क्या दलित-चमार न्याय के लिए खुद की जाति से बगावत नही करता ?

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा.विक्रम हरिजन के हिन्दू देवी देवताओं को अपमानित करने वाला बयान इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ हैं. जिसे लेकर विश्विद्यालय प्रशासन काफी नाराज हैं. प्रोफेसर के इस हरकतों से इलाहाबाद विश्वविद्यालय की गरिमा को ठेस पहुँचाया ही, साथ ही साथ दलितों में गुरु – शिष्य परंपरा पर नए सवाल खड़ा कर दिए हैं.

मामला डॉ. विक्रम के निर्देशन में शोध करने वाले रंजीत कुमार सरोज से जुड़ा हैं.डॉ विक्रम पर अपने ही शोध छात्र द्वारा शारिरिक , मानसिक और आर्थिक रूप से शोषण करने का गम्भीर आरोप हैं. जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन भी बखूबी जान गया है कि विक्रम ने रंजीत के शैक्षिक कैरियर के साथ खिलवाड़ किया हैं. उसकी फेलोशिप को 7 माह से रोक रखी हैं. एक सभ्य निर्देशक की तरह उनके प्रगति रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नही कर रहें हैं उल्टे उस पर बेबुनियादी आरोप लगाकर पीएचडी निरस्त कराने की बात कह रहे हैं. कुल मिलाकर रंजीत सरोज के कैरियर को बर्बाद करने के लिए डॉ विक्रम उस हद तक गए जहाँ भेदभाव करने वालें ब्राह्मण / सवर्ण भी शरमा जाएं ।

लेकिन फिर भी इनके समर्थन में इनकी जाति के एक चन्दाखोर संगठन समर्थन में उतरा हैं, जिसके 100 सदस्य भी शहर में नही हैं। अब सवाल उठता है कि दलितों में चमार जाति अन्याय और शोषण करने वाले खुद के जाति के साथ क्यों खड़ा हैं? क्या उसे न्याय के साथ नही खड़ा होना चाहिए ?

इलाहाबाद में पासी समाज का गढ़ हैं। क्या कोई भी जाति पासियों पर अन्याय अत्याचार करके सुरक्षित रह सकता हैं? जिला प्रशासन से उम्मीद हैं कि स्थिति बिगड़ने से पहले इस मामले को सुलझा लें वरना सब्र का बांध टूटेगा तो अत्यचार करने वालों की खैर नही होगी !

दलितों के नाम पर कतिथ संगठन अपनी हद में रहें और न्याय के साथ खड़े हो, वरना उनके अन्यायी जातीय चरित्र को पूरा देश देखेगा ।
सावधान ! खबरदार !

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