उत्तर प्रदेश पासी समाज नेतृत्व विहीन क्यों ? – अजय प्रकाश सरोज

 

धर्मवीर भारती साहेब से लेकर आर के चौधरी तक

हाल में हुए विधान सभा चुनाव में समाजवादी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे अवधेश प्रसाद,बसपा सरकार में मंत्री इंद्रजीत सरोज और इन दोनों पार्टियों की सरकार में मंत्री रहे आरके चौधरी चुनाव हार गए है। कांग्रेस ने तो पासी समाज से नेता बनाना ही छोड़ दिया है। लेकिन पासी समाज का राजनैतिक इतिहास इससे जुडा है । इसलिए चर्चा करना जरूरी भी है।

उत्तर प्रदेश की राजनीती में पासी समाज का रुतबा 1952 से 1988 तक अपनी उफान पर था । कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते धर्मवीर जी के नेतृत्व में 26 पासी विधायक बनकर असेम्बली पहुचें थे। इस आशा के साथ की केंद्रीय नेतृत्व धर्मवीर जी को मुख्यमंत्री बनायेगा। लेकिन कुछ तत्कालीन ब्राह्मणवादी शक्तियो  के विरोध स्वरूप धर्मवीर जी मुख्यमंत्री की शपथ नहीं ले पाएं। इसी दौरान कांशीराम का आंदोलन चल रहा था । दलितों में चमार समाज के कांगेसी  नेता बाबू जगजीवन राम का प्रभाव शिथिल पड़ चुका था। जिसके  कारण अघिकतर चमार / जाटव समाज के लोग सामिल हो रहे थे। धर्मवीर जी को मुख्यमंत्री   न बनाने पर खुद को छला और ठका हुआ महसूस करने वाला पासी समाज कांशीराम के बहुजन आंदोलन की ओर देखने लगा। तब तक खण्ड विकास अधिकारी रहें राम समुझ पासी ,कांशीराम जी के करीब हो चुके थे  कांशीराम के कहने पर रामसमुझ जी नौकरी से इस्तीफा देकर उनके आंदोलन में शामिल हो गए। उनके साथ पासी समाज वह तबका जो कांग्रेसः की उपेक्षा से गुस्से में था वे सब कांशीराम को अपना नेता मानकर राम समुझ जी के साथ हो लिए। इस तरह कांग्रेस की उपेक्षा का लाभ कांशीराम के आंदोलन को मिल गया। रामसमुझ जी ने पासी बाहुल इलाके में जमकर दौरा करके पासी समाज को बसपा के साथ जोड़ दिया। उसी दौरान फैजाबाद में वक़ालत करने वाले एक पासी युवक से राम समुझ जी की मुलाक़ात हुई । वह युवक आरके चौधरी थे।  बसपा में पढ़े लिखे नौजवानों की आवश्यकता थी। तो रामसमुझ जी ने चौधरी को मान्यवर कांशी राम से मिलाया  और  फिर यही से शुरु होता है। पासी नेता मैनजमेंट।  पार्टी का काम तेजी से आगे बढ़ रहा था। बहुजन नेताओ में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता  शुरू हो गई। कांशीराम जी कहने पर राम समुझ ने  इंदिरा गांधी के बेहद करीबी रहें प्रतापगढ़ के राजा दिनेश सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ गए। जिसमे उन्होने बहुत संघर्ष किया। उस चुनाव में उनकी अम्बेसडर कार तोड़ दिया गया था। लेकिन उन्होंने समंतवादियो के खिलाफ चुनाव लड़ने का  बिगुल फूक दिया । बाद में मायावती की इंट्री होते ही आपसी कम्पीटीशन का दौर शुरू हो गया। अन्ततः रामसमुझ जी को पार्टी से निकाल दिया गया। तब रामसमुझ समर्थको सहित पासी समाज फिर एक बार खुद को छला हुवा महसूस किया। लेकिन पासी समाज का दर्द बाँटने के लिए कांशीराम ने आरके चौधरी  को आगे किया। और फिर  आरके चौधरी पासी समाज के सर्वमान्य नेता हो गए। रामसमुझ जी अलग होकर संघर्ष करने लगे । अपने जीते जी अवामी समता पार्टी सहित कई संघठन चलाये । लेकिन उनकी राजनीति परवान नहीं चढ़ सकी।

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