स्कूल, पटना कॉलेज और मेडिकल कॉलेज कलकत्ता में हुई थी।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पुत्र भी शहीद-

चौधरी जी ने अपनी चिकित्सा शिक्षा बंद कर दी और 1921 में गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए । वह जिला कांग्रेस समिति के सदस्य बने और नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया । 1941 में उन्हें गिरफ्तार किया गया और व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के लिए जेल में डाल दिया गया और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की ऊंचाई पर उन्होंने सत्याग्रह का नेतृत्व किया और पुलिस स्टेशन और डाकघर पर कब्जा कर लिया।गरखा में इसके लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया और पांच साल कैद की सजा सुनाई गई। चौधरी जी के एक बेटे इंद्रदेव चौधरी को पुलिस ने आंदोलन के दौरान गोली मार दी थी।जिसमें वें शहीद हो गए। चौधरी जी 23 अगस्त 1942 से 30 मार्च 1946 तक उनकी रिहाई तक जेल में ही रहे।

राजनीतिक सफ़र

चौधरी जगलाल जी पहली बार 1937 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए थे और वह चौथे मंत्री बने, तब बिहार सिर्फ चार ही मंत्री बनतें थें । प्रधानमंत्री तब मुख्यमंत्री को ही प्रधानमंत्री कहा जाता था ,उस समय कांग्रेस के मंत्रालय में सार्वजनिक स्वास्थ्य और आबकारी के प्रभारी बने। बिहार में शराबबंदी का लागू करने की हिमाक़त चौधरी जी ने ही उस दौरान की थीं। 1946 में उन्हें फिर से विधानसभा में शामिल किया गया और वे कांग्रेस के सार्वजनिक स्वास्थ्य और हरिजन कल्याण मंत्री बने । स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने 1952 के आम चुनावों को सफलतापूर्वक लड़ा और बाद में 1957, 1962, 1967 और 1969 के चुनावों में विधानसभा के लिए फिर से चुने गए ।

चौधरी साहब बिहार में सामाजिक सुधार के पैरोकार थे। आबकारी मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने बिहार में शराबबंदी लागू की। और बिहार में भूमि सुधार की वकालत करते हुए प्रति परिवार तीन एकड़ भूमि की ज़मीन सीलिंग की मांग कर रहे थे। 1953 में उन्होंने भारत को पुनर्निर्माण के लिए एक योजना लिखी।

मृत्यु और स्मरणोत्सव

जगलाल चौधरी जी की 1975 में मृत्यु हो गई। छपरा में जगलाल चौधरी कॉलेज का नाम उनके नाम पर रखा गया है। जगलाल चौधरी जी पर एक स्मारक डाक टिकट २००० में डाक विभाग जारी किया गया था । और अभी कुछ वर्ष पहलें उनकी अदम कद प्रतिमा भी पटना में लगाई गई हैं ।

पानी को तरस रहें पासियों की नही सुन रहा है उनका विधायक, प्रदेश में है राज्यमंत्री

जनपद अमेठी देश में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जिला है । यहां एक सुरक्षित विधानसभा है जगदीश पुर जहां से बीजेपी का विधायक है और योगी सरकार में उसे राज्यमंत्री का बनाया गया है। लेकिन गाँव मे पेयजल की समस्या है जिसके लिए स्थानीय लोग मंत्री से कई बार मिलें लेकिन उन्हें सिर्फ आश्वासन मिला लेकिन हैंडपंप नही ! इस मोहल्ले में अधिकांश जनसंख्या पासी जाति की है और मंत्री भी पासी जाति से ही आतें हैं। ग्रामीण पासियों ने पुनः एक बार लिखित प्रार्थना पत्र देकर मांग किया है कि उनके मोहल्ले में पानी की ब्यवस्था कराई जाएं लेकिन अभी तक उनकी कोई सुध लेने नही आया ।

गाँव का ही एक लड़का जो अपनी फेसबुक पर इस तरह पोस्ट लिखा

” माननीय सुरेश पासी जी, राज्य मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार आपके जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत ब्लॉक शुकुल बाजार मऊजा हरखूमऊ गांव पासी पुरवा के निवासी आपको प्रार्थना पत्र लिख लिख कर एक अदद हैंडपंप के लिए तरस गए और मंत्री जी के सिर पर जूं तक नहीं रेंग रही..’