पासी जाति जिंदा मेढ़क नही , बेहोश हुआ मेढ़क है – अजय प्रकाश

कुछ साथी सुनी सनाई बातें करते हुए कहते है कि ” पासी जाति को इकठ्ठा करना , जिन्दा मेढ़क तौलने के समान है। एक को पकड़ो ,तो दूसरा उछल कर भाग जाता है ” मैं इस विचार को सही नही मानता हुँ ।

अगर ऐसा होता तो मैं इस पासी जाति को बधाई के पात्र समझता । क्योकि उस मेढ़क को पता होता है कि उसकी बिरादरी को छोटे से तराजू में तौल कर बेचा जायेगा । कम से कम उसकी समझ इतनी तो है कि मुझे बिकना नही है। वह अपनी क्षमताओं का प्रयोग कर उछल कर भाग जाता हैं।

लेकिन पासी जाति को कोई भी पार्टी फर्जी मिशन औऱ धार्मिक क्लोरोफार्म का इंजेक्शन लगाकर आराम से तौल कर बेंच लेता है। जब होश आता है तब देर हो चुकी होती है । फिर कुछ वहीं पड़े छटपटाते रहते है ,तो कुछ इधर उधर भागते है । इनका अपना कोई अस्तित्व नही, कोई स्थाई ठिकाना नही।

पासी जाति जिंदा मेढ़क नही बल्कि बेहोश हुआ मेढ़क के समान है । जिसे होश में लाकर नही , क्लोरोफार्म में डालकर , आराम से तौला व बेचा जाता हैं।

ख़ुद यह काम हम इसलिए नही करतें की हम जानते हैं कि यह भविष्य के लिए खतरनाक है। हम अपने लोगों को होश में लाकर ही इकट्ठा करना चाहतें हैं । जो इनको मंजूर नही । जिस दिन होश में आकर यह कौम इकठ्ठा होने को तैयार हो जाएगी उस दिन पूरे देश पर इनका राज होगा।
(संपादक – अजय प्रकाश सरोज )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *