उच्च शिक्षण संस्थानो में बहूजनो का घटता जनाधार !


डॉक्टर रमेश रावत 

एजुकेशन रिफार्म्स को लेकर एक विचार कई वर्ष पहले कांग्रेस सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे कपिल सिब्बल ने आई आई टी में अवसरों की संख्या सीमित कर दी थी तभी से आई आई टी में केवल दो अवसर हैं पहला १२वीं करते हुये दूसरा बारहवीं के बाद ,जब यह नियम लागू हुआ था तभी से ग्रामीण ,लोअर मिडिल क्लास के छात्रों का आई आई टी में सेलेक्शन नहीं हो रहा है।यूपी बोर्ड के छात्र लगभग आई आई टी से बाहर हो चुके हैं।पहले ऐसा नहीं था,पहले ग्रामीण इलाके के छात्र इंटर पास करने के बाद दो से तीन साल तैयारी करके आई आई टी में सेलेक्शन ले लेते थे।आगे जाकर वे उच्च पदों पर पहुंचते थे,अब वो सब खतम है।

इसका फायदा कोचिंग वालों ने उठाया उन्होने ९वीं क्लास से ही आई आई टी की तैयारी करवाना शुरू कर दिया।इसका फायदा प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों के प्रबंधकों को भी मिला ।

उस समय कपिल सिब्बल पर यह आरोप भी लगा था कि उन्होने कुछ लोगों से मोटी रकम लेकर यह फैसला किया है।

अब मोदी सरकार ने एम बी बी एस /बी डी एस की पात्रता एक्जाम में तीन अवसरों का प्रतिबंध लगा दिया है।

यह एक तरह से ग्रामीण इलाके के छात्रों को डाक्टर बनने से रोकने का प्रयास है क्योंकि बेस कमजोर होने के कारण ग्रामीण इलाके के छात्र चौथे पांचवे प्रयास में ही सफल हो पाते थे।

यह सब सोची समझी साजिश का नतीजा है।इसका फायदा कोचिंग वाले व प्राइवेट मेडिकल कालेज वाले उठायेंगे।शायद यह फैसला इन्ही लोगों को फायदा पहुंचाने के लिये किया गया है।

ढाई साल हो गये मोदी सरकार को , एजूकेशन में कोई कारगर सुधार नहीं बस बातें हैं।

क्लास १ से ८ तक सभी स्कूलों में एकसमान सिलेबस नहीं है,सब अपने हिसाब से अभिभावकों को परेशान करते हैं।

– डॉक्टर रमेश रावत लखनऊ 

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