मायावती राज्यसभा से इस्तीफा दे ना गहरी राजनीति तो नहीं ?

Date -19/07/2017, Shripasi satta ,Allahabad

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी ( बसपा ) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने मंगलवार को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. राज्यसभा के सभापति को भेजे गए तीन पन्ने के इस्तीफे में उन्होंने सहारनपुर कांड और देश के अन्य हिस्सों में दलितों पर हो रहे अत्याचार पर उन्हें न बोले देने की बात कही है. लिखा है कि उन्हें इस गम्भीर मुद्दे पर बोलने के लिए सिर्फ तीन मिनट का समय दिया गया. क्या इतने कम समय में इस मुद्दे पर बोला जा सकता है ? इस पर सत्ता पक्ष के सदस्य लगातार शोर मचाते रहे. सभापति से आग्रह के बाद भी उन्हें तो बोलने से नहीं रोका गया, लेकिन मुझे बैठने के लिए कह दिया गया. जब सदन में बोल ही नहीं सकते तो हम सदस्यता से इस्तीफा दे देंगे . शाम होते-होते उन्होंने राज्यसभा के सभापति को इस्तीफा भेज दिया.
*उप चुनाव में भाजपा, बसपा और गठबंधन की प्रतिष्ठा दांव पर*
यह इस्तीफा कई बिंदुओं पर मंथन करने को विवश करता है. परिणाम जो भी निकले, लेकिन राजनीति में हर कदम फूंक-फूंक कर उठाया जाता है. मायावती का यह कदम भी भावावेश में उठाया गया कदम तो नहीं ही होगा. वह लंबे समय से राजनीति में हैं. इसलिए अच्छी तरह से जानतीं होंगी कि वह किस मुद्दे पर बोलने जा रहीं हैं और सत्ता पक्ष की ओर से इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी. इसके बाद उन्हें क्या फैसला लेना है.

2012 में पराजय के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था. उस वक्त वह विधानपरिषद सदस्य थीं. उन्होंने विधानपरिषद की सदस्यता से इस्तीफा दिया और राज्यसभा के लिए फार्म भरा. उस वक्त बसपा के 89 सदस्य थे और वह राज्यसभा के लिए चुन ली गईं. अब यह कार्यकाल 3 अप्रैल 2018 को समाप्त हो रहा है. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मात्र 19 सीट पर ही बसपा सदस्य जीत हासिल कर सके. ये संख्या इतनी कम है कि न तो वह विधानपरिषद और न ही राज्यसभा सदस्य बन सकती हैं. अब उनके सामने 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़ना ही एकमात्र विकल्प है. उनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने में सिर्फ 8-9 महीने बचे हैं, इसलिए इस्तीफा देने में कोई हर्ज नहीं है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य वर्तमान में क्रमशः गोरखपुर और इलाहाबाद जिले के फूलपुर से सांसद हैं. उपरोक्त पद पर बने रहने के लिए सांसद की सीट से इस्तीफा देकर विधानसभा चुनाव जीतना होगा. लोकसभा की खाली हुई सीट के लिए भी उप चुनाव होगा. आम लोगों के बीच चर्चा है कि योगी आदित्यनाथ की खाली हुई सीट पर तो भाजपा फिर से परचम लहराएगी, लेकिन फूलपुर सीट से मायावती मैदान में उतर सकती हैं और उन्हें विपक्ष के सभी दलों का समर्थन भी मिल सकता है. ऐसी स्थिति में भाजपा को इस सीट को बचाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है. मायावती के राजनीतिक कैरियर के लिए भी यह खास है. यदि वह इस उप चुनाव में विजयी हुईं तो 2019 का लोकसभा का आम चुनाव भाजपा की कड़ी परीक्षा लेगा. यदि हार गईं तो कैरियर खत्म. यानी उप चुनाव में भाजपा, बसपा और यदि गठबंधन बना तो, तीनों की प्रतिष्ठा दांव पर है.
*इस्तीफा स्वीकार होगा*
मायावती ने तीन पन्ने का इस्तीफा दिया है. नियम के मुताबिक त्यागपत्र सिर्फ दो लाइन का होता है. इसमें सफाई और कारण का विवरण नहीं होता. ऐसे में क्या इस्तीफा स्वीकार होगा ? या सिर्फ शिगूफा है ? दलितों तक सिर्फ संदेश पहुंचाना है कि उनकी आवाज को सदन में दबाया जा रहा है और वे अगले लोकसभा चुनाव में बसपा को ही जिताएं, जिससे कोई उनको न तो नुकसान पहुंचा सके और न ही उनकी आवाज को दबा सके. खैर ये तो चर्चा और आकलन है, कारण तो मायावती जानतीं होंगी या समय बता देगा.

रिपोर्ट_ उमा शंकर 

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