संघ मुक्त भारत से संघ युक्त क्यों हुए नीतीश कुमार ?

•अजय प्रकाश सरोज 

बात वर्ष 2014 में हुए लोकसभा से शुरू करता हूँ जब भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा बनाना तय किया। तब बिहार में भाजपा के सहयोग से चल रहीं नीतीश ने सरकार गिरा दीं। क्योंकि नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी का चेहरा पसन्द नही था। उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी पर गुजरात में दंगे कराने का गम्भीर आरोप है। 

बिहार में सरकार गिरने के बाद नीतीश ने लालू यादव से समर्थन मंगा तो धुर विरोधी लालू की पार्टी ने नीतीश को समर्थन देकर सरकार बचा ली । नीतीश पुनः मुख्यमंत्री बनें फिर लोक सभा का चुनाव हुआ तो नरेंद्र मोदी चुनाव भारी बहुमत से जीतकर प्रधानमंत्री बन गए। नरेंद्र मोदी की जीत नीतीश कुमार पचा नही पाएं तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देकर जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन जल्दी ही राजनीतिक भविष्य पर संकट देखा तो मांझी को हटा कर पुनः मुख्यमंत्री बन बैठे । मांझी ने कहा था कि नीतीश सत्ता के लोभी है बिना सत्ता के वो नही रह सकते ,उनका सत्ता का त्याग सिर्फ दिखावा हैं। 
फिर विधानसभा के चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू के  राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन किया जिसमें कांग्रेस भी शामिल हुई। धर्मनिर्पेक्षता वाले इस गठबंधन को बिहार की जनता ने मुहर लगा दी ,गठबंधन की सरकार बन गई। जिसमे मुख्यमंत्री पुनः नीतीश कुमार ही बनें। लेकिन 20 महीने बाद नीतीश ने तेजस्वी पर लगे आरोप का हवाला देकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिए। और राष्ट्रीय जनता दल ,कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर चौबीस घण्टे के अंदर अपने विरोधी भाजपा से गठबंधन बनाकर पुनः मुख्यमंत्री बन गए। 

सवाल यह है कि नीतीश को बार बार इस्तीफ़ा देना फिर मुख्यमंत्री की शपथ लेने में इतनी दिलचस्पी क्यों है ? लोकसभा चुनाव में भाजपा से हारने के बाद ही नीतीश ने विपक्ष की गोलबंदी करनी शुरू की। भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ खूब बोलते रहे। यहां तक कह दिया कि मिट्टी में मिल जाऊंगा लेकिन दुबारा भाजपा से हाथ नही मिलाऊँगा । संघ मुक्त भारत का नारा देकर नीतीश ने विपक्षी पार्टियों को एक करने का अभियान शुरू किए। 

उत्तर प्रदेश में भी कई रैलियां करके गठबंधन को मजबूत करने लिए सपा – बसपा को साथ आने के लिए न्योता दिया। लेकिन बात बनी नही ।  इस दौरान उत्तर प्रदेश में चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल और आरके चौधरी के नेतृत्व वाली बीएस4 के साथ इनका सम्बन्ध कुछ महीनों तक चला लेकिन यह गठबंधन परवान नही चढ़ा पाया।
केंद्रीय राजनीति में जाने को उत्सुक नीतीश कुमार ने विपक्ष के कई नेताओ से सम्पर्क किया। जिसमे अरविंद केजरीवाल ,ममता बनर्जी आदि शामिल है। सबकी सहमति लेकर नीतीश तेजी से आगे बढ़ रहे थे लेकिन उनकी पार्टी का संघठन बिहार के अलावा कहीं मजबूत न होने के कारण नीतीश चाहते थे कि कांग्रेस उन्हें अपना प्रत्यासी बनाये इसकी पुष्टि उनके इस बयान से किया जा सकता है कि ”जब हम भाजपा के खिलाफ़ बोलना शुरू करते है तो कांग्रेस बीच मे रोड़ा डाल देती है। ” इसका मतलब कांग्रेस नीतीश को अपना प्रधानमंत्री का चेहरा नही बनाना चाहती  थीं ।

 कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों की मदत से मोदी पर हमला करना तो चाहती है लेकिन किसी अन्य नेता को चेहरा बनाना नही चाहती। लोकसभा के चुनाव में रामविलास पासवान ने भी कांग्रेस पर इसी तरह का आरोप लगा लगाया था। भाजपा से गठनबधन के समय राम विलास पासवान और चिराग पासवान ने कई बार कहा कि हम अपने पुराने साथी कांग्रेस को छोड़ना नही चाहते थे लेकिन गठबधन को लेकर राहुल गांधी और सोनिया से समय मांगा तो समय नही दिए । कई महीने इंतजार के बाद हमने एनडीए में जाने का फैसला लिया। 

सम्भव है नीतीश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ हो कि नीतीश की छवि मोदी के खिलाफ एक बड़े चेहरे के रूप में देश मे देखा जाने लगा था लोग नीतीश को लेकर चर्चाएं शुरु कर रहे थें लेकिन यह कांग्रेस को नागवार गुजर रहा था कि भाजपा के सत्ता से ऊब कर जनता फिर कांग्रेस को ही सत्ता सौंपीगी ,तो नीतीश को चेहरा क्यों बनाएं।
 जबकि नीतीश बार बार यह कह रहे थे कि विपक्ष अपना एजेंडा तय करें प्रतिक्रिया की राजनीति देश की जनता के लिए ठीक नही। परन्तु कांग्रेस आलाकमान ने कोई फैशला नही लिया। तेजस्वी के मामले में भी नीतीश ने राहुल से हस्तपक्षेप की मांग की लेकिन कुछ न हुआ। पिछले दिनों रामचंद्र गुहा ने लिखा था कि कांग्रेस को चाहिए की नीतीश को अपना नेता मान लेना चाहिए क्योंकि नीतीश बिना पार्टी के नेता है और कांग्रेस बिना नेता की पार्टी हो चुकी है। लेकिन कांग्रेस ऐसा करना मुनासिफ नही समझा। 

यहीं कारण की सारा देश घूम कर नाउम्मीद नीतीश कुमार पुनः मुख्यमंत्री बने रहने का फैसला लिया , और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ ही कांग्रेस को भी सत्ता से बाहर करके ठेंगा दिखाया । इस कारण नीतीश अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को त्याग कर संघ युक्त बिहार का रास्ता चुन लिया। 
(लेखक-नेहरू ग्राम भारती विश्वद्यालय में पत्रकारिता एवं जनसंचार का शोधार्थी है)

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