उन्नाव में है ख़ूबसूरत राक्षस भवन, और उससे भी ख़ूबसूरत है उसमें रहने वाले लोग!

उन्नाव : जी हाँ जो घर आप तस्वीरों में देख रहे है वही है राक्षस भवन । इसमें शूद्र शिव भारती पासी अपने परिवार के साथ रहते है । 

राक्षस का नाम आते ही हमारे दिल दिमाग़ में रामायण और महभारत में दिखाए हुए राक्षसों का दृश्य सामने आता है जो गंदे से और सिर पर सींग लिए हुए रहते है ।
आज हम जानते है की राक्षसों की वह तस्वीर पूरी तरह से काल्पनिक है । आज हम यह भी जानते है की राक्षस शब्द बना है रक्षक से रक्षा करने वाले से । 
राक्षस कौन थे या कौन है यह तुरंत ही समझ में आ जाता है जब आप आर्य – अनार्य की चर्चा करते है जब अब देव – असुर संग्राम की चर्चा करते है ।

आर्य जो बाहर से आए थे अनार्य जो यहाँ के थे उनसे युद्ध हुआ । जब आप जानते है की वह आर्य थे तो आप आज के शूद्र कौन थे ….?

हिरनयकश्यप और महिसासुर यहाँ के राजा थे और आर्योंने उन्हें राक्षस और असुर का दर्जा देकर विलेंन बना दिया । 

अब तो सच्चाई सामने आने के बाद कई जगह पर महिसासुर की जयंती भी मानाना शुरू हो गया है ।

कई लोग समझने लगे है पर फिर भी पब्लिक में ऐसा ऐक्सेप्ट करने की हिम्मत करने वाले बहुत कम है ।

हमारे पासी समाज में तो लोग बुद्ध या अंबडेकर की तस्वीर लगाने में डरते है की लोग क्या कहेंगे ।
पर शिव पासी जी की हिम्मत देखिए उन्होंने अपना ख़ूबसूरत घर बनवाया और उसका नाम रख दिया राक्षस भवन । हैरत है भारत देश में कोई इंसान ऐसा कर सकता है ।भले ही हम हक़ीक़त जानते हो की राक्षस मतलब क्या होता है पर इस देश की अधिकांश जनसांख्या के लिए राक्षस मतलब वही राक्षस होता है जो हमें बचपन में सिखाया गया है ।

बावजूद इसके शिव पासी जी ने इतनी हिम्मत दिखाई यह कोई आसान काम नहि है । आज जहाँ सारी जातियाँ अपने को क्षत्रिय मनवाने में लगी है शिव पासी जी ने न सिर्फ़ अपने नाम के आगे बल्कि पूरे परिवार के नाम के आगे शूद्र रखवा दिया है ।

मैंने जब उनसे पूछा इतना बड़ा क़दम पब्लिक रूप से उठाया है आपको या आपके परिवार वालों को परेशानी नहि उठानी पड़ी । तो शूद्र शिव पासी जी बोले किसी न किसी को तो आगे आना ही पड़ता है । मैं भीड़ के साथ चलने के बजाय एकला चलो पर विश्वास करता हु । हो सकता है इस कार्य के लिए मुझे लोग मूर्ख या नादान समझे पर यह मेरे और मेरे परिवार द्वारा सोच समझकर लिया हुआ क़दम है ।

शूद्र शिव पासी जी लेखक और नॉवलिस्ट भी है पर फिर वही धन और सहयोग की कमी की वजह से उन्हें वह अवसर कभी नहि मिल पाया जिनके वह अधिकारी थे । 
बरहाल कभी आप उन्नाव जाइएगा तो ज़रूर मिलिएगा मैंने तो बात की उस हिसाब से काफ़ी मिलन सार है और समाज के नाते वह आपका स्वागत भी करेंगे ।
नोट : शूद्र शिव पासी जी ने सही किया है या ग़लत यह कहने का हक़ पत्रिका को नहि है । पत्रिका का मक़सद आप तक ख़बर पहुँचना है । सही ग़लत का फ़ैसला आपका है । रिपोर्टर के तौर पर मैं राजेश पासी , मुंबई से शूद्र शिव पासी जी से सहमत हु और इसे एक बड़ा क़दम मानता हु । एक ऐसा क़दम जिसे उठाने का साहस सबके बस की बात। नहि है ।
शूद्र शिव भारती पासी सम्पर्क – +91 88969 25849

राजेश पासी , मुंबई 

15 thoughts on “उन्नाव में है ख़ूबसूरत राक्षस भवन, और उससे भी ख़ूबसूरत है उसमें रहने वाले लोग!”

  1. उच्च कोटी की विचार धारा- समाज के लिए साहसिक कदम- लोगों की आपके पीछे लाइने लग जायेगी।समय आपका साथ अवश्य देगा ।
    जय भीम

  2. respected sir thanks for info mr shiv passi unnao by passi satta magjine mr shiv passi ji hamre samaj ke sabse brave passi hai grate think good ‘ jaipassi,

    1. respected editar sir, ;HAMARE GANV KE PASS HI VEER PASSI RAJA SATAN KA KILLA HAI SABANDHIT JANKARI BHEJNE KE LIYE MALE ADD CHAHIY

  3. Very good…ham ap ke is sahsi kadam ke liye salute karte hai..ap jaise log hi samaj ki disa aur dasa badlne me kratikari bhumika rahegi auro ke liye prerana ke srot…jai bhim.. jai mulniwasi…virendr gautam

  4. वास्तव में असुर, राक्षस, दस्यु आदि भारत के मूलनिवासी थे जो बड़े-बड़े नगरों और किलों के मालिक थें l
    ब्रम्हदेव के मुख से ब्राम्हण पैदा हुये. हात से क्षत्रिय , नाभी से वैश्य और पैरो से शुद्र पैदा हुये.
    शुद्र का जन्म ब्रम्हदेव के पैरो से हुवा है पर आदिवासीयो का जन्म कंहा से हुवा ?
    उनको तो वर्णव्यवस्था मे स्थान हि नही है. दरसल वो हिंदु धर्म का हिस्सा थे ही नही. वो हिंदु धर्म के विरोधी थे और ब्राम्हणो के यघ्न्य और कर्मकांडोे मे खलल डालते थे. उनके रिती रिवाज और संस्कृती हिंदु धर्म से अलग है. जैसा की रामायण मे दिखाया गया है वो राजा रावण कि प्रजा थे और प्रकृती के पुजारी.
    जब राजा राम १३ साल तक बनवास मे थे तब आदीवासी उनको क्यो नही मिले? क्या तब जंगल मे आदिवासि नही थे? जबकि वही यंहा के मुलनिवासी है? पांडव भी १३ साल जंगल मे थे तब देश के आदीवासी कंहा गये थे? क्या वो पाताल मे थे? या शायद गुफाआे मे… करोडो साल पहले के डायनॉसोअर के अंश मिलते है हडप्पा मोहोंजोदडो के अवशेष मिलते है फिर राक्षसो के क्यु नही मिलते? रावण हि ईन आदिवासियोका राजा है. अगर वो ईन्सान न था तो उसकि माता ब्राम्हण कैसे?. इसलिये झारखंड, छत्तिसगड , यंहा राजारावण का दहन नही अपितु पुजा करते है.
    उनको समाज कि मुख्य धारा मे लाने का कार्य बाबासाहेब ने किया है. क्यु की बाबासाहब सबको साथ मे ले कर ऐक मजबुत और संघटीत भारत का निर्माण करना चाहत थे

    सुर, असुर, राक्षस : मिथक और यथार्थ

    1. वास्तव में असुर और राक्षस भारत के मूलनिवासी थे जिन्होंने विदेशी आर्य ब्राम्हणो
    का डटकर मुकाबला किया था l
    2. जो अपने देश और समाज की रक्षा के लिए लडे वह रक्षस अथवा रक्षक कहलाता हैl
    3. रक्षक ही पुराणों में राक्षस के रूप में स्थापित कर दिया गया हैl
    4. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने सम्पूर्ण वांग्मय-7 में लिखा है की असुर अथवा राक्षस भी जन-विशेष मानव नाम ही थेl
    5. असुर शब्द प्रजातीय नाम है जो विभिन्न जनजातियों के लिए दिया गया हैl ये जनजातियाँ अपने विशिष्ट नामो से पुकारे जाते है, जैसे दैत्य, दानव, दस्यु, कलेय, कालीन,नाग, निवात,-कवच, पुलोम, पिचास और राक्षस l
    6. वाल्मीकि ने रामायण के बालकाण्ड (45/38) में सुर-असुर की परिभाषा करते हुये लिखा है- “सुरा पीने वाले सुर और सुरा नहीं पीने वाले असुर कहे गये l”
    7. ब्राह्मण को ही सुर, आर्य, देव, भूसुर कहा जाता है l असुर का अर्थ होता है (असु=प्राण) प्राणवाण, वीर्यवान, शक्तिवान तथा सुरापान नहीं (अ=नहीं+ सुर=सुरा पीनेवाला) करनेवाले l
    8. ऐतेरेय ब्राम्हण में कहा गया है कि जो प्राणों के इन्द्रियों में रमण करता है वह असुर है (असुषु प्रानेषु इन्द्रियेषु एवं रमन्त इति असुराः) l

  5. वास्तव में असुर, राक्षस, दस्यु आदि भारत के मूलनिवासी थे जो बड़े-बड़े नगरों और किलों के मालिक थें l
    ब्रम्हदेव के मुख से ब्राम्हण पैदा हुये. हात से क्षत्रिय , नाभी से वैश्य और पैरो से शुद्र पैदा हुये.
    शुद्र का जन्म ब्रम्हदेव के पैरो से हुवा है पर आदिवासीयो का जन्म कंहा से हुवा ?
    उनको तो वर्णव्यवस्था मे स्थान हि नही है. दरसल वो हिंदु धर्म का हिस्सा थे ही नही. वो हिंदु धर्म के विरोधी थे और ब्राम्हणो के यघ्न्य और कर्मकांडोे मे खलल डालते थे. उनके रिती रिवाज और संस्कृती हिंदु धर्म से अलग है. जैसा की रामायण मे दिखाया गया है वो राजा रावण कि प्रजा थे और प्रकृती के पुजारी.
    जब राजा राम १३ साल तक बनवास मे थे तब आदीवासी उनको क्यो नही मिले? क्या तब जंगल मे आदिवासि नही थे? जबकि वही यंहा के मुलनिवासी है? पांडव भी १३ साल जंगल मे थे तब देश के आदीवासी कंहा गये थे? क्या वो पाताल मे थे? या शायद गुफाआे मे… करोडो साल पहले के डायनॉसोअर के अंश मिलते है हडप्पा मोहोंजोदडो के अवशेष मिलते है फिर राक्षसो के क्यु नही मिलते? रावण हि ईन आदिवासियोका राजा है. अगर वो ईन्सान न था तो उसकि माता ब्राम्हण कैसे?. इसलिये झारखंड, छत्तिसगड , यंहा राजारावण का दहन नही अपितु पुजा करते है.
    उनको समाज कि मुख्य धारा मे लाने का कार्य बाबासाहेब ने किया है. क्यु की बाबासाहब सबको साथ मे ले कर ऐक मजबुत और संघटीत भारत का निर्माण करना चाहत थे

    सुर, असुर, राक्षस : मिथक और यथार्थ

    1. वास्तव में असुर और राक्षस भारत के मूलनिवासी थे जिन्होंने विदेशी आर्य ब्राम्हणो
    का डटकर मुकाबला किया था l
    2. जो अपने देश और समाज की रक्षा के लिए लडे वह रक्षस अथवा रक्षक कहलाता हैl
    3. रक्षक ही पुराणों में राक्षस के रूप में स्थापित कर दिया गया हैl
    4. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने सम्पूर्ण वांग्मय-7 में लिखा है की असुर अथवा राक्षस भी जन-विशेष मानव नाम ही थेl
    5. असुर शब्द प्रजातीय नाम है जो विभिन्न जनजातियों के लिए दिया गया हैl ये जनजातियाँ अपने विशिष्ट नामो से पुकारे जाते है, जैसे दैत्य, दानव, दस्यु, कलेय, कालीन,नाग, निवात,-कवच, पुलोम, पिचास और राक्षस l
    6. वाल्मीकि ने रामायण के बालकाण्ड (45/38) में सुर-असुर की परिभाषा करते हुये लिखा है- “सुरा पीने वाले सुर और सुरा नहीं पीने वाले असुर कहे गये l”
    ब्राह्मण को ही सुर, आर्य, देव, भूसुर कहा जाता है l असुर का अर्थ होता है (असु=प्राण) प्राणवाण, वीर्यवान, शक्तिवान तथा सुरापान नहीं (अ=नहीं+ सुर=सुरा पीनेवाला) करनेवाले l
    ऐतेरेय ब्राम्हण में कहा गया है कि जो प्राणों के इन्द्रियों में रमण करता है वह असुर है (असुषु प्रानेषु इन्द्रियेषु एवं रमन्त इति असुराः) l

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