10 मार्च को एनडी टीवी के वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार ने अपने प्राइम टाइम के कार्यक्रम में पासी जाति की संख्या 14 प्रतिशत बताया है जो बिलकुल गलत है। जाटवों की संख्या को उन्होंने 56 ℅ बताया यह आंकड़ा भी झूठ है ।
रवीश जी को मैं अक्सर आंकड़े के साथ ही बोलते देखा है लेकिन यह आंकड़ा जहां से उन्होंने लिया है यह सही नहीं है। यह प्रश्न उस वेबसाइट पर तो खड़ा होता ही है जहाँ से उन्होंने यह आंकड़ा निकाला है। साथ में रविश कुमार पर भी है कि इतने जागरूक पत्रकार होंते हुए उन्होंने जल्दबाजी में बिना पड़ताल के यह आंकड़ा प्रस्तुत किया ?
उत्तर प्रदेश में 66 जातियों का समूह अनुसूचित जातियों का है । जिसमें जाटवों की संख्या कम है। लेकिन सत्र 1981में कांग्रेसी नेता जग जीवनराम सहित उत्तर प्रदेश में राजनीति की फ़सल उगाने को उत्सुक जाटव नेताओ ने बड़ी चालाकी से उत्तर प्रदेश की धुसिया,झुसिया,चमार ,और अधिकांश मात्रा में पाये जाने वाली मोची जाति को मिलवा लिया । यह सभी जातियां 1971 तक अलग अलग थीं।
जिसे बाद कांशीराम के रहते मायावती अपने मुख्यमंत्रित्व काल और मज़बूत किया । जाटवों ने यह सब काम दूरदृष्टि रखते हुए सत्ता की हनक से की थीं। यहीं नहीं बसपा के सरकार में कोरी जाति का प्रमाण देना बंद करा दिया । लेखपाल कोरी से बोलता था कि चमार का सर्टिफिकेट बनेगा ?
मायावती ने सत्ता का दुर्योपयोग करते हुए जाटवों के साथ अन्य पाँच जातियों को मिलाकर अपनी संख्या बढ़ा ली। जिसकी सही आंकड़ा 52% है । लेकिन पासी समाज की संख्या उपजातियों सहित लगभग 25% है।
मायावती अपनी बसपा सरकार में इन्हें अलग रखने का षड़यंत्र करती रही। पासी जाति की संख्या को तोड़ दिया गया। जिसकी संख्या 16 प्रतिशत बची है। लेकिन आज भी पासी की रावत जाति सहित कई उपजातियों को पासी का प्रमाण पत्र मिलता है ।
लेकिन इनकी संख्या पासी के साथ नहीं जोड़ी जाती है। यह पासी जाति की जातीय संख्या पर गंभीर हमला है। आपको जानकर आश्चर्य होगा, 1881 में जनगणना आयुक्त नेस्फील्ड के आंकड़े के अनुसार पासी जाति की संख्या चमारों से 26 गुना ज्यादा थीं।
रविश कुमार के इस तरह गैर जिम्मेदार ख़बर पर श्रीपासी सत्ता अपना आपत्ति दर्ज करवाता है। और सलाह देता है कि एक जिम्मेदार पत्रकार की विश्वनियता बनाये रखने के लिए अपनी इस गलती के लिए पासी समाज से माफ़ी मांगना चाहिए । – अजय सरोज ( सम्पादक श्री पासी सत्ता )