2 अक्टूबर ! यानी गाँधी ,शास्त्री और महाशय जयंती

●अजय प्रकाश सरोज

2 अक्टूबर यह दिन भारत में चर्चा का विषय रहता है । यहां तक विदेशों में भी गांधी को मानने वाले लोगों के लिए यह उत्साह भरा दिवस होता है दुनिया भर में गांधीवादी चिंतकों ने गांधी की लोकप्रियता को दिनों दिन बढ़ाया है । गांधी सिर्फ लाठी, चश्मा और धोती वाला रकारी लोगो मात्र नहीं है, यह एक विचार है जो सामने खड़े विशालकाय शत्रुओं को लड़ने का साहस देता है । बिना किसी बंदूक और हथियार के अहिंसक आंदोलन व सत्याग्रह के जरिए । यह हथियार दुनिया भर में गांधी के नाम से ही प्रचलित हो गया है, वैसे तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के मानने वाले अनुयायियों ने सिद्ध किया है कि बाबासाहेब जो तथागत बुद्ध के अनुयाई थे। उन्होंने पहली बार महाड़ तलाब से दलितों को पानी पीने के लिए सत्याग्रह किया था। उन्होंने कभी हिंसात्मक आंदोलन की वकालत नहीं की, मतलब बाबा साहब अहिंसा के ही पुजारी थे।
इसके साथ ही इस दिन पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्मदिवस मनाया जाता है। जिसे कायस्थ पाठशाला और चित्रगुप्त परिवार धूमधाम से मनाता हैं । और यहीं 2 अक्तूबर उन 200 दलित जातियों के लिए महत्वपूर्ण है जिन्हें सांसद रहतें महाशय जी नें जरायमपेशा एक्ट से मुक्ति दिलानें को संघर्ष किया था।
मेरा ऐसा मानना है कि गांधी जी और शास्त्री जी के विषय में बहुत कुछ लिखा पढ़ा जा चुका है। लेकिन महाशय मसूरियादीन के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं क्योंकि वे अनुसूचित जाति में जन्मे पासी जाति के थे , इसलिए कथित भारतीय इतिहासकारों ने उन्हें नज़र अंदाज़ किया । आज हम बताएंगे की स्वतंत्रा आंदोलन में महाशय जी का कितना बड़ा योगदान रहा है । हालाकि महापुरुषों का काम कभी ब्यर्थ नही जाता इसलिए यूपी कैडर में आईपीएस रहें राम प्रकाश सरोज, राज कुमार इतिहासकार, रामदयाल वर्मा जैसे कुछ सबार्ल्टन चिंतकों ,इतिहास लेखकों और साहित्यकारों ने ही उनके योगदान पर लिखा है ।
मेरा यह आरोप नही लगा रहा कि गाँधी व शास्त्री जी के बराबर महाशय जी को तवज्जों क्यों नही मिली ? लेकिन यह जरूर कहना चाहूंगा कि देश और समाज के प्रति उनके त्याग व निष्ठा का मूल्यांकन नही किया गया ।
महाशय जी का जन्म व शिक्षा-
2 अक्टूबर 1911 को इलाहाबाद जनपद के तेलियरगंज इलाक़े के जोधवल मोहल्ले में श्री विन्देश्वरी प्रसाद के घर जन्मे महाशय जी की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय गवर्नमेंट नेशनल स्कूल में हुई। हालांकि उन्हें उच्य शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं प्राप्त हो सका तथापि भारत में अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर होने वाले अत्याचार, दमन शोषण के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने हेतु उनके कार्यों को देखकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने उन्हें स्नातक की उपाधि देकर सम्मानित किया था ।
गाँधी जी से पहला संपर्क –
महाशय जी बचपन से ही सामाजिक कार्य में रुचि रखते थे, देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने की भावना उनमें भरी थी । उस समय स्वतंत्रता आंदोलन की गति तीव्र थीं । भारतीय जनमानस पर महात्मा गांधी जी नाम छाया था । अचानक गांधी जी का इलाहाबाद भ्रमण हुआ और वें महाशय जी के गाँव जोधवल भी गयें। उसी समय महाशय जी का उनसे प्रथम साक्षात्कार हुआ और उसी क्षण से गांधीजी के प्रेरणा स्रोत से स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। तब महाशय की उम्र 22 वर्ष थीं इसके बाद वें गाँधी जी से मृत्यु तक जुड़े रहे तथा उनके द्वारा चलाए गए राष्ट्रीय आंदोलन निर्भीकता के साथ भाग लेते रहे। जिसके फलस्वरूप उन्हें कई बार कारावास की सजा भोगनी पड़ीं और जेलों में उन्हें यातनाएं दी गई थी, अंग्रेजो ने उनपर कोड़े बरसायें। अपने जीवन के 11 बहुमूल्य वर्ष उन्होंने जेल में बिताया था । कट्टर आर्य समाजी होने के नाते वें महाशय नाम से लोकप्रिय हो गए।
अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिका –
1942 में गांधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन जोरों पर था उस आंदोलन में माताजी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें नैनी जेल भेज दिया गया जेल में उन्हें अचानक घर पर रह रहे उनकी पत्नी की गंभीर रूप से अस्वस्थ होने का पता चला अंग्रेजों ने महाशय जी को प्रलोभन दिया कि यदि वह स्वाधीनता संग्राम से अपने को अलग कर लें तो घर जाने वह पत्नी की चिकित्सा कराने हेतु रिहा कर दिया जाएगा लेकिन उन्हें जेल की कालकोठरी में पड़ेगा अंग्रेजों के साथ स्वास्थ्य पूर्ण समझौता करने से साफ इंकार कर दिया कुछ दिनों के बाद बाबूजी को पत्नी की मौत की ख़बर जेल से ही प्राप्त हुई। लेकिन उनके ह्रदय में भारत माँ को अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त कराने की ऐसी दृढ़ इच्छा थीं कि पत्नी का वियोग उन्हें विचलित नही कर सका ।

समाज सुधार में योगदान –
महाशय जी का दूसरा पक्ष समाज में फैले धार्मिक अंधविश्वास, सामाजिक भेदभाव ,कुरूतियों को दूर करने तथा गरीब वर्गों को शिक्षा के जरिए उत्थान के लिए उनका सतत संघर्ष रहा है । इसके लिए वें साइकिल से गाँव गाँव इलाहाबाद जिले का भ्रमण किया करते । पूर्वराज्य मंत्री रामानंद भारतीय बतातें हैं उनके साथ ढोलक, हारमोनियम, ख़ंजड़ी लिए अखिल भारतीय पासी महासभा की टोली होती थीं। वें दलित बहुलता वालें गांवो में जाकर चौपाल लगाया करतें और स्थानीय भाषाओं में गीत गाकर समाज को जागरूक किया करतें थें “हमरे भईया के बिगाड़स यहीं दरूइया हो न …. रामानंद गुनुगुनाने लगें ।
गाँव गाँव मे शिक्षा की अलख-
महाशय जी की क्षेत्र भ्रमण में उस स्थान को चिन्हित करतें जहां विद्यालय बड़ी आवश्यकता थी । आजादी के पहले उनके द्वारा लगभग 14 विद्यालयों की स्थापना की जा चुकी थी । विद्यालय बनाना ही उनका मकशद नही बल्कि उन्हें सुचारू रूप में संचालित करने के लिए उन्होंने तरक़ीब लगाई थीं ” जिस गांव में विद्यालय की स्थापना करना होता था उस गांव के प्रत्येक घर में उन्होंने मिट्टी के एक-एक घड़े वितरित कर दिए जाते तथा महिलाओं से प्रतिदिन मुट्ठीभर आटा दान करने की प्रार्थना किया करतें थें । गांव की महिलाएं भोजन बनाते समय प्रतिदिन 1 मुठ्ठी आटा डाल देतीं थीं। महीने भर में एकत्रित आटे को बेच दिया जाता और शिक्षकों का वेतन दिया जाता था ,निसंदेह बाबू जी का यह प्रयोग अनूठा अनुकरणीय एवं प्रेरणादायक रहा । गाँव के गरीब, निर्धन, दलित खासतौर पर पासी समुदाय के छात्रों को शहर में रहकर पढ़ाई करने के लिए 6 छात्रावास खोलें उनके संचालन के लिए समितियां बनाई । जिसमें तीन दलित छात्रावास बलुवाघाट, आदि हिन्दू छात्रावास ,राजापुर तथा डीसी हॉस्टल भरद्वाज आश्रम के पास आज भी संचालित हैं। इन छात्रावासों में रहकर हजारों प्रतियोगी अनेक प्रदेश व केंद्र सरकार की नौकरियों में उच्य पदों पर आसीन हैँ।
राजनीतिक दायित्व –
महाशय जी 1946 से 52 तक डोमिनियन गवर्नमेंट में सदस्य रहें फिर सन 1950 से 52 तक अंतरिम लोकसभा के सदस्यों ने बनाये गए तथा संविधान सभा के भी सम्मानित सदस्य रहें । वें बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के संपर्क में हमेशा बनें रहे । 1952 में हुए लोकसभा के आम चुनाव में वें फूलपुर लोकसभा से चुनाव लड़कर सांसद बने और लगातार 1971 तक चायल,कौशाम्बी( तब इलाहाबाद) लोकसभा के सांसद बने रहे । इसी दौरान महाशय जी ने अंग्रेजों द्वारा लगाएं गए जरायम पेशा एक्ट जो लगभग 200 जातियों पर आज़ादी के बाद भी नही हट पाया था महाशय जी ने प्रधानमंत्री नेहरू जी पर दबाव डालकर इन पासी सहित सभी जातियों को क्रिमिनल ट्राइब एक्ट से मुक्त कराया।

महाशय जी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ संयुक्त रूप से फूलपुर संसदीय क्षेत्र से लड़ा था और विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे थे । इस चुनाव में महाशय जी को पंडित जवाहरलाल नेहरू से अधिक मत प्राप्त हुए थे । नेहरू जी उन्हें बहुत स्नेह करते थे एवं छोटे भाई जैसा मानते थें । इंदिरा जी उन्हें चाचा से कह कर संबोधित करतीं थीं । नेहरू जी के अलावा बाबा साहब अंबेडकर ,सरदार पटेल, पुरुषोत्तम दास टंडन ,डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ उन्हें लंबी अवधि तक कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
राज्यपाल का पद अस्वीकार –
लोकजनशक्ति पार्टी की महिला शाखा की राष्ट्रीय अध्यक्ष महाशय जी की पुत्री कमला कुमारी बताती हैं कि बाबूजी (महाशय जी) को राजपाल बनने के लिए दो और अवसर मिले थे,लेकिन उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के निवेदन को आग्रहपूर्वक अस्वीकार कर दिया था । उनका मानना था कि ” राज्यपाल के पद पर नियुक्त होकर मैं राजभवन तक सीमित हो जाऊंगा तो तथा उस जनता से दूर हो जाऊँगा, जिसके उत्थान एवं कल्याण के लिए जीवन समर्पित करने की मैंने प्रतिज्ञा कर रखी है”

सारांश

महाशय जी ने ग्रामीण जनता में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों धार्मिक ,अंधविश्वासों ,नशाखोरी ,जात -पात छुआछूत आदि के विरुद्ध भी जिहाद छेड़ रखा था। इसके लिए उन्होंने अधिकांश उत्तरी भारत के प्रदेशों के ग्रामीण अंचलों का व्यापक भ्रमण करके इन कुरीतियों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास किए महाशय अखिल भारतीय पासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की लंबी अवधि तक काम किए तथा पूरे भारत में पासियों को संगठित करने का भी काम किया । सम्पूर्ण भारत के पासी संगठनों महाशय जी में श्रद्धा रखता हैं और 2 अक्तूबर को गाँधी, शास्त्री जी के साथ उनकी जयंती मनाता हैं।
21 जुलाई 1978 को समाज की सेवा करते करते हैं उनका जैविक शरीर शांत हो गया। लेकिन उनके द्वारा किये सामाजिक कार्यो ने उन्हें आज भी जिंदा रखा हैं.
महाशय जी के जीवन से जुड़ी घटनाओं ने उन्हें सच्चे राष्ट्रभक्क्त की श्रेणी में खड़ा करता हैं । ऐसे महान राष्ट्रवादी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और मानवता के पुजारी को शत-शत नमन ।
सन्दर्भ ग्रन्थ :
1- आजादी के दीवाने पासी ,लेखक – राम प्रकाश सरोज, पूर्व आईपीएस यूपी कैडर ।
2- पासी समाज का स्वंत्रता संग्राम में योगदान -लेखक राजकुमार
3- स्वतंत्रता संग्राम में अछूतों का योगदान – लेखक डी.सी दिनकर
4- अखिल भारतीय पासी महासभा के नेता व पूर्व राज्य मंत्री रामानंद से मौखिक बातचीत

5-महाशय जी की पुत्री कमला कुमारी व बीना रानी से बातचीत

(लेखक : श्रीपासी सत्ता पत्रिका के संपादक है- संपर्क : 9838703861 )

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