देश में पहली बार दलित –  मुस्लिम दंगा अम्बेडकर के नाम पर, क्यों  और कैसे ?

दलित मुस्लिमो के बीच वैचारिक एकता को रोकने लिए कुत्सित प्रयास शुरू से होते ही रहे है, और आज भी हो रहे है, इस बार कुछ भ्रमित और बिकाऊ लोगो ने, जो कि मुस्लिम समुदाय से संबंध रखते थे, ने सहारनपुर मे निकाली जा रही बाबा साहब की शोभा यात्रा पर पथराव किया है, ऐसा ही पथराव महाराष्ट्र मे शिव सैनिको ने भी अंबेडकर जयंती मना रहे लोगो पर हाल ही मे किया है।देखने मे यह दोनों घटनाए एक जैसी है, लेकिन जो महाराष्ट्र मे हुआ है, वो हमारे लिए नई बात नहीं है, मनुवादियों द्वारा की जाने वाली ऐसी हरकतों से तो हम शुरू से वाकिफ है,

सबसे पहले समझने वाली बात है की इसका आयोजन किसने किया था । ख़बर यह भी आ रही है की यह आयोजन बिना परमिशन के किया गया था । अम्बेडकर के फ़ालोअर कभी क़ानून नहि तोड़ते । नियमों का पालन करते है । 

इस आयोजन का हैंडबिल देखेंगे तो पता चल जाता है की आयोजित करने में एस सी / एसटी या OBC की भूमिका नगण्य है 

कार्यकम को लीड कर रहे थे लखनपाल शर्मा ( सांसद) बाक़ी के लोगों के नाम भी देखिए पता चल जाएगा आयोजकों के  बारे में ।

आख़िर क्या कारण है की एससी / एसटी और OBC इतने सालों से अम्बेडकर जयंती माना रहे है आज तक कभी भी दलित -मुस्लिम दंगा अम्बेडकर की वजह से नहि हुआ , पहला दंगा हुआ उस कार्यक्रम में जिसे एक ख़ास जाती के लोग आयोजित कर रहे थे । 

कल से ही मीडिया यह ख़बर फैलाने में जुटा हुआ है की बाबा साहेब की वजह से दलित -मुस्लिम में दंगा हुआ । पर वह कितना भी ख़बर छुपाए अब हक़ीक़त छुप नहि सकती । शुक्र है सोशल मीडिया का न सिर्फ़ वहाँ के लोगों ने हक़ीक़त बताई बल्कि हैंडबिल भी शेयर किया जिसकी वजह से तस्वीर साफ़ हो गई है । – राजेश पासी ,मुंबई 
लेकिन जो सहारनपुर मे हुआ वह वाकई अचंभा पैदा करने वाला है, डॉ अंबेडकर से मुसलमानो को भला क्या दिक्कत हो सकती है। यह समझ से बाहर है। जाहीर है इस घटना के पीछे जरूर कोई साजिश काम कर रही है, मुज्जफरनगर, कैराना आदि घटनाए भी स्वतः स्फूर्त ना होकर सोची समझी साजिश का ही हिस्सा रही थी, और आज इसका परिणाम सबके सामने है। इन घटनाओ का स्थानीय तात्कालिक प्रभाव चाहे कम हो, लेकिन सूचना क्रांति के दौर मे इनके प्रभाव समाज के एक बड़े हिस्से पर दिखाई पड़ते है।

हमे तत्समय ऐसी घटनाओ की पुनरावृत्ति को रोकना होगा, विभिन्न समुदायो मे विश्वास बहाली के प्रयास करने होंगे, नहीं तो कुछ नालयको की हरकतों के सामने, दलित मुस्लिम बुद्धिजीवियो के प्रयास निरर्थक ही साबित होंगे। 

मैं अपने दलित भाइयो से भी कहूँगा कि वर्तमान मे दलित और मुसलमान समाज एक दूसरे की ओर देखने लगा है, करीब आने का प्रयास कर रहे है, इस उम्मीद के साथ कि ये दोनों समुदाय मिलकर अपनी नियति मे बदलाव ल सके। ऐसे मे ऐसी घटनाओ के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय पर टिप्पणी करना बेबकूफी से ज्यादा कुछ नहीं। हाँ, इसका मतलब यह नहीं कि घटना के दोषियो को दंड ना मिले, उन्हे अवश्य दंड मिलना चाहिए, जिससे कि साजिश कर्ताओ के हौसले पस्त हो सके। यह एक अच्छा संकेत है कि सहारनपुर मे हुई घटना के विरोध मे आज तमाम मुस्लिम साथी आज आपके साथ खड़े है, और इस कृत्य की मुखर होकर आलोचना कर रहे है॥ यह प्रक्रिया रुकनी नहीं चाहिए॥ 

इसी आशा के साथ – धर्मेंद्र के आर जाटव की वाल से 

3 Comments

  1. सर कैसी बात कर रहे हैं आप,
    इस गांव दूधली में मुस्लिम लोग पिछले 5 साल से आम्बेडकर शोभायात्रा नहीं निकलने दे रहे हैं। और बड़े शर्म की बात है कि हमारे लोग हाथ पर हाथ रखकर इन मुस्लिमों से दब रहे हैं।
    और जनाब, कोई भी जाटव मुस्लिमों को ना मानता है और ना ही उन्हें अपना जिगरी ही समझता है।
    ध्यान रहे चमार शब्द इन्ही मुस्लिमों ने दिया है।

    1. गलत प्रचार ना करें, कब बीजेपी वाले बाबा साहब के भक्त हो गये. ये बृाहमण की चाल है दंगे कराने की

  2. यदि ओबीसी और दलित लोगों के पूर्वज मुस्लिम अत्याचार से घबरा कर खुद मुस्लिम हो गए होते, तो आज भारत भी इराक, जॉर्डन, लीबिया, आदि की तरह अशान्त और दंगा ग्रस्त रहता।
    यह इन्हीं लोगों का प्रताप है कि अपमान सहते हुये भी अपनी धार्मिक आस्था बनाये रखे।
    जमहूरियत के लिये इनकी कुर्बानी की कोई कीमत नहीं हो सकती। और अब बाकी लोगों को इस कीमत या कर्ज को वापस करने की बारी है।
    इसलिये, जब भी किसी ‘दलित’ को देखो तो अल बगदादी का चेहरा याद करते हुये मन ही मन सही, उनको प्रणाम करो!

    जय हिंद!

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