अमरनाथ हमला – कई अनसुलझे रहस्य , निंदा करने और कराने के बजाय कड़ी कारवाई करे मोदी


एक तरफ अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले को लेकर पूरा देश स्तब्ध है तो वही पीएम मोदी इस घटने की निष्पक्ष जांच और कड़ी कारवाई करने के बजाय कड़ी निंदा करने और कराने में लगे हुए है। अमरनाथ यात्रा हमले में कई अनसुलझे रहस्य है जिनकी जाँच होनी अनिवार्य है और जाँच में सामने आई गलतियों या सुरक्षा -व्यवस्था में हुई भूल को सुधारना अनिवार्य है । पहली और सबसे बड़ी बात की जिस बस पर हमला हुआ वो बस अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्टर्ड नही था और जिस मार्ग से बस जा रही थी वो मार्ग भी यात्रा के लिये अधिकृत नही थी ऐसे में वो बस उस रास्ते पर कैसे चली गयी थी ये भी एक सवाल है और इसमें सुरक्षाकर्मियों की भी भारी चूक नजर आती है ।तनावपूर्ण माहौल के बिच अनधिकृत मार्ग पर बिना रजिस्ट्रेशन वाली बस का चलना खतरे से खाली नही था और यही हुआ भी हमले का डर था और हमला भी हुआ । ये जाँच पड़ताल और इन्क्वायरी का विषय है की गुजरात के तीर्थयात्री कैसे बिना रजिस्ट्रेशन वाली बस में सवार हुए और अनधिकृत मार्ग से अमरनाथ की और रवाना हुए । एक बात और ये अमरनाथ हमला हमेशा भाजपा के शासन काल में ही क्यों होता है आपको बता दे की पिछली बार 2000 ई में अटल बिहारी बाजपेयी के शासन में अमरनाथ हमला हुआ था और अब इस बार मोदी के शासन में हमला हुआ जिसमे गुजराती मारे गए ये बात भी मन में एक सवाल पैदा करता है । दूसरी बात यह है की अमरनाथ यात्रा पर आतंकियों की नजर रहती ही है वजह है हमला करने से दो समुदायो के लोगो के बिच नफरत और बिभेद हो सकता है और आतंकियों का उद्देश्य भी यही होता है।अब सवाल यह है की इतनी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बाद भी एक अनधिकृत रास्ते पर बस दौड़ कैसे रही थी ? जाहिर है यह सुरक्षा व्यवस्था की चूक है।इसीलिए सिर्फ यात्रियों को ही जिम्मेवार नही ठहराया जा सकता बल्कि पुलिस-व्यवस्था की गड़बड़ी की भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। कही किसी तरह के भ्रष्टाचार का पोषण करके निजी गाड़िया सड़को पर तो नही दौड़ रही ? इसकी भी जांच होनी चाहिए। 

इन हमलो से निपटने का एकमात्र ही तरीका है बंदूक का जबाब बंदूक। बेशक हम राजनितिक समाधान तलाशे, बातचीत करे, पर जो बंदूक लेकर आए उसे गोली के जरिये ही जबाब दे केवल कड़ी निंदा करना ही इसका उपाय नही है। प्रधानमन्त्री मोदी ने लोकसभा के चुनाव के दौरान चुनावी रैली में कहा था की बन्दुक और बम की आवाज में बातचीत की आवाज सुनाई नही देती । मगर भारत की बिडम्बना यह है की चुनाव में कही गयी बातो पर सत्ता में आने पर अमल नही किया जाता ।जबकि हमारी राष्ट्रीय नीति भी यही होनी चाहिए, गोली और गोली का जबाब गोली और बम ही है ,और जो वार्ता के इच्छुक है , वह पहले संघर्ष विराम करे। दोनों चीजे एक साथ नही चल सकती ।

  इन हमलो का जबाब पीएम मोदी, रक्षा मंत्री जेटली ,और गृह मंत्री राजनाथ सिंह गोली और  बम से ही दे केवल निंदा और कड़ी निंदा से काम नही चलने वाला । उनलोगो को आपके कड़ी निंदा करने से कोई परवाह नही पड़ता । वो लोग बदस्तूर हमले जारी रखे और आपलोग अपने दो विश्वविख्यात शस्त्र निंदा और कड़ी निंदा का उचित अवसर देखकर प्रयोग करते रहे । 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *