ब्राह्मण मजदूर कैसे जान गया कि किचेन में चिकेन बन रहा है ?

रविवार का दिन पापा के लिये नॉनवेज का दिन होता है । उन्हें बहुत पसंद है इधर कुछ दिनों से हमारे यहाँ माकान मरम्मत का काम चल रहा तो कुछ नॉनवेज बन नहीं रहा था । आज छुट्टी के दिन पापा का मन नहीं माना तो नॉनवेज ले आये।
अब पासी के घर में मीट बने तो है तो खुशबू तो आएगी। देशी मशालों की खुशबू किचेन के बाहर भी गई तो काम करने वाले मजदूर बोल वैठे क़ि आज कुछ विशेष बन रहा है । 

 पूछने पर मैंने कहा अंदाजा लगाओ बोला जरूर चिकेन बन रहा है। हमने भी बड़े सरल स्वाभाव से बोल दिया चिकेन नहीं बकरे का मीट है। तो उनके चेहरर पर कुछ अलग ही भाव दिखे मेने पूछ लिया क्यों आपलोग नहीं खाते । वो बोले हम ब्राम्हण है । तो चिकेन की महक कैसे जान गए ? कुछ शरमा के रह गया..

पापा बताया कि 50 वर्ष पहले यंही लोग कितनी क्रूर हुवा करते थे । यह लोकतंत्र का कमाल है जिसकी वजह से एक ब्राह्मण मजदूरी के लिए हमारे किसी भी जाति के घर काम कर लेते है। वरना एक समय था जब इनकी जाति के लोग शुद्र के घर पानी तक पीना पसंद नहीं करते थे। अत्यचार ऊपर से करते थे। मुझे लगा कि सच में मेरे कालेज की ब्राह्मण लड़कियां अपने जाति पे कितना घमण्ड करती थीं। समय का बदलाव है कि रोजी रोटी के लिए एक ब्राह्मण एक पासी अनुसूचित के यहाँ काम कर रहा । रोजी रोटी के लिए कोई जात पात नहीं देखते तो इतना ढोंग क्यों करते है। पैसे में कोई छूत नहीं लगती लेकिन वही इंसान अगर उनके घर के किसी बर्तन में पानी पी ले तो उसे क्या से क्या नहीं सहन करना पड़ता है। तो क्या आर्थिक सम्पनता ही जातीय बन्दन को तोड़ रही है ? 

लोक तंत्र का उत्सव है वोट देने जरूर जाइये। सामाजिक परिवर्तन होकर रहेगा। –रागिनी पासी, इलाहाबाद

4 Comments

  1. प्रिय रागिनी जी मैं आपके पत्रिका में अपने कुछ विचारों को शेयर करना चाहता हूँ किस मेल पर भेजना है । लिखना

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