बिना माँ-बाप की लड़कीं बनी असिस्टेंट प्रोफेसर ,लोगों नें दीं जमकर बधाई !

इलाहाबाद के गंगापार झूँसी इलाक़े के गांव मुस्तफाबाद ,हनुमानगंज में पली बढ़ी और गांव के ही हनुमन्त महाविद्यालय से स्नातक करने वाली बिना माँ-बाप की लड़की आज असिस्टेंट प्रोफेसर बन गईं ,नाम हैं प्रिया भारतीया । पढ़ाई के दौरान ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया हैं तो बड़े भाई रामचन्द्र भारतीय नें प्रिया के शिक्षा-दिक्षा में अभिभावक बनकर जिम्मेदारी निभाई जिन्हें वह अपनी सफलता का श्रेय भी देतीं हैं ।

प्रिया ने वर्ष 2014 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में परास्नातक करने के बाद यहीं से बीएड किया और नेट /जेआरएफ की परीक्षा पास करने के पश्चात वर्ष 2016 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रो.विजय बहादुर सिंह के निर्देशन में ‘ नयी कविता के अध्ययन में परिमलवृत्त का योगदान’ विषय पर शोध कर रहीं हैं।

यह इनकी काबिलियत है ,कि पहली बार में ही उन्होंने उच्यतर शिक्षा आयोग की परीक्षा पास कर असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए चयनित हुई हैं । इनके चयन पर इनके सहयोगियों, मित्रों ,मार्गदर्शकों नें उन्हें बधाई दीं, जिस पर उन्होंने सबका धन्यवाद व आभार प्रकट करतें हुए लिखतीं हैं कि “आप सबके अपार प्रेम और स्नेह भरी शुभकामनाओं से मन अत्यंत भावविभोर हैं सभी का शुक्रिया !

प्रिया में एक कवियित्री होने का बेहतर गुण भी है, उन्होंने अपने फेसबुक एकाउंट पर सामाजिक विमर्श से जुड़ीं कई संजीदा कविताएं लिखीं हैं । जिसकी सराहना हुई हैं।
प्रिया की लिखित कविता का अंश यहां लिख रहा हूँ ,जिसमें उनके जीवन मे ही नही बल्कि साहित्य में भी गंवईपन झलकता हैं.

मुझें प्रेम है ……
मुझे प्रेम है उस दूब से
जिससे झरते हैं कोमलता के मोती
मुझे प्रेम है उस साइबेरियन से
जो दूर देश की सरहदों को पार करते
आते हैं हमसे मिलने ,
मुझे प्रेम है उस किसान से
जिसके श्रम पर जीवन पलता है
मुझे प्रेम है उस रोटी से
जो होती है सड़क पर पड़े उस भिखारी के हाथ में।
मुझे प्रेम है उस किताब से
जिसमें बसते हैं जीवन के राग
मुझे प्रेम है उस कलम से
जो रचती है तानाशाहों के कच्चे चिट्ठे
मुझे प्रेम है उस प्रेमी से
जो परम्पराओं को तोड़
गढ़ता है नई पीढ़ियां ।
मुझे प्रेम है उस उंगली से
जो इशारा करती है हत्यारों की ओर

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