विकल्प की राजनीति वही लोग करते हैं जो यथास्थिति से संतुष्ट नहीं हैं। मतलब अगर आज का समाज हिंसक, और लुटेरा है तो एक नया समाज बनाना ही होगा। अगर इतिहास में जिनके साथ अन्याय हुआ है तब नए विकल्प की तलाश जरूरत बन जाती है। गैरबराबरी में सनी व्यवस्था को उखाड़ फेकना तो ठीक है लेकिन उसके बरक्स एक नया विकल्प देना भी जरूरत है।लेकिन क्या विकल्प सिर्फ राजनितिक ही होगा ?
सांस्कृतिक, धार्मिक विकल्प कहाँ से लाएंगे। सीधे शब्दों में कहूं तो दीपावली और दशहरा का विकल्प कुछ है की नहीं ? डॉ आंबेडकर ने बौद्ध धर्म को भारत में जीवित करके एक नया विकल्प दिया था। आज के दिन ही बाबासाहब ने 1956 में हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
जनता को राजनितिक विकल्प के साथ साथ सांस्कृतिक और धार्मिक विकल्प चाहिए। धर्म अफीम है, या मै नास्तिक हूँ कह देने से काम नहीं चलेगा।
– डॉ 0 चंद्रसेन ,जेएनयू